इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


जैव विविधता और पर्यावरण

कोयला आधारित ऊर्जा की आवश्यकता

  • 19 Sep 2020
  • 10 min read

यह एडिटोरियल द हिंदू में प्रकाशित “Reject this inequitable climate proposal” लेख पर आधारित है। यह भारत के लिये नवीकरणीय ऊर्जा पर कोयला ऊर्जा के महत्त्व के बारे में विश्लेषण करता है।

संदर्भ

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने पेरिस समझौते के महत्त्व पर प्रकाश डाला और अपने लक्ष्य को पूरा करने हेतु भारत को वर्ष 2030 तक कोयला उत्पादन रोकने और कार्बन उत्सर्जन को 45% कम करने के लिये कहा था। हालाँकि भारत उन चुनिंदा देशों में से एक है जहाँ कम-से-कम 2°C तापमान अनुरूप जलवायु कार्य योजना है। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा कहा गया कथन UNFCCC के मूल सिद्धांत यानी ‘समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्त्वों (Common but differentiated responsibilities- CBDR) के सिद्धांत के अनुरूप नहीं है। CBDR विकसित देशों की जिम्मेदारियों एवं प्रतिबद्धताओं के बीच मुख्य अंतर को दर्शाता है जो विकासशील देशों के पक्ष में दिखाई देता है। 

  • यदि भारत वर्ष 2020 के बाद कोयला क्षेत्र में कोई नया निवेश नहीं करता है तो संभवतः भारत का औद्योगिकीकरण प्रभावित होगा जिससे भारत की आर्थिक विकास यात्रा पर नकारात्मक असर पड़ेगा। इसलिये भारत को विकास एवं पर्यावरण के बीच संतुलन के सिद्धांतों का पालन करते हुए पेरिस समझौते के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये विकसित देशों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ना चाहिये।

भारत का ग्रीन हाउस गैस (GHG) उत्सर्जन:

  • G-20 देशों में भारत, सबसे कम प्रति व्यक्ति GHG उत्सर्जन करता है।
  • हाल के दशकों में भारत के वार्षिक उत्सर्जन (0.5 टन प्रति व्यक्ति) की त्वरित आर्थिक वृद्धि के बावजूद यह 1.3 टन के वैश्विक औसत से कम है।
  • इसके अलावा निरपेक्ष रूप से चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ (European Union-EU) तीन प्रमुख उत्सर्जक हैं जिनका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन वैश्विक औसत से अधिक है।
  • संचयी उत्सर्जन के संदर्भ में, वर्ष 2017 तक भारत का योगदान 1.3 बिलियन आबादी पर केवल 4% था जबकि मात्र 448 मिलियन आबादी वाला यूरोपीय संघ 20% उत्सर्जन के लिये उत्तरदायी था।
    • जो यह दर्शाता है कि वैश्विक मानचित्र में उत्तर में स्थित यूरोपीय देशों ने जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता बनाए रखी है।
  • UNFCCC के अनुसार, वर्ष 1990 और वर्ष 2017 के बीच विकसित देशों (रूस एवं पूर्वी यूरोपीय देशों को छोड़कर) ने अपने वार्षिक उत्सर्जन में केवल 1.3% की कमी की है।
  • इसके अलावा GHG के प्रमुख उत्पादकों में से एक संयुक्त राज्य अमेरिका ने खुद को पेरिस समझौते से बाहर कर लिया गया है।

कोयला बनाम नवीकरणीय ऊर्जा:

