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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

‘सोशल नेटवर्क उपयोगकर्ता’ संबंधी जानकारियों की मांग में वृद्धि

  • 02 Jan 2017
  • 7 min read

पृष्ठभूमि

पहले लोग अपनी बात दूसरों तक पहुँचाने के लिये नृत्य, गाना, नाटक इत्यादि का प्रयोग करते थे। समय के साथ इसमें बदलाव आया और इसकी जगह प्रिंट मीडिया, फिर मास मीडिया और अब सोशल मीडिया ने ले ली, इसके द्वारा लोग अपनी बात सबके सामने रखते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि सोशल मीडिया अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है लेकिन तकनीक के इस दौर में सोशल मीडिया के माध्यम से देश की एकता और अखंडता के लिये चुनौतियाँ भी उत्पन्न हो रही हैं। हाल ही में आई एक रिपोर्ट में इस बात को सपष्ट किया गया है कि सोशल मीडिया पर सक्रिय उपयोगकर्ताओं के संबद्ध देश द्वारा उनके संबंध में निजी जानकारियों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है।

रिपोर्ट से संबंधित महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • वर्ष 2016 की पहली छमाही में सोशल नेट्वर्किंग साइट ‘फेसबुक’ ने भारत सरकार एवं अन्य एजेंसियों के अनुरोध पर अपनी साइट से 2,034 सामग्रियाँ हटाई थीं। हालाँकि, इस समयावधि से पहले के छः महीनों में 14,971 सामग्रियाँ हटाई गई थीं, जबकि इस छमाही के पहले के एक वर्ष में 15,155 सामग्रियाँ हटाई गईं।
  • भारत सरकार ने 2016 की पहली छमाही में 6,324 बार खाताधारकों से जुड़ी जानकारियाँ  मांगी, जबकि इससे ठीक पिछली छमाही (2015 में जुलाई से दिसंबर के बीच) में इस तरह की जानकारियाँ  5,561 बार मांगी गई थीं। गौरतलब है कि जानकारियाँ मांगने के मामले में भारत अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है।
  • वस्तुतः इन सामग्रियों पर प्रतिबन्ध को उचित बताते हुए फेसबुक ने कहा है कि, कानून प्रवर्तन एजेंसियों और संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले ‘इंडिया कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम’ द्वारा कानूनी अनुरोध पर कार्यवाही करते हुए इन सामग्रियों को प्रतिबंधित किया गया है। गौरतलब है कि अधिकांश प्रतिबंधित सामग्रियों के बारे में बताया गया था कि ये धार्मिक कटुता बढ़ाने और नफरत फैलाने वाली हैं।
  • फेसबुक के अनुसार अधिकांश जानकारियाँ अपराधिक मामलों में मांगी गई हैं और मांगी गई  जानकारियों में उपयोगकर्त्ताओं के नाम से लेकर उनके आईपी एड्रेस और खाते की अन्य जानकारियाँ भी शामिल हैं।
  • ध्यातव्य है कि फेसबुक ही नहीं बल्कि ट्विटर, गूगल और एप्पल जैसे अन्य सोशल नेटवर्क उपलब्धकर्त्ताओं से भी उपयोगकर्त्ताओं के बारे में जानकारियां मांगी जा रही हैं।

क्या कहते हैं संबंधित कानून?

  • ध्यातव्य है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 79(3)(b) के तहत सभी हितकारकों के लिये यह निर्धारित किया गया है कि सरकार उनसे संबंधित सामग्री को हटाने या ब्लॉक करने की मांग कर सकती है।
  • गौरतलब है कि मार्च 2015 के सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ‘‘आधारभूत’’ बताते हुए न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति आर. एफ. नरीमन की पीठ ने कहा था कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 A से लोगों के ‘जानने का अधिकार’ सीधे तौर पर प्रभावित होता है।
  • हालाँकि, न्यायालय ने अधिनियम के अन्य प्रावधानों, जैसे- धारा 69 ए और 79 को निरस्त न करते हुए उनके संबंध में यह कहा कि ये धाराएँ  कुछ पाबंदियों के साथ लागू रह सकती हैं। धारा 79 के तहत किसी भी मध्यस्त पक्ष को अदालत से संज्ञान प्राप्त होने पर या किसी सरकारी एजेंसी द्वारा नोटिस दिये जाने पर संबंधित सामग्री को हटाना होगा।
  • गौरतलब है कि नोटिस देने वाले निकायों को यह बताना होता है कि आपत्तिजनक सामग्री अनुच्छेद 19 (2) के संबंध में है, ध्यान देने वाली बात है कि संविधान का अनुच्छेद 19(2) राज्य को राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में आपराधिक कृत्यों के लिये उकसाने वाली अभिव्यक्ति पर रोक लगाने का अधिकार देता है।

निष्कर्ष

  • वर्तमान समय में सोशल मीडिया का महत्त्व लगातार बढता जा रहा है, कई बार तो सोशल मीडिया पर वायरल हुई पोस्ट्स और वीडिओ के आधार पर मीडिया की मुख्य खबरें बनने लगती हैं। यही कारण है कि विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक संगठनों तथा सरकारों व नेताओं ने अपने व्यक्तिगत खातों, पेज या ग्रुप के आधार पर सोशल मीडिया में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा रखी है।
  • दरअसल, शुरुआत में हर नई चीज़ व कार्य से सकारात्मक उम्मीदें की जाती हैं और समय के साथ ही यह मालूम होता है कि किसी भी कार्य या योजना के परिणाम कितने सकारात्मक रहे। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है और सोशल मीडिया भी सही मायने में मीडिया का एक ऐसा हिस्सा है जहाँ व्यक्ति स्वयं ही लेखक, सम्पादक, प्रकाशक, विज्ञापनकर्ता व वितरक होता है। 
  • समाज को बहुमूल्य लाभ देने के साथ ही, कई बार सोशल मीडिया पर डाली गई गलत पोस्ट, छेड़-छाड़ किये हुए वीडियो (Doctored videos) आदि से समाज के विभिन्न समुदायों के बीच तनाव भी उत्पन्न हो जाता है और ऐसी परिस्थितियों में सोशल नेट्वर्किंग साइटों से जानकारियाँ  मांगना और आपत्तिजनक सामग्रियों को हटवाना एक वांछनीय कदम माना जा सकता है।
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