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लगभग 50 मिलियन वर्ष पूर्व वर्षावनों का अस्तित्व

  • 21 Nov 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

लगभग 50 मिलियन वर्ष पूर्व के वर्षावनों का अस्तित्व, भूमध्यरेखीय (उष्णकटिबंधीय) वर्षावन, जलवायु परिवर्तन, जीवाश्म विज्ञान

मेन्स के लिये:

लगभग 50 मिलियन वर्ष पूर्व  वर्षावनों का अस्तित्व, संरक्षण

स्रोत: पी.आई.बी. 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज़ (BSIP) के वैज्ञानिकों की एक टीम ने लगभग 50 मिलियन वर्ष पूर्व अर्ली इओसीन क्लाइमेट ऑप्टिमम (Early Eocene Climatic Optimum- EECO) के भूमध्यरेखीय (उष्णकटिबंधीय) वर्षावनों की जलवायु का खुलासा किया है, जो तब अस्तित्व में थी जब पृथ्वी वैश्विक स्तर पर गर्म थी।

  • इस अनुसंधान ने अतीत के स्थलीय भूमध्यरेखीय जलवायु डेटा की मात्रा निर्धारित करने हेतु प्लांट प्रॉक्सी को नियोजित करते हुए नवीन तकनीकों का उपयोग किया। इन तरीकों से उन तंत्रों के बारे में जानकारी प्राप्त करने में मदद मिली जो प्राचीन वर्षावनों को प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम बनाते थे।

प्लांट प्रॉक्सी क्या हैं?

  • पर्यावरण विज्ञान या जीवाश्म विज्ञान (जीवाश्मों के आधार पर पृथ्वी पर जीवन के इतिहास का अध्ययन) के संदर्भ में "प्लांट प्रॉक्सी" अप्रत्यक्ष साक्ष्य या संकेतक को संदर्भित करती है जिसका उपयोग वैज्ञानिक पूर्व की पर्यावरणीय स्थितियों को समझने के लिये करते हैं, विशेष रूप से पौधों के जीवन से संबंधित।
  • ये प्रॉक्सी प्रत्यक्ष साक्ष्य के विकल्प या स्टैंड-इन के रूप में कार्य करते हैं जो उपलब्ध नहीं हो सकते हैं या आसानी से पहुँच योग्य नहीं हो सकते हैं।
  • उदाहरण के लिये पराग कण अत्यधिक प्रतिरोधी होते हैं और इन्हें हज़ारों या लाखों वर्षों तक तलछट में संरक्षित किया जा सकता है। तलछट कोर या परतों में पराग के प्रकार तथा प्रचुरता का अध्ययन करके वैज्ञानिक उन पौधों के प्रकार का अनुमान लगा सकते हैं जो एक विशिष्ट अवधि के दौरान किसी विशेष क्षेत्र में मौजूद थे। 
  • यह प्लांट प्रॉक्सी वैज्ञानिकों को प्राचीन पारिस्थितिक तंत्रों के पुनर्निर्माण, दीर्घकालिक पर्यावरणीय परिवर्तनों को समझने और भूवैज्ञानिक समय के पैमाने पर जलवायु एवं वनस्पति में बदलाव को ट्रैक करने में मदद करती है।

अध्ययन की मुख्य बातें क्या हैं?

  • भूमध्यरेखीय वर्षावनों का लचीलापन:
    • लगभग 50 मिलियन वर्ष पहले वैश्विक स्तर पर गर्मी और वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते स्तर के बावजूद भूमध्यरेखीय वर्षावन न केवल अपने अस्तित्व को बचाए रखने में सफल रहे बल्कि फले-फूले भी।
    • पहले यह ज्ञात था कि पृथ्वी वर्तमान की तुलना में लगभग 13 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म थी और इस दौरान कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता 1000 ppmv से अधिक थी।
    • जल विज्ञान चक्र में परिवर्तन के कारण मध्य और उच्च अक्षांश के वनों के अस्तित्व पर इसका काफी प्रभाव पड़ा, लेकिन भूमध्यरेखीय वन अपने अस्तित्व को बचाए रखने में सफल रहे।
  • उच्च वर्षा की भूमिका:
    • अध्ययन में भूमध्यरेखीय वर्षावनों के अस्तित्व को बनाए रखने और उन्हें समृद्ध करने वाले एक महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में उच्च वर्षा पर प्रकाश डाला गया है।
    • उच्च वर्षा से पौधों की जल उपयोग दक्षता में वृद्धि होने की संभावना है, जिससे वनस्पतियों को अत्यधिक गर्मी और उच्च कार्बन डाइऑक्साइड स्तरों में कार्य करने की अनुमति मिलेगी।
  • इस अध्ययन के निहितार्थ:
    • EECO जैसे ऊष्म अवधि के दौरान भूमध्यरेखीय वर्षावनों की जलवायु गतिशीलता एवं लचीलेपन को समझना भविष्य के जलवायु पूर्वानुमानों के लिये महत्त्व रखता है तथा विषम जलवायु परिस्थितियों में उष्णकटिबंधीय पारिस्थितिक तंत्र के अस्तित्व हेतु रणनीतियाँ बनाने में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

