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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय रूपए का वैश्वीकरण

  • 10 May 2023
  • 20 min read

यह एडिटोरियल 07/05/2023 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित “Perils of Trading Globally in Re” लेख पर आधारित है। इसमें भारतीय रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के भारत सरकार के प्रयासों और संबंधित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

वर्तमान में, विशेष रूप से कोविड-19 के कारण प्रेरित मंदी और पूर्वी यूरोप में पुनः उभरे भू-राजनीतिक तनाव के साथ वैश्विक व्यापार और अर्थव्यवस्था एक कठिन दौर का सामना कर रहे हैं। एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कई विकासशील देश विदेशी मुद्रा की भारी कमी एवं अस्थिरता के साथ मुद्रा संकट के कगार पर हैं।

  • भले ही सभी संकटों के लिये नहीं, लेकिन अमेरिका प्रायः अपने शत्रु देशों (ईरान, रूस आदि) पर प्रतिबंध लगाने के रूप में अमेरिकी डॉलर को हथियार की तरह इस्तेमाल करता रहा है, जिसने दुनिया भर के देशों को विवश किया है कि वे व्यापार और भुगतान निपटान के वैकल्पिक साधनों की तलाश करें।
  • इस परिदृश्य में, USD-आधारित निपटान प्रणाली के एक वैकल्पिक उपाय के रूप में भारतीय रुपए (INR) का उपयोग भारत और अमेरिका द्वारा प्रतिबंधों का सामना कर रहे देशों- दोनों के लिये ही लाभप्रद सिद्ध हो सकता है। सीमा-पार व्यापार के लिये भारतीय रुपए को बढ़ावा देने का भारतीय रिज़र्व बैंक का निर्णय निस्संदेह सही दिशा में बढ़ाया गया कदम है, हालाँकि रुपए के इस तरह के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिये विभिन्न अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक कार्रवाइयों की आवश्यकता होगी।

रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण से क्या अभिप्राय है?

  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा (International Currency):
    • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा वह होती है जिसका उपयोग अंतर्राष्ट्रीय लेनदेन में प्रत्यक्ष रूप से संलग्न पक्षकार देशों द्वारा अपनी राष्ट्रीय मुद्राओं के बदले किया जाता है, चाहे वह लेनदेन वस्तुओं, सेवाओं या वित्तीय संपत्तियों की खरीद आदि किसी से भी संबंधित हो।
    • जुलाई 2022 तक की स्थिति के अनुसार वैश्विक विदेशी मुद्रा बाज़ार कारोबार में अमेरिकी डॉलर (USD) की हिस्सेदारी लगभग 88% थी, जिसके बाद यूरो, जापानी येन और पाउंड स्टर्लिंग का स्थान था। इसमें भारतीय रुपए की हिस्सेदारी मात्र 1.7% थी।
  • भारतीय रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण:
    • यह भारतीय मुद्रा की बढ़ती सीमा-पार लेनदेन प्रक्रिया को संदर्भित करता है, विशेष रूप से आयात-निर्यात व्यापार में और उसके बाद अन्य चालू खाता लेनदेन एवं पूंजी खाता लेनदेन में।
    • यह विदेशी व्यापार में USD समेत अन्य मुद्राओं के विपरीत भारतीय रुपए में व्यापार के अंतर्राष्ट्रीय निपटान को सक्षम करेगा।

ध्यातव्य: चालू खाते (Current account) का उपयोग वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात एवं आयात में सौदे के लिये किया जाता है, जबकि पूंजी खाता (Capital account) निवेश एवं ऋण के रूप में सीमा-पार लेनदेन के माध्यम से प्राप्त पूंजी से निर्मित होता है।

