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फेक न्यूज़: एक गंभीर समस्या

  • 24 Apr 2017
  • 8 min read

उत्तर-पूर्व जर्मनी में कई नव-नाज़ी समूह रहते हैं। हालाँकि ये समूह संख्या में तो बहुत कम हैं यद्यपि वर्ष 1930 के बाद उनके एजेंडे का व्यापक प्रचार-प्रसार नहीं हो पाया था तो इसका प्रमुख कारण इन्टरनेट की अनुपलब्धता रहा। लेकिन वर्तमान में सीरियाई शरणार्थियों से अटे पड़े जर्मनी में यह समुदाय निरंतर मज़बूत होता जा रहा है और इसकी मज़बूती का आधार है फेक न्यूज़, जो वह इन्टरनेट और सोशल मीडिया के ज़रिये बड़ी ही आसानी से लोगों तक पहुँचा रहा है।

भारत भी फेक न्यूज़ के खतरे से अछूता नहीं है। हाल ही में बिहार में एक चिकित्सक के यहाँ आयकर का छापा पड़ा। ख़बरों में यह दिखाया गया कि उस चिकित्सक के यहाँ अकूत धन मिला है और उसकी हृदयघात से मृत्यु हो गई है। बाद में उस चिकित्सक ने स्वयं मीडिया को बुलाकर बताया कि वह मरा नहीं बल्कि जिंदा है और आय से अधिक संपत्ति मिलने की बात भी बेबुनियाद है। गौरतलब है कि फेक न्यूज़ को यह विस्तार इन्टरनेट मीडिया के माध्यम से प्राप्त हो रहा है।

क्या है इन्टरनेट मीडिया
आज का दौर ‘ इन्टरनेट मीडिया’ का है। बिलों को जमा करने, नौकरी-परीक्षा के फॉर्म भरने-जमा करने, फोन करने, पढ़ने व खरीदारी आदि के लिये लम्बी लाइनों में लगने की बात अब बीते दौर की बात हो गई है। लोग अब लाइन में खड़े होने के बजाय ऑनलाइन होना ज़्यादा पसंद करते हैं, जो कि सही भी है। आज हजारों न्यूज़ वेबसाइट कुकुरमुत्ते की तरह उग आए हैं।

आप ऑफिस जा रहे हैं, या ऑफिस से घर लौट रहें हैं, आप सफ़र में हैं, आप आराम फरमा रहे हैं, चाहे कोई भी स्थिति हो, आपके पास कुछ और हो न हो इन्टरनेट ज़रूर होता है। इन्सान अपनी प्रकृति में ही जिज्ञासु होता है, अपने पास-पड़ोस और देश-दुनिया के बारे में जानना उसकी प्रवृत्ति होती है, और आज जब इन्टरनेट फ्री अथवा एकदम सस्ता उपलब्ध है, ऐसे में इन्टरनेट मीडिया का उदय तो होना ही था।

इन्टरनेट मीडिया के खतरे
पहले जब व्यक्ति न्यूज़ पढ़ने के लिये समाचार-पत्रों पर निर्भर था तो वह वैसी ख़बरों से रूबरू होता था जो कई माध्यमों से छनकर उस तक पहुँचती थी लेकिन अब ‘रियल टाइम खबरों’ का दौर है जहाँ कोई भी फेक न्यूज़ लाखों लोगों द्वारा शेयर की जाती है, ट्विट और रि-ट्विट की जाती, कभी-कभी तो किसी का विचार, किसी का निजी प्रोपगेंडा भी सत्य मान लिया जाता है।

इन्टरनेट मीडिया ने पब्लिक और पर्सनल के बीच के अंतर को खत्म-सा कर दिया है। आप अपने परिवार के साथ डिनर में क्या बात करते हैं, क्या विचार रखते हैं, तुरंत ही एक पोस्ट के माध्यम से पब्लिक हो जाता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भी अपना महत्त्व है, लेकिन  इस स्वतंत्रता के नाम  पर तथ्यों से छेड़छाड़ कहाँ तक जायज़ है? 

