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भारतीय अर्थव्यवस्था

वैश्विक FDI गंतव्य के रूप में भारत का सशक्तीकरण

  • 29 Dec 2025
  • 176 min read

यह एडिटोरियल 26/12/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “Fragile attractiveness: on the latest FDI data and India” शीर्षक वाले लेख पर आधारित है। यह लेख इस तथ्य को रेखांकित करता है कि वैश्विक निवेश गंतव्य के रूप में भारत की स्थिति एक नाजुक आधार पर टिकी हुई है, साथ ही भारत की FDI आकर्षण क्षमता को सुदृढ़ एवं स्थायी बनाने के लिये गहन संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता पर भी बल देता है।

प्रिलिम्स के लिये: प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI), मेक इन इंडिया, भूमि सुधार, लॉजिस्टिक्स क्षेत्र

मेन्स के लिये: प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के रुझान और क्षेत्रवार योगदान, प्रमुख मुद्दे और उपाय।

भारत में हाल ही में आए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के रुझान बताते हैं कि वैश्विक निवेशकों का भरोसा कितना कमज़ोर हो सकता है, क्योंकि अमेरिका द्वारा टैरिफ़ की घोषणा जैसे एक बाहरी आघात से भी पूंजी का बहिर्वाह शुरू हो गया। हालाँकि भारत विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, लेकिन FDI में आकस्मिक आई गिरावट यह दर्शाती है कि केवल विकास की कहानियों से निवेशकों का भरोसा कायम नहीं रह सकता। साथ ही, भारत अपने विशाल बाज़ार, सुधारों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण एवं विनिर्माण क्षमता के कारण दीर्घकालिक निवेशकों को आकर्षित करता रहता है। नीतिगत स्थिरता और संरचनात्मक सुधारों को सुदृढ़ करने से इस अंतर्निहित क्षमता को स्थिर एवं निरंतर निवेश प्रवाह में परिवर्तित करने में सहायता मिल सकती है।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश क्या है?

  • परिचय: प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), जैसा कि आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) द्वारा परिभाषित किया गया है, एक अर्थव्यवस्था में निवासी इकाई द्वारा किये गए निवेश को संदर्भित करता है, जिसका उद्देश्य दूसरी अर्थव्यवस्था में किसी उद्यम के प्रबंधन पर स्थायी हित एवं महत्त्वपूर्ण स्तर का प्रभाव या नियंत्रण स्थापित करना है।
    • यह FPI (विदेशी पोर्टफोलियो निवेश) से अलग है, जिसमें विदेशी संस्थाएँ स्थानीय व्यवसायों पर नियंत्रण हासिल किये बिना किसी देश की वित्तीय संपत्तियों जैसे स्टॉक, बॉण्ड, म्यूचुअल फंड या ETF में निवेश करती हैं।
    • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को भुगतान संतुलन के वित्तीय खाते में दर्ज किया जाता है क्योंकि इसमें दीर्घकालिक सीमा पार पूंजी प्रवाह शामिल होता है। यह स्वामित्व, प्रबंधन नियंत्रण और प्रौद्योगिकी अंतरण के माध्यम से मेज़बान अर्थव्यवस्था में एक स्थिर एवं स्थायी हिस्सेदारी को दर्शाता है। 
      • उदाहरण के लिये, टोयोटा द्वारा भारत में विनिर्माण संयंत्र स्थापित करना प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का एक उदाहरण है, जो रोज़गार सृजन करता है, उत्पादकता को बढ़ावा देता है तथा भारत को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में एकीकृत करता है।
  • भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मार्ग
    • स्वचालित मार्ग: अधिकांश क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लिये सरकार या RBI से पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है। उदाहरण के लिये, नवीकरणीय ऊर्जा, IT और सॉफ्टवेयर सेवाएँ आदि।
    • सरकारी मार्ग: प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लिये भारत सरकार से पूर्व स्वीकृति आवश्यक होती है, आमतौर पर संबंधित मंत्रालय या विभाग के माध्यम से। उदाहरण के लिये, रक्षा विनिर्माण।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लिये निषिद्ध क्षेत्र 
    • परमाणु ऊर्जा, लॉटरी व्यवसाय, जुआ और सट्टेबाजी, चिट फंड, निधि कंपनियाँ, रियल एस्टेट व्यवसाय (विकास को छोड़कर), अंतरणीय विकास अधिकारों (TDR) में व्यापार एवं तंबाकू के विकल्प के निर्माण सहित कुछ संवेदनशील क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति नहीं है।

भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का वर्तमान रुझान क्या है?

  • रुझान: हाल के वर्षों में, भारत वैश्विक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिये एक महत्त्वपूर्ण गंतव्य बना हुआ है। हालाँकि अल्पकालिक उतार-चढ़ाव आए हैं, जिनमें ऐसे दौर भी शामिल हैं जब बहिर्वाह की तुलना में अंतर्वाह अधिक होने के कारण निवल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ऋणात्मक हो गया, फिर भी समग्र रुझान मज़बूत सकल अंतर्वाह और रणनीतिक क्षेत्रों में निवेशकों की प्रबल रुचि को दर्शाता है।
    • उदाहरण के लिये, अप्रैल और अक्तूबर 2025 के दौरान, भारत में सकल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) लगभग 15.4% बढ़कर लगभग 58.3 बिलियन डॉलर हो गया, जो अस्थिरता के बावजूद निवेशकों के निरंतर विश्वास को दर्शाता है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के प्रमुख स्रोत: सिंगापुर (वित्त वर्ष 24-25 में 30%) और मॉरीशस (वित्त वर्ष 24-25 में 17%) पारंपरिक रूप से FDI के शीर्ष स्रोतों में से रहे हैं, जिसका मुख्य कारण संधि लाभ और इन क्षेत्राधिकारों के माध्यम से संचालित निवेश साधनों की उपस्थिति है। 
    • अन्य महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ताओं में संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, नीदरलैंड और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं। 
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को आकर्षित करने वाले शीर्ष क्षेत्र
    • सेवा क्षेत्र: वित्त वर्ष 2024-25 में सेवा क्षेत्र प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता बना रहा, जो कुल इक्विटी प्रवाह का 19% था। 
      • इसके बाद कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर (16%) और व्यापार (8%) का स्थान रहा। 
      • गौरतलब है कि सेवा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में 40.77% की मज़बूत वृद्धि दर्ज की गई, जो पिछले वर्ष के 6.64 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 9.35 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
    • विनिर्माण क्षेत्र: विदेशी पूंजी के लिये एक प्रमुख गंतव्य के रूप में विनिर्माण क्षेत्र ने भी मज़बूत आकर्षण दिखाया है। 
      • वित्त वर्ष 2024-25 में, विनिर्माण क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में साल-दर-साल 18% की वृद्धि हुई, जो पिछले वित्त वर्ष के 16.12 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर लगभग 19.04 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
  • प्रमुख प्राप्तकर्त्ता राज्य: महाराष्ट्र का हिस्सा सबसे अधिक रहा, जिसने वित्त वर्ष 2024-25 में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) इक्विटी प्रवाह का 39% प्राप्त किया, इसके बाद कर्नाटक 13% और दिल्ली NCR 12% के साथ रहा। 
    • अन्य महत्त्वपूर्ण प्राप्तकर्त्ता राज्यों में गुजरात और तमिलनाडु शामिल हैं, जो मिलकर देश में कुल विदेशी निवेश का एक बड़ा हिस्सा बनाते हैं।

भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रवाह को कौन से कारक प्रभावित कर रहे हैं?

