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भारतीय राजनीति

अनुदान की अनुपूरक मांग

  • 17 Mar 2022
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विनियोग अधिनियम, अनुच्छेद-115 और 116, संसद की लोक लेखा समिति, विभिन्न प्रकार के अनुदान।

मेन्स के लिये:

अनुदान की अनुपूरक मांग और संवैधानिक प्रावधान।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने लोकसभा में अनुदान की अनुपूरक मांगों का तीसरा बैच पेश किया है।

अनुदान की अनुपूरक मांग क्या है?

  • इस अनुदान की आवश्यकता तब होती है जब संसद द्वारा वर्तमान वित्त वर्ष के लिये किसी विशेष सेवा हेतु विनियोग अधिनियम (Appropriation Act) के माध्यम से अधिकृत राशि अपर्याप्त पाई जाती है।
  • यह अनुदान वित्तीय वर्ष की समाप्ति से पहले संसद द्वारा प्रस्तुत और पारित किया जाता है।

अनुदान के अन्य प्रकार:

  • अतिरिक्त अनुदान (Additional Grant):  यह अनुदान उस समय प्रदान किया जाता है जब सरकार को उस वर्ष के वित्तीय विवरण में परिकल्पित/अनुध्यात सेवाओं के अतिरिक्त किसी नई सेवा के लिये धन की आवश्यकता होती है।
  • अधिक अनुदान (Excess Grant): यह तब प्रदान किया जाता है जब किसी सेवा पर उस वित्तीय वर्ष में निर्धारित (उस वर्ष में संबंधित सेवा के लिये) या अनुदान किये गए धन से अधिक व्यय हो जाता है। इस पर लोकसभा द्वारा वित्तीय वर्ष खत्म होने के बाद मतदान किया जाता है। मतदान के लिये लोकसभा में इस अनुदान की मांग प्रस्तुत करने से पहले उसे संसद की लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee) द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिये। 
  • प्रत्यानुदान (Vote of Credit): जब किसी सेवा के अनिश्चित स्वरूप के कारण उसकी मांग को बजट में उस प्रकार नहीं रखा जा सकता जिस प्रकार से सामान्यतया बजट में अन्य मांगों को रखा जाता है, तो ऐसी मांगों की पूर्ति के लिये प्रत्यानुदान प्रदान किया जाता है। 
    • अत: यह लोकसभा द्वारा कार्यपालिका को दिये गए ब्लैंक चेक के समान है।
  • अपवादानुदान (Exceptional Grant): यह एक विशेष उद्देश्य के लिये प्रदान किया जाता है तथा यह किसी भी वित्तीय वर्ष की वर्तमान सेवा का हिस्सा नहीं होता है।
  • सांकेतिक अनुदान (Token Grant): यह अनुदान तब जारी किया जाता है जब पहले से प्रस्तावित किसी सेवा के अतिरिक्त नई सेवा के लिये धन की आवश्यकता होती है। 
    • इस सांकेतिक राशि की मांग (1 रुपए) को लोकसभा के समक्ष वोट के लिये प्रस्तुत किया जाता है और यदि लोकसभा इस मांग को स्वीकार करती है तो राशि उपलब्ध करा दी जाती है।
    • धन के पुनर्विनियोजन (Reappropriation) में धन का हस्तांतरण शामिल होता है तथा मांग किसी अतिरिक्त व्यय से संबंधित नहीं होती है।

संबंधित संवैधानिक प्रावधान:

  • अनुच्छेद 115 अनुपूरक, अतिरिक्त या अधिक अनुदान से संबंधित है।
  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-116 लेखानुदान, प्रत्यानुदान और अपवादानुदान के निर्धारण से संबंधित है।
  • अनुपूरक, अतिरिक्त, अधिक और असाधारण अनुदान तथा वोट ऑफ क्रेडिट को उसी प्रक्रिया द्वारा विनियमित किया जाता है जैसे बजट (Budget) को किया जाता है।

विगत वर्षों के प्रश्न 

प्रश्न: भारत में सार्वजनिक वित्त पर संसदीय नियंत्रण की निम्नलिखित में से कौन सी विधियाँ हैं? (2012)

