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WHO ने सरकार से नैदानिक परीक्षण नियम सख्त बनाने को कहा

  • 12 Jul 2018
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भारत सरकार से कहा है कि संयुक्त राष्ट्र (UN) एजेंसी के साथ भारत का नैदानिक परीक्षण संबंधी काम "बाधित" हो सकता है| ऐसी स्थिति में सरकार को नैदानिक परीक्षणों (Clinical Trials) के कारण मृत्यु या चोट के मामले में मुआवज़े के लिये कड़े नियम बनाने होंगे| स्वास्थ्य मंत्रालय को लिखे पत्र में WHO ने कहा है कि भारत को मुआवज़े के खंड पर "पुनर्विचार" करना चाहिये क्योंकि मौजूदा प्रारूप में नियमों की मज़ूरी भारत में प्रायोजित अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय नैदानिक परीक्षण प्रणाली को प्रभावित करेगी।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का प्रस्ताव 

  • केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा इस वर्ष फरवरी में जारी किये गए प्रस्तावों के मुताबिक यदि परिक्षण के दौरान रोगी की मृत्यु हो जाती है या वह स्थायी रूप से विकलांग हो जाता है तो मृतक के परिवार या स्थायी रूप से विकलांग रोगी को 15 दिनों के भीतर मुआवज़े का 60% भुगतान किया जाना चाहिये|
  • इसके अतिरिक्त, यदि जाँच के बाद यह साबित हो जाता है कि मृत्यु या अक्षमता परीक्षण के कारण नहीं हुई है तो अंतरिम मुआवज़ा वापस नहीं किया जाएगा। 
  • प्रस्तावित नियमों के अनुसार, यदि चोट चिकित्सा प्रबंधन के अलावा नैदानिक परीक्षण से संबंधित है, तो प्रतिभागी को प्रस्तावित नैतिकता समिति (Ethics Committee) द्वारा निर्धारित प्रायोजक से भी वित्तीय मुआवज़ा दिलाया जाएगा। वित्तीय मुआवज़ा इस विषय में चिकित्सा प्रबंध में किये गए किसी भी खर्च से अधिक होगा।

नैतिकता समिति 

  • नैतिकता समिति एक प्रस्तावित सरकारी निकाय है जो देखेगा कि मनुष्यों पर चिकित्सा प्रयोग और अनुसंधान नैतिक तरीके से किये जा रहे हैं या नहीं| यह परीक्षण की नैतिकता पर प्रतिक्रिया देता है।
  • इसमें सात सदस्य शामिल होंगे, जिनमें चिकित्सा विज्ञान, गैर-चिकित्सा विज्ञान के अलावा  वैज्ञानिक और गैर-वैज्ञानिक सदस्य, एक आम आदमी और महिला सदस्य शामिल हैं|

WHO के सुझाव पर भारत की प्रतिक्रिया 

  • स्वास्थ्य मंत्रालय ने WHO के पत्र पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि नैतिकता समितियों द्वारा ऐसा निर्णय लिया जाना अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सामान्य रूप से व्यवहार्य नहीं है और यह उनकी विशेषज्ञता की कमी के कारण उन पर एक अनुचित बोझ डालेगा।
  • भारत ने कहा है कि यदि वर्तमान नियमों में बदलाव कर नए नियमों को अंतिम रूप दिया जाता है तो संभावना है कि प्रायोजक भारत में नैदानिक परीक्षण नहीं करेंगे और कहीं अन्यत्र चले जाएंगे|
  • यह भारत के साथ WHO के काम को भी बाधित करेगा जहाँ किसी विशेष स्थिति में नैदानिक परीक्षण करने के लिये सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाती है| WHO प्रायोजक के रूप में कार्य नहीं कर सकता, साथ ही इच्छुक अन्य भागीदार भी हतोत्साहित हो सकते हैं|
  • भारत ने WHO और उसके सहयोगियों से इसकी समीक्षा करने के लिये कहा है|
  • इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने WHO के इस प्रस्ताव पर आपत्ति जाहिर की है जिससे सरकार की चिंता और भी बढ़ गई है| ICMR के महानिदेशक बलराम भार्गव ने स्वास्थ्य मंत्रालय को लिखे पत्र में कहा है कि कुछ खंड भारत में नैदानिक परीक्षणों के भविष्य के लिये हानिकारक हो सकते हैं।
  • वर्तमान में भारत में अधिकांश नैतिकता समितियों को मुआवज़े के मुद्दे की समीक्षा करने के लिये गुणवत्ता और दक्षता में बदलाव के साथ उचित रूप से प्रशिक्षित नहीं किया जाता है।
  • इसलिये यह महत्त्वपूर्ण है कि गंभीर प्रतिकूल प्रभावों को लेकर मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति समीक्षात्मक विश्लेषण करे और अपनी अंतिम राय दे| तदनुसार, उन्होंने खंडों के पुनरीक्षण का सुझाव दिया है ताकि वे "यथार्थवादी" हों।
  • इन सुझावों के बाद  मंत्रालय ने विचार-विमर्श शुरू कर दिया है। मंत्रालय ने फार्मा कंपनियों और फार्मा लॉबी समूहों सहित हितधारकों के साथ एक बैठक आयोजित की है|
  • स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि एक बार सभी प्रभावित पक्षों की स्पष्ट राय प्राप्त करने के बाद ड्राफ्ट नियमों को संशोधित किया जाएगा।
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