दृष्टि आईएएस अब इंदौर में भी! अधिक जानकारी के लिये संपर्क करें |   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भूगोल

भारतीय बाँधों की स्थिति

  • 10 Jan 2023
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

UNU-INWEH, बाँध, जलवायु परिवर्तन

मेन्स के लिये:

बाँध सुरक्षा के मुद्दे और संबंधित पहल

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र के एक नए अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2050 तक भारत के लगभग 3,700 बाँधों की कुल भंडारण क्षमता में 26% की कमी आ जाएगी, जो तलछट के संचय के कारण भविष्य में जल सुरक्षा, सिंचाई और बिजली उत्पादन को कमज़ोर कर सकता है।

  • यह अध्ययन जल, पर्यावरण और स्वास्थ्य पर संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय संस्थान (United Nations University Institute on Water, Environment and Health- UNU-INWEH) द्वारा आयोजित किया गया था, जिसे जल पर संयुक्त राष्ट्र के थिंक टैंक के रूप में भी जाना जाता है।

प्रमुख बिंदु

  • तलछट पहले ही दुनिया भर में लगभग 50,000 प्रमुख बाँधों में उनकी संपूर्ण प्रारंभिक भंडारण क्षमता को 13-19% तक कम कर चुके हैं।
  • यह दर्शाता है कि 150 देशों के 47,403 बड़े बाँधों में 6,316 बिलियन क्यूबिक मीटर प्रारंभिक वैश्विक भंडारण क्षमता घटकर 4,665 बिलियन क्यूबिक मीटर हो जाएगा, जिससे वर्ष 2050 तक भंडारण में 26% की हानि होगी।
    • 1,650 बिलियन क्यूबिक मीटर भंडारण क्षमता की कमी प्रमुख रूप से भारत, चीन, इंडोनेशिया, फ्राँस और कनाडा के वार्षिक जल उपयोग के बराबर है।
  • वर्ष 2022 में एशिया-प्रशांत क्षेत्र जो कि दुनिया का सबसे भारी बाँध वाला क्षेत्र है, की प्रारंभिक बाँध भंडारण क्षमता में 13% की कमी आने का अनुमान है। 
    • इस सदी के मध्य तक इसकी आरंभिक भंडारण क्षमता में लगभग एक-चौथाई (23%) की कमी हो जाएगी।
    • इस क्षेत्र में दुनिया की 60% आबादी रहती है और जल एवं खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने के लिये जल भंडारण महत्त्वपूर्ण है।
  • चीन, दुनिया के सबसे भारी बाँध वाले देश की बाँध भंडारण क्षमता लगभग 10% कम हो चुकी है तथा  वर्ष 2050 तक इसमें और 10% की कमी हो जाएगी।

भारतीय बाँधों की स्थिति: 

  • परिचय: 
    • बड़े बाँध बनाने के संदर्भ में भारत का विश्व में तीसरा स्थान है।
    • अब तक बनाए गए 5,200 से अधिक बड़े बाँधों में से लगभग 1,100 बड़े बाँध पहले ही 50 साल पुराने हो चुके हैं और कुछ 120 साल से भी पुराने हैं।
      • 2050 तक ऐसे बाँधों की संख्या बढ़कर 4,400 हो जाएगी अर्थात् देश के 80% बड़े बाँधों के अप्रचलित होने की संभावना है क्योंकि वे 50 वर्ष से लेकर 150 वर्षो से भी अधिक पुराने हो चुके होंगे।
      • सैकड़ों हज़ारों मध्यम और छोटे बाँधों की स्थिति और भी खतरनाक है क्योंकि उनकी शेल्फ लाइफ बड़े बाँधों की तुलना में और भी कम है।
    • उदाहरण: कृष्णा राजा सागर बाँध 1931 में बना था और अब 90 साल पुराना है। इसी तरह मेट्टूर बाँध 1934 में बना था और अब 87 साल पुराना है। ये दोनों बाँध पानी की कमी वाले कावेरी नदी बेसिन में स्थित हैं।
  • महत्त्व:
    • बाँध ताज़ा पानी की आपूर्ति, सिंचाई के लिये पानी का भंडारण, पनबिजली उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण और परिवहन के लिये बेहतर नेविगेशन सहित कई लाभ प्रदान करते हैं।

भारतीय बाँधों के साथ समस्याएँ:

  • वर्षा पद्धति के अनुसार निर्मित:
    • भारतीय बाँध बहुत पुराने हैं और पिछले दशकों के वर्षा पैटर्न के अनुसार बनाए गए हैं। हाल के वर्षों में अनियमित बारिश ने उन्हें कमज़ोर बना दिया है।
    • लेकिन सरकार बाँधों को वर्षा अलर्ट, बाढ़ अलर्ट जैसी सूचना प्रणाली से लैस कर रही है और हर तरह की दुर्घटना से बचने के लिये आपातकालीन कार्य योजना तैयार कर रही है।
  • घटती भंडारण क्षमता:
    • बाँध की आयु जैसे-जैसे बढ़ती है समय के साथ मृदा और तलछट का जमाव जलाशय में होता रहता है, नतीजतन, यह बताना संभव नहीं है कि भंडारण क्षमता वैसी ही है जैसी वर्ष 1900 और 1950 के दशक में थी।
    • भारतीय जलाशयों की भंडारण क्षमता अनुमान से अधिक तेज़ी से घट रही  है। 
  • जलवायु परिवर्तन:
    • जलवायु परिवर्तन ने भविष्य में पानी की उपलब्धता में अनिश्चितता तथा परिवर्तनशीलता को और बढ़ाया है।

