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भारतीय अर्थव्यवस्था

उदारीकरण से परे आर्थिक सुधारों की आवश्यकता

  • 09 Sep 2022
  • 13 min read

यह एडिटोरियल 07/09/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “For a stronger economy: We need economic reforms beyond liberalisation” लेख पर आधारित है। इसमें उदारीकरण के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास और उन क्षेत्रों के बारे में चर्चा की गई है जहाँ विकास के लिये भारत तुलनात्मक लाभ रखता है।

वैश्विक महामारी के कारण उत्पन्न हुए सभी व्यवधानों के बावजूद पिछले 2 वर्षों में भारत का भुगतान संतुलन अधिशेष की स्थिति में बना रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के आँकड़ों के अनुसार भारत ने वर्ष 2021 की अंतिम तिमाही में यूनाइटेड किंगडम को पीछे छोड़ दिया है और विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है।

IMF और विश्व बैंक (WB) यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं कि अन्य देश भारत के विकास से लाभान्वित हो सकें; विशेष रूप से उनके मुख्य वित्तपोषक, बड़े पूंजी निर्यातक यह लाभ उठा सकें। लेकिन संरचनात्मक भूमि, श्रम और अन्य बाज़ार-उद्घाटन सुधारों की IMF-WB की पवित्र त्रयी से भारत के घरेलू बाज़ार को नुकसान पहुँचता है और एक बिंदु से परे गंभीर प्रतिरोध की स्थिति उत्पन्न होती है जो फिर बड़ी राजनीतिक लागत लेकर आती है।

वर्ष 1991 के बाद भारत ने अपने आर्थिक नियंत्रणों में ढील देना शुरू किया और उदारीकरण के बढ़े हुए स्तर से देश के निजी क्षेत्र में व्यापक वृद्धि हुई। तब से हमारे देश की विकास यात्रा उतार-चढ़ाव, उपयोग किये गए अवसरों और सीखे गए सबक की एक रोचक कहानी रही है।

हालाँकि उदारीकरण ने नए अवसर पैदा किये हैं, लेकिन एक वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में भारत का रूपांतरण ने अभी तक इसके सभी नागरिकों को पूरी तरह से लाभान्वित नहीं किया है।

भारत को तुलनात्मक बढ़त प्रदान करने वाले संभावनाशील क्षेत्र

  • अंतर्मुखी उदारीकृत अर्थव्यवस्था (Inward Looking Liberalised Economy): भारतीय अर्थव्यवस्था काफी हद तक एक अंतर्मुखी और घरेलू मांग संचालित अर्थव्यवस्था है।
    • इसके अलावा, भारत अब एक ‘बंद’ (closed) नहीं बल्कि उदारीकृत अर्थव्यवस्था है जो अपने प्रतिस्पर्द्धी लाभ को आगे बढ़ाने का लक्ष्य रखता है और यह भारत को वर्ष 2047 तक एक मध्यम आय वाले देश बनने की राह पर ले जाएगा।
  • जनसांख्यिकी लाभांश (Demographic Dividend): भारत ने वर्ष 2005-06 में जनसांख्यिकीय लाभांश अवसर खिड़की में प्रवेश कर लिया है जहाँ वह वर्ष 2055-56 तक बना रहेगा। लगभग 65 प्रतिशत भारतीय कामकाजी आयु (working age) के हैं, जो भारत को भविष्य में आधे से अधिक एशिया के लिये संभावित कार्यबल बनाते हैं।
  • कृषि क्षेत्र में अग्रणी: कृषि और संबद्ध क्षेत्र निस्संदेह भारत में, विशेष रूप से इसके विशाल ग्रामीण क्षेत्रों में, सबसे बड़े आजीविका प्रदाता हैं। इसके अलावा, भारत में फसल पैटर्न गन्ना और रबड़ जैसी नकदी फसलों की ओर स्थानांतरित हुआ है।
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 के अनुसार कृषि और संबद्ध क्षेत्र कोविड-19 के आघात के प्रति सबसे अधिक लचीले साबित हुए, जहाँ इनमें वर्ष 2020-21 में 3.6% की और वर्ष 2021-22 में 3.9% की वृद्धि दर्ज की गई।
    • इसके साथ ही, खाद्य प्रसंस्करण का ‘सूर्योदय उद्योग’ (Sunrise Industry) के रूप में उभार हो रहा है।
    • IT और बिज़नेस सर्विसेज़ आउटसोर्सिंग से लाभ उठा सकने के अनुकूल: भारत लंबे समय से एक ‘टेक-सैवी’ देश के रूप में पहचाना जाता रहा है। इंफोसिस, विप्रो और TCS जैसी भारतीय आईटी दिग्गज कंपनियों ने वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बनाई है।
    • निम्न-लागत लाभ, अंग्रेज़ी बोल सकने वाली कुशल जनशक्ति का एक बड़ा पूल और नवीनतम प्रौद्योगिकी समाधान भारत को सबसे आकर्षक आउटसोर्सिंग हब बनाते हैं।
  • पसंदीदा पर्यटन गंतव्य: विशाल सांस्कृतिक और प्राकृतिक संसाधनों के साथ ही भारत अपने समृद्ध इतिहास और उल्लेखनीय विविधता के लिये अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों को आकर्षित करता रहा है।
    • उत्तर-महामारी समय में विश्व में यात्रा इच्छा की जागृति के साथ यात्रा और पर्यटन पुनर्जीवित हो रहे हैं, जो भारत को अपने पर्यटन उद्योग का विकास करने का अवसर प्रदान कर रहे हैं। इससे भारत गर्मजोशी से आतिथ्य प्रदान करने और रोज़गार पैदा करने दोनों में सक्षम होगा।

