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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

वन बेल्ट, वन रोड परियोजना एवं चीन की योजना

  • 24 May 2017
  • 7 min read

संदर्भ
हाल ही में, बीजिंग में “बेल्ट एवं रोड फोरम सम्मेलन” (BARF) का आयोजन किया गया जिसमें विश्व के विभिन्न देंशो ने भाग लिया| इसममें अमेरिका एवं जापान सहित अनेक एशियाई देशों ने भी हिस्सा लिया| इस सम्मेलन की खास बात यह रही कि भारत ने इसमें भाग नहीं लिया| इसका कारण था, ‘वन बेल्ट, वन रोड’ (ओ.बी.ओ.आर.)के तहत बनने वाला पाकिस्तान-चीन आर्थिक गलियारा (CPEC), जो पाक-अधिकृत कश्मीर से होकर गुज़रता है| भारत ने इसे अपनी संप्रभुता का हनन और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन बताया है| 

वन बेल्ट, वन रोड परियोजना
यह परियोजना 2013  में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा शुरू की गई थी| इसे ‘सिल्क रोड इकॉनमिक बेल्ट’ और 21वीं सदी के समुद्री सिल्क रोड (वन बेल्ट, वन रोड) के रूप में भी जाना जाता है| यह एक विकास रणनीति है जो कनेक्टिविटी पर केंद्रित है| इसके माध्यम से सड़कों, रेल,  बंदरगाह,  पाइपलाइनों और अन्य बुनियादी सुविधाओं को ज़मीन और समुद्र होते हुये एशिया,  यूरोप और अफ्रीका से जोड़ने का विचार है| हालाँकि, इसका एक उद्देश्य यह भी है कि इसके द्वारा चीन अपना वैश्विक स्तर पर प्रभुत्व बनाना चाहता है|

 चीन की मंशा

  • वन बेल्ट, वन रोड के माध्यम से एशिया के साथ-साथ विश्व पर भी अपना अधिकार कायम करना|
  • दक्षिणी एशिया एवं हिंद महासागर में भारत के प्रभुत्व को कम करना|
  • वस्तुतः इस परियोजना के द्वारा चीन सदस्य देशों के साथ द्विपक्षीय समझोंते करके, उन्हे आर्थिक सहायता एवं ऋण उपलब्ध कराकर उन पर मनमानी शर्तें थोपना चाहता है जिसके फलस्वरूप  वह सदस्य देशों के बाज़ारों में अपना प्रभुत्व बना सके|
  • असल में पिछले काफी सालों से चीन के पास स्टील, सीमेंट, निर्माण साधन इत्यादि की सामग्री का आधिक्य हो गया है| अत: चीन इस परियोजना के माध्यम से इस सामग्री को भी खपाना चाहता है|

भारत इस सम्मेलन से अलग क्यों रहा?
विभिन्न राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भारत को इस सम्मेलन में शामिल होना चाहिये था ताकि वह इस परियोजना का लाभ उठा सके और चीन के साथ संबंधों को और मज़बूती प्रदान की जा सके| वस्तुतः उनकी इस दलील के पीछे कुछ ठोस कारण भी हैं, जैसे – उनका मानना है कि जापान एवं वियतनाम जैसे देशों ने भी इसमें भाग लिया है, जबकि इन देशो के भी चीन के साथ सीमा विवाद काफी लम्बे समय से अनसुलझा है| हालाँकि, इस संदर्भ में भारत का यह कहना है कि इस परियोजना के माध्यम से चीन द्वारा उसकी क्षेत्रीय अखंडता और राष्ट्रीय संप्रभुता  का हनन किया जा रहा है तथा चीन हमारे बाज़ारों पर कब्ज़ा करना चाहता है|

भारत के पास विकल्प 

  • गौरतलब है कि चीन की वन बेल्ट वन रोड परियोजना ए.आई.आई.बी. और एस.सी.ओ. की तरह  एक बहुपक्षीय परियोजना नहीं है और न ही यह कोई बहु-राष्ट्रीय फ्रेमवर्क या संस्थागत व्यवस्था है, बल्कि यह एक प्रस्तावित परियोजनाओं की श्रृंखला है| अत: भारत को अपनी घरेलू और सीमावर्ती बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के वित्तीयन के लिये ए.आई.आई.बी. (AIIB) और डी.बी. (डेवलपमेंट बैंक) जैसी संस्थाओ का उपयोग करना चाहिये जिससे आर्थिक संभावनाओं को बढ़ावा मिलने के साथ-साथ पड़ोसी देशों के साथ संपर्क एवं संबंधो को दृढ़ किया जा सके|
  • उल्लेखनीय है कि वर्तमान में भारत सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, जहाँ अपार बाज़ार संभावनाएँ विधमान हैं| भारत के पास न तो पूंजी की कमी है और न ही श्रमबल की, इसलिये भारत को अपने यहाँ  आर्थिक रूप से व्यवहार्य और टिकाऊ परियोजनाओं को डिज़ाइन और निष्पादित करना चाहिये तथा चीनी क्रेडिट, प्रौद्योगिकी और उपकरणों का इस्तेमाल करने की बजाय भारतीय प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना चाहिये|
  • गौरतलब है कि इस परियोजना के खतरे को खुद पाकिस्तान के एक अखबार ने उजागर किया था| उसका मानना है कि इस परियोजना ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के अधिकांश क्षेत्रों पर अपना प्रभाव जमा लिया है तथा चीनी उद्यमों और संस्कृति द्वारा समाज में गहराई तक पैठ बना ली गई है। अतः स्पष्ट संकेत है कि भारत को भी इससे सजग रहना चाहिये|

आगे की राह
दरअसल, हमें  चीन के लिये एक नई रणनीति बनाने की आवश्यकता है, जिसमें न केवल आर्थिक खाका हो बल्कि पड़ोसी देशों के साथ संबंध बेहतर करने की भी रणनीति हो और इस हेतु लुक-ईस्ट, लुक-वेस्ट एवं कनेक्टिंग मध्य एशिया जैसी नीतियाँ मार्गदर्शन करेंगी| इसके लिये हमें अपनी क्षेत्रीय रणनीति को फिर से सोचने की ज़रूरत है तथा पड़ोस पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है| इसका लाभ हम सार्क, बिम्सटेक, आसियान, एस.सी.ओ. जैसे क्षेत्रीय संगठनों की मदद से उठा सकते हैं|

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