  • बड़ा और बढ़ता घरेलू बाज़ार: भारत का विशाल उपभोक्ता आधार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को आकर्षित करता रहता है, क्योंकि कंपनियाँ बड़े पैमाने पर उत्पादन एवं मांग के अवसरों की तलाश करती हैं। 
    • भारत ने वित्त वर्ष 2024-25 में 81.04 बिलियन अमेरिकी डॉलर (अस्थायी) से अधिक की राशि प्राप्त की, जो अस्थिरता के बावजूद भारतीय बाज़ार में निवेश करने के लिये वैश्विक निवेशकों की निरंतर रुचि को दर्शाता है।
    • इसके अलावा, भारत का डिजिटल बाज़ार परिपक्व हो रहा है तथा विश्व के तीसरे सबसे बड़े स्टार्टअप इकोसिस्टम के रूप में, इसके इंडिया स्टैक (UPI, ONDC) के साथ मिलकर, बड़े पैमाने पर भविष्य को आकार देने वाली पूंजी को आकर्षित कर रहा है।
  • क्षेत्रीय उदारीकरण और व्यावसायिक सुधार: प्रमुख क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) मानदंडों में ढील देने से निवेश के अवसरों का विस्तार हुआ है। 
    • उदाहरण के लिये, सरकार ने 2025 के बजट में बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की सीमा को बढ़ाकर 100% कर दिया तथा कई क्षेत्रों को उदारीकृत किया, जिससे विदेशी निवेशकों के लिये अभिगम्यता आसान हो गई।
    • इसके अलावा, जन विश्वास विधेयक 2.0 जैसे सुधारों ने विदेशी फर्मों पर अनुपालन कर को कम करने के लिये 288 लघु उद्योग अपराधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है।
  • रणनीतिक नीतिगत पहल और प्रोत्साहन: मेक इन इंडिया, उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ और मुक्त व्यापार समझौतों के विस्तार जैसी पहलों ने भारत को वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं एवं निवेश प्रतिबद्धताओं के लिये अधिक आकर्षक बना दिया है। 
    • वर्ष 2000 से अब तक कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक हो गया है, जो पूंजी आकर्षित करने में नीति की प्रभावशीलता को दर्शाता है।
    • इसके अलावा, PLI के तहत वास्तविक रूप से प्राप्त निवेश जून 2025 तक 14 क्षेत्रों में ₹1.88 लाख करोड़ तक पहुँच गया।
  • वरीयतापूर्ण निवेश समझौते और बेहतर बाज़ार अभिगम्यता: व्यापार समझौतों का विस्तार और वैश्विक स्तर पर बेहतर जुड़ाव निवेशकों के विश्वास को बढ़ावा देता है।
    • उदाहरण के लिये, भारत-UAE CEPA ने टैरिफ संबंधी लाभ और अनुमानित बाज़ार प्रवेश के अवसर प्रदान करके 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की प्रतिबद्धता जताई है।
    • इसके अलावा, हाल ही में हुए भारत-EFTA समझौते ने 15 वर्षों में 100 अरब डॉलर के निवेश की प्रतिबद्धता सुनिश्चित की है।
  • चीन प्लस वन रणनीतिक पुनर्गठन: भू-राजनीतिक जोखिमों और बढ़ती श्रम लागतों से निपटने के लिये वैश्विक निगम चीन से दूर अपनी आपूर्ति शृंखलाओं में आक्रामक रूप से विविधता ला रहे हैं। भारत इस बदलाव का प्राथमिक लाभार्थी है, क्योंकि यहाँ एक विशाल घरेलू बाज़ार और प्रतिस्पर्द्धी, बड़े पैमाने पर श्रम बल उपलब्ध है जो दीर्घकालिक परिचालन स्थिरता प्रदान करता है। 
    • उदाहरण के लिये, भारत से एप्पल के आईफोन का निर्यात वर्ष 2024 में 12.1 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया, जो हाई-टेक असेंबली हब में एक बड़े बदलाव का संकेत देता है।
  • व्यापक अवसंरचना और लॉजिस्टिक्स विस्तार: पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान सड़क, रेल, बंदरगाहों और हवाई नेटवर्क में एकीकृत, बहुआयामी कनेक्टिविटी को सक्षम बनाकर, पारगमन समय को कम करके, आपूर्ति शृंखला की विश्वसनीयता में सुधार करके तथा व्यापार सुगमता को बढ़ाकर भारत की लंबे समय से चली आ रही लॉजिस्टिक्स अक्षमताओं को दूर कर रहा है।
    • इसके परिणामस्वरूप, भारत की लॉजिस्टिक्स लागत घटकर GDP का लगभग 7.97% हो गई है, जिससे निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता मज़बूत हुई है तथा भारत विदेशी निवेश के लिये एक अधिक आकर्षक गंतव्य बन गया है।

भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्रवाह को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • नीतिगत अनिश्चितता और आवर्ती नियामकीय परिवर्तन: ई-कॉमर्स नियमों, डेटा स्थानीयकरण मानदंडों और कराधान नीतियों में आकस्मिक संशोधन उन विदेशी निवेशकों के लिये अनिश्चितता उत्पन्न करते हैं, जो दीर्घकालिक स्थिरता को प्राथमिकता देते हैं। 
    • ऑनलाइन गेमिंग के प्रचार और विनियमन अधिनियम, 2025 और ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस में किये गए बदलावों जैसे उभरते क्षेत्रों में आकस्मिक विधायी परिवर्तन, डिजिटल पूंजी के लिये उच्च नियामक जोखिम की धारणा उत्पन्न करते हैं।
    • हालाँकि अधिकांश क्षेत्र स्वचालित प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मार्ग का अनुसरण करते हैं, लेकिन भूमि सीमा साझा करने वाले देशों, मुख्य रूप से चीन से आने वाले निवेशों को प्रेस नोट 3 (2020) के तहत कड़ी जाँच का सामना करना पड़ता है। 
      • सरकार से पूर्व स्वीकृति की इस आवश्यकता के कारण अगस्त 2025 तक लगभग 200 प्रस्तावों में विलंब हुआ है, जिससे महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्त्ताओं के प्रवेश में बाधा उत्पन्न हुई है तथा भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स एवं इलेक्ट्रिक वाहन विनिर्माण के विकास में रुकावट आई है।
    • इस तरह की अनिश्चितता से जोखिम की आशंका बढ़ जाती है और बड़े, लंबे समय तक चलने वाले निवेशों को हतोत्साहित किया जाता है, विशेषकर डिजिटल सेवाओं एवं खुदरा जैसे क्षेत्रों में।
  • वैश्विक आर्थिक और भूराजनीतिक अनिश्चितता: भूराजनीतिक तनाव, आपूर्ति शृंखला में व्यवधान और विकसित अर्थव्यवस्थाओं द्वारा मौद्रिक सख्ती जैसे वैश्विक घटनाक्रमों ने पूंजी प्रवाह को काफी प्रभावित किया है। 
    • अमेरिका और यूरोप में बढ़ती ब्याज दरों ने निवेशकों को सुरक्षित रिटर्न की तलाश में भारत सहित उभरते बाज़ारों से धन निकासी के लिये प्रेरित किया है। 
    • उदाहरण के लिये, अमेरिका ने वर्ष 2025 के अंत में कुछ भारतीय आयात पर 50% टैरिफ लगाया, जिसके कारण अक्तूबर 2025 में समाप्त होने वाले लगातार तीन महीनों तक निवल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ऋणात्मक रहा, जो इस बात को उजागर करता है कि पूंजी प्रवाह पूरी तरह से दीर्घकालिक घरेलू निवेश में परिवर्तित नहीं हो रहा है।
  • अधोसंरचना और लॉजिस्टिक्स संबंधी बाधाएँ: हालाँकि लॉजिस्टिक्स लागत GDP के लगभग 7-8% तक पहुँच गई है, लेकिन अपर्याप्त लास्ट माइल कनेक्टिविटी, बंदरगाहों पर भीड़भाड़ और राज्यों में अधोसंरचना के असमान विकास से निवेशकों का विश्वास प्रभावित होता रहता है, विशेषकर विनिर्माण एवं निर्यात-उन्मुख क्षेत्रों में।
    • विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स परफॉर्मेंस इंडेक्स (LPI) में भारत की रैंकिंग में वृद्धि के बावजूद, प्रमुख बंदरगाहों को जहाज़ों के एकत्रीकरण और यार्ड में भीड़भाड़ जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि कार्गो की मात्रा टर्मिनल स्वचालन की तुलना में कहीं अधिक है।
    • प्रधानमंत्री गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान ने लगभग 1,700 डेटा लेयर्स का सफलतापूर्वक मानचित्रण किया है, लेकिन रेल, सड़क एवं हवाई मार्गों के बीच ज़मीनी स्तर पर समन्वय अभी भी अधूरा है।
  • भूमि अधिग्रहण और श्रम बाज़ार संबंधी चुनौतियाँ: सुधारों के बावजूद, विधिक जटिलताओं, पुनर्वास संबंधी मुद्दों और राज्य-स्तरीय भिन्नताओं के कारण भूमि अधिग्रहण में काफी समय लगता है। 