भारत के लिये सतत् आर्थिक विकास की राह की प्रमुख बाधाएँ

  • समसामयिक भू-राजनीतिक मुद्दे: उभरते बाज़ार (भारत सहित) कई तरह से भू-राजनीतिक जोखिम का खामियाजा भुगतते हैं। इसमें आपूर्ति शृंखला की बाधाएँ प्रमुख हैं जो मांग और आपूर्ति के बीच की खाई को चौड़ी करती हैं।
    • उदाहरण के लिये, रूस-यूक्रेन युद्ध के परिणामस्वरूप वैश्विक कमी उत्पन्न हुई जिससे भारत को कच्चे तेल और उर्वरकों के आयात के लिये अधिक भुगतान करना पड़ा है।
  • निकट अतीत में रोगारहीन विकास: सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के अनुसार भारत में बेरोज़गारी दर लगभग 7-8% है। ऐसा इसलिये है क्योंकि रोज़गार वृद्धि का जीडीपी वृद्धि के साथ तालमेल नहीं रहा है।
    • कार्य सक्षम श्रमबल का केवल 40% ही वास्तव में कार्यरत है या कार्य की तलाश में है, जिसमें महिलाओं की भागीदारी दर और कम है।
  • व्यापक व्यापार घाटा: भारत के निर्यात की प्रवृत्ति में गिरावट आई है जहाँ जुलाई 2022 में भारत का व्यापार घाटा 31 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड स्तर तक पहुँच गया। ऐसा विकसित अर्थव्यवस्थाओं (जैसे अमेरिका) में मंदी के रुझान और उच्च कमोडिटी मूल्यों के कारण हुआ।
    • पूंजी का बहिर्वाह और चालू खाता घाटा भारतीय रुपए पर दबाव डाल रहा है
  • जलवायु परिवर्तन का खतरा: भारत जैसे विकासशील देशों के लिये आर्थिक प्रगति और जलवायु परिवर्तन के बीच राहों का टकराव अपरिहार्य है क्योंकि आर्थिक विकास के कई पहलू पर्यावरण की सेहत के साथ संबद्ध हैं, जिसके अभाव में आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
    • भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून (ISM) से कृषि उत्पादन, जल संसाधन, मानव स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित होते हैं। हाल के समय में ISM में अनिश्चित पैटर्न का उभार हुआ है जिसके परिणामस्वरूप विनाशकारी बाढ़ और ग्रीष्म लहरों जैसी स्थिति बनी है।
  • अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई: ‘विश्व असमानता रिपोर्ट 2022’ (World Inequality Report 2022) के अनुसार भारत की शीर्ष 10% आबादी कुल राष्ट्रीय आय का 57% हिस्सा धारण करती है, जबकि नीचे की 50% आबादी का हिस्सा घटकर 13% रह गया है।
    • भारत की असमानता असमान अवसर के कारण सीमित ऊर्ध्वगामी गतिशीलता से प्रेरित है।

