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अमेरिका यूनेस्को से बाहर

  • 24 Jul 2025
  • 41 min read

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राज्य अमेरिका ने वर्ष 2023 में पुनः शामिल होने के केवल दो वर्षों बाद संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) से बाहर निकलने का निर्णय लिया है। अमेरिका ने इस कदम के पीछे इज़राइल के खिलाफ कथित पक्षपात को कारण बताया है।

यूनेस्को के संबंध में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय: संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है। यह शिक्षा, विज्ञान एवं संस्कृति के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से शांति स्थापित करने का प्रयास करती है।
    • इसका मुख्यालय पेरिस में है तथा इसके 194 सदस्य देश और 12 सहयोगी सदस्य हैं।
  •  इतिहास: यूनेस्को की स्थापना 16 नवंबर, 1945 को हुई थी और यूनेस्को के जनरल कॉन्फ्रेंस का प्रथम सत्र वर्ष 1946 में नवंबर-दिसंबर के दौरान पेरिस में आयोजित किया गया था।
    • भारत इस संगठन का एक संस्थापक सदस्य है।
  • भूमिका और अधिदेश:
    • सभी के लिये समावेशी, न्यायसंगत और आजीवन सीखने के अवसर सुनिश्चित करना (SDG 4 के अनुरूप)।
    • मूर्त एवं अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (विश्व विरासत सूची) की रक्षा करना।
    • वैज्ञानिक अनुसंधान, सतत् विकास और शांति एवं मानवता के लिये विज्ञान के उपयोग को बढ़ावा देना।
    • आपसी समझ और सहिष्णुता को बढ़ाएँ।

आपसी समझ और सहनशीलता को बढ़ाना

  • अमेरिका का यूनेस्को से बाहर होना: यह तीसरी बार है जब संयुक्त राज्य अमेरिका ने यूनेस्को (UNESCO) से बाहर निकलने का फैसला किया है, और ट्रंप प्रशासन के दौरान यह दूसरी बार हो रहा है।
  • निकासी और पुनःप्रवेश की समयरेखा:
    • पहली निकासी (1984, रीगन प्रशासन): अमेरिका ने शीत युद्ध के दौरान यूनेस्को (UNESCO) से यह कहते हुए अपना नाम वापस ले लिया कि संगठन में कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार, और सोवियत हितों के प्रति झुकाव देखा गया।
    • दूसरी निकासी (2017, ट्रम्प का पहला कार्यकाल): अमेरिका ने यूनेस्को (UNESCO) से बाहर होने का फैसला इज़राइल-विरोधी पक्षपात का हवाला देते हुए लिया, खासकर 2011 में जब यूनेस्को ने फिलिस्तीन को एक सदस्य राष्ट्र के रूप में स्वीकार किया था।
    • तीसरी निकासी (2025, ट्रम्प का दूसरा कार्यकाल): राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में घोषणा की कि अमेरिका दिसंबर 2026 तक यूनेस्को से दूसरी बार बाहर हो जाएगा। यह फैसला उस पुनः प्रवेश के बाद लिया गया जो वर्ष 2023 में बाइडेन प्रशासन के दौरान किया गया था।

यूनेस्को से अमेरिका के हटने का संभावित प्रभाव क्या हो सकता है?

  • वैश्विक प्रभाव:
    • वित्तीय संकट: अमेरिका के यूनेस्को से बाहर निकलने से संगठन के बजट में बड़ा अंतर आ गया है, जिससे शिक्षा, सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण और जलवायु शोध कार्यक्रमों को खतरा पैदा हो गया है।
      • उदाहरण के लिये अमेरिका और इज़राइल ने वर्ष 2011 में यूनेस्को द्वारा फिलिस्तीन को सदस्य राष्ट्र के रूप में शामिल करने के फैसले के बाद यूनेस्को को दी जाने वाली वित्तीय सहायता रोक दी थी।
    • भू-राजनीतिक सत्ता परिवर्तन: चीन संभवतः यूनेस्को के एजेंडे में प्रभुत्व स्थापित कर सकता है और प्रचुर मात्रा में चीन-समर्थक विचारधाराओं को बढ़ावा दे सकता है।
    • विज्ञान और शिक्षा पर असर: अमेरिका की अनुपस्थिति से वैश्विक स्तर पर एआई नैतिकता, जलवायु विज्ञान और लड़कियों की शिक्षा जैसे कार्यक्रमों के लिये समर्थन कम हो जाता है। उदाहरण के तौर पर यूनेस्को द्वारा आयोजित STEM क्लीनिक्स, जिनका उद्देश्य लड़कियों को STEM (विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग तथा गणित) शिक्षा से परिचित कराना है, प्रभावित हो सकते हैं।
    • बहुपक्षवाद में संकट: अमेरिका की अनियमित और अप्रत्याशित वापसी वैश्विक सहयोग को बाधित करती है, जिससे बहुपक्षीय संस्थाएँ कमज़ोर होती हैं तथा विकासशील देशों को असंगत अंतर्राष्ट्रीय समर्थन एवं नीतियों के कारण निराशा होती है।
  • भारत पर प्रभाव:
    • अवसर: भारत यूनेस्को में अपने कूटनीतिक प्रभाव को बढ़ा सकता है और संस्कृति, शिक्षा तथा एआई नैतिकता जैसे वैश्विक एजेंडों को आकार देकर अपनी भूमिका मज़बूत कर सकता है। 
      • भारत अपनी सॉफ्ट पावर (सांस्कृतिक प्रभाव) को भी प्रस्तुत कर सकता है, दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा दे सकता है, और अधिक भारतीय स्थलों को विश्व धरोहर सूची में शामिल किये जाने का समर्थन कर सकता है।
    • चुनौतियाँ: वित्तपोषण में कटौती से नालंदा और सुंदरबन जैसे स्थलों पर प्रमुख भारतीय परियोजनाओं पर असर पड़ सकता है, जबकि शिक्षा कार्यक्रमों में भी कमी आ सकती है।
      • यूनेस्को में चीन का बढ़ता प्रभाव और योगदान बढ़ाने का दबाव भारत के संसाधनों और भू-राजनीतिक संतुलन पर दबाव डाल सकता है।

आगे की राह

  • समावेशी शासन व्यवस्था: यूनेस्को को अपनी कार्यप्रणाली में भू-राजनीतिक हस्तक्षेप को सीमित करना चाहिये, ताकि वह शिक्षा और सांस्कृतिक संरक्षण जैसे अपने मूल लक्ष्यों पर केंद्रित रह सके।
  • सतत् ढाँचा: यूनेस्को को समान एवं न्यायसंगत वित्तपोषण मॉडल अपनाने चाहिये और एआई नैतिकता, डिजिटल शिक्षा, तथा जलवायु शिक्षा जैसे उभरते मुद्दों को प्रभावी रूप से संबोधित करना चाहिये।
  • स्थानीय क्रियान्वयन: पारदर्शी शासन सुनिश्चित किया जाए, दक्षिण-दक्षिण सहयोग को प्रोत्साहन मिले, और क्षेत्रीय कार्यक्रमों को समर्थन दिया जाए ताकि हर क्षेत्र की आवश्यकताओं के अनुसार प्रभावशाली तथा लक्षित कार्यवाही हो सके।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

Q. यूनेस्को से अमेरिका के हटने के संगठन की कार्यप्रणाली पर पड़ने वाले प्रभाव का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. यूनेस्को के मैकब्राइड आयोग के लक्ष्य और उद्देश्य क्या हैं? इस पर भारत की क्या स्थिति है? (2016)

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