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आंतरिक सुरक्षा

NSA कार्यालय एवं देश के सुरक्षा ढाँचे का पुनर्गठन

  • 09 Jul 2024
  • 19 min read

यह एडिटोरियल 08/075/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “What it means — and could mean — to be India’s National Security Advisor” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) की उभरती भूमिका एवं चुनौतियों की चर्चा की गई है और देश के सुरक्षा ढाँचे के पुनर्गठन के बारे में व्याप्त चिंताओं पर विचार किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, लोन-वुल्फ अटैक, डीपफेक तकनीक,

मेन्स के लिये:

भारत में NSA कार्यालय से संबंधित प्रमुख चिंताएँ, भारत के समक्ष प्रमुख सुरक्षा चुनौतियाँ।

हाल ही में एक नए अपर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (Additional National Security Advisor- ANSA) की नियुक्ति और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र के पुनर्गठन ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) की उभरती भूमिका तथा व्यापक सुरक्षा ढाँचे के बारे में गंभीर सवाल उठाए हैं। जबकि NSA अब एक वृहत संगठन का नियंत्रण करेगा, जिसमें एक ANSA और तीन डिप्टी NSA शामिल हैं, प्रतीत यह होता है कि इस बदलाव के साथ उसकी भूमिका अब सलाहकारी अधिक तथा परिचालनात्मक कम हो जाएगी।

ये बदलाव NSA की भूमिका के बारे में बुनियादी सवालों के पुनर्मूल्यांकन को प्रेरित करते हैं, जैसे कि आंतरिक एवं बाहरी सुरक्षा प्राथमिकताओं के बीच संतुलन और खुफिया जानकारी एकत्र करने एवं उसके प्रसंस्करण के बीच संबंध। चूँकि भारत बढ़ती सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहा है, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा ढाँचे में सुधार के साथ-साथ NSA की भूमिका को पुनर्गठित करने के लिये बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

भारत में NSA के प्रमुख कार्य: 

  • रणनीतिक सलाहकार कार्य: NSA राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों पर प्रधानमंत्री का प्रधान सलाहकार होता है।
    • वह घरेलू, विदेशी और रक्षा नीतियों पर व्यापक रणनीतिक परामर्श प्रदान करता है।
    • जटिल सुरक्षा एवं खुफिया सूचना (इंटेलिजेंस) संबंधी मुद्दों पर गहन विश्लेषण एवं अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
  • समन्वय और एकीकरण: NSA सभी खुफिया रिपोर्ट (R&AW, IB, NTRO, MI, DIA, NIA आदि की ओर से) प्राप्त करता है और उन्हें प्रधानमंत्री के समक्ष प्रस्तुत करने के लिये समन्वित करता है।
    • सुरक्षा संबंधी नीतियों और कार्यों पर विभिन्न मंत्रालयों के बीच तालमेल सुनिश्चित करता है।
  • संकट प्रबंधन और प्रतिक्रिया: राष्ट्रीय सुरक्षा आपात स्थितियों के दौरान संकट प्रबंधन प्रयासों का नेतृत्व करता है।
    • संकट प्रतिक्रिया रणनीतियों (crisis response strategies) के कार्यान्वयन की देखरेख करता है।
  • राजनयिक सहभागिता और वार्ता: सुरक्षा मामलों पर उच्चस्तरीय राजनयिक वार्ता में भाग लेता है।
    • संवेदनशील अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों के लिये ‘ट्रैक-टू डिप्लोमेसी’ में संलग्न होता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मंचों और द्विपक्षीय सुरक्षा वार्ताओं में भारत का प्रतिनिधित्व करता है।
  • संस्थागत नेतृत्व: NSA राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (National Security Council- NSC) के सचिव के रूप में कार्य करता है, जबकि प्रधानमंत्री इसका अध्यक्ष होता है।

नोट: हाल ही में मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी अजीत डोभाल को एक बार पुनः (10 जून 2024 से प्रभावी) राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में नियुक्त किया है। उनकी नियुक्ति प्रधानमंत्री के कार्यकाल के साथ-साथ या अगले आदेश तक, जो भी पहले हो, तक रहेगी। कार्यकाल के दौरान वरीयता तालिका में उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त होगा।

