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सामाजिक न्याय

भारत की बदलती खाद्य प्रणालियाँ

  • 10 Sep 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

NFHS-5, हरित क्रांति, खाद्य एवं कृषि संगठन, संयुक्त राष्ट्र

मेन्स के लिये:

खाद्य प्रणालियों की स्थिरता और भविष्य की चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले वर्षों में खाद्य प्रणालियों की स्थिरता महत्त्वपूर्ण होने जा रही है।

  • भारत को अपनी खाद्य प्रणालियों में भी परिवर्तन करना होगा, जिन्हें उच्च कृषि आय और पोषण सुरक्षा के लिये समावेशी और टिकाऊ होना चाहिये।
  • इससे पहले खाद्य प्रणाली पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में बताया गया था कि वर्तमान खाद्य प्रणालियाँ शक्ति असंतुलन और असमानता के कारण अत्यधिक प्रभावित हैं और अधिकांश महिलाओं के पक्ष में नहीं  हैं।

प्रमुख बिंदु

  • खाद्य प्रणाली:
    • खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, खाद्य प्रणालियों में कारकों की पूरी शृंखला शामिल है:
      • कृषि, वानिकी या मत्स्य पालन से प्राप्त खाद्य उत्पादों का उत्पादन, एकत्रीकरण, प्रसंस्करण, वितरण, खपत, निपटान और व्यापकता आर्थिक, सामाजिक एवं प्राकृतिक वातावरण के कुछ हिस्सों में अंतर्निहित है।
  • भारतीय खाद्य प्रणालियों के सम्मुख उपस्थित विभिन्न चुनौतियाँ:
    • हरित क्रांति का प्रभाव:
      • यद्यपि हरित क्रांति के कारण देश के कृषि विकास में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है, लेकिन इसने जल-जमाव, मिट्टी का कटाव, भू-जल की कमी और कृषि की अस्थिरता जैसी समस्याओं को भी जन्म दिया है।
    • वर्तमान नीतियाँ:
      • वर्तमान नीतियाँ अभी भी 1960 के दशक की घाटे की मानसिकता पर आधारित हैं। खरीद, सब्सिडी और जल नीतियाँ चावल और गेहूँ के पक्ष में हैं।
        • तीन फसलों (चावल, गेहूँ और गन्ना) की सिंचाई में 75 से 80% पानी का प्रयोग होता है।
    • कुपोषण:
      • NFHS-5 से पता चलता है कि वर्ष 2019-20 में भी कई राज्यों में कुपोषण में कमी नहीं आई है। इसी तरह मोटापा भी बढ़ रहा है।
      • ग्रामीण भारत के लिये EAT-Lancet आहार संबंधी सिफारिशों के आधार पर प्रति व्यक्ति लागत प्रतिदिन 3 अमेरिकी डॉलर और 5 अमेरिकी डॉलर के बीच है। इसके विपरीत वास्तविक आहार लागत प्रति व्यक्ति प्रतिदिन लगभग 1 अमेरिकी डॉलर है।
  • भारत की खाद्य प्रणालियों को बदलने के लिये आवश्यक कदम:
    • फसल विविधीकरण:
      • पानी के अधिक समान वितरण, टिकाऊ और जलवायु-लचीली कृषि हेतु बाजरा, दलहन, तिलहन, बागवानी के लिये फसल पैटर्न के विविधीकरण की आवश्यकता है।
    • कृषि क्षेत्र में संस्थागत परिवर्तन:
      • किसान उत्पादक संगठनों (FPO) को छोटे भूमि धारकों को इनपुट और आउटपुट के बेहतर मूल्य की प्राप्ति में मदद करनी चाहिये।
        • ई-चौपाल जैसी पहल छोटे किसानों को लाभान्वित करने वाली प्रौद्योगिकी का एक उदाहरण है।
      • महिला सशक्तीकरण विशेष रूप से आय और पोषण बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
        • केरल में महिला सहकारी समितियाँ और कुदुम्बश्री जैसे समूह इसमें मददगार होंगे।
    • सतत् खाद्य प्रणाली:
      • अनुमान बताते हैं कि खाद्य क्षेत्र विश्व के लगभग 30% ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करता है।
      • उत्पादन, मूल्य शृंखला और खपत में स्थिरता हासिल करनी होगी।
    • स्वास्थ्य अवसंरचना और सामाजिक सुरक्षा:
    • गैर-कृषि क्षेत्र:
      • टिकाऊ खाद्य प्रणालियों के लिये गैर-कृषि क्षेत्र की भूमिका समान रूप से महत्त्वपूर्ण है। श्रम प्रधान विनिर्माण और सेवाएँ कृषि पर दबाव को कम कर सकती हैं क्योंकि कृषि से होने वाली आय छोटे भूमि धारकों और अनौपचारिक श्रमिकों हेतु पर्याप्त नहीं है।
      • इसलिये ग्रामीण सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम आकार के उद्यमों (MSME) और खाद्य प्रसंस्करण को मजबूत करना समाधान का हिस्सा है।

आगे की राह

संयुक्त राष्ट्र (UN) के महासचिव ने सतत् विकास के लिये वर्ष 2030 एजेंडा के दृष्टिकोण को साकार करने और दुनिया में कृषि-खाद्य प्रणालियों में सकारात्मक बदलाव हेतु रणनीति विकसित करने के लिये पहले संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन के आयोजन का आह्वान किया है, जिसे सितंबर 2021 में आयोजित किया जाएगा। यह सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिये नीतियों को बढ़ावा देने का एक शानदार अवसर है।

इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये विज्ञान और प्रौद्योगिकी महत्त्वपूर्ण चालक हैं। भारत को खाद्य प्रणाली परिवर्तन का भी लक्ष्य रखना चाहिये जो समावेशी और टिकाऊ हो, जिससे कृषि आय में वृद्धि तथा पोषण सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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