    • इसी प्रकार, हालाँकि श्रम कानूनों को समेकित कर दिया गया है, लेकिन राज्यों में उनका कार्यान्वयन असमान बना हुआ है, जिससे बड़े पैमाने पर औद्योगिक संचालन की योजना बना रहे निवेशकों के लिये अनिश्चितता उत्पन्न हो रही है।
    • भारत औद्योगिक भूमि बैंक (IILB) की स्थापना के बावजूद, जिसने 4,500 से अधिक औद्योगिक पार्कों का मानचित्रण किया है, भूमि की उपलब्धता, स्पष्ट स्वामित्व और लास्ट माइल कनेक्टिविटी से संबंधित चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
  • निवेश के लिये तीव्र वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा: भारत को वियतनाम, इंडोनेशिया और मैक्सिको जैसे देशों से कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है, जो तेज़ी से अनुमोदन, कम लॉजिस्टिक्स लागत एवं निवेशक-अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करते हैं। 
    • उदाहरण के लिये, वियतनाम ने अपने कुशल विशेष आर्थिक क्षेत्रों तथा CPTPP और EVFTA जैसे व्यापार समझौतों के कारण सैमसंग एवं ऐप्पल के आपूर्तिकर्त्ताओं जैसे प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माताओं को आकर्षित किया है, जिससे भारत से कुछ निवेश वियतनाम की ओर स्थानांतरित हो गए हैं।
  • क्षेत्र-विशिष्ट नियामक प्रतिबंध: कई क्षेत्रों, जिनमें बहु-ब्रांड खुदरा व्यापार, रक्षा उत्पादन, मीडिया और बीमा शामिल हैं, में अभी भी सीमाएँ या अनुमोदन आवश्यकताएँ लागू हैं, जो विदेशी भागीदारी को सीमित करती हैं। ऐसे प्रतिबंध पूर्णतः उदारीकृत बाज़ारों की तुलना में इन क्षेत्रों के आकर्षण को कम करते हैं।
    • उदाहरण के लिये, जहाँ एक ओर केंद्रीय बजट 2025 ने बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को बढ़ाकर 100% कर दिया, वहीं दूसरी ओर इसमें एक अनिवार्य प्रावधान भी शामिल किया गया जिसके तहत विदेशी कंपनियों को प्रीमियम से होने वाली पूरी आय को भारत के भीतर ही पुनर्निवेश करना होगा।
  • कौशल अंतराल और प्रौद्योगिकी संबंधी बाधाएँ: हालाँकि भारत में एक बड़ा कार्यबल है, लेकिन इस कार्यबल का केवल लगभग 5% ही औपचारिक रूप से कुशल है, जबकि उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में यह आँकड़ा 50% से अधिक है। 
    • उच्च मूल्य वाले विनिर्माण के लिये आवश्यक उद्योग 4.0 के लिये तैयार प्रतिभाओं— वेफर फैब्रिकेशन, मेकाट्रॉनिक्स और उन्नत AI के विशेषज्ञों की गंभीर कमी है।
    • परिणामस्वरूप, निवेशक प्रायः उन देशों को प्राथमिकता देते हैं, जहाँ कौशल पारिस्थितिकी तंत्र अधिक मज़बूत हो तथा आपूर्ति शृंखलाएँ स्थापित हों।
  • कम अनुसंधान एवं विकास तीव्रता और बौद्धिक संपदा (IP) संबंधी जोखिम: भारत का सकल अनुसंधान एवं विकास व्यय (GERD) वैश्विक औसत से काफी कम है, जो नवाचार-आधारित प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को हतोत्साहित करता है, जिसका उद्देश्य केवल असेंबली लाइन बनाने के बजाय उच्च स्तरीय प्रयोगशालाओं का निर्माण करनाहै।  
    • उदाहरण के लिये, GDP के प्रतिशत के रूप में भारत का GERD 0.6% से 0.7% के बीच रहा, जो वैश्विक औसत से कम है तथा चीन (लगभग 2.4%) एवं अमेरिका (लगभग 3.5%) जैसे देशों की तुलना में कम है।
    • इसके अलावा, पेटेंट लागू करने की गति और उच्च-तकनीकी संयुक्त उद्यमों में व्यापार रहस्यों के संरक्षण से संबंधित चिंताएँ जैव प्रौद्योगिकी और एयरोस्पेस कंपनियों के लिये एक लगातार बाधा बनी हुई हैं।

