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जैव विविधता और पर्यावरण

संरक्षित क्षेत्रों में संकट में गिद्ध

  • 27 Apr 2024
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES), प्रकृति संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ (IUCN), कीटनाशक विषाक्तता

मेन्स के लिये:

गिद्धों की आबादी में गिरावट के पीछे की स्थिति और कारण, गिद्धों की घटती आबादी के मुद्दे से निपटने के लिये सरकार की पहल, वैश्विक वन्यजीव संरक्षण प्रयासों के साथ भारत का सहयोग।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों? 

हाल के अध्ययनों से पता चला है कि संरक्षित क्षेत्रों में भी गिद्ध डाईक्लोफेनाक जैसी बिषाक्त दवाओं से सुरक्षित नहीं हैं। वैज्ञानिकों ने वर्ष 2018 से 2022 के बीच छह राज्यों (हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु व केरल) के संरक्षित और गैर-संरक्षित दोनों क्षेत्रों में गिद्धों के घोसलों तथा बसेरों के आस-पास से इनके मल के नमूने एकत्र किये थे। इन नमूनों का डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड यानी DNA विश्लेषण करके गिद्धों के आहार का अध्ययन किया गया था। एकत्र किये गए इन नमूनों से गिद्ध प्रजातियों और उनके खाने की आदतों की पहचान करने में मदद मिली।

  • गिद्ध भोजन की तलाश करते समय लंबी दूरी तय करने की अपनी अविश्वसनीय क्षमता के लिये जाने जाते हैं। ये विशाल चारागाह क्षेत्र उन्हें पड़ोसी देशों से डाईक्लोफेनाक के संपर्क में भी ला सकते हैं, जहाँ यह दवा अभी भी उपयोग में हो सकती है।

भारत में गिद्धों की प्रजाति से संबंधित मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय:
    • वे वन्यजीवों की बीमारियों को नियंत्रण में रखने में भी बहुमूल्य भूमिका निभाते हैं।
    • ये बड़े अपमार्जक (Scavenger) पक्षियों की 22 प्रजातियों में से एक हैं जो मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में रहते हैं।
    • ये प्रकृति के अपशिष्ट संग्रहकर्त्ता के रूप में एक महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं और पर्यावरण को अपशिष्ट से मुक्त रखने में सहायता करते हैं।
    • भारत, गिद्धों की 9 प्रजातियों जैसे ओरिएंटल व्हाइट-बैक्ड, लॉन्ग-बिल्ड, स्लेंडर-बिल्ड, हिमालयन, रेड-हेडेड, इज़िप्शियन, बियर्डेड, सिनेरियस और यूरेशियन ग्रिफाॅन का निवास स्थान है।
  • आबादी में कमी:
    • दक्षिण एशियाई देशों, विशेषकर भारत, पाकिस्तान और नेपाल में गिद्धों की आबादी में उल्लेखनीय कमी देखी गई है।
    • इनकी संख्या में कमी का मुख्य कारण 1990 के दशक के अंत और 2000 के दशक की शुरुआत में पशुओं के उपचार में दर्द निवारक दवा डाईक्लोफेनाक का व्यापक उपयोग था।
    • इसके परिणामस्वरूप कुछ क्षेत्रों में आबादी में 97% से अधिक की कमी देखी गई, जिससे पारिस्थितिक संकट उत्पन्न हुआ।
  • पारिस्थितिकी तंत्र में गिद्धों की भूमिका:
    • अपघटन और पोषक चक्रण: 
      • गिद्ध कुशलतापूर्वक मृत जानवरों का माँस खाते हैं, जिससे शवों के ढेर जमा होने और उन्हें सड़ने से बचाया जा सकता है।
      • यह कार्बनिक पदार्थों को विघटित करने और पोषक तत्त्वों को मृदा में वापस लाने में सहायता करता है, जिससे पौधों की वृद्धि एवं पारिस्थितिकी तंत्र के समग्र स्वास्थ्य को लाभ होता है।
    • रोग निवारण:  
      • गिद्धों का पेट अत्यधिक अम्लीय पाचन रस के साथ अविश्वसनीय रूप से मज़बूत होता है। यह शक्तिशाली एसिड बैक्टीरिया और वायरस को मार सकता है जो एंथ्रेक्स, रेबीज़ तथा बोटुलिज़्म जैसी बीमारियों का कारण बन सकते हैं, इस प्रकार, रोगजनकों के लिये वास्तविक "मृत-अंत" के रूप में कार्य करते हैं।
    • संकेतक प्रजाति: 
      • गिद्ध अपने पर्यावरण में परिवर्तन के प्रति संवेदनशील होते हैं। गिद्धों की आबादी में कमी प्रदूषण या खाद्य स्रोतों की कमी जैसी व्यापक पारिस्थितिक समस्या का संकेतक हो सकती है।

गिद्धों की आबादी में कमी के पीछे क्या कारण हैं? 

