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इरावदी डॉल्फिन की वापसी

  • 25 Aug 2017
  • 3 min read

चर्चा में क्यों ? 

हाल ही में चिल्का झील के रंभा सेक्टर में लगभग तीन दशकों बाद चार इरावदी डॉल्फिनों  को देखा गया है। दरअसल यहाँ झींगा पालन के लिये जाल लगे होने के कारण इनका आहार कम होता जा रहा था, जिसके कारण इनका यहाँ आना कम हो गया था। 

परंतु चिल्का विकास प्राधिकरण द्वारा इस विशाल झील से इन अवैध झींगा बाड़ों को हटाए  जाने के कारण अब फिर से इनका आना शुरू हो गया है। रंभा सेक्टर चिल्का का अंतिम छोर है।  

उल्लेखनीय है कि चिल्का झील अति संकटापन्न इरावदी डॉल्फिनों का प्राकृतिक आवास है। इसका जल स्थिर होने के कारण यह डॉल्फिनों के लिये अनुकूल है। यहाँ ये बहुतायत में पाई जाती हैं।  

वर्ष 2015 में इनकी संख्या 144 थीं। इस वर्ष इनकी संख्या 134 है। इन्हें देखने के लिये प्रतिवर्ष अनेक पर्यटक यहाँ आते हैं। चिल्का झील अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिये प्रसिद्ध है।    

इरावदी डॉलफिन : एक नज़र 

  • इरावदी डॉल्फिन (ऑरकाले ब्रेविरियोस्ट्रिस-Orcaella brevirostris) एक सुंदर स्तनपायी जलीय जीव है।
  • यह अति संकटापन्न जीव है।   
  • इसकी दो प्रजातियाँ पाई जाती है:- इरावदी डॉल्फिन एवं स्नब-फिन-डॉल्फिन।  
  • इस प्रजाति का नाम म्यांमार की इरावदी नदी के नाम पर रखा गया है। इरावदी नदी में ये बड़ी संख्या में पाई जाती हैं। यह इनका प्राकृतिक वासस्थल है।दुनिया भर में इनकी संख्या 7500 से कम है। सबसे अधिक (6400) बांग्लादेश में है।    
  • पर्यटन एवं रोज़गार की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण कम्बोडिया में इसे एक पवित्र जीव माना जाता है। 
  • डॉल्फिन सभी समुद्रों में पाई जाती हैं। भूमध्यसागर में इनकी संख्या सर्वाधिक है।   
  • पुरे विश्व में इनकी चालीस प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से मीठे पानी की डॉल्फिनों  की चार प्रजातियाँ पाई जाती हैं।     
  • भारत में गंगा नदी में यह पाई जाती है। यह गंगा की शुद्धता को प्रकट करती है। ये दृष्टिहीन होती हैं। 
  • मीठे पानी की डॉल्फिन को (वर्ष 2009 में) भारत का ‘राष्ट्रीय जलीय जीव’ घोषित किया गया है।  
  • उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में स्थानीय भाषा में इन्हें ‘सुसु’ या ‘सुस’ कहा जाता है।
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