  • प्रेरक कारक:
    • यूक्रेन युद्ध के परिप्रेक्ष्य में रूस पर आर्थिक आर्थिक प्रतिबंधों के एक भाग के रूप में SWIFT व्यवस्था से सात रूसी बैंकों को हटाने ने इसके लिये ‘ट्रिगर’ या प्रेरक के रूप में कार्य किया।
    • इस भुगतान व्यवस्था ने वर्ष 2022-23 में वृहत महत्त्व प्राप्त कर लिया क्योंकि भारत ने रियायती रूसी तेल पर अपनी निर्भरता बढ़ा दी है और रूस उसके लिये कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत बन गया है।
  • भारत के प्रयास:
    • जुलाई 2022 में RBI ने ‘भारतीय रुपए में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार निपटान’ (International Trade Settlement in Indian Rupees) पर एक परिपत्र जारी किया, जिसमें न केवल व्यापार निपटान के लिये बल्कि रुपए में सीमा-पार लेनदेन के लिये भी आवश्यक शर्तों को रेखांकित किया गया।
      • इस व्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण घटक यह है कि रुपया अधिशेष शेष (Rupee surplus balance) का उपयोग आपसी समझौते के अनुसार पूंजी एवं चालू खाता लेनदेन के लिये किया जा सकता है।
      • इस प्रकार, रुपी बैलेंस रखने वाली विदेशी संस्थाओं को भारत में संपत्ति में निवेश करने की अनुमति है।
    • अभी हाल ही में मार्च 2023 में RBI ने 18 देशों के साथ रुपया व्यापार निपटान (rupee trade settlement) के लिये तंत्र स्थापित किया।
      • इन देशों के बैकों को भारतीय रुपए में भुगतान निपटान करने के लिये SVRAs (Special Vostro Rupee Accounts) खोलने की अनुमति दी गई है ।
      • अप्रैल 2023 में भारत और मलेशिया के बीच भारतीय रुपए में व्यापार निपटान हेतु सहमति बनी है।
    • अपनी विदेश व्यापार नीति, 2023 के एक भाग के रूप में भारत सरकार सीमा-पार व्यापार में भारतीय मुद्रा के उपयोग को प्रोत्साहित करने की मंशा रखती है, जो एक नए भुगतान निपटान ढाँचे से समर्थित है जिसे RBI ने जुलाई 2022 में पेश किया था।
  • महत्त्व:
    • रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण का सबसे महत्त्वपूर्ण लाभ यह होगा कि विदेशी व्यापार के लिये USD पर निर्भरता कम होगी।
      • यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भारत की सौदेबाजी शक्ति को और बढ़ाएगा।
    • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिये रुपए के उपयोग का विस्तार भारतीय व्यवसायों के लिये मुद्रा की अस्थिरता के जोखिम को समाप्त कर मुद्रा जोखिम को कम करेगा।
      • यह व्यापार करने की लागत को कम कर सकता है और इस प्रकार वैश्विक बाज़ार में निर्यात को अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाने में मदद कर सकता है।
    • इसके अतिरिक्त, यदि घरेलू मुद्रा में भारत के व्यापार के एक बड़े भाग का निपटान किया जा सकता है तो देश के लिये विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखने की आवश्यकता में भारी कमी आ सकती है।

क्या अमेरिकी डॉलर अभी भी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा है?

  • विदेशी मुद्रा भंडार धारण पर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के आँकड़ों से पता चलता है कि यूक्रेन संघर्ष के बाद भी वस्तुतः USD की हिस्सेदारी में अंतर नहीं आया है और वह लगभग 60% पर बना हुआ है; 20% हिस्सेदारी के साथ यूरो दूसरे स्थान पर बना हुआ है।
    • इन दोनों मुद्राओं के बाद जापानी येन और ब्रिटिश पाउंड की हिस्सेदारी है। चीन का रॅन्मिन्बी (renminbi) स्विस फ्रैंक और ऑस्ट्रेलियाई डॉलर की तुलना में कम हिस्सेदारी रखता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिये लेनदेन के माध्यम के रूप में सामान्य स्वीकार्यता के साथ-साथ दुनिया भर में डॉलर-डिनॉमिनेटेड परिसंपत्ति की मांग के कारण भी अमेरिकी डॉलर की मांग बनी हुई है।
    • अमेरिकी सरकार द्वारा जारी किये जाते डेट (debt) को दुनिया भर के देशों द्वारा मुद्रा में उतार-चढ़ाव (जो रिज़र्व/भंडार के मूल्य को प्रभावित करता है) के विरुद्ध एक बचाव (hedge) के रूप में खरीदा जाता है।
  • इस प्रकार, अंतर्राष्ट्रीय आरक्षित मुद्रा के रूप में अमेरिकी डॉलर का चलन समाप्त होना अभी दूर की बात है।

रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के मार्ग की प्रमुख बाधाएँ

  • रुपया-व्यापार व्यवस्था लागू करना आसान नहीं:
    • यह भी एक प्रमुख कारण था कि भारत और रूस ने रुपए में द्विपक्षीय व्यापार निपटान के प्रयासों को निलंबित कर दिया है, क्योंकि कई माह चली वार्ता के बाद भी रुपए को अपने खजाने में रखने के लिये भारत रूस को सहमत करने में विफल रहा।
    • रुपया पूर्णरूपेण परिवर्तनीय नहीं है; वस्तुओं के वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी मात्र 2% है और ये कारक अन्य देशों के लिये रुपए रखने की आवश्यकता को कम कर देते हैं।
      • इसी कारण रूस चाहता था कि व्यापार चीनी युआन, संयुक्त अरब अमीरात के दिरहम या अन्य मुद्राओं में किया जाए।
  • प्रमुख व्यापार भागीदारों के साथ भारत का व्यापार घाटा:
    • चीन, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब और रूस जैसे अपने प्रमुख व्यापारिक भागीदारों के साथ भारत व्यापार घाटे की स्थिति रखता है।
    • वास्तव में, रूस के साथ भारत के वृहत व्यापार घाटे (जिसका अर्थ है कि रूस वृहत रुपया शेष के बोझ में दबा होगा) को देखते हुए भी रूस रुपए-रूबल व्यापार के लिये अनिच्छुक रहा है।
  • विनिमय दर स्थिरता और घरेलू मौद्रिक नीति को संतुलित करना:
    • जैसे-जैसे रुपया अधिक अंतर्राष्ट्रीयकृत होता जाएगा, वैसे-वैसे बाहरी आर्थिक झटकों- जैसे कि वैश्विक ब्याज दरों में बदलाव या पण्यों की कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रति अधिक संवेदनशील होता जाएगा।
      • यह केंद्रीय बैंक (RBI) के लिये विनिमय दर स्थिरता और एक घरेलू उन्मुख मौद्रिक नीति दोनों को बनाए रखना अधिक कठिन बना सकता है।
  • मुद्रा आपूर्ति पर कम नियंत्रण:
    • जब एक मुद्रा का अंतर्राष्ट्रीयकरण किया जाता है तो निवासी और अनिवासी दोनों ही घरेलू मुद्रा में डिनॉमिनेटेड वित्तीय साधनों (जैसे स्टॉक, बॉण्ड और अन्य प्रतिभूतियों) की खरीद-बिक्री कर सकते हैं।
      • इसका अर्थ यह है कि देश की मुद्रा की मांग और आपूर्ति न केवल घरेलू बल्कि बाहरी कारकों (देश के बाहर) से भी प्रभावित हो सकती है।
    • यदि रुपए के मामले में ऐसा होगा तो RBI का अपनी सीमाओं के भीतर मुद्रा आपूर्ति पर सीमित नियंत्रण होगा, जिससे घरेलू अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं के अनुरूप स्थिर ब्याज दरों को बनाए रखना कठिन सिद्ध हो सकता है।
  • रुपए की पूर्ण परिवर्तनीयता से संबद्ध जोखिम:
    • रुपए को प्रभावी ढंग से अंतर्राष्ट्रीयकृत करने के लिये सरकार को किसी भी संस्था (घरेलू/विदेशी) पर रुपए की खरीद/बिक्री पर लगे प्रतिबंधों को हटाना होगा; इसका तात्पर्य होगा कि देश के अंदर और बाहर पूंजी के प्रवाह पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा, जिसके लिये पूंजी खाते पर पूर्ण परिवर्तनीयता की आवश्यकता होगी।
    • क्रमिक भारतीय सरकारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बाहरी वित्तीय झटकों के जोखिम से बचाने के लिये पूंजी खाते पर पूर्ण परिवर्तनीयता से अब तक परहेज ही किया है।

रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण को सुगम बनाने के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?