  • औषध विषाक्तता: 
    • 20वीं सदी के अंत में डाईक्लोफेनाक, केटोप्रोफेन और एसेक्लोफेनाक जैसी दर्द निवारक दवाओं के उपयोग से गिद्धों की आबादी के लिये विनाशकारी परिणाम सामने आए।
    • आमतौर पर पशुओं में दर्द और सूजन का इलाज करने के लिये इस्तेमाल की जाने वाली ये दवाएँ गिद्धों के लिये विषैली होती हैं, जब ये इलाज के दौरान उपयोग की जाती हैं, क्योंकि गिद्ध जानवरों के शवों को खाते हैं।
      • विशेष रूप से डाईक्लोफेनाक गिद्धों में घातक गुर्दे की विफलता का कारण बनता है और केटोप्रोफेन व एसिक्लोफेनाक के साथ इसी तरह के प्रभावों का दस्तावेज़ीकरण किया गया है।
  • द्वितीयक विषाक्तता:  
    • गिद्ध सफाईकर्मी होते हैं, जो अक्सर कीटनाशकों या अन्य विषाक्त पदार्थों से दूषित शवों का सेवन करते हैं।
      • सीसे (लेड) के गोला-बारूद से शिकार किये गए जानवरों के शवों को खाने वाले गिद्ध घातक लेड विषाक्तता का शिकार हो सकते हैं।
    • यह "द्वितीयक विषाक्तता" एक महत्त्वपूर्ण खतरा उत्पन्न करती है, जिससे उनकी आबादी में और कमी आती है।
  • पर्यावास क्षति: 
    • शहरीकरण, वनों की कटाई (Deforestation) और कृषि विस्तार के कारण निवास स्थान का नुकसान हुआ है, गिद्धों के घोंसले के स्थान, बसेरा क्षेत्र एवं खाद्य स्रोत नष्ट हो गए हैं। उपयुक्त आवास की कमी उनके अस्तित्व में बाधा उत्पन्न करती है।
  • बुनियादी ढाँचे के साथ टकराव: 
    • गिद्ध विद्युत लाइनों, पवन टर्बाइनों और अन्य मानव निर्मित संरचनाओं से टकराने के प्रति संवेदनशील होते हैं, जिससे चोटें या मौतें होती हैं तथा उनकी आबादी में कमी आती है।
  • अवैध शिकार और शिकार: 
    • कुछ क्षेत्रों में, सांस्कृतिक मान्यताओं या अवैध वन्यजीव व्यापार के कारण गिद्धों का शिकार किया जाता है, जिससे जीवित रहने के लिये उनका संघर्ष और बढ़ जाता है।
  • रोगों का प्रकोप: 
    • एवियन पॉक्स व एवियन फ्लू जैसी बीमारियाँ भी गिद्धों की आबादी पर हानिकारक प्रभाव डाल सकती हैं, जिससे इनकी आबादी में और कमी आ सकती है।

भारत द्वारा किये गये गिद्ध संरक्षण प्रयास क्या हैं?

  • नशीली दवाओं के खतरे को समाप्त करना:
    • डाईक्लोफेनाक पर प्रतिबंध: डाईक्लोफेनाक के विनाशकारी प्रभाव को स्वीकार करते हुए, भारत ने 2006 में पशु चिकित्सा में इसके उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया।
      • उपचारित पशुओं के शवों को खाने के कारण होने वाली किडनी की विफलता से गिद्धों को बचाने की दिशा में यह एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
    • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने देश में गिद्धों के संरक्षण के लिये गिद्ध कार्य योजना 2020-25 का शुभारंभ किया है।
      • यह डाईक्लोफेनाक का न्यूनतम उपयोग सुनिश्चित करेगा और गिद्धों के मुख्य भोजन, मवेशियों के शवों को विषैला होने से बचाएगा
    • प्रतिबंध का विस्तार: अगस्त 2023 में भारत ने गिद्धों के लिये संभावित खतरे को स्वीकार करते हुए पशु चिकित्सा प्रयोजन हेतु केटोप्रोफेन और एसिक्लोफिनेक के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया।
  • बंदी प्रजनन (Captive Breeding) और पुनरुत्पादन:
    • गिद्ध संरक्षण प्रजनन केंद्र (VCBC): भारत ने VCBC का एक नेटवर्क स्थापित किया, जिसे सर्वप्रथम वर्ष 2001 में पिंजौर, हरियाणा में स्थापित किया गया था।
      • ये केंद्र लुप्तप्राय गिद्ध प्रजातियों के बंदी प्रजनन पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे वनों में इनकी स्वस्थ आबादी बढ़ाने के लिये एक सुरक्षित वातावरण प्रदान किया जाता है।
    • वर्तमान में भारत में नौ गिद्ध संरक्षण और प्रजनन केंद्र (VCBC) हैं, जिनमें से तीन सीधे बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) द्वारा प्रशासित हैं।
  • गिद्धों का बसेरा:
    • झारखंड में गिद्धों की घटती आबादी को संरक्षित करने के सक्रिय प्रयास में, कोडरमा ज़िले में एक 'गिद्धों का बसेरा (Vulture Restaurant)' स्थापित किया गया है। इस पहल का उद्देश्य गिद्धों पर पशुधन दवाओं (Livestock Drug), विशेष रूप से डाईक्लोफेनाक के प्रतिकूल प्रभाव को दूर करना है।
  • अन्य गिद्ध संरक्षण पहलें:
    • गिद्ध प्रजातियों को वन्यजीव आवासों के एकीकृत विकास (IDWH) के 'प्रजाति पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम' के तहत संरक्षित किया जाता है।
    • गिद्ध संरक्षण क्षेत्र कार्यक्रम को देश के आठ अलग-अलग स्थानों पर कार्यान्वित किया जा रहा है जहाँ गिद्धों की आबादी मौजूद थी, जिसमें उत्तर प्रदेश में दो स्थान शामिल हैं।
    • दाढ़ी वाले, लंबी चोंच वाले, पतले चोंच वाले और सफेद पीठ वाले गिद्ध वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची 1 के तहत संरक्षित हैं। जबकि बाकी को 'अनुसूची IV' के तहत संरक्षित किया गया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
    • SAVE (एशिया के गिद्धों को विलुप्त होने से बचाना): प्रवृत्त, क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का संघ, जो दक्षिण एशिया के गिद्धों को दुर्दशा से बचाने के लिये संरक्षण, अभियान व फंडिंग जैसी गतिविधियों की देखरेख और समन्वय करने के लिये बनाया गया है।

