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भारतीय अर्थव्यवस्था

अपतटीय रुपया बाज़ार पर टास्क फोर्स

  • 10 Aug 2019
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक ने ऊषा थोराट (पूर्व डिप्टी गवर्नर) की अध्यक्षता में फरवरी 2019 में एक समिति (आठ सदस्यीय समिति) का गठन किया था, जिसका कार्य अपतटीय (ऑफशोर) रुपए बाज़ार (Task Force on Offshore Rupee Markets) में भारतीय मुद्रा की स्थिरता हेतु आवश्यक नीतियाँ बनाने के लिये सुझाव देना था। हाल ही में RBI द्वारा सरकार को इस समिति की रिपोर्ट सौंपी गई।

प्रमुख सुझाव

  • मौजूदा समय में भारतीय बैंकों को ऑफशोर रुपए के डेरीवेटिव बाज़ार या गैर-डिलीवरेबल फॉरवर्ड (Non-Deliverable Forward-NDF) बाज़ारों में सौदा करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
  • वर्तमान में ऑनशोर रुपया बाज़ार, ऑफशोर रुपया बाज़ार की तुलना में अधिक फायदेमंद और तरल है। अतः भारतीय बैंकों की ऑफशोर रुपया बाज़ार में भागीदारी समय के साथ इस लाभ को कम कर सकती है।

NDF एक विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव अनुबंध है, जिसके तहत दो पक्ष भविष्य की तारीख में किसी दिये गए स्पॉट दर पर नकदी का आदान-प्रदान करने के लिये सहमत होते हैं। मूल मुद्रा के बजाय अनुबंध को व्यापक रूप से कारोबार वाली मुद्रा, जैसे अमेरिकी डॉलर में देने पर सहमति की जाती है।

  • विदेशी उपयोगकर्त्ताओं की पहुँच को बढाने और भारतीय बैंकों को वैश्विक ग्राहकों को उनके समय के अनुरूप स्वतंत्र रूप से कीमतों की पेशकश करने की अनुमति देने के लिये ऑनशोर बाज़ार की कार्यअवधि का विस्तार किया जाना चाहिये।
  • बैंकों को या तो घरेलू बिक्री टीम या विदेशी शाखाओं में स्थित कर्मचारियों के माध्यम से हर समय गैर-निवासियों को स्वतंत्र रूप से कीमतों की पेशकश करने की अनुमति दी जानी चाहिये।
  • इसके अलावा गैर-निवासियों की विदेशी मुद्रा-खुदरा व्यापार मंच (forex-retail trading platform) तक व्यापक पहुँच उन्हें ऑनशोर बाज़ार का उपयोग करने के लिये बड़ा प्रोत्साहन देगी।
    • भारत में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्रों (International Financial Services Centers-IFSC) में कारोबार करने के लिये रुपये के डेरिवेटिव (विदेशी मुद्रा में रूपांतरण) को सक्षम करना।
  • उपयोगकर्त्ताओं को अंतर्निहित जोखिम को स्थापित करने की आवश्यकता के बिना ओवर द काउंटर (Over The Counter-OTC) करेंसी डेरीवेटिव बाज़ार में 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर के विदेशी विनिमय की अनुमति प्रदान की जानी चाहिये।

गैर-निवासियों को अपने विदेशी मुद्रा विनिमय को जोखिम मुक्त और सुविधाजनक बनाने के लिये सुझाव:

  • ऑनशोर बाज़ार में अनिवासी लेनदेन के लिये एक केंद्रीय समाशोधन और निपटान तंत्र (Central Clearing and Settlement Mechanism) स्थापित करना।
  • गैर-केंद्रीय रूप से बेचे गए OTC डेरिवेटिव के लिये मार्जिन आवश्यकताओं को लागू करना और भारतीय बैंकों को विदेशों में मार्जिन पोस्ट करने की अनुमति देना।
  • प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय केंद्रों में विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव्स के कर उपचार को संरेखित करना।
  • वित्तीय बाज़ार से संबंधित KYC मांगों का एक सामान दस्तावेज़ीकरण (documentation) मांगों के साथ केन्द्रीकरण करना।
  • ऑनशोर करेंसी का अर्थ है स्थानीय रूप से खरीदी जाने वाली मुद्रा जबकि ऑफशोर करेंसी का अर्थ है राष्ट्रीय सीमाओं से बाहर मुद्रा/करेंसी को खरीदना।

करेंसी डेरिवेटिव क्या हैं?

  • मुद्रा विनिमय दरों के आधार पर डेरिवेटिव भविष्य का एक अनुबंध है जो उस दर को निर्धारित करता है जिस पर किसी मुद्रा को किसी अन्य मुद्रा के लिये भविष्य की तारीख में आदान-प्रदान किया जा सकता है।
  • भारत में कोई भी व्यक्ति डॉलर, यूरो, यूके पाउंड और येन जैसी मुद्राओं के खिलाफ बचाव के लिये ऐसे डेरिवेटिव अनुबंधों का उपयोग कर सकता है।
  • विशेष रूप से आयात या निर्यात करने वाले कॉर्पोरेट इन अनुबंधों का उपयोग किसी निश्चित मुद्रा के जोखिम के खिलाफ बचाव के लिये करते हैं।
  • हालाँकि, इस तरह के सभी मुद्रा अनुबंधों का रुपए में नकद के रूप में निपटारा (cash-settled) किया जाता है, इस साल की शुरुआत में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने क्रॉस मुद्रा अनुबंध के साथ-साथ यूरो-डॉलर, पाउंड-डॉलर और डॉलर- येन के साथ व्यापार में आगे बढ़ने को कहा है।

करेंसी डेरिवेटिव के साथ कोई व्यापार कैसे कर सकता है?

  • दो राष्ट्रीय स्तर के स्टॉक एक्सचेंज, BSE और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) में करेंसी डेरिवेटिव सेगमेंट हैं। मेट्रोपॉलिटन स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया (MSEI) में भी ऐसा ही सेगमेंट है लेकिन BSE या NSE पर इसका अधिक विस्तार देखा गया है।
  • कोई भी ब्रोकर के माध्यम से मुद्रा डेरिवेटिव में व्यापार कर सकता है। संयोग से सभी प्रमुख स्टॉक ब्रोकर भी मुद्रा व्यापार सेवाएँ प्रदान करते हैं।

ओवर द काउंटर बाज़ार

[Over the Counter (OTC) Market]

  • लेन-देन पर मुद्रा डेरिवेटिव्स के आने से पहले मुद्रा जोखिमों को दूर करने के लिये सिर्फ ओवर द काउंटर बाज़ार ही था जहाँ भविष्य के अनुबंधों पर बातचीत की जाती थी और फिर उसे स्वीकार किया जाता था।
  • यह एक अपारदर्शी और बंद बाज़ार की तरह था जहाँ ज्यादातर बैंक और वित्तीय संस्थान कारोबार करते थे।
  • विनिमय/एक्सचेंज आधारित करेंसी डेरीवेटिव सेगमेंट एक विनियमित और पारदर्शी बाज़ार है जिसे छोटे व्यापारी, यहाँ तक की आम आदमी भी अपने मुद्रा जोखिम को कम करने के लिये उपयोग कर सकते है।

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स्रोत: द हिंदू एवं इंडियन एक्सप्रेस

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