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सर्वोच्च न्यायालय ने भारत के कुष्ठ रोग मुक्त होने पर उठाया सवाल

  • 15 Sep 2018

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व में एक न्यायपीठ ने अपने 22-पन्नों के फैसले में बताया कि हालाँकि 31 दिसंबर, 2005 को देश को कुष्ठ रोग मुक्त घोषित किया गया था, लेकिन वास्तविकता "पूरी तरह से अलग" है।

प्रमुख बिंदु

  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि भारत ने कुष्ठ रोग को "वास्तविकता से कम करके आँका” और 18 वर्षों तक इलाज योग्य इस बीमारी को खत्म करने के लिये उल्लिखित धनराशि का उपयोग अन्य कार्यों हेतु किया है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय कुष्ठ रोग उन्मूलन कार्यक्रम (NLEP) की प्रगति रिपोर्टों को संदर्भित किया है जो यह दर्शाती हैं कि देश के कुल 642 ज़िलों में से केवल 543 ज़िलों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अपेक्षित कुष्ठ संबंधी लक्ष्य को प्राप्त किया है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के लक्ष्य के अनुसार, कुष्ठ रोग के प्रसार की दर 10000 लोगों पर एक मामले से भी कम होनी चाहिये।

पीड़ा अभी भी जारी है

  • मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने फैसले में लिखा, “कुष्ठ रोग के मामलों को कम करके आँकने और कुष्ठ रोग उन्मूलन की घोषणा के परिणामस्वरूप इसका सामान्य स्वास्थ्य सेवाओं के साथ एकीकरण हुआ है जिस कारण इससे संबंधित निधि का उपयोग अन्य कार्यों हेतु किया जाने लगा अन्यथा वह निधि कुष्ठ रोग को खत्म करने के लिये समर्पित होती।"
  • इस दौरान मरीज़ और उनके परिवार कुष्ठ रोग और इसके कलंक से पीड़ित रहे। उन्हें भोजन के मौलिक अधिकार से भी वंचित किया जाता है। उन्हें अंत्योदय अन्न योजना (एएई) जैसी विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिये बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे) कार्ड जारी नहीं किये गए हैं। वे आवास, बुनियादी नागरिक सुविधाओं, पर्याप्त स्वच्छता सुविधाओं और पुनर्वास कार्यक्रमों का लाभ प्राप्त करने से वंचित हैं।
  • न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और डी.वाई. चंद्रचूड़ के साथ मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की इस पीठ ने कहा कि “वर्तमान में कुष्ठ रोग से पीड़ित अधिकांश जनसंख्या समाज में एक हाशिये पर खड़े वर्ग के रूप में रह रही है, यहाँ तक कि वे मूल मानव अधिकारों से भी वंचित हैं। यह स्पष्ट रूप से समानता के मौलिक अधिकार और गरिमा के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन करता है।”

कुष्ठ रोग क्या है?

  • कुष्ठ रोग, दीर्घकालिक संक्रामक रोग है, जो कि बेसिलस, माइकोबैक्टेरियम लेप्री (एम. लेप्री) के कारण होता है। संक्रमण होने के बाद औसतन पाँच साल की लंबी अवधि के पश्चात् सामान्यत: रोग के लक्षण दिखाई देते हैं, क्योंकि एम. लेप्री धीरे-धीरे बढ़ता है। यह मुख्यत: मानव त्वचा, ऊपरी श्वसन पथ की श्लेष्मिका, परिधीय तंत्रिकाओं, आँखों और शरीर के कुछ अन्य हिस्सों को प्रभावित करता है।
  • रोग को पॉसीबैसीलरी (PB) या मल्टीबैसीलरी (MB) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जो कि बैसीलरी लोड पर निर्भर करता है। PB कुष्ठ रोग एक हल्का रोग है, जिसे कुछ (अधिकतम पाँच) त्वचा के घावों (पीला या लाल) द्वारा पहचाना जाता है। जबकि MB कई (अधिक-से-अधिक) त्वचा के घावों, नोड्यूल, प्लाक/प्लैक, मोटी त्वचा या त्वचा संक्रमण से जुड़ा है।

राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम (NLEP)

  • वर्ष 1955 में सरकार ने राष्ट्रीय कुष्ठ रोग नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया था। वर्ष 1982 से मल्टी ड्रग थेरेपी की शुरुआत के बाद, देश से कुष्ठ रोग के उन्मूलन के उद्देश्य से वर्ष 1983 में इसे राष्ट्रीय कुष्ठ रोग उन्मूलन कार्यक्रम (NLEP) के रूप में बदल दिया गया।
  • वर्ष 2005 में हालाँकि राष्ट्रीय स्तर पर कुष्ठ रोग का उन्मूलन किया गया; लेकिन अब भी विश्व के लगभग 57% कुष्ठ रोगी भारत में रहते हैं। कुल 682 ज़िलों में से 554 ज़िलों (81.23%) ने मार्च 2017 तक कुष्ठ रोग उन्मूलन का लक्ष्य प्राप्त कर लिया है।
  • रोग के मामले की शीघ्र जानकारी और उपचार, रोग उन्मूलन की कुंजी है, क्योंकि समुदाय में जल्दी कुष्ठ रोगियों का पता लगाने से संक्रमण के स्रोतों में कमी आएगी और रोग का संचारण भी रुकेगा। ‘आशा कार्यकत्री’, इस रोग के मामलों का पता लगाने में मदद कर रही है और सामुदायिक स्तर पर संपूर्ण उपचार भी सुनिश्चित कर रही है; इसके लिये उसे प्रोत्साहन राशि का भुगतान किया जा रहा है।
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