अमेरिकी बाल्ड ईगल पर केस स्टडी:

  • अमेरिकी बाल्ड ईगल लचीलेपन का एक प्रतीक है।
  • इसकी आबादी में एक बार डाइक्लोरोडिफेनिलट्राइक्लोरोइथेन (DDT) के विनाशकारी प्रभावों के कारण काफी गिरावट आई थी, जो एक शक्तिशाली कीटनाशक था, जिसने गिद्धों के प्रजनन को बाधित किया था।
    • DDT के परिणामस्वरूप मादा बाज़ (ईगल) बेहद पतले छिलके वाले अंडे देती हैं, जिससे वे घोंसला नहीं बना पाते हैं।
  • इस मुद्दे के समाधान के लिये वर्ष 1972 में कृषि उपयोग हेतु DDT पर राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध लागू किया गया था। इस महत्त्वपूर्ण कदम वर्ष 1973 में लुप्तप्राय प्रजाति अधिनियम के पारित होने के साथ ईगल के लिये आवश्यक सुरक्षा प्रदान की।
  • शिकार पर प्रतिबंध, घोंसले के स्थानों के आसपास आवास संरक्षण एवं प्रजनन के कारण बाल्ड ईगल की आबादी में धीरे-धीरे वृद्धि हो रही है।
  • अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार वर्ष 2009 के बाद से बाल्ड ईगल की संख्या चार गुनी हो गई है। इस सफलता की कहानी वर्ष 2007 में ईगल को लुप्तप्राय प्रजातियों की सूची से हटाने के साथ समाप्त हुई।

आगे की राह

  • हानिकारक पशु चिकित्सा दवाओं (जैसे डाईक्लोफेनाक) को विनियमित करने एवं सुरक्षित विकल्पों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। साथ ही निमेसुलाइड जैसी दवाओं पर व्यापक प्रतिबंध को बढ़ावा देना भी महत्त्वपूर्ण है।
  • गिद्धों को संरक्षित करने के लिये उचित शव निपटान पर शिक्षा एवं सुरक्षित भोजन उपलब्धता के साथ गिद्ध भोजन केंद्रों की स्थापना की आवश्यकता है।
  • भोजन एवं घोंसला बनाने वाले क्षेत्रों के बीच गलियारों के निर्माण के साथ-साथ घोंसला निर्माण वाले स्थानों की उचित पहचान और सुरक्षा की जानी चाहिये।
  • पशु चिकित्सा में डाईक्लोफेनाक के उपयोग को पूर्ण रूप से समाप्त करने के लिये निरंतर निगरानी एवं सतर्कता की आवश्यकता है।
  • गिद्ध संरक्षण की सफलता बहु-आयामी दृष्टिकोण पर निर्भर करती है, साथ ही भारत के चल रहे प्रयास समान चुनौतियों का सामना करने वाले अन्य देशों के लिये एक मॉडल प्रस्तुत करते हैं।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: 

प्रश्न. गिद्धों की आबादी में गिरावट के कारणों पर चर्चा कीजिये, और साथ ही गिद्धों की घटती आबादी में वृद्धि के लिये की गई सरकारी पहलों का भी उल्लेख कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. गिद्ध जो कुछ साल पहले भारतीय ग्रामीण इलाकों में बहुत आम हुआ करते थे, आजकल कम ही देखे जाते हैं। इसके लिये ज़िम्मेदार है (2012)

(a) नई आक्रामक प्रजातियों द्वारा उनके घोंसले का विनाश
(b) पशु मालिकों द्वारा अपने रोगग्रस्त मवेशियों के इलाज हेतु इस्तेमाल की जाने वाली दवा
(c) उपलब्ध भोजन की कमी
(d) व्यापक और घातक बीमारी।

उत्तर: (b)

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