भारत FDI प्रवाह को किस प्रकार बनाए रख सकता है और बढ़ा सकता है? 

  • नीतिगत स्थिरता और नियामक पूर्वानुमान सुनिश्चित करना: निवेशकों का विश्वास बढ़ाने के लिये भारत को एक स्थिर और पारदर्शी नीतिगत वातावरण प्रदान करना होगा। कराधान, ई-कॉमर्स नियमों या अनुपालन मानदंडों में बार-बार होने वाले बदलाव दीर्घकालिक निवेशकों के लिये अनिश्चितता उत्पन्न करते हैं।
    • उदाहरण के लिये, अतीत में पूर्वव्यापी कर संबंधी मुद्दों ने भारत की विश्वसनीयता को प्रभावित किया, जिसके चलते सरकार को बाद में ऐसे प्रावधानों को वापस लेना पड़ा।
      •  दीर्घकालिक ग्रीनफील्ड निवेश को आकर्षित करने के लिये एक स्थिर, पूर्वानुमानित नियामक व्यवस्था आवश्यक है।
  • राज्य स्तर पर व्यापार करने में आसानी में सुधार: भारत ने राष्ट्रीय रैंकिंग में सुधार किया है, लेकिन अंतर-राज्यीय असमानताएँ अभी भी बनी हुई हैं। भूमि अधिग्रहण को सरल बनाना, अनुमोदनों को डिजिटल बनाना और समयबद्ध मंजूरी सुनिश्चित करना परियोजनाओं में विलंब को बहुत हद तक कम कर सकता है। 
    • गुजरात और तेलंगाना जैसे राज्य, जो सिंगल-विंडो क्लीयरेंस सिस्टम प्रदान करते हैं, ने अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित किया है, जो प्रशासनिक दक्षता के महत्त्व को दर्शाता है।
  • अवसंरचना और लॉजिस्टिक्स दक्षता को मज़बूत करना: PM गति शक्ति के तहत परियोजनाओं में तेज़ी लाना, मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक्स पार्कों का विस्तार करना तथा बंदरगाहों एवं रेलवे का आधुनिकीकरण करना वस्तु व कच्चे माल के आवागमन की लागत को कम कर सकता है और सुगमता में सुधार कर सकता है।
  • विनिर्माण को सुदृढ़ करना और वैश्विक मूल्य शृंखला का एकीकरण करना: भारत को असेंबली-आधारित विनिर्माण से आगे बढ़कर अधिक मूल्यवर्द्धन की ओर बढ़ना होगा। 
    • उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजनाओं (PLI) का विस्तार और परिष्करण, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर एवं इलेक्ट्रिक वाहनों के क्षेत्र में, भारत को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में एकीकृत होने तथा उच्च गुणवत्ता वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को आकर्षित करने में सहायता कर सकता है।
  • भूमि और श्रम बाज़ारों में सुधार: भूमि अधिग्रहण में विलंब और श्रम संहिताओं के असमान कार्यान्वयन से बड़े पैमाने पर निवेश हतोत्साहित होते हैं। 
    • डिजिटल भूमि अभिलेखों के माध्यम से भूमि अधिग्रहण को सुव्यवस्थित करना तथा राज्यों में श्रम संहिता को समान रूप से अंगीकरण सुनिश्चित करना निवेशकों के विश्वास और परियोजना निष्पादन को बढ़ा सकता है।
  • कौशल विकास और मानव पूंजी को बढ़ावा देना: बड़ी कार्यबल होने के बावजूद, कौशल का बेमेल होना एक बड़ी बाधा बनी हुई है।
