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मोदी सरकार के चार साल (भाग 6) - बैंकिंग: दिवालिया सुधारों के बावजूद जारी है एनपीए की समस्या

  • 31 May 2018
  • 13 min read

संदर्भ

बैंकिंग क्षेत्र नरेंद्र मोदी सरकार के प्रमुख फोकस क्षेत्रों में से एक रहा है, यही कारण है कि मोदी सरकार ने बैड लोन की समस्या से त्रस्त सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों की स्थिति में सुधार लाने के लिये तीन महत्त्वपूर्ण पहलों की घोषणा की। बैंकों की स्थिति में सुधार लाने के लिये सरकार ने इंद्रधनुष (Indradhanush) योजना के साथ-साथ 2.11 लाख करोड़ रुपए के पुनर्पूंजीकरण (recapitalization) की घोषणा की। 

  • इसके अलावा केंद्र सरकार ने पीएसयू (सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम) बैंकों के लिये दिवालिया और दिवालियापन संहिता (Insolvency and Bankruptcy Code - IBC) को भी लागू किया। 
  • इन सभी प्रयासों के मूल में बैंकों को गैर-निष्पादित संपत्ति अर्थात् एनपीए (non-performing assets–NPAs) और ऋणों की गैर-अदायगी (non-repayment of loans) की समस्या से उबारना ही रहा है।
  • वस्तुतः केंद्र सरकार का लक्ष्य आर्थिक विकास की राह में बाधा बनी एनपीए की समस्या का समाधान करते हुए बैंकों को विश्व की तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्था के अनुकूल बनाना है।

NPAs

प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन

  • यहाँ यह स्पष्ट कर देना अत्यंत आवश्यक है कि पीएसयू बैंकों की समस्याएँ इतनी आसानी से जल्द समाप्त होने वाली नहीं हैं, वर्तमान में आरबीआई के प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (Prompt Corrective Action-PCA) के तहत कुल ग्यारह बैंकों को शामिल किया गया है, जबकि शेष दस बैंक अपनी लोन बुक को समाप्त करने की दिशा में निरंतर प्रयास कर रहे हैं।
  • समस्या यह है कि यह स्थिति इतनी अधिक गंभीर हो गई है यदि इसके संदर्भ में तत्काल कोई कार्यवाही की भी जाती है तो भी इसे निरंतर चला पाना आसान नहीं होगा।
  • किसी भी बैंक को पीसीए की श्रेणी में तब शामिल किया जाता है जब वह बैंक निम्न तीन प्रमुख नियामक ट्रिगर बिंदुओं में से किसी एक का उल्लंघन करता है - पूंजी पर्याप्तता अनुपात, शुद्ध एनपीए तथा रिटर्न ऑफ एसेट्स।
  • सामान्य शब्दों में कहें तो आरबीआई को जब लगता है कि किसी बैंक के पास जोखिम का सामना करने के लिये पर्याप्त पूंजी नहीं है, उधार दिये गए धन से आय नहीं हो रही और मुनाफा नहीं हो रहा है तो आरबीआई उस बैंक को ‘पीसीए’ की श्रेणी में डाल देता है, ताकि उसकी वित्तीय स्थिति सुधारने के लिये तत्काल कदम उठाए जा सकें। 
  • पीसीए की श्रेणी में आने वाले बैंक न केवल अपनी ऋण पुस्तिका के आकार में वृद्धि करने और लाभांश का भुगतान करने के लिये प्रतिबंधित होते हैं बल्कि उन्हें नई शाखाएँ खोलने की अनुमति भी नहीं होती है।
  • इन सभी बाधाओं को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार एक जुड़वाँ रणनीति पर काम कर रही है ताकि अर्थव्यवस्था को समर्थन देने के लिये बड़े और बेहतर प्रदर्शन करने वाले बैंकों का और अधिक विस्तार किया जा सके, इसके दूसरे पक्ष के रूप में सरकार का लक्ष्य कमज़ोर बैंकों के आकार में कटौती करते हुए उन्हें केवल खुदरा ऋण पर केंद्रित करना है।

reforms-roadmap

क्या-क्या कार्य किये गए हैं?

  • आईबीसी को लागू करने के बाद सरकार ने भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) को एनपीए से निपटने के लिये और अधिक शक्तियाँ देने हेतु बैंकिंग विनियमन अधिनियम (Banking Regulation Act) में संशोधन किया।
    ♦ इस संशोधन के पश्चात् भारतीय रिज़र्व बैंक ने समयबद्ध समाधान के लिये बैंकों को 12 बड़े एनपीए मामलों को राष्ट्रीय कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (National Company Law Tribunal - NCLT) के अधीन लाने के लिये कहा।
  • देश में एनपीए के सन्दर्भ में मौजूद बड़े मामलों में से भूषण स्टील के पहले मामले को सफलतापूर्वक हल कर लिया गया है।
    सरकार द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, इससे 36,400 करोड़ रुपए बैंकों के पास वापस आएंगे। इसके अतिरिक्त कई अन्य मामलों में कानूनी कार्यवाही अभी जारी है।

