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कृषि

ट्रांसजेनिक फसलें

  • 16 Jun 2023
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ट्रांसजेनिक फसलें, GEAC, आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, Bt कपास

मेन्स के लिये:

ट्रांसजेनिक फसलें

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गुजरात, महाराष्ट्र और तेलंगाना ने एक नए प्रकार के ट्रांसजेनिक कपास बीज का परीक्षण करने हेतु केंद्र की जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (Genetic Engineering Appraisal Committee- GEAC) द्वारा अनुमोदित एक प्रस्ताव को खारिज कर दिया, जिसमें Cry2Ai जीन शामिल है।

  • जीन Cry2Ai कथित तौर पर कपास को पिंक बॉलवॉर्म हेतु प्रतिरोधी बनाता है, जो एक प्रमुख कीट है। इस विवाद से पता चलता है कि आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों की व्यापक स्वीकृति असमान्य बनी हुई है।

नोट: कृषि राज्य का विषय होने का मतलब है कि ज़्यादातर मामलों में अपने बीजों के परीक्षण में रुचि रखने वाली कंपनियों को ऐसे परीक्षण करने हेतु राज्यों से अनुमोदन की आवश्यकता होती है। ऐसे परीक्षणों की अनुमति केवल हरियाणा ने दी थी।

  • तेलंगाना ने प्रस्ताव पर विचार करने हेतु एक विस्तारित अवधि का अनुरोध किया और बाद में जवाब दिया कि वर्तमान फसल के मौसम में परीक्षणों की अनुमति नहीं दी जाएगी। दूसरी ओर गुजरात ने बिना कारण बताए प्रस्ताव को अस्वीकार्य कर दिया।

ट्रांसजेनिक फसलें:

  • परिचय: 
    • ट्रांसजेनिक फसल ऐसे पोधों को संदर्भित करती है जिन्हें जेनेटिक इंजीनियरिंग तकनीकों के माध्यम से संशोधित किया गया है। इन फसलों में विशिष्ट जीन को उनके DNA में प्रवेश कराया जाता है ताकि नई विशेषताएँ या लक्षण प्रदान किये जा सकें जो कि पारंपरिक प्रजनन विधियों के माध्यम से प्रजातियों में स्वाभाविक रूप से नहीं पाए जाते हैं।
  • GMO बनाम ट्रांसजेनिक जीव: 
    • आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (Genetically Modified Organism- GMO) और ट्रांसजेनिक जीव दो ऐसे शब्द हैं जिनका परस्पर उपयोग किया जाता है।
    • हालाँकि GMO और ट्रांसजेनिक जीव के बीच कुछ अंतर है। ट्रांसजेनिक जीव एक GMO है जिसमें DNA अनुक्रम या एक अलग प्रजाति का जीन होता है। जबकि GMO एक जीव, पौधा या सूक्ष्म जीव है, जिसका DNA जेनेटिक इंजीनियरिंग तकनीकों का उपयोग करके बदल दिया गया है।
    • इस प्रकार सभी ट्रांसजेनिक जीव GMO हैं, लेकिन सभी GMO ट्रांसजेनिक नहीं हैं। 
  • भारत में स्थिति: 
    • भारत में वर्तमान में GM फसल के रूप में केवल कपास की व्यावसायिक रूप से खेती की जाती है। ट्रांसजेनिक तकनीक का उपयोग करके बैंगन, टमाटर, मक्का और चना जैसी अन्य फसलों हेतु परीक्षण चल रहे हैं।  
    • GEAC ने GM सरसों हाइब्रिड DMH-11 को पर्यावरण के अनुकूल रिलीज़ करने की मंज़ूरी दे दी है, जिससे यह पूरी तरह से व्यावसायिक खेती के करीब पहुँच गया है।
    • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय में ट्रांसजेनिक खाद्य फसलों की अनुमति पर सवाल उठाने वाला एक कानूनी मामला चल रहा है। किसानों द्वारा प्रतिबंधित शाकनाशियों का उपयोग करने के बारे में चिंताओं का हवाला देते हुए GM सरसों पर रोक लगाने की मांग की गई है।
    • पिछले उदाहरणों में अतिरिक्त परीक्षणों के साथ वर्ष 2017 में GM सरसों के लिये GEAC की स्वीकृति और 2010 में GM बैंगन पर सरकार की अनिश्चितकालीन रोक शामिल है।

