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शासन व्यवस्था

स्थायी समिति ने कानूनी शिक्षा सुधारों का आह्वान किया

  • 23 Feb 2024
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संसदीय स्थायी समिति, बार काउंसिल ऑफ इंडिया, राष्ट्रीय कानूनी शिक्षा और अनुसंधान परिषद (प्रस्तावित), अधिवक्ता (संशोधन) अधिनियम, 2023

मेन्स के लिये:

भारत में कानूनी शिक्षा परिदृश्य की प्रमुख सिफारिशें।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति ने हाल ही में भारत में कानूनी शिक्षा पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें महत्त्वपूर्ण सिफारिशें प्रस्तावित की गईं।

समिति की प्रमुख सिफारिशें क्या हैं? 

  • कानूनी शिक्षा विनियमन का पुनर्गठन: बार काउंसिल ऑफ इंडिया की नियामक शक्तियों को सीमित करते हुए, कानूनी शिक्षा के गैर-मुकदमेबाज़ी पहलुओं की देखरेख के लिये राष्ट्रीय कानूनी शिक्षा और अनुसंधान परिषद (NCLER) के निर्माण का प्रस्ताव रखा गया।
  • शैक्षणिक संसाधनों को बढ़ाना: कानून स्कूलों के भीतर अनुसंधान क्षमताओं को बढ़ाने के लिये शीर्ष शोधकर्त्ताओं को संकाय के रूप में भर्ती करना।
    • लॉ स्कूलों को समर्थन देने के लिये राज्य वित्त पोषण में वृद्धि की आवश्यकता को स्वीकार करना।
  • वैश्विक पाठ्यक्रम का एकीकरण: छात्रों और संकाय दोनों के लिये अंतर्राष्ट्रीय विनिमय कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिये भारतीय कानून स्कूलों में वैश्विक पाठ्यक्रम को शामिल करना।
    • व्यापक कानूनी शिक्षा के लिये छात्रों को विविध कानूनी प्रणालियों से परिचित कराना।
  • अंतःविषय विषयों का अनिवार्य समावेश: यह स्नातक पाठ्यक्रमों में कानून और चिकित्सा, खेल कानून, ऊर्जा कानून, तकनीकी कानून/साइबर कानून, वाणिज्यिक तथा निवेश मध्यस्थता, प्रतिभूति कानून, दूरसंचार कानून एवं बैंकिंग कानून जैसे विषयों को अनिवार्य रूप से शामिल करने का सुझाव देता है।
    • व्यापक पाठ्यक्रम विकास के लिये सरकारों, विश्वविद्यालयों और BCI के बीच सहयोग आवश्यक है।
  • व्यावहारिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों पर बल देना: विश्वविद्यालयों को मूट कोर्ट (न्यायालय की प्रतिकृति) प्रतियोगिताओं जैसे व्यावहारिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों को पाठ्यक्रम में एकीकृत करने के लिये BCI के साथ सहयोग करना चाहिये।
    • ये कार्यक्रम छात्रों को नकली/काल्पनिक न्यायालय कक्ष सेटिंग में कानूनी सिद्धांत लागू करने, मौखिक वकालत और समीक्षात्मक/समालोचनात्मक सोच कौशल को बढ़ाने के अवसर प्रदान करते हैं।
  • कानूनी शिक्षा में गुणवत्ता आश्वासन: समिति नए कानून कॉलेजों की मान्यता में मात्रा से अधिक गुणवत्ता को प्राथमिकता देने के महत्त्व पर ज़ोर देती है। 
    • भारत में अवमानक/निम्न स्तरीय लॉ कॉलेजों के प्रसार को रोकने के लिये तत्काल उपायों की आवश्यकता है।

नोट: भारत में कानूनी शिक्षा की उत्पत्ति वैदिक युग में हुई थी, जिसमें धर्म की अवधारणा कानूनी संरचना का स्रोत थी। चोल न्याय व्यवस्था वर्तमान भारतीय न्याय व्यवस्था की अग्रदूत थी। "कानून के समक्ष सभी समान हैं" या वर्तमान ‘विधि का शासन' का सिद्धांत चोल साम्राज्य में अपनाया गया था।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया क्या है? 

  • परिचय: भारतीय बार काउंसिल को विनियमित करने और प्रतिनिधित्व करने के लिये अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत संसद द्वारा बनाई गई एक वैधानिक संस्था है।
  • विनियामक कार्य:
    • अधिवक्ताओं के लिये व्यावसायिक आचरण और शिष्टाचार के मानक निर्धारित करना।
    • अनुशासनात्मक कार्रवाइयों के लिये प्रक्रियाएँ स्थापित करना।
    • भारत में कानूनी शिक्षा के लिये मानक निर्धारित करना और योग्य कानून डिग्री को मान्यता देना।
  • अन्य दायित्व:
    • अधिवक्ताओं के अधिकारों, विशेषाधिकारों और हितों की रक्षा करना।
    • वंचितों के लिये कानूनी सहायता का आयोजन करना।
    • बार काउंसिल के सदस्यों के लिये निर्वाचन आयोजित करना।
    • राज्य बार काउंसिल द्वारा प्रेषित किसी भी संबद्ध मामले से निपटना और निपटान करना।
  • हालिया परिवर्तन:
    • वर्ष 2023 में BCI ने विदेशी वकीलों और विधि संस्थाओं को भारत में गैर-मुकदमा संबंधी गतिविधियों जैसे कॉर्पोरेट कानून तथा बौद्धिक संपदा मामलों में विधि-व्यवसाय करने की अनुमति प्रदान दी
    • उन्हें संपत्ति अंतरण अथवा स्वामित्व अन्वेषण संबंधी कार्यों से प्रतिबंधित किया गया।
      • विदेशी फर्मों में भारतीय वकीलों को समान प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है।

अधिवक्ता अधिनियम, 1961 क्या है?

  • परिचय: अधिवक्ता अधिनियम, 1961, भारतीय विधि व्यवसायियों (Legal Practitioners) से संबंधित विधि को संशोधित एवं समेकित करने तथा बार काउंसिल व एक अखिल भारतीय बार के गठन का प्रावधान करने के लिये अधिनियमित किया गया था।
    • इस अधिनियम ने विधि व्यवसायी अधिनियम, 1879 के अधिकांश प्रावधानों को प्रतिस्थापित कर दिया।
  • हालिया संशोधन: अधिवक्ता (संशोधन) अधिनियम, 2023 दलाली के मुद्दे का समाधान कर अधिवक्ता अधिनियम, 1961 को संशोधित करता है।
    • दलाल वे व्यक्ति होते हैं जो वकीलों के लिये विधि व्यवसाय सुरक्षित करने के बदले में भुगतान की मांग करते हैं।
    • संशोधित प्रावधानों के तहत उच्च न्यायालयों, ज़िला न्यायाधीशों, सत्र न्यायाधीशों, ज़िला मजिस्ट्रेटों और कुछ राजस्व अधिकारियों को अब दलालों की सूची संकलित करने तथा उसे प्रकाशित करने का अधिकार प्रदान किया गया है।
    • न्यायालय या न्यायाधीश किसी भी ऐसे व्यक्ति को न्यायालय परिसर से बाहर कर सकता है जिसका नाम दलालों की सूची में शामिल है।

एक वकील और एक अधिवक्ता में अंतर क्या हैं? 

  • वकील: वकील वह व्यक्ति होता है जो पेशेवर रूप से योग्य होता है साथ ही वह भारत के किसी प्रतिष्ठित संस्थान अथवा कॉलेज से कानून की डिग्री धारक होता है।
    • इसमें कानूनी शोधकर्त्ता, कानूनी फर्म सहयोगी, कानूनी सलाहकार आदि शामिल हो सकते हैं।
    • ज़रूरी नहीं कि उसे न्यायालय में ग्राहकों का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार हो
  • अधिवक्ता: अधिवक्ता योग्य कानूनी पेशेवर हैं जिन्होंने राज्य बार काउंसिल में नामांकन किया है और अखिल भारतीय बार परीक्षा (AIBE) उत्तीर्ण की है।
    • न्यायालय में ग्राहकों का प्रतिनिधित्व करने, उनके मामले की पैरवी करने के साथ-साथ उनकी ओर से बहस करने का अधिकार रखता है।
    • कुछ अन्य कानूनी प्रणालियों में "बैरिस्टर" के समतुल्य।
  • प्रत्येक वकील, वकील होता है, लेकिन प्रत्येक वकील अधिवक्ता नहीं होता।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)

  1. सरकारी विधि अधिकारी और विधिक फर्म अधिवक्ताओं के रूप में मान्यता प्राप्त हैं, किंतु कॉर्पोरेट वकील और पेटेंट न्यायवादी अधिवक्ता की मान्यता से बाहर रखे गए हैं।
  2.  विधिज्ञ परिषदों (बार काउंसिल) को विधिक शिक्षा और विधि विश्वविद्यालयों की मान्यता के बारे में नियम अधिकथित करने की शक्ति है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)

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