इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भारतीय अर्थव्यवस्था

जीआई पारितंत्र: लाभ और चुनौतियाँ

  • 04 Oct 2021
  • 12 min read

यह एडिटोरियल 01/10/2021 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘The many benefits of a strong GI ecosystem’’ लेख पर आधारित है। इसमें भौगोलिक संकेत (GI) टैग और इसका लाभ उठाने संबंधी उपायों पर चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारत का वैश्विक ‘ब्रांड रिकॉल’ (Brand Recall) और बहु-सांस्कृतिक लोकाचार, प्रामाणिकता एवं जातीय विविधता संबंधी विशेषताएँ देश की अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण उत्प्रेरक या ‘टर्बोचार्जर’ बन सकती हैं। कई जानकार ‘भौगोलिक संकेत’ (Geographical Indications) या GI टैग्स को उस चैनल के रूप में देखते हैं, जिसके माध्यम से इन विशेषताओं को और अधिक महत्त्वपूर्ण बनाया जा सकता है।

वर्तमान में, जलवायु परिवर्तन और स्थिरता पर बल देने के साथ ये उत्पाद महत्त्वपूर्ण राजस्व सृजक भी हो सकते हैं। भारत के सुदृढ़ ई-कॉमर्स क्षेत्र में एक आधुनिक वितरण प्रणाली मौजूद है, जो अपने प्रारंभिक स्तर पर मौजूद ‘जीआई उद्योग’ को राष्ट्रीय तथा विश्व स्तर पर आगे बढ़ाने में मदद कर सकती है।

भौगोलिक संकेतक (GI) के संभावित लाभ

  • स्थानीय समुदायों को लाभ: जीआई संरक्षण के माध्यम से स्थानीय समुदायों को व्यापक सकारात्मक लाभ प्रदान किये जा सकते हैं। यह विशेष रूप से जैव विविधता, स्थानीय अनुभवों/सूचनाओं और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को प्रोत्साहित करता है तथा इसके माध्यम से भारत भी अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार कर सकता है। 
  • आर्थिक और ‘सॉफ्ट’ पॉवर: एक सुदृढ़ जीआई पारितंत्र से कई लाभ प्राप्त होते हैं, जो प्रत्यक्ष तौर पर आर्थिक एवं ‘सॉफ्ट’ पॉवर के स्रोत हो सकते हैं।   
    • यह मुख्यतः भारत की तीन जटिल समस्याओं—प्रतिभाशाली लोगों के लिये कम वेतन, श्रमबल में निम्न महिला भागीदारी और शहरी प्रवास- को हल कर सकता है।
  • यह ’गिग वर्कर्स’ (Gig Workers) के साथ प्रतिभा को उद्यमिता में रूपांतरित करेगा और एक ‘पैशन इकॉनमी’ (Passion Economy)- यानी व्यक्तियों के कौशल के मुद्रीकरण- और अपने व्यवसायों को तीव्रता से बढ़ाने के नए अवसरों का निर्माण करेगा। 
    • यह किसी नियोक्ता के अतिरिक्त अन्य स्रोत से नियमित आय अर्जित करने की फ्रीलांस कार्य से संबंधित बाधाओं को भी दूर करता है।
  • रोज़गार-जनसंख्या अनुपात में वृद्धि: जीआई की श्रम-गहन प्रकृति भारत में रोज़गार-जनसंख्या अनुपात को बढ़ावा देने के लिये सर्वश्रेष्ठ समाधान प्रदान करती है, जो वर्तमान में 55% के वैश्विक औसत की तुलना में महज 43% है।
    • घरेलू स्तर पर किये गए शिल्प कार्य का मुद्रीकरण भारत में निम्न महिला श्रमबल भागीदारी दर में सुधार करेगा, जो वर्ष 2019 में मात्र 21% (वैश्विक औसत 47% से काफी कम) था।
  • ‘रिवर्स अर्बन माइग्रेशन’: जीआई की अति-स्थानीयकृत प्रकृति शहरी प्रवास की दिशा को पलटने और भारत के प्राचीन शिल्प, संस्कृति एवं खाद्य के संरक्षण के लिये समाधान प्रस्तुत करती है।  
    • इससे MSMEs क्षेत्र का भी कायाकल्प होगा जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 31% और निर्यात में 45% की हिस्सेदारी रखता है।
    • अनुमानित 55.80 मिलियन MSMEs लगभग 130 मिलियन लोगों को रोज़गार प्रदान करते हैं; इनमें से 14% उद्यम महिलाओं के नेतृत्त्व में संचालित होते हैं और 59.5% ग्रामीण क्षेत्र में कार्यरत हैं।
    • ‘जीआई पर्यटन’ भी इस दिशा में काफी महत्त्वपूर्ण हो सकता है, जो कि मूलतः एक सुदृढ़ जीआई पारितंत्र का सह-उत्पाद है।  

जीआई और डिजिटल कॉमर्स

  • ‘अमेज़न’ के ‘लोकल-टू-ग्लोबल’ कार्यक्रम ने भारतीय उत्पादकों और उनके उत्पादों, जैसे ‘डेल्टा लेदर कॉरपोरेशन’ के चमड़े और ‘एसवीए ऑर्गेनिक्स’ के जैविक उत्पादों को 200 से अधिक देशों में 18 वैश्विक बाज़ारों तक पहुँचाया है, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादों की मांग और कंपनी के आकार में 300 गुना तक वृद्धि हुई है।  
    • वर्ष 2019 से वर्ष 2021 के बीच ‘अमेज़न’ ने 2 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य के ऐसे ‘मेड इन इंडिया’ उत्पादों का निर्यात किया है।
  • प्रारंभिक चरण में जीआई उत्पादों को सरकारों के समर्थन की आवश्यकता है। गौरतलब है कि वर्तमान में यूरोपीय संघ के पास 87 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की जीआई अर्थव्यवस्था मौजूद है। चीन ने भी जीआई क्षेत्र में काफी बेहतर प्रदर्शन किया है, जहाँ ग्रामीण क्षेत्रों में ई-कॉमर्स को सुदृढ़ किया गया है और अल्प विकसित क्षेत्रों में कृषि विशिष्ट उत्पाद ब्रांडों को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया गया है।
  • विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि जीआई के तहत उत्पादों के पेटेंट और कॉपीराइट संरक्षण के परिणामस्वरूप उच्च आर्थिक लाभ प्राप्त होता है, साथ ही इससे गुणवत्तापूर्ण उत्पादन को बढ़ावा मिलता है।  