  • चीन का अनुकरण:
    • उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में चीन एकमात्र ऐसा देश है जो अपने पूंजी खाते पर नियंत्रण बनाए रखते हुए अपनी मुद्रा का लगातार अंतर्राष्ट्रीयकरण करने में सक्षम रहा है। इसके लिये चीन ने कई उपाय किये हैं:
      • चीन और 43 अन्य देशों के केंद्रीय बैंकों के बीच करेंसी-स्वैप समझौतों को संपन्न किया गया है जो बाज़ारों को आश्वस्त करता है कि रॅन्मिन्बी की अति-आपूर्ति नहीं होगी।
      • उसने अपनी घरेलू मुद्रा के लिये एक अपतटीय बाज़ार का निर्माण किया है जो विदेशी संस्थाओं को डॉलर पाने के लिये रॅन्मिन्बी बेचने की अनुमति देता है।
    • यद्यपि यहाँ यह याद रखना भी आवश्यक है कि चीन अधिकांश देशों के साथ व्यापार अधिशेष की स्थिति रखता है।
      • यह उन क्षेत्रों में से एक है जहाँ भारत भी वर्तमान में ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल के माध्यम से आगे बढ़ रहा है। भारत को इसे वित्तपोषण और अनुसंधान एवं विकास के माध्यम से और अधिक गति देने की आवश्यकता है ताकि यह आयात पर अपनी निर्भरता को कम कर सके।
  • बेहतर योजना-निर्माण:
    • भारत को इस पर पर्याप्त विचार करने और योजना-निर्माण की आवश्यकता होगी कि रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण इस तरह से कार्यान्वित हो जो अर्थव्यवस्था के मूल सिद्धांतों पर प्रतिकूल प्रभाव न डाले।
      • सरकार को संभावित जोखिमों के साथ लाभों को सावधानीपूर्वक संतुलित करना चाहिये और अर्थव्यवस्था की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये उचित उपाय करने चाहिये।
    • इसके लिये यह भी आवश्यक है कि भारत के पास एक बड़ा और गहन घरेलू वित्तीय बाज़ार हो, जो बाहरी झटकों से निपटने के लिये बेहतर ढंग से तैयार हो और यह RBI के लिये अपनी मौद्रिक नीति का प्रबंधन करना आसान बना सके।
  • निर्यात वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करना:
    • भारत ने रुपए के व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिये एक मामूली प्रयास ही किया है और इस विचार को स्वीकृति मिलने में अभी समय लगेगा। अभी रुपए की स्वीकार्यता संभावित रूप से उन देशों तक ही सीमित रहेगी जो भारत के साथ घाटे की स्थिति रखते हैं।
      • भारत को अन्य व्यापार भागीदारों को नामांकित करने की आवश्यकता होगी जो भारत से वस्तुएँ खरीदने के लिये अपने रुपयों का उपयोग करने में सक्षम होंगे।
    • अमेरिका और यूरोपीय संघ भारत के लिये प्रमुख निर्यात गंतव्य हैं। तेल निर्यातक देश भी वृहत संभावनाएँ रखते हैं और इन्हें निर्यात हेतु दायरे में लेना अच्छा कदम होगा।
  • अन्य ठोस कदम जो सरकार उठा सकती है:
    • स्पॉट और फॉरवर्ड, दोनों ही बाज़ारों में घरेलू मुद्रा की खरीद-बिक्री पर लगे प्रतिबंधों को हटाना।
    • घरेलू कंपनियों को अपनी मुद्रा में निर्यात और आयात चालान करने में सक्षम करना।
    • विदेशी फर्मों, वित्तीय संस्थानों, सरकारी संस्थानों और व्यक्तियों को देश की मुद्रा एवं वित्तीय साधनों को धारण करने में सक्षम बनाना।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘दुनिया भर में जारी भू-राजनीतिक अस्थिरताओं और अमेरिका द्वारा विभिन्न देशों के विरुद्ध डॉलर को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की बढ़ती आवृत्ति के बीच विश्व अब भुगतान निपटान के अधिक उपयुक्त वैकल्पिक साधनों की तलाश कर रहा है। भारतीय रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण एक विवेकपूर्ण आगे की राह प्रदान करता है।’’ टिप्पणी कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा:

 Q1. रुपए की परिवर्तनीयता से क्या तात्पर्य है? (वर्ष 2015)

(a) रुपए के नोटों के बदले सोना प्राप्त करना
(b) रुपए के मूल्य को बाज़ार की शक्तियों द्वारा निर्धारित होने देना
(c) रुपए को अन्य मुद्राओं में और अन्य मुद्राओं को रुपए में परिवर्तित करने की स्वतंत्र रूप से अनुज्ञा प्रदान करना
(d) भारत में मुद्राओं के लिये अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार विकसित करना

उत्तर: (c)

  • रुपये की परिवर्तनीयता का अर्थ है रुपये को अन्य मुद्राओं में या अन्य मुद्रा को रुपए में बदलने की क्षमता।
  • भारतीय मुद्रा चालू खाते में पूरी तरह से परिवर्तनीय है और पूंजी खाते में आंशिक रूप से परिवर्तनीय है।
  • चालू खाता परिवर्तनीयता का अर्थ है माल और सेवाओं में व्यापार के लिये घरेलू मुद्रा को विदेशी मुद्रा में और इसके विपरीत विदेशी मुद्रा में परिवर्तित करने की स्वतंत्रता। दूसरी ओर, पूंजी खाता परिवर्तनीयता का अर्थ पूंजी प्रवाह और बहिर्वाह से संबंधित मुद्रा रूपांतरण की स्वतंत्रता है।

अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।


Q2. भुगतान संतुलन के संदर्भ में निम्नलिखित में से किससे/किनसे चालू खाता बनता है? (वर्ष 2014)

  1. व्यापार संतुलन
  2. विदेशी परिसंपत्तियाँ
  3. अदृश्यों का संतुलन
  4. विशेष आहरण अधिकार

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 1, 2 और 4

उत्तर: (c)

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