बाँध निर्माण के प्रभाव: 

  • पर्यावरणीय प्रभाव:

बाँध नदियों के प्रवाह को बाधित कर सकते हैं और अनुप्रवाह पारिस्थितिकी को बदल सकते हैं, जो नदी के प्राकृतिक प्रवाह पर निर्भर पौधों और जानवरों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। इसके अतिरिक्त बाँध मिट्टी के कटाव, अवसादन और मैदानी इलाकों में बाढ़ का कारण बन सकते हैं।

समुदायों का विस्थापन:

बाँधों के निर्माण से अक्सर स्थानीय समुदायों का विस्थापन होता है।

इसके परिणामस्वरूप घरों, भूमि एवं आजीविका का नुकसान हो सकता है, जो स्थानीय लोगों, किसानों और मछुआरों जैसे हाशिये वाले समुदायों हेतु विशेष रूप से विनाशकारी हो सकता है। उदाहरण:  

  • सरदार सरोवर बाँध के अप्रवाही जल (Back Water) से लगभग 1,500 लोग विस्थापित और प्रभावित हुए थे।
  • सामाजिक-आर्थिक प्रभाव:
    • बाँधों के निर्माण से स्थानीय समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। उदाहरण के लिये यह स्थानीय मछुआरों और खेती की गतिविधियों को बाधित कर सकता है तथा कई लोगों के लिये आय का नुकसान कर सकता है।
  • लागत:
    • बाँधों का निर्माण एक महँगी प्रक्रिया है और यह राज्य तथा केंद्र सरकार दोनों के बजट पर दबाव डाल सकती है।
  • पारदर्शिता:
    • निर्णय लेने की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी से बाँधों और उन्हें संचालित करने वाले संगठनों पर जनता के विश्वास की कमी आ सकती है।

उठाए गए संबंधित कदम:

  • भारतीय संविधान की 7वीं अनुसूची के अंतर्गत जल और जल भंडारण राज्य का विषय है।
    • इसलिये बाँध सुरक्षा कानून बनाना राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी है।
    • हालाँकि केंद्र सरकार कुछ स्थितियों में बाँधों को नियंत्रित करने वाले कानून बना सकती है।
  • राष्ट्रीय स्तर पर केंद्रीय जल आयोग (CWC) बाँधों से संबंधित सभी मामलों पर तकनीकी विशेषज्ञता और मार्गदर्शन प्रदान करता है।
    • इसे बाँध सुरक्षा में अनुसंधान, बाँध डिज़ाइन और संचालन के लिये मानक विकसित करने का काम सौंपा गया है तथा यह बाँध निर्माण परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंज़ूरी देने की प्रक्रिया में शामिल है।
  • बाँध सुरक्षा अधिनियम, 2021 का उद्देश्य देश भर में सभी निर्दिष्ट  बाँधों की निगरानी, निरीक्षण, संचालन और रखरखाव करना है।
    • यह अधिनियम देश के सभी निर्दिष्ट बाँधों पर लागू होता है, अर्थात् उन बाँधों की ऊँचाई 15 मीटर से अधिक और 10 मीटर से 15 मीटर के बीच होती है, जिनमें कुछ निश्चित डिज़ाइन एवं संरचनात्मक स्थितियाँ होती हैं। 

आगे की राह

  • जवाबदेही और पारदर्शिता, साथ-ही-साथ वास्तविक हितधारकों की राय पर विचार: वे लोग जो बाँधों के निचले क्षेत्रों में रहते हैं और किसी भी प्रकार की स्थिति में सबसे अधिक ज़ोखिम में हैं, इसलिये बाँध सुरक्षा को बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है।
  • परिचालन सुरक्षा के संदर्भ में एक बाँध को गाद और वर्षा पैटर्न जैसे पर्यावरणीय परिवर्तनों के आधार पर नियमित अंतराल पर अपग्रेड करने की आवश्यकता होती है क्योंकि इससे बाँध में आने वाली बाढ़ की आवृत्ति और तीव्रता के साथ-साथ बाँध उत्प्लव मार्ग (Spillway) क्षमता प्राभावित होती है।
    • नियम वक्र (Rule Curve) की भी सार्वजनिक उपलब्धता होना आवश्यक है ताकि लोग इसके सही कामकाज पर नज़र रख सकें।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. मान लीजिये कि भारत सरकार एक ऐसी पर्वतीय घाटी में एक बाँध का निर्माण करने की सोच रही है, जो जंगलों से घिरी है और जहाँ नृजातीय समुदाय रहते हैं, अप्रत्याशित आकस्मिकताओं से निपटने के लिये सरकार को कौन-सी तर्कसंगत नीति का सहारा लेना चाहिये? (मुख्य परीक्षा, 2018) 

स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow