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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

तस्करी विरोधी इकाईयों का गठन

  • 19 May 2017
  • 5 min read

संदर्भ
गौरतलब है कि लापता बच्चों तथा चार महीनों से अधिक समय तक न खोजे गए बच्चों की सुरक्षा के लिये अब तस्करी विरोधी इकाईयों (Anti-trafficking units) का गठन किया जाएगा|

प्रमुख बिंदु

  • अब किसी ज़िले में जाँच करने वाले अधिकारियों को लापता हुए बच्चे की सूचना तस्कर-विरोधी इकाइयों (anti-trafficking units) को देनी होगी|
  • इन इकाईयों का गठन तस्करी विरोधी विधेयक के अंतर्गत बाल तस्कर समूहों का पता लगाने के लिये किया जाएगा| ये इकाइयाँ प्रत्येक तीन माह में ऐसे मामलों की रिपोर्ट ज़िला कानूनी सेवा प्राधिकरण (district legal services authority) को भेजेंगी| यदि आवश्यकता हुई तो मामले की जाँच के लिये एक विशेषज्ञ टीम को भी नियुक्त किया जाएगा जिसका नेतृत्व उस क्षेत्र के थानाध्यक्ष (Station House Officer -SHO) करेंगे| यदि लापता हुआ बच्चा मिल जाता है तो यह सुनिश्चित करने के लिये कि बच्चे को कोई शारीरिक नुकसान तो नहीं पहुँचाया गया है, उसकी शारीरिक जाँच की जाएगी|
  • इसी स्थिति को ध्यान में रखकर ‘मानक संचालन प्रक्रियाओं’ (standard operating procedures –SOP) को जारी किया गया है| इन्हें महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा लापता हुए बच्चों को ढूंढने और पाए गए बच्चों के पुनर्वास को सुनिश्चित करने के लिये जारी किया गया है|
  • मानक संचालन प्रक्रियाओं के अनुसार, लापता बच्चों को ढूंढने का कार्य किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 2(14) के अंतर्गत किया जाएगा| इस अधिनियम में लापता हुए बच्चों को ऐसे बच्चों के रूप में परिभाषित किया गया है जिन्हें संरक्षण और देखभाल की आवश्यकता है| लापता बच्चों की खोज किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) मॉडल नियम, 2016 के नियम 92(1) के अंतर्गत की जा सकती है| गौरतलब है कि इस नियम में लापता बच्चों को ढूंढने की प्रक्रिया शामिल है|
  • मानक संचालन प्रक्रिया सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 10 मई, 2013 को ‘बचपन बचाओ आंदोलन बनाम भारत संघ’ मामले में दिये गए निर्णय का अनुसरण करती है| इस मामले में न्यायालय ने केंद्र को लापता बच्चों के मामलों का निराकरण करने के लिये दिशा-निर्देश बनाने का आदेश दिया था| गौरतलब है कि इन दिशा-निर्देशों को टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़ की सहायता से तैयार किया गया था|
  • वस्तुतः जब कोई बच्चा लापता हो जाता है तो पुलिस को ई-मेल, फोन, किसी व्यक्ति अथवा संदेश के माध्यम से उसकी गुमशुदगी की शिकायत दर्ज करानी होगी और पुलिस को इस सूचना को अपने रजिस्टर में लिखना होगा तथा जितनी जल्दी हो सके एफआईआर दर्ज करनी होगी| इसके अलावा, पुलिस को बाल कल्याण समिति अधिकारी (Child welfare committee officer) और विशेष किशोर पुलिस इकाई (special juvenile police unit) को भी इसकी सूचना देनी होगी|
  • पुलिस को लापता बच्चों के इस विवरण को लापता बच्चों के पोर्टल पर भी दर्ज कराना होगा तथा इसे मीडिया संगठनों में प्रकाशित कराना होगा| इसके अतिरिक्त, सार्वजनिक स्थानों पर भी इस सूचना का प्रसार करना होगा| ज़िले की कानूनी सेवा इकाई और सीमा सुरक्षा बल को भी इसकी सूचना दी जानी चाहिये|

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य 

  • वर्ष 2014 में अमेरिका द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में भारत को टियर-2 के देशों में शामिल किया गया है|
  • यह रिपोर्ट मानव उत्पीड़न और तस्करी की मौजूदा स्थिति को प्रदर्शित करती है|
  • 90% से अधिक तस्करी देश की सीमाओं के भीतर ही होती है, जबकि मात्र 10 फीसदी तस्करी देश से बाहर होती है|
  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुसार, भारत में प्रतिवर्ष 40,000 से अधिक बच्चे लापता होते हैं इनमें 11,000 से अधिक बच्चों की खोज नहीं हो पाती है|
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