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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

टू डायमेंशनल इलेक्ट्रॉन गैस

  • 14 Jan 2021
  • 5 min read

चर्चा मे क्यों?

हाल ही में पंजाब के मोहाली स्थित नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (Institute of Nano Science and Technology- INST) के वैज्ञानिकों ने अल्ट्रा-हाई मोबिलिटी वाले टू डायमेंशनल (2D) -इलेक्ट्रॉन गैस [Two dimensional (2D) Electron Gas- 2DEG] का उत्पादन किया है

प्रमुख बिंदु:

टू डायमेंशनल इलेक्ट्रॉन गैस (2DEG):

  • यह एक इलेक्ट्रॉन गैस है जो दो आयामों में स्थानांतरण करने के लिये स्वतंत्र है, परंतु तीसरे आयाम/डायमेंशंन में इसकी गति सीमित/परिरोध है। यह परिरोध तीसरी दिशा में गति के लिये ऊर्जा के स्तर को निर्धारित करता है। इस प्रकार इलेक्ट्रॉन 3D क्षेत्र में एम्बेडेड 2 डी शीट के समान प्रतीत होते हैं।
  • अर्द्धचालकों में सबसे महत्त्वपूर्ण घटनाक्रमों में से एक है संरचनाओं की उपलब्धि जिसमें इलेक्ट्रॉनिक गतिविधि अनिवार्य रूप से टू डायमेंशनल है
  • अधिकांश 2DEG अर्द्धचालकों की संरचना ट्रांजिस्टर जैसी पाई जाती है।
  • 2DEG अतिचालक चुंबकत्व के भौतिकी और उनके सह-अस्तित्व के अन्वेषण के लिये एक मूल्यवान प्रणाली है।
    • अतिचालकता एक ऐसी घटना है जिसमें किसी प्रतिरोध के बिना पदार्थ के माध्यम से आवेश स्थांतरित होता है। सैद्धांतिक रूप में यह ऊष्मा की क्षति किये बिना दो बिंदुओं के मध्य विद्युत ऊर्जा को पूर्ण दक्षता के साथ स्थानांतरित होने में सक्षम बनता है।

2DEG

2DEG के विकास का कारण:

  • आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में नई कार्य क्षमता प्राप्त करने की आवश्यकता के कारण एक इलेक्ट्रॉन के गुण में उसके आवेश के साथ फेर-बदल किया गया जिसे स्पिन डिग्री ऑफ फ्रीडम (Spin Degree of Freedom) कहा जाता है।  इससे स्पिन-इलेक्ट्रॉनिक्स या स्पिनट्रॉनिक्स (Spintronics) का एक नया क्षेत्र उभरकर सामने  आया है।
  • इलेक्ट्रॉन स्पिन का फेर-बदल बुनियादी और अनुप्रयुक्त अनुसंधान के लिये नए आयाम प्रदान करता है और इलेक्ट्रॉनिक्स प्रौद्योगिकी के लिये नई क्षमताओं का विकास करता है। यह एक उच्च गतिशीलता 2DEG में स्पिन ध्रुवीकृत इलेक्ट्रॉनों के अध्ययन को प्रेरित करता है
    • स्पिनट्रॉनिक्स, ठोस अवस्था वाले उपकरणों में, इसके मूलभूत विद्युत आवेश के अलावा, इलेक्ट्रॉन के आंतरिक स्पिन और उससे जुड़े चुंबकीय क्षण का अध्ययन है।

Spintronics

  • यह महसूस किया गया कि ‘रश्बा प्रभाव’ (Rashba Effect) नाम की एक घटना, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली में स्पिन-बैंड का विखंडन होता है, स्पिनट्रॉनिक उपकरणों में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
    • रश्बा प्रभाव: जिसे बाईचकोव-रश्बा प्रभाव भी कहा जाता है, यह विस्तृत क्रिस्टल और कम आयामी संघनित पदार्थ प्रणालियों में स्पिन बैंड की एक गति-आधारित विपाटन (Splitting) है।

प्रक्रिया तथा महत्त्व:

  • इलेक्ट्रॉन गैस की उच्च गतिशीलता के कारण, इलेक्ट्रॉन लंबी दूरी के लिये माध्यम के अंदर टकराते नहीं है और इस प्रकार मेमोरी और सूचना को भी नष्ट नहीं होने देते। 
    • इसलिये इस तरह की प्रणाली अपनी मेमोरी को लंबे समय और दूरी तक आसानी बनाए रख सकती है और उनका हस्तांतरण कर सकती है।
  • चूँकि वे अपने प्रवाह के दौरान कम टकराते हैं, इसलिए उनका प्रतिरोध बहुत कम होता है इसलिये वे ऊर्जा को ऊष्मा के रूप में नष्ट नहीं करते। 
    • अतः ऐसे उपकरण आसानी से गर्म नहीं होते हैं और इनको संचालित करने के लिये कम इनपुट ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

स्रोत: PIB

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