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स्वास्थ्य देखभाल वित्त : समस्याएँ एवं उनमें सुधार की आवश्यकता

  • 22 Sep 2017
  • 12 min read

भूमिका

पिछले कुछ समय से केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा देश की स्वास्थ्य देखभाल संबंधी व्यवस्थाओं में सुधार करने के प्रयास किये जा रहे हैं। इन सुधारों के अंतर्गत जहाँ एक ओर पहले से मौजूद बहुत सी योजनाओं एवं कार्यक्रमों में आवश्यकतानुसार परिवर्तन करते हुए उन्हें वर्तमान समय की ज़रूरतों के अनुरूप ढला दिया गया है, वहीं दूसरी ओर बहुत से नए कार्यक्रमों को भी शुरु किया गया है। परंतु इसके बावजूद स्वास्थ्य देखभाल में वैसे परिणाम देखने को नहीं मिल रहे हैं जिन परिणामों की अपेक्षा की गई थी। इन्हीं कारणों की उत्पत्ति और समाधान का इस लेख में विश्लेषण प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।

वास्तविक समस्या क्या है?

  • भारत में स्वास्थ्य देखभाल सुधारों के संबंध में सबसे बड़ी समस्या स्वास्थ्य वित्त की है। 
  • हाल ही में सरकार द्वारा स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में एक बड़ा सुधार करते हुए राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (Rashtriya Swasthya Bima Yojana - RSBY) के अंतर्गत बीमा कवरेज़ को 30,000 से बढ़ाकर 1 लाख रुपए कर दिया गया है। इसका एकमात्र उद्देश्य एक लंबे समय तक स्वास्थ्य देखभाल हेतु वित्त की उपलब्धता को सुनिश्चित करना था। 
  • हालाँकि, विश्व के कई अन्य देशों द्वारा किये गए ऐसे सुधारों का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि ऐसे निर्णय देश को एक खराब संतुलन की ओर ले जा रहे हैं। यदि भविष्य में भारत ऐसे ही निर्णय करता रहा तो इसे अमेरिका के स्तर पर पहुँचने के लिये अपने कुल घरेलू सकल उत्पाद का कम से कम 18% स्वास्थ्य पर खर्च करना होगा।
  • स्वास्थ्य वित्तपोषण की मौजूदा "प्रणाली" (स्वास्थ्य बीमा प्रदान में आने वाले कर संबंधी व्यवधानों के कारण) काफी हद तक आम लोगों की भुगतान - क्षमता से बाहर है। 
  • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण आँकड़ों से पता चलता है कि सामान्यतः भारतीय परिवार (ग्रामीण और शहरी दोनों) स्वास्थ्य देखभाल हेतु मात्र अपनी आय पर निर्भर करते हैं। 
  • यही कारण है कि स्वास्थ्य देखभाल के खर्चों को वहन करने के लिये बचत पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाता है।
  • वर्ष 2007 और 2010 के बीच दक्षिण भारत की कई राज्य सरकारों द्वारा गरीबों की माध्यमिक और तृतीयक देखभाल हेतु सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित बीमा मॉडल अपनाए गए।
  • इसी प्रकार वर्ष 2008 में केंद्रीय सरकार द्वारा आर.एस.बी.वाई. को अपनाया गया।

