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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

शेल कंपनियों पर सेबी की कार्रवाई का औचित्य

  • 16 Aug 2017
  • 5 min read

चर्चा में क्यों ?

  • हाल ही में सेबी ने 331 ट्रेडिंग कंपनियों को प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया था। माना यह जा रहा था कि ये कंपनियाँ शेल (मुखौटा) कंपनियों के तौर पर कार्य कर रही हैं।
  • आमतौर पर शेल कंपनी एक ऐसी कंपनी को कहा जाता है, जो कारोबार की आड़ में या कोई कारोबार न करते हुए अवैध रूप से धन या संपत्ति जमा करने, काले धन को सफेद करने और कर-चोरी के लिये इस्तेमाल की जाती है।
  • हालाँकि, इसे एक कठोर नियमाकीय कार्रवाई के रूप में देखा जा रहा है। विदित हो कि प्रतिभूति व अपीलीय न्यायाधिकरण (Securities Appellate Tribunal-SAT) का कहना है कि ‘प्रथमदृष्टया यही प्रतीत होता है कि सेबी ने बिना किसी जाँच-पड़ताल के ही यह कार्रवाई की है।
  • पिछले कुछ समस से शेल कंपनियों का मुद्दा लगातार चर्चा में बना हुआ है।

कंपनी अधिनियम में क्या ?

  • काले धन को खत्म करने के प्रयासों के तहत, आर्थिक मामलों के मंत्रालय ने पहले ही 1.62 लाख से अधिक कंपनियों का पंजीकरण रद्द कर दिया है। ये कंपनियाँ लंबे समय से व्यावसायिक गतिविधियों में भाग नहीं ले रही थीं।
  • उल्लेखनीय है कि ‘शेल कंपनी' शब्द को कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत परिभाषित नहीं किया गया है। अधिनियम यह उपबंध करता है कि किसी भी कंपनी को केवल वैध उद्देश्य के लिये ही स्थापित किया जा सकता है।
  • अगर किसी कंपनी को धोखाधड़ी या गैरकानूनी उद्देश्य के लिये बनाया गया है, तो कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 271 के तहत इन पर दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है।

वर्तमान प्रयास

  • काले धन के खिलाफ लड़ाई तेज़ करने के उद्देश्य से सरकार द्वारा कंपनी अधिनियम में संशोधन के लिये एक विधेयक पेश किया गया है।
  • इस विधेयक में, पहली बार शेयर में लाभकारी हित को परिभाषित करने का प्रस्ताव है।
  • साथ ही, किसी कंपनी में उल्लेखनीय लाभकारी हित वाले व्यक्तियों का रिकार्ड रखना अनिवार्य किया गया है।
  • ज़ाहिर है कि इससे पारदर्शिता लाने में मदद मिलेगी। दरअसल, ऐसे भी बहुत से लोग हैं जो भारत में रहते नहीं हैं पर यहाँ की किसी कंपनी में खास प्रभाव या हिस्सेदारी रखते हैं। अब ऐसे लोग परदे में नहीं रह पाएँगे।
  • इस विधेयक के अलावा, पिछले दिनों एक और अहम् कदम उठाया गया, वह यह कि पूंजी बाज़ार की निगरानी में सुधार के उपाय सुझाने के लिये सेबी ने ‘निष्पक्ष बाज़ार आचरण’ पर एक समिति गठित कर दी।

क्यों बरतनी होगी सावधानी ?

  • इसमें कोई शक नहीं है कि ये सभी प्रयास अपनी जगह सही हैं, फिर भी सरकार को कुछ सावधानियाँ बरतने की ज़रूरत है।
  • शेल कंपनी की परिभाषा को लेकर भ्रम का माहौल है। कई बड़ी कंपनियाँ सशंकित हैं कि उन्हें नाहक इस विवाद में घसीटा जा रहा है। वहीं अनेक बाज़ार विश्लेषकों का मानना है कि जिन कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए, उन्हें पहले अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाना चाहिये।
  • गौरतलब है कि सेबी ने संदिग्ध शेल कंपनियों के शेयरों में कारोबार पर पाबंदी का फैसला किया था। फिर हुआ यह कि कुछ कंपनियों ने सैट यानी प्रतिभूति व अपीलीय न्यायाधिकरण में इस मामले को चुनौती दी और सैट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया। साथ ही सैट ने इस संबंध में आगे जाँच करने को कहा है, ताकि यह पता चले कि इन्होंने प्रतिभूति-नियमों का उल्लंघन किया है या नहीं।

क्या होना चाहिये ?

  • कंपनी-पंजीयक के स्तर पर शेल या गैर-कार्यशील कंपनी की पहचान हो पाना मुश्किल है। लेकिन एकल राजस्व, परिसंपत्ति, कर्मचारी-क्षमता और अन्य परिचालन मानकों के आधार पर शेल कंपनियों की परिभाषा तय की जा सकती है, साथ ही समय-समय पर छानबीन भी, ताकि कंपनी के नाम पर फर्जीवाड़े का सिलसिला बंद हो।
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