Prosperity

आगे की राह

  • आर्थिक विकास लक्ष्यों की स्थापना: भारत का प्रदर्शन न केवल इस बात पर निर्भर करता है कि वह समकालीन चुनौतियों का कितनी अच्छी तरह से सामना करता है, बल्कि भविष्य की चुनौतियों के लिये वह कितना तैयार है।
    • भारत को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि उसके नीतिगत विकल्प आधुनिक तकनीकी समाधानों के साथ सुदृढ़ और अग्रगामी हों। इसके लिये भारत के पास एक प्रभावी रणनीति हो जो देश के आर्थिक विकास लक्ष्यों की पारदर्शी अभिव्यक्ति पर आधारित हो।
    • इन लक्ष्यों को एक ऐसी महत्त्वाकांक्षा की रूपरेखा तैयार करनी चाहिये जो साहसिक, ऊर्जावान और देश की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करती हो।
  • सामाजिक और आर्थिक विकास का एकीकरण: आर्थिक विकास जो सामाजिक विकास प्राप्त नहीं करे, वह समाज को खंडित करता है और अंततः समृद्धि की नींव को ही नष्ट कर देता है।
    • इसलिये, वर्तमान में सक्रिय श्रम बाज़ार से बाहर के लोगों के लिये प्रतिस्पर्द्धी नौकरियों के सृजन को सक्षम करने पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही ही उपयुक्त सामाजिक सुरक्षा उपायों को अपनाये जाने की आवश्यकता है।
  • भारत में विनिर्माण, भारत के लिये विनिर्माण: ‘ज़ीरो डिफेक्ट ज़ीरो इफेक्ट’ पर विशेष बल देते हुए ‘मेक इन इंडिया’ पहल को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
    • बैंकिंग क्षेत्र में भी सुधार की आवश्यकता है जो केवल बड़े विनिर्माण के बजाय छोटे पैमाने के विनिर्माण को बढ़ावा देने में मदद कर सके।
  • कारोबार सुगमता प्रदान करना: अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिये विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट अवसरों का निर्धारण और कारोबार सुगमता को सक्षम करने वाले एक स्वस्थ कारोबारी माहौल का निर्माण अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • भारतीय युवाओं को सशक्त बनाना: निकट भविष्य में जनसांख्यिकीय लाभांश का दोहन करने के लिये कौशल विकास को भारत में पारंपरिक स्कूली शिक्षा के साथ एकीकृत करने की आवश्यकता है।
    • भारत को पेरू जैसे उदाहरणों से प्रेरणा लेनी चाहिये जहाँ ‘इनोवा स्कूल’ (Innova Schools) संचालित किये जा रहे हैं, जो छात्रों को लागत-प्रभावी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने हेतु एक आकर्षक मॉडल प्रदान करते हैं।
  • भारतीय महिलाओं की क्षमता के द्वार खोलना: शिक्षा में लैंगिक अंतराल की समाप्ति और महिलाओं के वित्तीय एवं डिजिटल समावेशन के साथ उनके लिये बाधाकारी स्थितियों का अंत हमारी प्राथमिकता होनी चाहिये।
  • विशेष आर्थिक क्षेत्रों को सुदृढ़ बनाना: विदेशी निवेश बढ़ाने, निर्यात बढ़ाने और क्षेत्रीय विकास का समर्थन करने के लिये अधिक विशेष आर्थिक क्षेत्रों की आवश्यकता है।
    • विशेष आर्थिक क्षेत्रों पर बाबा कल्याणी समिति (Baba Kalyani Committee on SEZs) ने सिफ़ारिश की है कि SEZs में MSME निवेश को MSME योजनाओं से जोड़कर और क्षेत्र-विशिष्ट SEZs को अनुमति देकर प्रोत्साहित किया जाए।

अभ्यास प्रश्न: भारत की विकास यात्रा उतार-चढ़ाव की एक कहानी रही है। भारत के आर्थिक विकास पथ और प्रमुख बाधाओं का परीक्षण करें।

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