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आंतरिक सुरक्षा

भारत में निगरानी कानून

  • 19 Nov 2019
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000

मेन्स के लिये:

भारत में निगरानी कानूनों से जुड़े अन्य मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इज़रायली स्पाइवेयर (Spyware) पेगासस (Pegasus) द्वारा व्हाट्सएप के माध्यम से की गई जासूसी का शिकार भारतीय मानवाधिकार कार्यकर्त्ता, वकील और पत्रकार जासूसी का शिकार हुए हैं।

संदर्भ:

पेगासस स्पाइवेयर को विकसित करने वाली कंपनी एनओएस NOS ने कहा है कि वह अपनी सेवाएँ केवल सरकारों तथा उनकी एजेंसियों को बेचती है।

भारत में निगरानी तंत्र:

  • भारत में इस प्रकार की निगरानी करने हेतु भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 (Indian Telegraph Act, 1885) तथा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) प्रमुख कानूनी प्रावधान हैं।
  • भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 कॉल अवरोधन (Interception of Calls) तथा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 डेटा अवरोधन (Interception of Data) से संबंधित है।
  • इन दोंनों अधिनियमों के तहत केवल सरकार को कुछ परिस्थितियों में निगरानी करने की अनुमति है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 43 और 66 द्वारा क्रमशः सिविल और आपराधिक डेटा चोरी तथा हैकिंग को प्रतिबंधित किया गया है।
  • धारा 66 (B) चुराए गए कंप्यूटर संसाधन तथा इसके संचार को गलत उद्देश्य से ग्रहण करने पर दंड का प्रावधान करती है।

निगरानी कानूनों की व्यापकता:

  • वर्ष 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम में प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों की कमी बताते हुए कुछ दिशा-निर्देश दिये, जिन्हें वर्ष 2007 में नियमों में संहिताबद्ध किया गया था। इसमें एक विशिष्ट नियम शामिल किया गया कि संचार के अवरोधन पर आदेश केवल गृह मंत्रालय के सचिव द्वारा जारी किये जाएंगे।
  • अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में (जस्टिस के.एस. पुत्तास्वामी (सेवानिवृत्त) और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एंड अदर्स) सर्वसम्मति से निजता के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत मौलिक अधिकार के रूप में घोषित किया।
  • वर्ष 2018 के गृह मंत्रालय के आदेश के अनुसार, 10 केंद्रीय एजेंसियों को यह अधिकार मिला है कि वे किसी भी कंप्यूटर संसाधन में तैयार, पारेषित, प्राप्त या भंडारित किसी भी प्रकार की सूचना की जाँच, सूचना को इंटरसेप्ट, सूचना की निगरानी और इसे डिक्रिप्ट कर सकती हैं। इन 10 केंद्रीय एजेंसियों में इंटेलिजेंस ब्यूरो, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, राजस्व आसूचना निदेशालय, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो, नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी, रॉ, सिग्नल इंटेलिजेंस निदेशालय (केवल जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर और असम के सेवा क्षेत्रों के लिये) तथा पुलिस आयुक्त, दिल्ली शामिल हैं।
  • केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश के बाद सरकार की आलोचना की गई कि सरकार एक 'निगरानी राज्य' (surveillance state) का निर्माण कर रही है तथा इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है।

जस्टिस बी.एन. श्रीकृष्णा समिति

(Justice B.N. Shrikrishna Committee):

  • वर्ष 2017 में सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश बी.एन. श्रीकृष्णा की अध्यक्षता में डेटा सुरक्षा पर एक उच्च स्तरीय समिति गठित की थी।
  • इस समिति ने वर्ष 2018 में एक डेटा संरक्षण कानून का मसौदा पेश किया, हालाँकि कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह मसौदा निगरानी कानून संबंधी सुधारों को पर्याप्त रूप से लागू नहीं करता है।

सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000

(Information Technology Act, 2000)

सूचना प्रौद्योगिकी कानून (IT Act), 2000 को इलेक्‍ट्रोनिक लेन-देन को प्रोत्‍साहित करने, ई-कॉमर्स और ई-ट्रांजेक्‍शन के लिये कानूनी मान्‍यता प्रदान करने, ई-शासन को बढ़ावा देने, कम्‍प्‍यूटर आधारित अपराधों को रोकने तथा सुरक्षा संबंधी कार्य प्रणाली और प्रक्रियाएँ सुनिश्चित करने के लिये अमल में लाया गया था। यह कानून 17 अक्‍तूबर, 2000 को लागू किया गया।

भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885

(Indian Telegraph Act, 1885)

  • भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम काफी पुराना है।
  • यह कानून एक अक्तूबर 1885 को लागू किया गया था हालांकि इसमें समय-समय पर संशोधन होते रहे हैं।
  • भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 के तहत केंद्र सरकार या राज्य सरकार को आपातकाल में या लोक-सुरक्षा के हित में फोन संदेश को प्रतिबंधित करने एवं उसे टेप करने तथा उसकी निगरानी का अधिकार हासिल है।

स्रोत-द हिंदू

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