भारत में आनुवंशिक संशोधित फसलों के विनियमन की प्रक्रिया:

  • विनियमन: भारत में GMO और उत्पादों से संबंधित सभी गतिविधियों का विनियमन पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के तहत केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
    • MoEFCC के तहत जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) GMO के आयात, निर्यात, परिवहन, निर्माण, उपयोग या बिक्री सहित सभी गतिविधियों की समीक्षा, निगरानी और अनुमोदन करने के लिये अधिकृत है।
    • खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा GM खाद्य पदार्थों को भी नियमों के अधीन लाया गया है।
  • अधिनियम और नियम जो भारत में GM फसलों को विनियमित करते हैं:
    • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 (EPA)
    • जैवविविधता अधिनियम, 2002
    • पौध संगरोध आदेश, 2003
    • विदेश व्यापार नीति, खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम के तहत GM नीति, 2006
    • औषधि और सौंदर्य प्रसाधन नियम (आठवाँ संशोधन), 1988

भारत में ट्रांसजेनिक फसलों को विनियमित करने की प्रक्रिया:

  • ट्रांसजेनिक फसलों के विकास में एक निरंतर, सुरक्षात्मक प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिये पौधों में ट्रांसजेनिक जीन सम्मिलित करना शामिल है।
  • ओपन फील्ड टेस्ट से पहले समितियों द्वारा सुरक्षा मूल्यांकन किया जाता है।
  • ओपन फील्ड टेस्ट कृषि विश्वविद्यालयों या भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) नियंत्रित भूखंडों पर किये जाते हैं।
  • ट्रांसजेनिक पौधे गैर-GM वेरिएंट से बेहतर होने चाहिये और व्यावसायिक मंज़ूरी के लिये पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित होने चाहिये।
  • ओपन फील्ड ट्रायल कई मौसमों और भौगोलिक परिस्थितियों में उपयुक्तता का आकलन करते हैं।

आनुवांशिक संशोधन तकनीक का महत्त्व: 

  • सुरक्षित और किफायती वैक्सीन: आनुवंशिक संशोधन तकनीक ने सुरक्षित और अधिक किफायती वैक्सीन तथा चिकित्सीय उत्पादों के उत्पादन को सक्षम करके फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में क्रांति ला दी है। इससे मानव इंसुलिन, वैक्सीन और ग्रोथ हार्मोन जैसी दवाओं का बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव हो सका है जिससे जीवन रक्षक फार्मास्यूटिकल्स अब और अधिक सुलभ हैं।
  • खरपतवार नियंत्रण: आनुवंशिक संशोधन तकनीक ने शाकनाशी-सहिष्णु फसलों को विकसित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सोयाबीन, मक्का, कपास और कैनोला जैसी फसलों को विशिष्ट व्यापक-स्पेक्ट्रम शाकनाशियों का सामना करने के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित किया गया है, जिससे किसान कृषि फसल को संरक्षित करते हुए खरपतवारों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सकते हैं।
  • खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना: GM फसलों को बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल बनाने के लिये विकसित किया जा रहा है। शोधकर्त्ता लंबे समय तक शुष्क और नम मानसून के मौसम को सहन कर सकने वाले धान, मक्का और गेहूँ की विभिन्न किस्मों पर काम कर रहे हैं।  यह चुनौतीपूर्ण जलवायु स्थिति में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है।
  • लवणीय मृदा में फसल उगाना: GM का प्रयोग लवण-सहिष्णु पौधे उगाने के लिये भी किया गया है, जो लवणीय मिट्टी में बढ़ती फसलों के लिये एक संभावित समाधान पेश करता है। जल से सोडियम आयनों को अलग करने वाले और कोशिका संतुलन को बनाए रखने वाले जीनों को सम्मिलित करके पौधे उच्च लवण वाले वातावरण में पनप सकते हैं। 

