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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ईरान के बंदरगाह को विकसित करने की भारत की योजना से अमेरिका नाराज़

  • 10 Jun 2017
  • 3 min read

संदर्भ
भारत, ईरान के चाबहार बंदरगाह को विकसित कर रहा है परन्तु अमेरिका द्वारा ईरान पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगाए जाने की संभावना से पाश्चात्य विनिर्माणकर्त्ता  ईरान के इस बंदरगाह के लिये उपकरणों  की आपूर्ति करने से डर रहे हैं।

प्रमुख बिंदु

  • भारत अपनी सामरिक एवं व्यापारिक ज़रूरतों के लिये  ईरान के चाबहार बंदरगाह को विकसित कर रहा है। यह बंदरगाह ओमान की खाड़ी के पास होरमुज़ जलसन्धि के रास्ते पर स्थित है। भारत, पाकिस्तान को किनारे कर, यहाँ से मध्य-एशिया तथा अफगानिस्तान तक एक यातायात गलियारा बनाना  चाहता है। यह क्षेत्र भारत के सामरिक हित के लिए महत्त्वपूर्ण है। इस परियोजना को भारतीय फर्म द्वारा विकसित किया जाना है। विदेश में यह भारत का अब तक का सबसे बड़ा संरचना विकास कार्य है।
  • परन्तु अमेरिका द्वारा पुनः ईरान पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगाए  जाने के भय से पाश्चात्य विनिर्माणकर्त्ता ईरान के इस बंदरगाह के लिये उपकारणों की आपूर्ति करने से डर रहे हैं। इसी अनिश्चितता के कारण बड़े-बड़े अंतर्राष्ट्रीय बैंक  भी इस परियोजना में सहायता करने से कतरा रहे हैं।
  • अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप  चुनाव से पहले ईरान से हुए परमाणु सौदे को अस्वीकार करते रहे हैं। उन्होंने इसे अब तक का सबसे ख़राब सौदा कहा है। जब से वे राष्ट्रपति बने हैं, तबसे वे ईरान  को मध्य पूर्व के लिये  खतरा बता रहे हैं।   
  • इसी समस्या के कारण ईरान को भी अपने तेल क्षेत्रों को विकसित करने तथा नई वायुयानों के लिये  अंतर्राष्ट्रीय संविदाओं को प्राप्त करने में  विलम्ब हो रहा है। 
  • ध्यातव्य हो कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर ईरान और छह प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों के बीच वर्ष 2015 में एक सौदा हुआ था, जिसके फलस्वरूप ईरान पर से प्रतिबन्ध हटा लिये  गए थे।
  • उसके बाद भारत ने इस बंदरगाह को तेज़ी से विकसित करने के लिये  $500 मिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च करने की बात कही थी, परन्तु इस बंदरगाह को विकसित करने वाली फर्म ने क्रेन, फोर्कलिफ्ट इत्यादि  उपकरणों की आपूर्ति के लिये  अभी तक एक भी टेंडर जारी नहीं किया है।
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