NSA पद से संबंधित लाभ और चिंताएँ:

लाभ

चिंताएँ

केंद्रीकृत रणनीतिक निगरानी: जटिल सुरक्षा चुनौतियों के लिये समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है

संवैधानिक अस्पष्टता: यह स्पष्ट संवैधानिक समर्थन का अभाव रखता है; इसकी वैधता और दायरे के बारे में सवाल उठते हैं

त्वरित निर्णय-निर्माण: प्रधानमंत्री तक प्रत्यक्ष पहुँच से संकट के समय त्वरित कार्रवाई संभव होती है

जवाबदेही की कमी: संसद के प्रति प्रत्यक्ष रूप से जवाबदेह नहीं है, जो पारदर्शिता संबंधी चिंताएँ बढ़ाता है

अंतर-एजेंसी समन्वय: सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों के बीच की खाई को भरता है

राष्ट्रीय सुरक्षा का वैयक्तिकरण: नीतियों के निवर्तमान पदधारक के व्यक्तिगत विचारों से अत्यधिक प्रभावित होने का जोखिम उत्पन्न होता है

दीर्घकालिक रणनीतिक योजना: दूरदर्शिता और दीर्घकालिक रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता प्राप्त होती है

नागरिक-सैन्य असंतुलन: यह नागरिक-सैन्य संबंधों के नाजुक संतुलन को बाधित कर सकता है

कूटनीतिक लचीलापन: संवेदनशील वार्ताओं के लिये विवेकपूर्ण, उच्च-स्तरीय कूटनीति को सक्षम बनाता है

राज्य तंत्रों के साथ समन्वय: संघीय ढाँचे में अपरिभाषित भूमिका संघर्षों को जन्म दे सकती है

विशेष ध्यान: राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों पर समर्पित ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है।

अतिक्रमण की संभावना: व्यापक अधिदेश के कारण अन्य मंत्रालयों के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप की स्थिति बन सकती है

राष्ट्रीय संकटों से निपटने और प्रतिक्रियाओं का समन्वय करने के लिये सुसज्जित है

राजनीतिकरण का जोखिम: संकट प्रबंधन:प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ घनिष्ठ संबंध सुरक्षा निर्णयों का राजनीतिकरण कर सकता है

वे प्रमुख सुरक्षा चुनौतियाँ जिनके कारण भारत में NSA का होना आवश्यक है:

