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भारतीय अर्थव्यवस्था

श्रमिक उत्पादकता और आर्थिक विकास

  • 07 Nov 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

श्रमिक उत्पादकता और आर्थिक विकास, श्रम उत्पादकता, द्वितीय विश्व युद्ध, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया

मेन्स के लिये:

श्रमिक उत्पादकता और आर्थिक विकास, भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना, संसाधनों को जुटाना, वृद्धि, विकास एवं रोज़गार से संबंधित मुद्दे।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उद्योग जगत के एक अभिकर्त्ता ने युवा भारतीयों से प्रति सप्ताह 70 घंटे काम करने का आग्रह करके श्रमिक उत्पादकता एवं आर्थिक विकास पर बहस छेड़ दी है।

  • उन्होंने जापान और जर्मनी को उन देशों के उदाहरण के रूप में उद्धृत किया जो इसलिये विकसित हो सके क्योंकि उनके नागरिकों ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अपने राष्ट्रों के पुनर्निर्माण के लिये लंबी अवधि तक कार्य करते हुए कड़ी मेहनत की । 

श्रमिक उत्पादकता:

  • परिचय:
    • श्रमिक उत्पादकता और श्रम उत्पादकता के बीच एकमात्र वैचारिक अंतर यह है कि श्रमिक उत्पादकता में 'कार्य' मानसिक गतिविधियों का वर्णन करता है जबकि श्रम उत्पादकता में 'कार्य' ज्यादातर शारीरिक गतिविधियों से जुड़ा होता है।
    • किसी गतिविधि की उत्पादकता को आमतौर पर सूक्ष्म स्तर पर श्रम (समय) लागत की प्रति इकाई आउटपुट मूल्य की मात्रा के रूप में मापा जाता है।
    • व्यापक स्तर पर इसे श्रम-उत्पादन अनुपात या प्रत्येक क्षेत्र में प्रति कर्मचारी शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDP) में परिवर्तन के संदर्भ में मापा जाता है (जहाँ काम के लिये प्रतिदिन 8 घंटे अनिवार्य माने जाते हैं)।
  • बौद्धिक कार्यकर्त्ता उत्पादकता को मापना:
    • कुछ क्षेत्रों, विशेष रूप से बौद्धिक श्रम से जुड़े, में उत्पादन के मूल्य का मूल्यांकन करना स्वाभाविक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
      • परिणामस्वरूप, श्रमिक उत्पादकता अक्सर श्रमिक आय के आधार पर अनुमानित की जाती है, जो उच्च उत्पादकता के साथ बढ़ते कार्य घंटों को सहसंबंधित करने के प्रयास में जटिलता उत्पन्न कर सकती है, विशेष रूप से ऐसी स्थिति में जब श्रमिकों को उनके अतिरिक्त प्रयासों के लिये उचित मुआवज़ा नहीं मिलता है।
  • उत्पादकता में कौशल की भूमिका:
    • उत्पादकता सिर्फ समय के विषय में नहीं है, यह कौशल के विषय में भी है। शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य और मानव पूंजी के अन्य पहलुओं में निवेश करके, श्रमिक अधिक कुशल बन सकते हैं तथा समान समय में अधिक उत्पादन कर सकते हैं।      
    • इसलिये, कम घंटे कार्य करने से आउटपुट का कम होना ज़रूरी नहीं; बल्कि इससे श्रमिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।
      • अर्थव्यवस्था अब भी बढ़ सकती है जब तक कि श्रमिक अधिक कुशल और उत्पादक बनते हैं तथा नाममात्र मज़दूरी समान रहती है

श्रमिक उत्पादकता और आर्थिक विकास के बीच संबंध:

  • किसी भी क्षेत्र के माध्यम से की गई उत्पादकता में वृद्धि से अर्थव्यवस्था में मूल्यवर्धित, संचय या वृद्धि पर प्रभाव पड़ने की संभावना है, दोनों के बीच संबंध काफी जटिल हैं।
  • वर्ष 1980 से 2015 की अवधि के दौरान भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जो मज़बूत आर्थिक विकास का संकेत है। हालाँकि इस आर्थिक विकास से समाज के सभी वर्गों को समान रूप से लाभ नहीं हुआ है।
    • वर्ष 1980 में भारत की GDP लगभग 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जो वर्ष 2015 तक 2,000 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गई।
    • हालाँकि जब आय वितरण को देखते हैं, तो वर्ष 1980-2015 के दौरान राष्ट्रीय आय में मध्यम-आय समूह की हिस्सेदारी 48% से घटकर 29% हो गई और निम्न-आय समूह की हिस्सेदारी 23% से घटकर 14% हो गई।
    • इसके विपरीत, शीर्ष 10% आय अर्जित करने वाले समूह की हिस्सेदारी 30% से बढ़कर 58% हो गई, जो इस अवधि के दौरान देश में बढ़ते आय अंतर को दर्शाता है।
  • विभिन्न आय समूहों के बीच इस आय असमानता और समृद्धि के विषम वितरण को उत्पादकता द्वारा नहीं बल्कि खराब श्रम कानूनों, धन के वंशानुगत हस्तांतरण एवं अत्यधिक वेतन पैकेज़ों द्वारा समझाया गया है।