स्वास्थ्य बीमा कवरेज़ के डाटा के आँकड़ों के अनुसार

  • स्वास्थ्य बीमा कवरेज़ के डाटा से प्राप्त जानकारी के अनुसार, जैसा की हम सभी जानते हैं कि निजी स्वास्थ्य बीमा सुविधा काफी हद तक अमीर शहरी परिवारों तक ही सीमित है, जबकि सार्वजनिक बीमा कवरेज को देश की समस्त आबादी के मध्य एक-समान रूप से वितरित किया जाता है।
  • हालाँकि, इन सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा योजनाओं को औसत परिवारों के निम्न स्वास्थ्य बोझ से संबद्ध नहीं किया गया है। 
  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2005 के बाद से सामान्य भारतीय परिवारों के आउट-ऑफ-जेब खर्च (क्षमता से अधिक जेब खर्च) में काफी वृद्धि हुई है। 
  • आँकड़ों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, पिछले कुछ समय से स्वास्थ्य बीमा से जुड़ी सेवाओं (विशेष रूप से अस्पताल में भर्ती होने वाले रोगियों द्वारा) के उपयोग में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है।
  • हालाँकि इन भर्तियों का एक अर्थ यह भी हो सकता है कि बीमारियों से पीड़ित लोग बीमा कवरेज होने के कारण इलाज कराने में अधिक दिलचस्पी रखते हों अथवा बीमा योजनाओं को इस प्रकार से बनाया जा रहा हो कि अधिक से अधिक लोग अपनी स्वास्थ्य समस्याओं हेतु अस्पताल में भर्ती होने के विकल्प पर विचार करें। इसकी सबसे सटीक व्याख्या पिछले 15 सालों में भारत में सीज़ेरियन सेक्शन (Caesarean Section) में हुई भारी वृद्धि के माध्यम से की जा सकती है।
  • इसका कारण चाहे जो भी हो, इस संबंध में सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की लागत में हो रही दिनोंदिन वृद्धि जहाँ एक ओर आम भारतीय परिवार को अपनी क्षमता से अधिक खर्च करने को विवश करती है, वहीं दूसरी ओर इसके संबंध में पर्याप्त व्यवस्थाओं की गैर-मौजूदगी की ओर भी इशारा करती है। 

अन्य चिंताएँ

  • इसके अतिरिक्त एक अन्य समस्या यह है कि अत्यधिक गरीब परिवार निम्न वित्तीय साक्षरता और जागरूकता के कारण अपने स्वास्थ्य बीमा कवरेज का सही से उपयोग तक नहीं कर पाते हैं। संभवतः इसीलिये गरीब परिवारों द्वारा बीमा कवरेज के संबंध में सबसे कम दावे प्रस्तुत किये जाते हैं। 
  • भारत जैसे तेज़ी से प्रगतिशील राष्ट्र के लिये यह एक विडंबना ही है, क्योंकि भारत में संचालित अधिकांशत: सरकारी वित्त पोषित स्वास्थ्य बीमा योजनाओं का उद्देश्य अधिक से अधिक लोगों को इन योजनाओं के दायरे में लाना है।
  • स्वास्थ्य देखभाल के वित्तपोषण हेतु बीमा योजनाओं को एक खराब मॉडल के रूप में जाना जाता है। इसका सबसे अहम् कारण यह है कि यह गंभीर सूचना विषमताओं से ग्रसित क्षेत्र है। 
  • एक स्वैच्छिक बीमा बाज़ार में एक प्रतिकूल चयन समस्या आती है, जहाँ औसत रूप से बीमा खरीदने वाले लोग देश की औसत आबादी की तुलना में अधिक बीमार होते हैं। यह तथ्य बीमा योजनाओं के प्रसार को और अधिक जोखिम भरा बना देता है। 
  • हालाँकि, भारत के विपरीत अधिकांश विकसित देशों में स्वास्थ्य बीमा संबंधी प्रावधान को देश के सभी निवासियों के लिये एक अनिवार्य घटक के रूप में स्थापित किया गया है।
  • इस संबंध में दूसरी बड़ी चिंता नैतिकता से उत्पन्न खतरे की है। ग्राहकों के साथ-साथ डॉक्टरों द्वारा अधिक से अधिक चिकित्सकीय उपकरणों के उपयोग पर ज़ोर दिया जाता है। 
  • एक आम धारणा के अनुसार, इलाज़ में जितने अच्छे एवं महँगे उपकरणों का उपयोग किया जाएगा, उतना ही बेहतर ढंग से प्रभावी उपचार संभव भी हो पाएगा। स्पष्ट रूप से इससे स्वास्थ्य सुविधाओं की लागत बढ़ जाती है। 
  • यहाँ समस्या यह है कि स्वास्थ्य हेतु प्रदत्त बीमा सुविधाओं में इसकी लागत को नियंत्रित करने संबंधी किसी प्रकार का कोई प्रोत्साहन नहीं दिया गया है। 
  • बहुत से विकसित देशों में कर-वित्तपोषित, एकल भुगतान व्यवस्था मौजूद है, जहाँ सरकार नागरिकों की स्वास्थ्य देखभाल लागतों का भुगतान करती है। 
  • हालाँकि इनमें से ज़्यादातर देशों में काफी बेहतर सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्थाएँ मौजूद हैं। यह और बात है कि वर्तमान में ये व्यवस्थाएँ  स्थिरता संकट (sustainability crisis) का सामना कर रही हैं।