ट्रांसजेनिक फसलों से संबंधित चिंताएँ: 

  • पोषक तत्त्वों की कमी: GM खाद्य पदार्थों में कभी-कभी उनके बढ़ते उत्पादन और कीट प्रतिरोध पर ध्यान देने के बावजूद पोषण मूल्य की कमी हो सकती है। ऐसा इसलिये है कि कुछ विशेषताओं में वृद्धि करने  के परिणामस्वरूप कभी-कभी पोषण मूल्य की अनदेखी कर दी जाती है।
  • पारिस्थितिक तंत्र के लिये जोखिमपूर्ण: GM उत्पादन पारिस्थितिक तंत्र और जैवविविधता के लिये जोखिम उत्पन्न कर सकता है। यह जीन प्रवाह को बाधित करने के साथ ही स्वदेशी किस्मों को नुकसान पहुँचा सकता है जिसका दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है।
  • एलर्जिक प्रतिक्रियाएँ होने की संभावना: जैविक रूप से परिवर्तित होने के कारण आनुवंशिक रूप से संशोधित खाद्य पदार्थों में एलर्जी प्रतिक्रियाओं को ट्रिगर करने की क्षमता होती है। पारंपरिक किस्मों के अभ्यस्त व्यक्तियों के लिये यह समस्याप्रद हो सकता है।
  • पशुओं पर प्रभाव: GM फसलें वन्यजीवों के लिये भी खतरा उत्पन्न कर सकती है। उदाहरण के लिये प्लास्टिक अथवा फार्मास्यूटिकल्स के उत्पादन में उपयोग किये जाने वाले आनुवंशिक रूप से संशोधित पौधे फसल कटाई के बाद खेतों में छोड़े गए फसल अपशिष्ट का उपभोग करने वाले चूहों अथवा हिरण जैसे जानवरों के लिये खतरनाक साबित हो सकते हैं। 

आगे की राह 

  • घरेलू और साथ ही निर्यात उपभोक्ताओं के लिये नियामक व्यवस्था को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
  • प्रौद्योगिकी अनुमोदन को सुनिश्चित करने के साथ ही विज्ञान आधारित निर्णयों को लागू किया जाना चाहिये।
  • सुरक्षा प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने के लिये कड़ी निगरानी की आवश्यकता है और अवैध आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों के प्रसार को रोकने के लिये प्रवर्तन को गंभीरता से लिया जाना चाहिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. पीड़कों को प्रतिरोध के अतिरिक्त वे कौन-सी संभावनाएँ हैं जिनके लिये आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पादपों का निर्माण किया गया है? (2012) 

  1. सूखा सहन करने के लिये सक्षम बनाना  
  2. उत्पाद में पोषकीय मान बढ़ाना 
  3. अंतरिक्ष यानों और अंतरिक्ष स्टेशनों में उन्हें उगाने तथा प्रकाश संश्लेषण करने के लिये सक्षम बनाना
  4. उनकी शेल्फ लाइफ बढ़ाना 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3 और 4 
(c) केवल 1, 2 और 4 
(d) 1, 2, 3 और 4 

उत्तर: (c) 


प्रश्न. बॉलगार्ड-I और बॉलगार्ड-II प्रौद्योगिकियों का उल्लेख किसके संदर्भ में किया जाता है? (2021) 

(a) फसल पादपों का क्लोनी प्रवर्द्धन
(b) आनुवंशिक रूप से रूपांतरित फसली पादपों का विकास 
(c) पादप वृद्धिकर पदार्थों का उत्पादन
(d) जैव उर्वरकों का उत्पादन

उत्तर: (b) 


मेन्स:

प्रश्न. किसानों के जीवन मानकों को उन्नत करने के लिये जैव प्रौद्योगिकी किस प्रकार सहायता कर सकती है? (2019) 

स्रोत: द हिंदू

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