Banking

  • अगस्त 2015 में सरकार ने पीएसयू बैंकों की स्थिति को सुधारने के लिये 'इंद्रधनुष' कार्यक्रम लॉन्च किया। 
    ♦ इस कार्यक्रम के अंतर्गत चार साल की अवधि में 70,000 करोड़ रुपए इक्विटी निवेश के लिये प्रदान किये गए। जबकि बैंकों को बाज़ार और आंतरिक मुनाफे से 1.1 लाख करोड़ रुपए जुटाने थे।
  • चूँकि शुरुआती योजनाएँ वांछित परिणाम उत्पन्न करने में नाकाम रहीं, इसीलिये सरकार ने अक्तूबर 2017 में पीएसयू बैंकों में 2.11 लाख करोड़ रुपए की इक्विटी के लिये एक वृहद् पुनर्पूंजीकरण योजना की घोषणा की।
  • इसमें पुनर्पूंजीकरण बॉण्ड के माध्यम से 1.35 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया गया, जबकि बजटीय संसाधनों से 18,000 रुपए और बाज़ार से 58,000 करोड़ रुपए का निवेश किया गया।
  • जनवरी में पीएसबी में 80,000 करोड़ रुपए का निवेश किया गया। ग्यारह कमज़ोर बैंकों को 52,311 करोड़ रुपए दिये गए, जबकि नौ मज़बूत बैंकों को 35,828 करोड़ रुपए प्रदान किये गए।
  • इसके अतिरिक्त स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ पटियाला और स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर तथा भारतीय महिला बैंक के विलय के कार्य को पूरा किया गया।
  • इसके अलावा सरकार द्वारा भगोड़ा आर्थिक अपराधी अध्यादेश (Fugitive Economic Offenders Ordinance), 2018 को भी अधिसूचित किया गया है, इस अध्यादेश के अंतर्गत देश छोड़कर भागने वाले लोन डिफाल्टर्स जैसे आर्थिक अपराधियों की संपत्तियों और परिसंपत्तियों को जब्त करने संबंधी प्रावधान किया गया है।
  • इन सबके साथ-साथ आरबीआई में नीतिगत निर्णय करने में सुधार के लिये मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण पर केंद्रित एक मौद्रिक नीति समिति की स्थापना भी की गई।

कौन-कौन से कार्य अभी प्रगति पर हैं?

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  • सरकार कमज़ोर बैंकों (विशेषकर उन 11 बैंकों जो इस समय गंभीर एनपीए की समस्या से त्रस्त हैं) के कॉर्पोरेट ऋण एक्सपोज़र को कम करने की तैयारी कर रही है।
    वर्ष 2016-17 में बैंकिंग क्षेत्र के कुल एनपीए में कॉर्पोरेट और उद्योग ऋण की हिस्सेदारी 73 प्रतिशत से अधिक की रही है।
  • इसके अलावा सरकार ने छोटे बैंकों से मार्च 2019 तक 40 फीसदी से कम अथवा सितंबर 2017 के स्तर से कम-से-कम 15 प्रतिशत तक अपने कॉर्पोरेट लोन एक्सपोज़र में कटौती करने को कहा है।
  • जैसा कि आप जानते हैं, एनसीएलटी बेंच के अधीन बड़े खातों के संबंध में समयबद्ध समाधान के लिये कार्यवाही की जा रही है, उसी प्रकार से बैंक भी किसी संभावित धोखाधड़ी से बचने के लिये 50 करोड़ रुपए से अधिक के ऋण खातों का लेखा परीक्षण कर रहे हैं।
    ♦ वैसे बैंक खाते जिनके संबंध में किसी प्रकार की धोखाधड़ी होने की जानकारी मिल रही है, उन्हें संबंधित बैंकों के मुख्य सतर्कता अधिकारियों (Chief Vigilance Officers) के परामर्श के बाद केंद्रीय जाँच ब्यूरो (Central Bureau of Investigation) के पास भेजा जाएगा।
  • इसके अलावा बैंकों द्वारा किसी प्रकार की धोखाधड़ी से बचने के लिये 50 करोड़ रुपए और उससे अधिक के ऋण लेने वाले उधारकर्त्ताओं के पासपोर्ट विवरण जमा करना भी शुरू कर दिया गया है।

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कौन-कौन से कार्य लंबित हैं?

  • सरकार के इतने प्रयासों के बावजूद बैड लोन की वसूली अभी भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है। आरबीआई द्वारा प्रदत्त आँकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2014-15 के दौरान पीएसबी द्वारा दर्ज तकरीबन 90 एनपीए की वसूली नहीं की जा सकी।
  • 21 पीएसबी की वसूली दर उनकी पिछली वसूली दरों से काफी कम पाई गई थी। पिछले चार वित्तीय वर्षों में वित्त वर्ष 2015, 2016, 17 और वित्त वर्ष 18 तक सभी 21 पीएसबी द्वारा 2.72 लाख करोड़ रुपए के लिखित बैड लोन में से केवल 29,343 करोड़ रुपए की ही वसूली की गई हैं, अर्थात् इनकी वसूली दर मात्र 10.77 प्रतिशत ही रही है।
    ♦ ये आँकड़े इस क्षेत्र में सरकार की विफलता को दर्शाते हैं। इस विफलता का सीधा प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसकी छवि पर पड़ता है।
  • वर्तमान में 9 लाख करोड़ रुपए की तनावग्रस्त परिसंपत्तियों में से लगभग 4 लाख करोड़ संपत्तियों के संदर्भ में आईबीसी के तहत कार्यवाही की जा रही हैं। शेष राशि के विषय में कार्य किया जाना अभी तक बाकी है।

प्रश्न: केंद्र सरकार द्वारा बैंकों को एनपीए की समस्या से उबारने के लिये किये गए प्रयासों की समीक्षात्मक विवेचना कीजिये। इस संबंध में कुछ प्रमुख अध्यादेश एवं विधेयक भी लाये गए हैं, उनका संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करते हुए वर्तमान स्थिति में उनकी प्रासंगिकता पर टिप्पणी कीजिये।

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