आगे की राह

  • स्वास्थ्य देखभाल प्रशासन (Healthcare Governance) में भारत की खराब स्थिति सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में एकल भुगतानकर्त्ता के रूप में सरकार की क्षमता के संबंध में संदेह उत्पन्न करती है। 
  • हालाँकि, इस संबंध में बहुत गहराई से विचार किये जाने की आवश्यकता है, क्योंकि यदि भारत जैसे विकासशील देश में ऐसा करना संभव हो पाता है तो, यह संपूर्ण देश में एक परिवर्तनकारी मनोदशा को बढ़ावा देने का काम करेगा।
  • भारत को स्वास्थ्य देखभाल वित्तपोषण के संबंध में नए विकल्पों के प्रयोगों पर भी विचार करना चाहिये। मेडिकल बचत खाता (Medical savings accounts - MSAs) एक ऐसा विकल्प है।
  • सिंगापुर द्वारा वर्ष 1984 में एम.एस.ए. को अपनाया गया था, जो पूर्णतया सफल साबित हुआ। सिंगापुर की सफलता के बाद, चीन द्वारा शहरी क्षेत्रों के लिये एम.एस.ए. को अपनाया गया। 
  • ये उच्च कटौती बीमा (High Deductible Insurance) के पूरक होते हैं (एम.एस.ए. द्वारा पहले ही चुकाई गई बड़ी राशि के बाद) साथ ही इनके अंतर्गत सरकार द्वारा उन लोगों की स्वास्थ्य सेवाओं के संबंध में भुगतान किया जाता है, जो स्वयं का खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं।

निष्कर्ष

स्वास्थ्य सेवाओं के संबंध में यह जानना बहुत महत्त्वपूर्ण है कि यदि कोई देश इस संबंध में वित्तपोषण मॉडल को सही रूप में अपना भी लेता है तो भी यह क्षेत्र कम उत्पादकता वृद्धि के साथ-साथ अधिक श्रम-गहन क्षेत्र साबित होता है। इसका अर्थ यह है कि जब अन्य क्षेत्रों में उच्च उत्पादकता वृद्धि होती है, तो उन क्षेत्रों द्वारा भूमि और मानव पूंजी के लिये अधिक प्रतिस्पर्धी कीमतों की पेशकश की जाती है, जोकि स्वाभाविक भी है क्योंकि इसे उत्पादकता लाभों के साथ समायोजित किया जा सकता है। स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में कहानी इसके विपरीत है, यहाँ निवेश तो अधिक होता है, परंतु उत्पादकता में किसी प्रकार के लाभ का समायोजन नहीं होता है। नतीजतन या तो स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की कीमत में बढ़ोतरी होती है या फिर गुणवत्ता में कमी आती है। भारत सरकार द्वारा देश की स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में निवेश के साथ-साथ विकसित देशों में प्रचलित एवं सफल प्रणालियों के संबंध में भी विचार किये जाने की ज़रूरत है, ताकि देश के प्रत्येक नागरिक तक इन सुविधाओं की पहुँच को सुनिश्चित किया जा सके। 

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