भारत में उत्पादकता और दक्षता में सुधार के लिये सरकारी योजनाएँ:

  • कौशल विकास पहल: सरकार ने कार्यबल की रोज़गार क्षमता को बढ़ाने के लिये प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY), राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (NSQF) और पूर्व शिक्षण की मान्यता (RPL) जैसे विभिन्न कौशल विकास कार्यक्रम शुरू किये हैं।
  • डिजिटल इंडिया: डिजिटल इंडिया पहल का उद्देश्य डिजिटलीकरण के माध्यम से दक्षता को बढ़ावा देना और ऑनलाइन सेवाओं तक पहुँच बढ़ाना, नौकरशाही को कम करना तथा उत्पादकता को बढ़ाना है।
  • मेक इन इंडिया: मेक इन इंडिया अभियान विनिर्माण में निवेश को प्रोत्साहित करता है और आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है, रोज़गार के अवसर उत्पन्न करता है तथा उत्पादकता को बढ़ाता है।
  • स्टार्टअप इंडिया: स्टार्टअप इंडिया उद्यमशीलता को बढ़ावा देता है, सरकार ने स्टार्टअप इंडिया की शुरुआत की, जो स्टार्टअप और छोटे व्यवसायों को समर्थन एवं प्रोत्साहन प्रदान करता है।
  • व्यवसाय करने में आसानी सुधार: EoDB सुधारों का उद्देश्य नियमों को सरल बनाना, व्यावसायिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना और व्यवसायों के संचालन को सरल बनाना है, जिससे उत्पादकता में वृद्धि होगी।
  • राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास: देश भर में औद्योगिक गलियारा विकसित करने से निवेश आकर्षित करने, रोज़गार उत्पन्न करने और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने में मदद मिलती है।
  • अनुसंधान और नवाचार के लिये प्रोत्साहन: अटल इनोवेशन मिशन और जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC) जैसे कार्यक्रम अनुसंधान एवं नवाचार के लिये सहायता व प्रोत्साहन प्रदान करते हैं।
  • कर सुधार: वस्तु एवं सेवा कर (GST) का कार्यान्वयन कराधान को सरल बनाता है और व्यवसायों के लिये दक्षता को बढ़ाता है।

भारत में श्रमिक उत्पादकता:

  • आय और श्रम में समानता के संबंध में प्रचलित धारणाओं के बावजूद, भारत में श्रमिक उत्पादकता कम नहीं हुई है। श्रम कानून, श्रमिकों के लिये प्रतिकूल नियम और अनौपचारिक रोज़गार जैसे कई मुद्दों ने 1980 के दशक से वेतन में कमी में योगदान दिया है।
  • वैश्विक कार्यबल प्रबंधन कंपनी क्रोनोस ने भारतीय कर्मचारियों को विश्व के सबसे मेहनती कर्मचारियों में से एक के रूप में मान्यता दी है।
    • इसके विपरीत, औसत मासिक वेतन के मामले में भारत काफी नीचे है।

आगे की राह 

  • भारत का परिदृश्य काफी अलग है तथा दूसरों देशों के साथ किसी भी तुलना से केवल भ्रामक नीतिगत सिफारिशें एवं संदिग्ध विश्लेषणात्मक निष्कर्ष सामने आएँगे।
    • उदाहरण के लिये, जापान तथा जर्मनी न तो श्रम बल के आकार व गुणवत्ता के मामले में तुलनीय हैं और न ही उनके तकनीकी प्रक्षेप पथ की प्रकृति अथवा उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक व राजनीतिक संरचनाओं में समानता है।
  • अधिक सतत् और वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिये सामाजिक निवेश को बढ़ाना तथा विकास की सफलताओं के मानव-केंद्रित मूल्यांकन को बनाए रखते हुए अधिक उत्पादकता के लिये घरेलू उपभोग की संभावनाओं की जाँच को प्राथमिकता देना आवश्यक है।
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