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कृषि

सेफरॉन बाउल प्रोजेक्ट

  • 04 Feb 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

केसर, केसर बाउल परियोजना, प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग और पहुंँच के लिये उत्तर-पूर्व केंद्र, केसर के लिये अन्य सरकारी पहल।

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप, केसर की खेती और इसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केसर बाउल परियोजना/सेफरॉन बाउल प्रोजेक्ट (Saffron Bowl Project) के तहत नॉर्थ ईस्ट सेंटर फॉर टेक्नोलॉजी एप्लीकेशन एंड रीच (NECTAR) ने केसर की खेती के लिये अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में कुछ स्थानों की पहचान की है।

  • पूरे प्रोजेक्ट की कुल लागत अरुणाचल प्रदेश और मेघालय के लिये 17.68 लाख रूपए निर्धरित की गई है।
  • NECTAR विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के तहत एक स्वायत्त निकाय है जिसने भारत के उत्तर-पूर्व क्षेत्र में समान गुणवत्ता और उच्च मात्रा के साथ केसर उगाने की व्यवहार्यता का पता लगाने हेतु एक पायलट परियोजना का समर्थन किया है।

उत्तर-पूर्व में केसर की खेती के विस्तार का कारण:

  • प्रारंभ में केसर का उत्पादन कश्मीर के बहुत कम और विशिष्ट क्षेत्रों तक ही सीमित था।
  • हालांँकि राष्ट्रीय केसर मिशन के तहत केसर का उत्पादन बढ़ाने हेतु कई उपाय किये गए, लेकिन उत्पादन हेतु क्षेत्र बहुत सीमित था, साथ ही केसर उगाने वाले क्षेत्रों में पर्याप्त बोरवेल सुविधा का अभाव था।
  • भारत में प्रतिवर्ष करीब 6 से 7 टन केसर की खेती होती है, जबकि देश में केसर की मांग 100 टन है।
  • केसर की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी विभाग के माध्यम से पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों (प्रारंभ में सिक्किम और बाद में मेघालय एवं अरुणाचल प्रदेश) में इसकी खेती के विस्तार पर विचार कर रहा है।
  • कश्मीर और पूर्वोत्तर के कुछ क्षेत्रों के बीच जलवायु एवं भौगोलिक परिस्थितियों में भारी समानता है।
    • अरुणाचल प्रदेश में फूलों के साथ जैविक केसर की अच्छी खेती होती है। मेघालय में चेरापूंजी, मौसमाई और लालिंगटॉप स्थलों पर सैंपल के तौर पर वृक्षारोपण किया गया है।
  • यह कृषि में भी विविधता लाएगा और उत्तर-पूर्व में किसानों को नए अवसर प्रदान करेगा।

केसर और इसका महत्त्व:

  • केसर:
    • केसर एक पौधा है जिसके सूखे वर्तिकाग्र (फूल के धागे जैसे हिस्से) का उपयोग केसर का मसाला बनाने के लिये किया जाता है।
    • माना जाता है कि पहली शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास मध्य एशियाई प्रवासियों द्वारा कश्मीर में केसर की खेती शुरू की गई थी।
    • यह बहुत कीमती और महँगा उत्पाद है।
    • प्राचीन संस्कृत साहित्य में केसर को 'बहुकम (Bahukam)’ कहा गया है।
    • केसर की खेती विशेष प्रकार की ‘करेवा’ (Karewa)’ मिट्टी में की जाती है।
  • महत्त्व:
    • इसका उपयोग स्वास्थ्य, सौंदर्य प्रसाधन और औषधीय प्रयोजनों के लिये किया जाता है।
    • इसका उपयोग पारंपरिक रूप से कश्मीरी व्यंजनों में भी किया जाता है जो इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्त्व करता है।

केसर की कृषि हेतु मौसम एवं आवश्यक दशाएँ:

  • मौसम:
    • भारत में केसर की खेती जून और जुलाई के महीनों के दौरान तथा कुछ स्थानों पर अगस्त एवं सितंबर में की जाती है।
    • इसमें अक्तूबर माह में फूल आना शुरू हो जाता है।
  • दशाएँ:
    • ऊँचाई: समुद्र तल से 2000 मीटर की ऊँचाई केसर की खेती के लिये अनुकूल होती है।
    • मृदा: इसे अलग-अलग प्रकार की मृदा में उगाया जा सकता है लेकिन 6 और 8 pH मान वाली Calcareous (वह मिट्टी जिसमें प्रचुर मात्रा में कैल्शियम कार्बोनेट होता है) मिट्टी में केसर का अच्छा उत्पादन होता है। 
    • जलवायु: केसर की खेती के लिये एक उपयुक्त गर्मी और सर्दियों वाली जलवायु की आवश्यकता होती है, जिसमें गर्मियों में तापमान 35 या 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक न हो तथा सर्दियों में लगभग -15  या -20 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता हो।
    • वर्षा: इसके लिये पर्याप्त वर्षा की आवश्यकता होती है यानी प्रतिवर्ष 1000-1500 मिमी. है।

भारत में केसर उत्पादन क्षेत्र:

  • केसर का उत्पादन लंबे समय तक जम्मू और कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश में एक सीमित भौगोलिक क्षेत्र तक सीमित रहा है।
  • पंपोर क्षेत्र जिसे आमतौर पर कश्मीर में ‘केसर के कटोरे’ के रूप में जाना जाता है, केसर उत्पादन में मुख्य योगदानकर्त्ता है।
    • कश्मीर का पंपोर केसर, भारत में विश्व स्तर पर महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणालियों (Globally Important Agricultural Heritage Systems) के मान्यता प्राप्त स्थलों में से एक है।
  • केसर का उत्पादन करने वाले अन्य ज़िले बडगाम, श्रीनगर और किश्तवाड़ हैं।
  • हाल ही में कश्मीरी केसर को भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग का दर्जा मिला है।

अन्य पहल:

  • केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2010 में नलकूपों और फव्वारा सिंचाई सुविधाओं के निर्माण में सहायता प्रदान करने के लिये राष्ट्रीय केसर मिशन को मंज़ूरी दी गई थी, जो केसर उत्पादन के क्षेत्र में बेहतर फसल प्राप्त करने में मदद करेगा।
  • हाल ही में हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (CSIR-Institute of Himalayan Bioresource Technology) और हिमाचल प्रदेश सरकार ने संयुक्त रूप से दो मसालों (केसर और हींग) का  उत्पादन बढ़ाने का फैसला किया है।
    • इस योजना के तहत IHBT, निर्यातक देशों से केसर की नई किस्मों को लाएगा तथा भारतीय परिस्थितियों के अनुसार इसको मानकीकृत (Standardized) करेगा।

स्रोत: पी.आई.बी.

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