  • व्यावसायिक प्रशिक्षण को सुदृढ़ करना, उद्योग-अकादमिक सहयोग को बढ़ावा देना तथा उन्नत विनिर्माण और डिजिटल प्रौद्योगिकियों के अनुरूप कौशल विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा देना, सेमीकंडक्टर, AI व नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में उच्च मूल्य वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को आकर्षित कर सकता है।
  • स्थिर और पारदर्शी कराधान व्यवस्था को बढ़ावा देना: कर नीतियों में एकरूपता सुनिश्चित करना, विवादों का त्वरित समाधान करना तथा फेसलेस असेसमेंट और एडवांस प्राइसिंग एग्रीमेंट जैसे तंत्रों के माध्यम से कानूनी प्रक्रिया को कम करना निवेशकों के विश्वास को बेहतर बना सकता है। दीर्घकालिक पूंजी निवेश के लिये पूर्वानुमानित कराधान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • नवाचार और अनुसंधान एवं विकास निवेश को प्रोत्साहित करना: भारत को एक स्पष्ट रोडमैप और परिणाम-आधारित वित्तपोषण के साथ अनुसंधान एवं विकास व्यय को धीरे-धीरे GDP के कम से कम 1.5-2% तक बढ़ाना चाहिये।
    • सरकार अनुसंधान एवं विकास-प्रधान क्षेत्रों के लिये कर ऋण और उत्पादन-संबंधी प्रोत्साहन (PLI) का विस्तार कर सकती है, निजी निवेश को आकर्षित करने के लिये अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (ANRF) को मज़बूत कर सकती है तथा सेमीकंडक्टर, AI, जैव प्रौद्योगिकी एवं हरित प्रौद्योगिकियों जैसे क्षेत्रों में क्षेत्र-विशिष्ट नवाचार समूहों का विकास कर सकती है। 
    • इसके अलावा, पेटेंट की प्रक्रिया में तेज़ी, बौद्धिक संपदा नियमों का मज़बूत प्रवर्तन और शिक्षा जगत-उद्योग के बीच गहरा सहयोग निवेशकों के विश्वास को बढ़ाएगा तथा उच्च मूल्य वाले, प्रौद्योगिकी-आधारित प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को आकर्षित करेगा।
  • व्यापार समझौतों और वैश्विक एकीकरण को मज़बूत करना: उच्च गुणवत्ता वाले व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर करना और वैश्विक बाज़ारों के साथ मानकों को संरेखित करना निवेशकों के लिये बाज़ार अभिगम्यता में सुधार कर सकता है। 
  • संयुक्त अरब अमीरात और ऑस्ट्रेलिया के साथ हाल ही में हुए मुक्त व्यापार समझौते इस दिशा में उठाए गए कदम हैं, लेकिन वैश्विक मूल्य शृंखलाओं के साथ सुदृढ़ एकीकरण अभी भी आवश्यक है।
  • नीतिगत समन्वय और केंद्र-राज्य सहयोग सुनिश्चित करना: नीतिगत विखंडन को कम करने के लिये केंद्र और राज्यों के बीच प्रभावी समन्वय अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। 
    • राज्यों के लिये प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहनों द्वारा समर्थित प्रतिस्पर्द्धी संघवाद, अधिक पूर्वानुमानित और निवेशक-अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में सहायता कर सकता है।