कमियाँ और चुनौतियाँ

  • भारत में जीआई क्षेत्र की क्षमता को अभी तक साकार नहीं किया जा सका है, क्योंकि अब तक के प्रयास मुख्य रूप से जीआई दाखिल करने के पहले चरण पर ही केंद्रित हैं।  
  • जीआई आवेदन दाखिल करना एक बेहद जटिल कार्य है, जिसमें क्षेत्र के साथ उत्पाद की संबद्धता के बारे में ऐतिहासिक साक्ष्य का दस्तावेज़ीकरण करना शामिल होता है, साथ ही यह भी आवश्यक है कि आवेदन किसी संघ या व्यक्तियों के समूह द्वारा दाखिल किया जाए। 
  • देश में उत्पादकों, उपभोक्ताओं और नीति निर्माताओं के बीच जीआई के बारे में सीमित जागरूकता के कारण अधिकांश पंजीकृत उत्पादों के मामले में उत्पादकों को लाभ पहुँचाने के लिये विपणन/ब्रांडिंग साधन के रूप में जीआई प्रमाणीकरण का उपयोग कर सकने के संदर्भ में बेहद कम प्रयास किये गए हैं।

आगे की राह

  • क्षमता निर्माण: चूँकि जीआई व्यवसाय सूक्ष्म (Micro) प्रकृति के होते हैं, ऐसे में इनके लिये घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों ही बाज़ारों में क्षमता निर्माण, औपचारिक या आसान ऋण तक पहुँच, अनुसंधान एवं विकास, उत्पाद नवाचार और प्रतिस्पर्द्धात्मकता की चुनौतियों का समाधान किया जाना आवश्यक है।  
    • औपचारिक ऋण तक MSME की पहुँच के लिये आधारभूत कार्य पहले ही नए ‘एकाउंट एग्रीगेटर’ डेटा-शेयरिंग ढाँचे के साथ किया जा चुका है।
  • डिजिटल प्लेटफॉर्म की ओर बढ़ने की आवश्यकता: वर्तमान में संपूर्ण प्रणाली को नियंत्रित करने वाले मध्यस्थों का मुद्दा भी काफी चुनौतीपूर्ण है। डिजिटल प्लेटफॉर्म की ओर आगे बढ़ने के साथ इन ‘गेटकीपर्स’ या ‘मंडी एजेंटों’ का वितरण मार्जिन भी प्रतिस्पर्द्धी होना चाहिये, ताकि वे समान व्यवसायों या उत्पाद लाइनों में शामिल होकर प्रतिकारी या काउंटरवेलिंग एजेंट के रूप में कार्य न करें, क्योंकि यह फिर जीआई उत्पादों से संबंधित आय को कम कर देगा।  
    • जैसा कि नए कृषि कानूनों के अनुभव से देखा जा सकता है कि यह केंद्र और राज्य सरकारों के लिये एक कठिन कार्य होगा; उन्हें बहुत से मौजूदा संपर्कों (Linkages) को तोड़े बिना ट्रांज़िशन सुनिश्चित करना चाहिये।
  • स्थानीय जीआई सहकारी निकाय: स्थानीय जीआई सहकारी निकायों या संघों की स्थापना की जानी चाहिये, जिन्हें ‘वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय’ के ‘उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग’ (DPIIT) के तत्वावधान में एक जीआई बोर्ड द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर प्रबंधित किया जा सकता है और इन जीआई सहकारी निकायों को इस नए क्षेत्र के विकास का कार्य सौंपा जाना चाहिये।   
  • डिजिटल साक्षरता का प्रसार: जीआई उत्पादकों के लिये ‘डिजिटल साक्षरता’ एक आवश्यक कौशल है। यह गैर-सरकारी संगठनों और DPIIT जैसे हितधारकों के लिये एक प्राथमिकता एजेंडा होना चाहिये।  
    • यह भारत के लिये ऑटोमेशन, टेक्नोलॉजी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करते हुए भविष्य को बेहतर करने तथा देश के प्रतिभाशाली स्थानीय कार्यबल को बढ़ाने एवं उन्हें बेहतर बना सकने का एक अवसर है।

निष्कर्ष

भारतीय जीआई अर्थव्यवस्था (GI Economy) देश के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्लेटफॉर्म हो सकती है, जिसके माध्यम से एक सुदृढ़ डिजिटल प्रणाली के बल पर नैतिक पूँजीवाद, सामाजिक उद्यमिता, गैर-शहरीकरण और महिलाओं को कार्यबल में शामिल करने संबंधी मॉडल को विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है। यही वास्तविक ‘मेड इन इंडिया’ होगा।

अभ्यास प्रश्न: ‘भौगोलिक संकेतों’ (जीआई) के तहत प्राप्त मान्यता के परिणामस्वरूप उच्च आर्थिक लाभ प्राप्त होता है तथा गुणवत्तापूर्ण उत्पादन को बढ़ावा मिलता है। टिप्पणी कीजिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2