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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

अपराधियों की पहचान के लिये आईरिस और फिंगरप्रिंट स्कैनिंग का प्रयोग

  • 31 Jul 2019
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में महाराष्ट्र पुलिस ने स्वचालित मल्टी-मोडल बायोमेट्रिक पहचान प्रणाली (Automated Multi-modal Biometric Identification System-AMBIS) अपनाई है। इस प्रकार की प्रणाली की शुरुआत शीघ्र ही पूरे देश में की जाएगी।

प्रमुख बिंदु

  • पुलिस जाँच में डिजिटल फिंगरप्रिंट और आईरिस स्कैन प्रणाली का प्रयोग करने वाला महाराष्ट्र देश का पहला राज्य बन गया है।
  • महाराष्ट्र सरकार नई दिल्ली में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के साथ मिलकर AMBIS के मानकों का निर्माण करेगी, जिससे इस प्रकार की प्रणाली को अन्य प्रदेशों में भी लागू किया जा सके।

स्वचालित मल्टी-मोडल बायोमेट्रिक पहचान प्रणाली

(Automated Multi-modal Biometric Identification System- AMBIS)

  • AMBIS इकाई में एक कंप्यूटर, एक कैमरा और आईरिस, फिंगरप्रिंट और हथेली का स्कैनर (Palm Scanner) शामिल होता है।
  • इसमें अपराध के दृश्यों से उंगलियों के निशान को पकड़ने के लिये एक पोर्टेबल सिस्टम भी शामिल है।
  • चेहरे की पहचान के लिये CCTV कैमरों की प्रणाली के साथ AMBIS का एकीकरण करने के बाद पुलिस की अपराधों को रोकने की दक्षता बढ़ जाएगी, साथ ही उन अपराधियों को पकड़ना आसान हो जाएगा जिनकी उंगलियों के निशान दशकों पूर्व कागज़ पर लिये जा चुके हैं।
  • महाराष्ट्र राज्य के साइबर विभाग ने AMBIS को तैयार करने से पहले संघीय जाँच ब्यूरो, केंद्रीय खुफिया एजेंसी और संयुक्त राज्य अमेरिका में डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी और इंटरपोल द्वारा उपयोग किये जाने वाले मॉडल का अध्ययन किया।
  • इंटरपोल के बायोमेट्रिक और चेहरे की पहचान प्रणाली को डिज़ाइन करने वाली फ्रेंच कंपनी को AMBIS स्थापित करने के लिये चुना गया है।
  • यह प्रणाली यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्टैंडर्ड एंड टेक्नोलॉजी द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप है।
  • AMBIS प्रणाली को अभी महाराष्ट्र के उन थानों में लॉन्च किया जा रहा है, जहाँ पर पहले ही अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क एवं सिस्टम (Crime and Criminal Tracking Network and System-CCTNS) का बुनियादी ढाँचा मौजूद है।
  • महाराष्ट्र साइबर पुलिस विभाग ने वर्ष 1950 से लेकर वर्ष 2018 तक के 6.5 लाख से अधिक कागज़ों पर दर्ज किये गए उंगलियों के निशानों को डिजिटलकृत किया है। इसका फायदा भी देखने को मिल रहा है, क्योंकि इस प्रणाली के प्रयोग से वर्ष 2014 के बाद के 85 घरों में चोरी के मामलों का खुलासा किया जा चुका है।

महत्त्व

  • इस प्रकार की प्रणाली के माध्यम से मृतक की पहचान करना आसान हो जाएगा, विशेषकर उन परिस्थितियों में जब शरीर विकृत हो चुका होता है।
  • रेटिना स्कैन के माध्यम से अपराधियों की पहचान आसान हो जाएगी क्योंकि रेटिना के अंदर रक्त वाहिकाओं की संरचना विशेष प्रकार की होती है।
  • CCTV फुटेज और तस्वीरों के माध्यम से भीड़ हिंसा जैसे मामलों में संदिग्धों के चेहरे की पहचान की जा सकती है।
  • रेलवे स्टेशनों जैसी भीड़भाड़ वाली जगहों पर आतंकवादी हमलों के मामलों में यह प्रणाली उपलब्ध 40% सटीक जानकारी से 50%- 60% तक सटीक जानकारी जुटा सकती है।
  • इस प्रकार की प्रणाली में डेटा की हानि नहीं होती, साथ डेटा की उच्च बैकअप क्षमता भी मिलती है।
  • फिंगरप्रिंट डेटा, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, जाँच एजेंसियों, अदालतों, अपराध विशेषज्ञों और यहाँ तक कि इंटरपोल एवं विदेशी जाँच एजेंसियों के साथ साझा किया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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