भूमध्यरेखीय वर्षावन क्या हैं?

  • परिचय:
    • भूमध्यरेखीय वर्षावन (Equatorial Rainforests) उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में भूमध्य रेखा के पास पाए जाने वाले हरे-भरे, जैवविविधता वाले वन हैं।
    • ये वन आमतौर पर भूमध्य रेखा के उत्तर अथवा दक्षिण में 10 डिग्री अक्षांश के अंतर्गत स्थित होते हैं तथा इनमें समग्र वर्ष उच्च तापमान एवं भारी वर्षा की स्थिति बनी रहती है।

  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • जलवायु: इन वनों में ऊष्म तथा आर्द्र जलवायु की स्थिति होती है  जहाँ वर्ष भर लगातार उच्च तापमान होता है जो आमतौर पर औसत 25-27 डिग्री सेल्सियस (77-81 डिग्री फारेनहाइट) के आसपास होता है। यहाँ भारी वर्षा होती है, जो अमूमन सालाना 2,000 मिलीमीटर (80 इंच) से अधिक होती है, जिसके कारण इसे "वर्षावन" कहा जाता है।
    • जैवविविधता: भूमध्यरेखीय वर्षावन पृथ्वी पर सबसे विविध पारिस्थितिक तंत्रों में से हैं, जिनमें पौधों तथा जीवों की प्रजातियों की अविश्वसनीय रूप से समृद्ध विविधता पाई जाती है।
      • इन वनों में पेड़ों, पौधों, कीटों, पक्षियों, स्तनपायी जीवों तथा अन्य जीवों की असंख्य प्रजातियाँ मौजूद हैं, जिनमें से कई इन क्षेत्रों के लिये स्थानिक हैं।
    • वनस्पति तथा जीव: भूमध्यरेखीय वर्षावनों में ऊँचे वृक्ष पाए जाते हैं जो गहन छतरियों के रूप में वन के धरातल को छाया प्रदान करते हैं, जिससे एक बहुस्तरीय पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण होता है।
      • इनमें विभिन्न प्रकार के पौधों की प्रजातियाँ, जिनमें एपिफाइट्स (अन्य पौधों पर उगने वाले पौधे), लियाना (ऊपर की ओर जाने वाली लताएँ) तथा पेड़ों की कई प्रजातियाँ शामिल हैं जो  समृद्ध जैवविविधता में योगदान करती हैं।
    • महत्त्व: भूमध्यरेखीय वर्षावन पृथ्वी की जलवायु और कार्बन चक्र को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन को कम करने में सहायता मिलती है। इसके अतिरिक्त वे अनगिनत प्रजातियों के लिये आवास प्रदान करते हैं, स्वदेशी समुदायों का समर्थन करते हैं और औषधीय पौधों के संसाधनों के केंद्र हैं।
    • खतरे: दुर्भाग्य से इन वर्षावनों के निर्वनीकरण, कटाई, कृषि, खनन और अन्य मानवीय गतिविधियों जैसे खतरों का सामना करना पड़ता है।
      • जलवायु परिवर्तन इन वनों में रहने वाली विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के लिये खतरा उत्पन्न करने के अलावा उष्णकटिबंधीय वर्षावनों को नुकसान पहुँचाकर वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न.  निम्नलिखित में से कौन-सी विषुवतीय वनों की अद्वितीय विशेषता है/विशेषताएँ हैं? (2013)

  1. ऊँचे, घनें वृक्षों की विद्यमानता जिनके किरीट निरंतर वितान बनाते हों।  
  2. बहुत-सी जातियों का सह-अस्तित्व हो।  
  3. अधिपादपों की असंख्य किस्मों की विघमानता हो।  

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

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