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भारतीय अर्थव्यवस्था

‘स्वेट इक्विटी’ नियम: सेबी

  • 28 Aug 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये

स्वेट इक्विटी, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड

मेन्स के लिये

स्वेट इक्विटी संबंधी नियमों में बदलाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड’ ने ‘सेबी (शेयर आधारित कर्मचारी लाभ और स्वेट इक्विटी) विनियम, 2021 को लागू किया है। इन नियमों ने उन कर्मचारियों के दायरे को विस्तृत कर दिया है, जिन्हें स्टॉक (इक्विटी) विकल्प की पेशकश की जा सकती है।

  • सेबी ने ‘सेबी (शेयर आधारित कर्मचारी लाभ) विनियम, 2014’, ‘सेबी (इशू ऑफ स्वेट इक्विटी) विनियम, 2002’ और ‘सेबी (स्वेट इक्विटी विनियम) का विलय कर दिया है।
  • ‘भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड’, सेबी अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के अनुसार स्थापित एक वैधानिक निकाय है। इसका मूल कार्य प्रतिभूतियों में निवेशकों के हितों की रक्षा करना और प्रतिभूति बाज़ार को विनियमित करना है।

प्रमुख बिंदु

  • स्वेट इक्विटी 
    • परिचय
      • ‘स्वेट इक्विटी’ का आशय एक कंपनी के कर्मचारी या संस्थापक की ओर से कंपनी को दिये गए गैर-मौद्रिक योगदान से होता है। प्रायः वित्तीय संकट से प्रभावित स्टार्टअप और व्यवसायों के मालिक आमतौर पर अपनी कंपनियों के लिये फंड जुटाने हेतु ‘स्वेट इक्विटी’ का उपयोग करते हैं।
      • कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 (88) के अनुसार, ‘स्वेट इक्विटी’ शेयरों का अर्थ ऐसे इक्विटी शेयर से है, जो किसी कंपनी द्वारा अपने निदेशकों या कर्मचारियों को छूट पर जारी किये जाते हैं।
      • यह बौद्धिक संपदा अधिकारों या मूल्य वर्द्धन की प्रकृति में जानकारी प्रदान करने या अधिकार उपलब्ध कराने के लिये भी जारी किये जाएंगे।
    • अधिकतम सीमा:
      • एक सूचीबद्ध कंपनी द्वारा जारी किये जा सकने वाले स्वेट इक्विटी शेयरों की अधिकतम वार्षिक सीमा मौजूदा पेड-अप इक्विटी शेयर पूंजी के 15% निर्धारित की गई है, जो कि किसी भी समय कुल पेड-अप कैपिटल के 25% से अधिक नहीं हो सकती।
      • इसके अलावा ‘इनोवेटर्स ग्रोथ प्लेटफॉर्म’ (IGP) पर सूचीबद्ध कंपनियों के मामले में वार्षिक सीमा 15% होगी, जबकि समग्र सीमा किसी भी समय पेड-अप कैपिटल के 50% से अधिक नहीं होगी। यह कंपनी के निगमन की तारीख से 10 साल के लिये लागू होगा।
        • वर्ष 2019 में सेबी ने ऐसे जारीकर्त्ताओं को सूचीबद्ध करने हेतु ‘इनोवेटर्स ग्रोथ प्लेटफॉर्म’ (जिसे पूर्व में ‘इंस्टीट्यूशनल ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म’ के नाम से जाना जाता था) लॉन्च किया था, जो अपने उत्पाद या सेवाएँ प्रदान करने हेतु प्रौद्योगिकी, सूचना प्रौद्योगिकी, बौद्धिक संपदा, डेटा एनालिटिक्स, जैव प्रौद्योगिकी या नैनो-प्रौद्योगिकी का गहन उपयोग कर रहे हैं। 
      • यह प्रस्ताव ‘इनोवेटर्स ग्रोथ प्लेटफॉर्म’ पर सूचीबद्ध होने वाली सभी नई स्टार्ट-अप कंपनियों को महत्त्वपूर्ण लाभ प्रदान करेगा।
  • शेयर आधारित कर्मचारी लाभ:
    • पात्रता
      • कंपनियों को अब उन कर्मचारियों को शेयर-आधारित कर्मचारी लाभ प्रदान करने की अनुमति होगी, जो विशेष रूप से उस कंपनी या उसके किसी समूह की किसी सहायक कंपनी या सहयोगी कंपनी के लिये काम कर रहे हैं।
      • यह उम्मीद की जा रही है कि इससे न केवल कंपनियों को कर्मचारियों को लंबे समय तक बनाए रखने के लिये ‘शेयर-आधारित कर्मचारी लाभों’ का बेहतर उपयोग करने में मदद मिलेगी, बल्कि कर्मचारी में ज़िम्मेदारी और स्वामित्व की भावना भी आएगी जो उन्हें कंपनी के विकास के लिये काम करने हेतु प्रेरित करेगी। 
    • लॉकिंग अवधि:
      • स्थायी अक्षमता या मृत्यु के मामलों में किसी कर्मचारी या उसके परिवार को तत्काल राहत प्रदान करने के लिये सभी शेयर लाभ योजनाओं हेतु न्यूनतम अवधि और लॉक-इन अवधि (न्यूनतम 1 वर्ष) की आवश्यकता को समाप्त कर दिया गया है, जिससे कर्मचारियों को तात्कालिक लाभ मिल सकेगा।
  • प्रयोज्यता:
    • नए नियम केवल सूचीबद्ध कंपनियों पर लागू होंगे, क्योंकि ये सेबी द्वारा तैयार किये गए हैं, जो केवल सूचीबद्ध कंपनियों को नियंत्रित करते हैं।
      • सूचीबद्ध कंपनी का आशय स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कंपनी से है, जिसमें शेयर व्यापार योग्य होते हैं, जबकि एक गैर-सूचीबद्ध कंपनी वह होती है, जो शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध नहीं होती है।
    • गैर-सूचीबद्ध कंपनियों के लिये किसी भी आवश्यक बदलाव को कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत लागू किया जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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