निष्कर्ष: 

विकसित भारत @2047 के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये भारत को केवल निवेश के लिये एक बाज़ार बने रहने से आगे बढ़कर विनिर्माण नवाचार तथा मूल्य सृजन का वैश्विक केंद्र बनने की आवश्यकता है। इसके लिये स्थिर नीतियाँ विश्वस्तरीय अवसंरचना कुशल मानव पूँजी तथा वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में गहन एकीकरण अनिवार्य है। यदि इसे सतत सुधारों तथा सहकारी संघवाद का समर्थन प्राप्त हो तो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) वर्ष 2047 तक भारत को एक मज़बूत समावेशी तथा वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्द्धी अर्थव्यवस्था में रूपांतरित करने का एक प्रभावी माध्यम बन सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के बदलते रुझानों और क्षेत्रीय संरचना पर चर्चा कीजिये। FDI भारत के विज़न 2047 के तहत एक विकसित अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में किस प्रकार योगदान दे सकता है?

 

प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न 1. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) क्या है? 
FDI से तात्पर्य किसी विदेशी संस्था द्वारा भारत में दीर्घकालिक स्वामित्व और प्रबंधन नियंत्रण के साथ किये गए निवेश से है।

प्रश्न 2. भारत के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) क्यों महत्त्वपूर्ण है?
यह पूंजी, प्रौद्योगिकी, रोज़गार और वैश्विक बाज़ार तक अभिगम्यता सुनिश्चित करता है, जिससे आर्थिक विकास को गति मिलती है।

प्रश्न 3. भारत में किन क्षेत्रों में सबसे अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्राप्त होता है?
सेवाएँ, विनिर्माण, सूचना प्रौद्योगिकी और वित्तीय सेवाएँ क्षेत्रों में सबसे अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त होता है।

प्रश्न 4. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्रवाह को प्रभावित करने वाली मुख्य चुनौतियाँ क्या हैं?
नीतिगत अनिश्चितता, अधोसंरचना की कमियाँ, वैश्विक आर्थिक मंदी और विनियामक जटिलताएँ।

प्रश्न 5. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) भारत के विज़न 2047 का किस प्रकार समर्थन करता है?
FDI औद्योगिक क्षमता को मज़बूत करता है, निर्यात को बढ़ावा देता है, रोज़गार सृजन करता है और भारत के एक विकसित अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य का समर्थन करता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स

प्रश्न 1. निम्नलिखित पर विचार कीजिये- (2021) 

  1. विदेशी मुद्रा संपरिवर्तनीय बॉण्ड 
  2. कुछ शर्तों के साथ विदेशी संस्थागत निवेश 
  3. वैश्विक निक्षेपागार (डिपॉज़िटरी) प्राप्तियाँ 
  4. अनिवासी विदेशी जमा

उपर्युक्त में से किसे/किन्हें विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में सम्मिलित किया जा सकता है/किये जा सकते हैं?

(a)  1, 2 और 3

(b)  केवल 3

(c)  2 और 4       

(d) 1 और 4

उत्तर: (a)


मेन्स

प्रश्न 1. भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में एफ.डी.आइ. की आवश्यकता की पुष्टि कीजिये। हस्ताक्षरित समझौता-ज्ञापनों तथा वास्तविक एफ.डी.आइ. के बीच अंतर क्यों है? भारत में वास्तविक एफ.डी.आइ. को बढ़ाने के लिये सुधारात्मक कदम सुझाइए। (2016)

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