‘यूनेस्को ने नरेन्द्र मोदी को दुनिया का सबसे बेहतरीन प्रधानमत्री घोषित किया’, ‘2000 रूपये के नए नोटों में लगा है जीपीएस चीप’ आये दिन इस प्रकार की खबरे इन्टरनेट मीडिया में आती रहती हैं और इन्टरनेट उपयोगकर्त्ताओं का एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो इन्टरनेट पर लिखे किसी भी चीज को सत्य मान लेता है।

विभाजनकारी तत्त्वों द्वारा अपनी वेबसाइट पर फेक न्यूज़ जारी किया जाना और फिर इन्हें सोशल मीडिया के माध्यम से शेयर करना इन्टरनेट मीडिया के सबसे बड़े खतरों में से एक है। गौरतलब है कि आईएस जैसे आतंकी संगठनो ने सोशल मीडिया को अपने रिक्रूटमेंट का मुख्य माध्यम बना रखा है और इन्टरनेट मीडिया इस काम में उनकी मदद कर रहा है।

उपलब्ध कानूनी उपाय
अभी तक तक तो ऐसा कोई भी स्पष्ट कानून नहीं है जो फेक न्यूज़ को निषिद्ध करता हो, हालाँकि इसके इतर कुछ उपाय हैं जिनसे कुछ हद तक समस्या का समाधान किया जा सकता है।

फेक न्यूज़ के संबध में इंडियन ब्रॉडकास्ट फाउंडेशन और प्रसारण सामग्री शिकायत परिषद में शिकायत दर्ज़ कराई जा सकती है। वहीं यदि फेक न्यूज़ नफ़रत फ़ैलाने वाला हो तो भारतीय दंड संहिता के धारा 153 और 295 तहत एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है।

यदि फेक न्यूज़ के माध्यम से किसी व्यक्ति संस्था की गरिमा को धूमिल करने का प्रयास  किया जाता है तो मानहानि के आरोप में सिविल या क्रिमिनल मामले दर्ज किये जा सकते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि ये सभी उपाय फेक न्यूज़ की समस्या से निजात नहीं दिला सकते।

क्या हो आगे का रास्ता ?
फेक न्यूज़ पर लगाम लगा पाना एक दुष्कर कार्य है क्योंकि इसे अक्सर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़कर देखा जाता है। एक निश्चित प्रक्रिया का पालन करने वाला कोई भी व्यक्ति स्वयं का एक वेबसाइट बनाकर कुछ भी लिख सकता है, वह गधे को घोड़ा और घोड़े को गधा बता सकता है।

समस्या यह है कि अधिकांश लोग उसकी ही बात को सच मान लेते हैं क्योंकि भाव यह है कि इन्टरनेट पर लिखा है तो सत्य ही होगा। अतः अफवाहों, फेक समाचारों और हेट स्पीच पर नियंत्रण के लिये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को और मज़बूत करना होगा अफवाहों के मज़बूत खंडन से ही फेक न्यूज़ पर लगाम लगाई जा सकती है।

निष्कर्ष
इसमें कोई शक नहीं है कि इन्टरनेट मीडिया अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ-साथ सीखने व पढ़ने के एक सशक्त माध्यम के तौर पर सामने आया है लेकिन सोशल मीडिया या किसी भी अन्य प्लेटफ़ॉर्म पर दिखाए जाने वाले न्यूज़ सही हैं या गलत- इस बारे में समझदारी रखना भी बेहद आवश्यक है। यह ऐसी समस्या नहीं है, जिसे अकेले हल किया जा सके।

गौरतलब है कि आजकल विभिन्न स्रोतों द्वारा यह दिखाया जाता है कि कैसे फेक न्यूज़  के माध्यम से ऑनलाइन विज्ञापन इत्यादि द्वारा आय अर्जित की जा सकती है। हाल ही में फेसबुक और गूगल ने इस संबंध में कुछ सकारात्मक प्रयास किये हैं।

लेकिन यदि हमें वास्तव में फेक न्यूज़ की समस्या से निजात पाना है तो लोगों को जागरूक बनाना होगा ताकि उनमें समझ पैदा हो और वे अफवाहों एवं फेक समाचारों और गंभीर पत्रकारिता में विभेद करने में सक्षम हो सकें।

यदि कोई फेक न्यूज़ को फेक बताता है या उसका खंडन करता है तो उसे कम्युनिस्ट, देशद्रोही जैसे शब्दों से विभूषित करने के बजाय उसकी सराहना करनी होगी, उसकी आवाज को आगे बढ़ाना होगा। 

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