इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

अंतरिक्ष अपराध की घटनाओं के लिये नए नियम

  • 27 Nov 2019
  • 11 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में अंतरिक्ष के वाणिज्यिक प्रयोग के कारण होने वाली घटनाओं और इस संदर्भ में नए नियमों की आवश्यकता पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

हाल ही में विश्व की पहली अंतरिक्ष अपराध (Space Crime) घटना सामने आई थी, जिसमें अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) के एक अंतरिक्ष यात्री पर यह आरोप लगाया गया था कि उसने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) में स्थित एक कंप्यूटर से अपने पार्टनर के निजी बैंक खाते को हैक करने का प्रयास किया है। उल्लेखनीय है कि अंतरिक्ष अपराध के इस पहले मामले की जाँच जारी है और इस मामले में पूरी कार्यवाही अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के अंतर-सरकारी समझौते (IGA) के आधार पर की जा रही है। परंतु इस मामले ने विश्व में ऐसी स्थिति पर चर्चा को बढ़ावा दिया है जो IGA के क्षेत्राधिकार में नहीं आती, साथ ही इस संदर्भ में जल्द-से-जल्द नए नियमों को अमल में लाने की आवश्यकता पर विचार किया जा रहा है।

ISS का कानूनी ढाँचा और अंतरिक्ष अपराध

  • गौरतलब है कि अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) का कानूनी ढाँचा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग समझौते के तीन स्तरों पर बनाया गया है।
    • अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन का अंतर-सरकारी समझौता स्पेस स्टेशन परियोजना में शामिल 15 सरकारों द्वारा 29 जनवरी, 1998 को हस्ताक्षरित एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है, जिसे सामान्यतः IGA के नाम से भी जाना जाता है। सरकारी स्तर का यह दस्तावेज़ स्पेस स्टेशन के डिज़ाइन, विकास, संचालन और उपयोग पर भागीदार राष्ट्रों के मध्य सहयोग के लिये रूपरेखा निर्धारित करता है।
    • नासा तथा अन्य चार अंतरिक्ष एजेंसियों के मध्य 4 समझौता ज्ञापन भी इस ढाँचे में शामिल हैं। एजेंसी स्तर के इस समझौते का मुख्य उद्देश्य स्पेस स्टेशन के डिज़ाइन, विकास और संचालन में एजेंसियों की भूमिका का निर्धारण करना है। नासा के अतिरिक्त इसमें निम्नलिखित एजेंसियाँ शामिल हैं:
      • यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA)
      • कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसी (CSA)
      • रशियन फेडरल स्पेस एजेंसी (Roscosmos)
      • जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (JAXA)
    • समझौता ज्ञापन (MoU) को लागू करने के लिये अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच विभिन्न द्विपक्षीय कार्यान्वयन व्यवस्थाएं स्थापित की गई हैं। इसके तहत राष्ट्रीय एजेंसियों के लिये दिशा-निर्देश तय किये किये जाते हैं और उनके मध्य कार्य का वितरण किया जाता है।
  • इस समझौते के अनुच्छेद 22 में न्यायिक क्षेत्राधिकार से संबंधित बातों का उल्लेख किया गया है। समझौते के अनुसार, स्पेस स्टेशन पर हुए किसी भी आपराधिक मामले में दोषी से संबंधी देशों को अपने न्यायिक नियम कानून लागू करने का अधिकार होगा।
    • ध्यातव्य है कि अंतरिक्ष अपराध के पहले मामले में अमेरिका के कानून लागू किये जा रहे हैं, क्योंकि वह अंतरिक्ष यात्री स्पेस स्टेशन पर अमेरिका का प्रतिनिधित्व कर रही थी।

नए नियमों की आवश्यकता

  • कई कानूनविदों का मानना है कि अंतरिक्ष में बढती इंसानी पहुँच को देखते हुए इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि भविष्य में ऐसे कई मामले देखने को मिलेंगे जो वर्तमान समझौते की पहुँच के बाहर होंगे।
  • गौरतलब है कि हाल ही में नासा के अधिकारियों ने घोषणा की थी कि ISS के कुछ हिस्सों को वाणिज्यिक प्रयोग के लिये खोला जाएगा।
    • इस प्रकार का कदम अंतरिक्ष में फिल्मों के निर्माण, विज्ञापनों और अंतरिक्ष पर्यटन जैसी कई गतिविधियों को प्रोत्साहन दे सकता है।
  • ऐसे में यह प्रश्न अनिवार्य हो जाता है कि क्या यह समझौता अंतरिक्ष के वाणिज्यिक प्रयोग के कारण उत्पन्न होने वाले विवादों से निपटने में सक्षम है। विशेषज्ञों का मानना है कि चूँकि यह सरकारों और एजेंसियों के स्तर पर किया गया समझौता है, इसलिये इसे इस प्रकार की परिस्थिति से निपटने हेतु तैयार नहीं किया गया है।