  1. संसद के समक्ष वार्षिक वित्तीय विवरण प्रस्तुत करना।
  2. विनियोग विधेयक पारित होने के बाद ही भारत की संचित निधि से धन की निकासी
  3. अनुपूरक अनुदान और लेखानुदान के प्रावधान।
  4. संसदीय बजट कार्यालय द्वारा व्यापक आर्थिक पूर्वानुमानों और व्यय के विरुद्ध सरकार के कार्यक्रम की आवधिक या कम-से-कम मध्य-वर्ष की समीक्षा करना।
  5. संसद में वित्त विधेयक पेश करना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2, 3 और 5
(b) केवल 1, 2 और 4
(c) केवल 3, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (a)


निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)

  1. राज्यसभा के पास धन विधेयक को अस्वीकार करने या संशोधन करने का कोई अधिकार नहीं है।
  2. राज्यसभा अनुदान की मांगों पर मतदान नहीं कर सकती है।
  3. राज्यसभा वार्षिक वित्तीय विवरण पर चर्चा नहीं कर सकती है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 1 और 2 
(c) केवल 2 और  3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

स्रोत: द हिंदू  

डेली अपडेट्स


भारतीय राजनीति

अनुदान की अनुपूरक मांग

  • 22 Mar 2021
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकसभा (Lok Sabha) ने वर्ष 2020-2021 के लिये अनुदान की अनुपूरक मांग (Supplementary Demand for Grant) के दूसरे भाग को पारित कर दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • अनुदान की अनुपूरक मांग के विषय में: इस अनुदान की आवश्यकता तब होती है जब संसद द्वारा वर्तमान वित्त वर्ष के लिये किसी विशेष सेवा हेतु विनियोग अधिनियम (Appropriation Act) के माध्यम से अधिकृत राशि अपर्याप्त पाई जाती है।
  • यह अनुदान वित्तीय वर्ष की समाप्ति से पहले संसद द्वारा प्रस्तुत और पारित किया जाता है।
  • संवैधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान के अनुच्छेद-115 के अंतर्गत अतिरिक्त या अधिक अनुदान (Additional or Excess Grants) के साथ अनुपूरक अनुदान का प्रावधान किया गया है। 

अन्य अनुदान:

  • अतिरिक्त अनुदान (Additional Grant):  यह अनुदान उस समय प्रदान किया जाता है जब सरकार को उस वर्ष के वित्तीय विवरण में परिकल्पित/अनुध्यात सेवाओं के अतिरिक्त किसी नई सेवा के लिये धन की आवश्यकता होती है।
  • अधिक अनुदान (Excess Grant): यह तब प्रदान किया जाता है जब किसी सेवा पर उस वित्तीय वर्ष में निर्धारित (उस वर्ष में संबंधित सेवा के लिये) या अनुदान किये गए धन से अधिक व्यय हो जाता है। इस पर लोकसभा द्वारा वित्तीय वर्ष खत्म होने के बाद मतदान किया जाता है। मतदान के लिये  लोकसभा में इस अनुदान की मांग प्रस्तुत करने से पहले उसे संसद की लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee) द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिये।
  • प्रत्यानुदान (Vote of Credit): जब किसी सेवा के अनिश्चित स्वरूप के कारण उसकी मांग को बजट में इस प्रकार नहीं रखा जा सकता जिस प्रकार सामान्यतया बजट में अन्य मांगों को रखा जाता है, तो ऐसी मांगों की पूर्ति के लिये प्रत्यानुदान दिया जाता है। 
  • अपवादानुदान (Exceptional Grant): यह किसी विशेष उद्देश्य के लिये प्रदान किया जाता है। 
  • सांकेतिक अनुदान (Token Grant): यह अनुदान तब जारी किया जाता है जब पहले से प्रस्तावित किसी सेवा के अतिरिक्त नई सेवा के लिये धन की आवश्यकता होती है। इस सांकेतिक राशि की मांग को लोकसभा के समक्ष वोट के लिये प्रस्तुत किया जाता है और यदि लोकसभा इस मांग को स्वीकार कर देती है तो राशि उपलब्ध करा दी जाती है।
    • धन के पुनर्विनियोजन (Reappropriation) में एक सिर से दूसरे तक धन का हस्तांतरण शामिल है। यह मांग किसी अतिरिक्त व्यय से संबंधित नहीं होती है।
  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-116 लेखानुदान, प्रत्यानुदान और अपवादानुदान का निर्धारण से संबंधित है।
  • अनुपूरक, अतिरिक्त, अधिक और असाधारण अनुदान तथा वोट ऑफ क्रेडिट को उसी प्रक्रिया द्वारा विनियमित किया जाता है जैसे बजट (Budget) को किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू

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