  • साइबर युद्ध और डिजिटल खतरे: साइबर युद्ध का तेज़ी से उभरता परिदृश्य भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये एक गंभीर एवं बहुआयामी खतरा बन गया है।
    • महत्त्वपूर्ण अवसंरचना को लक्षित करने वाले राज्य-प्रायोजित साइबर हमलों में आवश्यक सेवाओं को बाधित करने तथा बड़े पैमाने पर दैनिक जीवन में व्यवधान उत्पन्न करने की क्षमता है।
    • वर्ष 2020 में मुंबई में पावर आउटेज की घटना (जिसके लिये चीन के साइबर हमले पर संदेह किया गया था) डिजिटल खतरों के प्रति भारत की महत्त्वपूर्ण अवसंरचना की भेद्यता की पुष्टि करती है।
  • सीमा पार आतंकवाद और कट्टरपंथ: सीमा पार आतंकवाद और कट्टरपंथ की उभरती प्रकृति भारत के सुरक्षा परिदृश्य के लिये एक बड़ा खतरा बनी हुई है।
    • वैश्विक चरमपंथी विचारधाराओं से प्रेरित लोन-वुल्फ’ हमलों का उभार आतंकवाद-रोधी प्रयासों में अप्रत्याशितता और जटिलता का एक नया आयाम प्रस्तुत करता है।
    • जैव आतंकवाद (bioterrorism) की संभावना और आतंकवादी समूहों द्वारा ड्रोन जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों के उपयोग के बारे में भी चिंता बढ़ रही है, जो ऐसे हमलों के प्रभाव को व्यापक रूप से बढ़ा सकते हैं।
    • रियासी (जम्मू-कश्मीर) में हाल ही में हुआ आतंकवादी हमला आतंकवाद के लगातार बढ़ते खतरे की पुष्टि करता है।
  • सीमा विवाद और क्षेत्रीय अस्थिरता: भारत को सीमा विवाद संबंधी चुनौतियों (विशेषकर चीन और पाकिस्तान के साथ) का लगातार सामना करना पड़ रहा है।
    • चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control- LoAC) पर चल रहे तनाव, जो वर्ष 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प से चिह्नित हुए, अचानक वृद्धि की संभावना रखते हैं।
    • अफगानिस्तान और म्याँमार जैसे पड़ोसी देशों में अस्थिरता के कारण शरणार्थी संकट और आतंकवादी गतिविधियों में वृद्धि सहित अन्य स्पिलओवर प्रभाव उत्पन्न होने का खतरा है।
  • अंतरिक्ष एवं उपग्रह सुरक्षा: संचार, नेविगेशन और निगरानी के लिये अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी पर भारत की बढ़ती निर्भरता, उपग्रह अवसंरचना को एक महत्त्वपूर्ण सुरक्षा चिंता का विषय बनाती है।
    • अंतरिक्ष मलबे की बढ़ती मात्रा से परिचालनशील उपग्रहों को खतरा पैदा हो रहा है।
    • वैश्विक शक्तियों द्वारा अंतरिक्ष का संभावित सैन्यीकरण, जैसा कि चीन के वर्ष 2007 के उपग्रह-रोधी परीक्षण से प्रदर्शित हुआ, अंतरिक्ष सुरक्षा और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के लिये नई चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।
  • समुद्री एवं महासागरीय खतरे: भारत को समुद्री क्षेत्र में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें समुद्री डकैती, आतंकवाद और हिंद महासागर में मत्स्यग्रहण क्षेत्र में संघर्ष शामिल हैं।
    • हिंद महासागर में चीन की नौसैनिक उपस्थिति का विस्तार (जैसे श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह) भारत के समुद्री हितों के लिये चुनौती है।
  • सूचना युद्ध और सोशल मीडिया हेरफेर: सोशल मीडिया के माध्यम से सूचना का हथियारीकरण (weaponization of information) सामाजिक सामंजस्य और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के लिये एक बड़ा खतरा बन गया है।
    • ‘डीपफेक’ प्रौद्योगिकी का उदय सूचना में लोगों के भरोसे को कमज़ोर करता है और सामाजिक स्थिरता बनाए रखने तथा सूचित निर्णय लेने के प्रयासों को जटिल बनाता है।

भारत में NSA के पद और राष्ट्रीय सुरक्षा ढाँचे को सुदृढ़ करने के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?

