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विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2021

  • 22 Apr 2021
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जारी 180 देशों के ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक’ (World Press Freedom Index) 2021 में भारत फिर से 142वें स्थान पर है।

  • विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक प्रत्येक वर्ष अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारिता के गैर-लाभकारी संगठन रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) द्वारा जारी किया जाता है।

 प्रमुख बिंदु:

विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक के बारे में :

  • यह 2002 से रिपोर्टर्स सेन्स फ्रंटियर्स (RSF) या रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा प्रत्येक वर्ष प्रकाशित किया जाता है। RSF द्वारा जारी 'विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक' का प्रथम संस्करण वर्ष 2002 में प्रकाशित किया गया था।
  • पेरिस स्थित रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) एक अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी, गैर-लाभकारी संगठन है, जो सार्वजनिक हित में संयुक्त राष्ट्र, यूनेस्को, यूरोपीय परिषद, फ्रैंकोफोनी के अंतर्राष्ट्रीय संगठन (OIF) और मानव अधिकारों पर अफ्रीकी आयोग के साथ सलाहकार की भूमिका निभाता है।
    •  OIF एक 54 फ्रेंच भाषी राष्ट्रों का समूह है।
  • यह सूचकांक पत्रकारों के लिये उपलब्ध स्वतंत्रता के स्तर के अनुसार 180 देशों और क्षेत्रों को रैंक प्रदान करता है। यह सार्वजनिक नीतियों की  रैंकिंग नहीं करता है, भले ही सरकारें स्पष्ट रूप से अपने देश की रैंकिंग पर एक बड़ा प्रभाव डालती हैं। हालाँकि यह पत्रकारिता की गुणवत्ता का सूचक नहीं है।
  • यह सूचकांक बहुलवाद के स्तर, मीडिया की स्वतंत्रता, मीडिया के लिये वातावरण और स्वयं-सेंसरशिप, कानूनी ढाँचे, पारदर्शिता के साथ-साथ समाचारों और सूचनाओं के लिये मौज़ूद बुनियादी ढाँचे की गुणवत्ता के आकलन के आधार पर तैयार किया जाता है।।

वैश्विक परिदृश्य:

  • पत्रकारिता सूची में शामिल लगभग 73% देश स्वतंत्र मीडिया से पूरी तरह से या आंशिक रूप से अवरुद्ध है।
  • सूचकांक  180 देशों में से केवल 12 (7%) में पत्रकारिता के लिये अनुकूल वातावरण प्रदान करने का दावा कर सकता है।
  • राष्ट्रों द्वारा कोविड-19 महामारी के प्रसार को नियंत्रित करने के लिये सूचना तंत्र का  उपयोग पूर्ण रूप से किया गया।
  • रिपोर्ट में मुख्य रूप से एशिया-प्रशांत क्षेत्र के बारे में चिंता व्यक्त की गई है क्योंकि प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के प्रयास में कई राष्ट्रों ने 'राजद्रोह,' 'राष्ट्र की गोपनीयता' और 'राष्ट्रीय सुरक्षा' पर कठोर कानून बनाए हैं।
  • इस सूचकांक में नॉर्वे (Norway) लगातार पाँच वर्षों से पहले स्थान पर है, इसके अतिरिक्त दूसरा स्थान फिनलैंड (Finland) को और तीसरा स्थान डेनमार्क (Denmark) को प्राप्त हुआ है।
  • इरीट्रिया, सूचकांक में सबसे निचले स्थान (180) पर है, इसके बाद चीन 177वें, और उत्तरी कोरिया 179वें और तुर्कमेनिस्तान 178वें स्थान पर है।

भारत के  प्रदर्शन का विश्लेषण:

  • वर्ष 2020 में भी भारत 142वें स्थान पर था, इस प्रकार पत्रकारों को प्रदान किये जाने वाले वातावरण में कोई सुधार नहीं दिखाई दे रहा है।
  • भारत का अपने पड़ोसी देशों की तुलना में खराब प्रदर्शन रहा है। इस सूचकांक में नेपाल को 106वाँ, श्रीलंका को 127वाँ और भूटान को  65वाँ स्थान प्राप्त है, जबकि पाकिस्तान (145वें स्थान) भारत के करीब है।
  • भारत पत्रकारिता के लिये ‘खराब’ वर्गीकृत देशों में से है और पत्रकारों के लिये सबसे खतरनाक देशों में से एक के रूप में जाना जाता है, जो अपने काम को ठीक से करने की    कोशिश कर रहे हैं।
  • इस रिपोर्ट ने  चर्चित पत्रकारों के लिये राष्ट्रवादी सरकार द्वारा बनाए गए भययुक्त वातावरण को ज़िम्मेदार ठहराया है, जो अक्सर उन्हें राज्य विरोधी या राष्ट्र विरोधी करार देता है।
    • कश्मीर की स्थिति चिंताजनक है, जहाँ पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों द्वारा पत्रकारों के उत्पीड़न की घटनाएँ सामने आई हैं।

भारत के खराब प्रदर्शन के पीछे कारण:

  • पत्रकारों को इस तरह के हमले की पहचान  कराता है, जिसमें पत्रकारों के विरुद्ध पुलिस हिंसा राजनीतिक कार्यकर्ताओं द्वारा घात और आपराधिक समूहों या भ्रष्ट स्थानीय अधिकारियों द्वारा उकसाए गए विद्रोह शामिल हैं।
  • पत्रकारों को अक्सर सामाजिक नेटवर्क पर  स्थापित समन्वित घृणा अभियानों के अधीन किया गया है। 
  • महिला पत्रकार की स्थिति में इस प्रकार के अभियान और अधिक गंभीर हो जाते हैं।

प्रेस की स्वतंत्रता:

  • संविधान, अनुच्छेद 19 के तहत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जो वाक् स्वतंत्रता इत्यादि के संबंध में कुछ अधिकारों के संरक्षण से संबंधित है।
  • प्रेस की स्वतंत्रता को भारतीय कानूनी प्रणाली द्वारा स्पष्ट रूप से संरक्षित नहीं किया गया है, लेकिन यह संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) के तहत संरक्षित है, जिसमें कहा गया है - "सभी नागरिकों को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा"।
  • वर्ष 1950 में रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि सभी लोकतांत्रिक संगठनों की नींव  प्रेस की स्वतंत्रता पर आधारित होती है।
  • हालाँकि प्रेस की स्वतंत्रता भी असीमित नहीं होती है। कानून इस अधिकार के प्रयोग पर केवल उन प्रतिबंधों को लागू कर सकता है, जो अनुच्छेद 19 (2) के तहत इस प्रकार हैं-
    • भारत की संप्रभुता और अखंडता से संबंधित मामले, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता या न्यायालय की अवमानना के संबंध में, मानहानि या अपराध को प्रोत्साहन।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस

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