अंतरिक्ष के प्रशासन संबंधी नियम-कानून

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अंतरिक्ष के सुव्यवस्थित प्रशासन के लिये कई प्रकार के प्रावधान किये गए हैं जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं:

  • वर्ष 1967 में की गई बाहरी अंतरिक्ष संधि (Outer Space Treaty) सदस्य देशों को शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये बाहरी अंतरिक्ष का प्रयोग करने की इजाज़त देती है। साथ ही यह संधि अंतरिक्ष में ऐसे हथियार तैनात करने पर पाबंदी लगाती है, जो जनसंहारक हों। विदित हो कि भारत प्रारंभ से ही इस संधि का हिस्सा है।
  • वर्ष 1979 में सोवियत संघ की पहल के बाद ‘मून एग्रीमेंट’ (Moon Agreement) पर विभिन्न राष्ट्रों द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे। यह समझौता अन्य राष्ट्रों की अनुमति के बिना सभी खगोल पिंडों की जाँच-पड़ताल या उनके प्रयोग को प्रतिबंधित करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 1967 में ‘रेस्क्यू एग्रीमेंट’ (Rescue Agreement) को अपनाया गया था। इस समझौते के अनुसार, सभी राष्ट्रों का यह दायित्त्व है कि वे सभी संकटग्रस्त अंतरिक्ष यात्रियों को बचाने और उन्हें अपने देश वापस लाने का हरसंभव प्रयास करें।
  • लायबिलिटी कन्वेंशन (Liability Convention) को UN महासभा द्वारा वर्ष 1971 में अपनाया गया था। इसके अनुसार, यदि किसी देश के स्पेस ऑब्जेक्ट के कारण अंतरिक्ष में किसी अन्य देश को कोई नुकसान होता है तो उसके मुआवज़े का भुगतान करने के लिये स्पेस ऑब्जेक्ट से संबंधित देश ही उत्तरदायी होगा।

भारत भी बना रहा है स्पेस स्टेशन

  • ध्यातव्य है कि जून 2019 में इसरो (Indian Space Research Organisation) के चेयरमैन के. सिवान द्वारा घोषणा की गई थी कि भारत इस दशक के अंत तक यानी वर्ष 2030 तक अंतरिक्ष में अपने स्वयं के अंतरिक्ष स्टेशन निर्माण पर विचार कर रहा है।
  • भारत ने वर्ष 2017 में ही स्पेस डॉकिंग जैसी तकनीक पर शोध करने के लिये बजट का प्रावधान किया था। यह तकनीक स्पेस स्टेशन में उपयोग होने वाले मॉडयूल को आपस में जोड़ने के लिये आवश्यक होती है। इसके बाद से ही भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की चर्चाएँ काफी तेज़ हो गईं थीं।
  • जानकारों के अनुसार, इस स्टेशन का भार 20 टन होगा जो कि ISS (450 टन) और चीनी अंतरिक्ष स्टेशन (80 टन) से काफी हल्का है और इस स्टेशन में 4-5 अंतरिक्ष यात्री 15-20 दिनों के लिये रुक सकेंगे। इस स्टेशन को पृथ्वी की निम्न कक्षा (LEO) में लगभग 400 किमी. की ऊँचाई पर स्थापित किया जाएगा।
  • अंतरिक्ष को भविष्य की कई संभावनाओं का द्वार माना जा रहा है। इन संभावनाओं का सहभागी होने से भारत आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकता है। हालाँकि इन लाभों को प्राप्त करने के लिये भारत को भी नियमों के एक विस्तृत ढाँचे की आवश्यकता होगी।

आगे की राह

  • अंतरिक्ष के बढ़ते प्रयोग को देखते हुए संभावित अपराधों की हर स्थिति से निपटने के लिये एक व्यापक कानून की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता।
  • वर्तमान में विश्व के पास अंतरिक्ष के प्रशासन को चलाने के लिये तमाम नियम कानून मौजूद हैं, परंतु ऐसा कोई भी कानून नहीं है जो अंतरिक्ष के वाणिज्यिक प्रयोग से उत्पन्न होने वाले आपराधिक मामलों को संबोधित कर सके।
    • चूँकि अंतरिक्ष के वाणिज्यिक प्रयोग के चलते तमाम न्यायाधिकार प्राप्त लोग अंतरिक्ष में पहुँचेंगे।
  • आवश्यक है कि ऐसे नियमों को अंगीकृत किया जाए जो अंतरिक्ष विज्ञान की बदलती ज़रूरतों को संबोधित कर सकें।

प्रश्न: अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में घटित अंतरिक्ष अपराध की घटना के आलोक में अंतरिक्ष प्रशासन से संबंधित नियमों का उल्लेख करते हुए नए नियमों की आवश्यकता पर चर्चा करें।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2