  • ‘संपूर्ण-सरकार’ (Whole-of-Government) राष्ट्रीय सुरक्षा डेटाबेस को कार्यान्वित करना: एक सुरक्षित, केंद्रीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित किया जाए जो विभिन्न मंत्रालयों, खुफिया एजेंसियों और सैन्य शाखाओं से रियल-टाइम सूचना को एकीकृत करता हो।
    • यह प्रणाली NSA और प्रमुख निर्णयकर्त्ताओं को राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों तथा अवसरों के बारे में व्यापक, अद्यतन जानकारी उपलब्ध कराएगी।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा पूर्व दृष्टि इकाई (National Security Foresight Unit) का गठन करना: NSA कार्यालय के भीतर एक ऐसी समर्पित टीम की स्थापना करें जो दीर्घकालिक रणनीतिक योजना और परिदृश्य विश्लेषण पर केंद्रित हो।
    • यह इकाई संभावित भावी सुरक्षा चुनौतियों और अवसरों पर नियमित रूप से रिपोर्ट तैयार करेगी, जिससे सक्रिय नीतियों को आकार देने में मदद मिलेगी।
  • अंतर-राज्यीय सुरक्षा समन्वय तंत्र विकसित करना: राज्य स्तरीय सुरक्षा अधिकारियों के साथ नियमित परामर्श और समन्वय के लिये NSA के अंतर्गत  एक औपचारिक संरचना स्थापित की जाए।
    • इससे संघीय और राज्य स्तर पर, विशेष रूप से सीमा सुरक्षा और आतंकवाद प्रतिरोध जैसे मुद्दों पर सूचना साझाकरण एवं नीति कार्यान्वयन में सुधार होगा।
  • एक पारदर्शी मीट्रिक प्रणाली लागू करना: राष्ट्रीय सुरक्षा परिणामों के लिये प्रमुख प्रदर्शन संकेतकों का एक समूह विकसित किया जाए, जिसकी नियमित रूप से समीक्षा की जाएगी और प्रासंगिक सरकारी हितधारकों को (सुरक्षित तरीके से) रिपोर्ट की जाएगी।
    • इससे जवाबदेही बढ़ेगी और राष्ट्रीय सुरक्षा प्रबंधन में निरंतर सुधार को आधार प्राप्त होगा।
  • राष्ट्रीय संकट सिमुलेशन केंद्र (National Crisis Simulation Center) की स्थापना करना: विभिन्न सुरक्षा परिदृश्यों के नियमित और वृहत स्तर के सिमुलेशन आयोजित करने के लिये अत्याधुनिक प्रतिष्ठान का निर्माण किया जाए।
    • यह सिमुलेशन केंद्र नीति-निर्माताओं, सैन्य नेतृत्वकर्ताओं और प्रमुख हितधारकों को जटिल संकटों के लिये समन्वित प्रतिक्रियाओं का अभ्यास करने, समग्र तैयारियों में सुधार करने तथा वर्तमान सुरक्षा ढाँचे में अंतराल की पहचान करने की अनुमति देगा।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा नवाचार कोष (National Security Innovation Fund) का गठन करना: राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के अत्याधुनिक अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने के लिये एक समर्पित कोष का गठन किया जाए।
    • यह कोष क्वांटम कंप्यूटिंग, उन्नत सामग्री, स्वायत्त प्रणालियों और अंतरिक्ष-आधारित प्रौद्योगिकियों जैसे क्षेत्रों में परियोजनाओं को समर्थन प्रदान करेगी, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि भारत सुरक्षा से संबंधित तकनीकी प्रगति में अग्रणी बना रहे।
  • एकीकृत आपातकालीन प्रतिक्रिया नेटवर्क (Unified Emergency Response Network) का विकास करना: एक ऐसे एकीकृत मंच का निर्माण किया जाए जो देश भर में पुलिस, अग्निशमन, चिकित्सा और आपदा प्रतिक्रिया टीमों सहित सभी आपातकालीन सेवाओं को संबद्ध करे।
    • यह नेटवर्क स्थानीय घटनाओं और बड़े पैमाने की आपात स्थितियों दोनों के लिये तीव्र एवं समन्वित प्रतिक्रिया को सक्षम करेगा, जिससे समग्र राष्ट्रीय प्रत्यास्थता में सुधार होगा।
  • राष्ट्रीय संज्ञानात्मक युद्ध केंद्र (National Cognitive Warfare Center) की स्थापना करना: संज्ञानात्मक युद्ध का मुक़ाबला करने और उसमें क्षमताएँ विकसित करने के लिये एक विशेष संस्थान का निर्माण किया जाए, जो भारत के सूचना क्षेत्र और सामाजिक सामंजस्य की रक्षा पर केंद्रित हो।
    • यह केंद्र मनोविज्ञान, डेटा विज्ञान और रणनीतिक संचार में विशेषज्ञता को संयोजित करेगा ताकि प्रभाव संचालन, दुष्प्रचार अभियानों और संज्ञानात्मक हेरफेर के अन्य रूपों से बचाव हो सके तथा पर्याप्त क्षमता के साथ उनमें संलग्न रहा जा सके।

अभ्यास प्रश्न: भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की भूमिका की चर्चा कीजिये और भारत में NSA कार्ले से संबंधित हाल की प्रमुख चिंताओं पर प्रकाश डालिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

मेन्स

प्र . आतंकवाद का अभिशाप राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये एक गंभीर चुनौती है। इस बढ़ते खतरे को रोकने के लिय आप क्या उपाय सुझाएंगे? आतंकवादी फंडिंग के प्रमुख स्रोत क्या हैं? (2017)

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