  • भारत अभी भी एक विकासशील देश है: विकसित देशों के विपरीत भारत (विकास दायित्वों को देखते हुए) कोयला और अन्य जीवाश्म ईंधन को नवीकरणीय ऊर्जा के साथ पर्याप्त रूप से प्रतिस्थापित नहीं कर सकता है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों एवं उनका बड़े पैमाने पर संचालन तथा उत्पादन क्षमता की कमी को देखते हुए कोयला आधारित ऊर्जा संयंत्रों को बंद करने और नवीकरण ऊर्जा में बदलने से भारत की बाहरी स्रोतों से नवीकरणीय प्रौद्योगिकी उपकरणों के आयात एवं आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भरता बढ़ेगी।
  • वर्ष 2050 बिजली उत्पादन में 285% की वृद्धि के लिये भारत के पारंपरिक ऊर्जा स्रोत महत्त्वपूर्ण साबित होंगे।
    • अकेले नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम नहीं होंगे। आने वाले समय में भारत की ज़रूरतों को पूरा करने और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक है कि वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों को जीवाश्म ईंधन वाले सक्रिय ग्रिडों के साथ एकीकृत किया जाए।
    • इसके अतिरिक्त जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा द्वारा संचालित विनिर्माण वृद्धि अपने आप में एक आवश्यकता है।
  • विनिर्माण के लिये जीवाश्म-ईंधन की आवश्यकता: चूँकि विनिर्माण उद्योग को बिजली की निर्बाध आपूर्ति की आवश्यकता होती है इसलिये नवीकरणीय ऊर्जा विनिर्माण उद्योग को संचालित नहीं कर सकती है। नवीकरणीय ऊर्जा से उत्पन्न विद्युत आपूर्ति को जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संयंत्र की तरह चालू एवं बंद नहीं किया जा सकता है।
    • इस प्रकार नवीकरणीय ऊर्जा हमेशा विश्वसनीय नहीं होती है और विशेष रूप से चरम माँग के समय नवीकरणीय ऊर्जा  स्रोतों से निर्बाध विद्युत आपूर्ति नहीं की जा सकती है।
    • यह (विनिर्माण उद्योग) कोयले सहित पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों की आवश्यकता की पुष्टि करता है जो नवीकरणीय ऊर्जा की मांग को पूरा करने में विफल होने पर तत्काल विद्युत आपूर्ति कर सकते हैं।
  • भारत में कोयला विद्युत आपूर्ति का आधार है: भारत में कोयला विद्युत का प्रमुख स्रोत है। वर्तमान में यह लगभग दो तिहाई विद्युत की आपूर्ति के लिये ज़िम्मेदार है, जिनमें से अधिकांश को ताप विद्युत संयंत्र में संसाधित किया जाता है।
    • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (Central Electric Authority) द्वारा प्रकाशित वर्ष 2019 की रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2030 में भारत में विद्युत उत्पादन का लगभग आधा हिस्सा कोयला आधारित होगा।

आगे की राह 

  • कोयला आधारित ऊर्जा को पर्यावरण के अधिक अनुकूल बनाना: पूर्ण रूप से नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने के बजाय कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को और अधिक पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिये नई तकनीकों (जैसे- कोल गैसीफिकेशन [Coal Gasification), कोल बेनीफिकेशन (Coal Beneficiation) आदि] की एक शृंखला तैयार की जा सकती है।
    • परिणामतः इससे ज्वलनशील कोयले के हानिकारक पर्यावरणीय प्रभावों को प्रभावशाली तरीके से कम किया जा सकेगा।
  • विकसित देशों के साथ जुड़ाव: कोपेनहेगन समझौते-Copenhagen Accord {संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP-15) 2009 के दौरान स्थापित} के तहत विकसित देशों ने वर्ष 2012 से वर्ष 2020 तक प्रति वर्ष 100 बिलियन डॉलर देने का वादा किया था। इस फंड को हरित जलवायु कोष (Green Climate Fund- GCF) के रूप में जाना जाता है। GCF का उद्देश्य विकासशील और अल्प विकसित देशों (Least Developing Countries) को जलवायु परिवर्तन के मुद्दों से समाधान में सहायता करना है।

निष्कर्ष 

गौरतलब है कि भारत कार्बन स्थिरता की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार, भारत में वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत से 50% विद्युत उत्पादन होगा। जिसमें पवन एवं सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी सबसे अधिक होगी। फिर भी भविष्य में परिवर्तन (जीवाश्म ईंधन से नवीकरणीय ऊर्जा में) को सुचारु बनाने और कार्बन-मुक्त ऊर्जा की अपनी दीर्घकालिक उद्देश्य को साकार करने के लिये देश को पारंपरिक स्रोतों के साथ-साथ नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को पूरक बनाना होगा।

energy-needs

प्रश्न:  भविष्य में कार्बन-मुक्त ऊर्जा की दीर्घकालिक योजना को साकार करने के लिये भारत को पारंपरिक स्रोतों के साथ नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को पूरक बनाना होगा। चर्चा करें।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow