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जैव विविधता और पर्यावरण

जैव विविधता संरक्षण में स्वदेशी समुदायों की भूमिका

  • 09 May 2025
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

स्वदेशी लोग और स्थानीय समुदाय (IPLC), पारंपरिक ज्ञान प्रणाली, कांगो बेसिन, कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क (GBF), OECM, नागोया प्रोटोकॉल, CBD, जैव विविधता प्रबंधन समितियाँ (BMC), वन अधिकार अधिनियम (FRA) की मान्यता, 2006, PESA, 1996, गैर-लकड़ी वन उत्पाद (NTFP), जैव विविधता विरासत स्थल (BHS), राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीति और कार्य योजना (NBSAP), पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र (ESZ)

मेन्स के लिये:

जैव विविधता संरक्षण में स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों (IPLC) की भूमिका। 

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

वैश्विक स्तर पर संरक्षण कानून प्रायः स्वदेशी और स्थानीय समुदायों (IPLC) को बाहर रखते हैं, जिससे जैव विविधता संरक्षण में उनकी भूमिका को दरकिनार कर दिया जाता है। भारत में, वन अधिकार अधिनियम, 2006 IPLC अधिकारों को मान्यता देने की दिशा में एक कदम था, लेकिन राज्य के नेतृत्व वाले संरक्षण मॉडल अभी भी प्रचलित हैं।

  • चुनौती यह सुनिश्चित करने की है कि भारत के संरक्षण प्रयास IPLC को अपनी भूमि के प्रबंधन और सुरक्षा में पूर्ण रूप से सशक्त बनाएँ। 

जैवविविधता संरक्षण में स्वदेशी समुदाय क्या भूमिका निभाते हैं?

  • पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण: स्वदेशी जनजातियों के पास औषधीय पौधों, वन्यजीवों के व्यवहार और सतत् संसाधन उपयोग के विषय में पीढ़ियों पुरानी जानकारी होती है।
    • उदाहरण के लिये, कानी जनजाति (केरल) अगस्त्यमलाई बायोस्फीयर रिज़र्व में औषधीय पौधों के संरक्षण के लिये पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करती है।
  • समुदाय द्वारा संचालित वन संरक्षण: कई जनजातीय समुदाय पवित्र उपवनों और सामुदायिक अभ्यारण्यों के माध्यम से वनों की रक्षा करते हैं।
  • बीज संरक्षण: स्वदेशी कृषि पद्धतियाँ देशी फसल किस्मों और मृदा स्वास्थ्य को संरक्षित करती हैं।
    • उदाहरण के लिये, ओडिशा और नागालैंड में जनजातियाँ मृदा की उर्वरता बनाए रखने के लिये लंबे समय तक खाली ज़मीन पर झूम कृषि करती हैं।
  • वन्यजीवों के साथ सह-अस्तित्व: कई जनजातीय समूह सांस्कृतिक परंपराओं का पालन करते हैं जो अत्यधिक शिकार पर रोक लगाते हैं और वन्यजीवों के साथ सद्भाव को बढ़ावा देते हैं।
    • उदाहरण के लिये, सोलिगा जनजाति (कर्नाटक) बिलगिरी रंगना हिल्स (BRT) टाइगर रिज़र्व में बाघों और हाथियों के साथ रहती है।

जैव विविधता संरक्षण में स्वदेशी समुदायों की भूमिका को मान्यता देने वाले भारत के प्रमुख अधिनियम क्या हैं?

  • जैविक विविधता अधिनियम (BDA), 2002: स्थानीय स्तर पर जैव विविधता प्रबंधन समितियों (BMC) के माध्यम से, यह पहल स्थानीय पौधों, पशुओं और आवासों के संरक्षण को बढ़ावा देती है, साथ ही पारंपरिक ज्ञान का दस्तावेज़ीकरण व संरक्षण के लिये समावेशी दृष्टिकोण को बढ़ावा देती है।
  • FRA, 2006: अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम (FRA), 2006 आदिवासियों एवं अन्य पारंपरिक वन समुदायों सहित वनवासियों के वन भूमि प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकारों को मान्यता देता है ताकि वनों का स्थायी प्रबंधन किया जा सके।
    • ग्राम सभा सामुदायिक वन संसाधनों तक पहुँच का प्रबंधन, संरक्षण और विनियमन करके, सतत् उपयोग सुनिश्चित करके एवं वन में रहने वाले समुदायों के अधिकारों की रक्षा करके जैव विविधता के संरक्षण में केंद्रीय भूमिका निभाती है।
  • पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम (PESA), 1996: PESA, 1996,में यह प्रावधान है कि जनजातीय क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन का भूमि और प्राकृतिक संसाधनों, जिनमें वन व जल निकाय शामिल हैं, पर नियंत्रण होगा, जिससे संरक्षण प्रथाओं पर स्थानीय नियंत्रण सुनिश्चित होगा।
  • संयुक्त वन प्रबंधन (JFM): संयुक्त वन प्रबंधन (JFM) और पारिस्थितिकी विकास कार्यक्रम वन संरक्षण एवं सतत् संसाधन उपयोग के लिये स्थानीय समुदायों को शामिल करते हैं, जिसमें IPLC पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये गैर-लकड़ी वन उत्पाद (NTFP) तथा ईंधन की लकड़ी का प्रबंधन करते हैं ।
  • राष्ट्रीय जैव विविधता कार्य योजना (NBAP): NBAP सहभागी संरक्षण को बढ़ावा देती है, निर्णय लेने में जनजातीय समुदायों को शामिल करती है, पारंपरिक ज्ञान का सम्मान करती है और समुदाय आधारित पहलों को मज़बूत करती है।

प्रमुख वैश्विक पहलों ने IPLC की भूमिका को किस प्रकार मान्यता दी है?

  • जैव विविधता अभिसमय (CBD) : वर्ष 2022 में अपनाया गया कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क (GBF IPLC की भागीदारी पर ज़ोर देता है। 
    • लक्ष्य 3 का लक्ष्य वर्ष 2030 तक वैश्विक भूमि और महासागरों के 30% हिस्से को स्वदेशी अधिकारों के पूर्ण सम्मान के साथ संरक्षित करना है । 
    • लक्ष्य 22 न्याय तक उनकी पहुँच, भूमि स्वामित्व और निर्णय लेने में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करता है।
      • जैव विविधता अभिसमय (CBD) के COP -16 ने जैव विविधता संरक्षण में IPLC की महत्त्वपूर्ण भूमिका को मान्यता देने के लिये एक स्थायी सहायक निकाय की स्थापना की।
  • नागोया प्रोटोकॉल (वर्ष 2010): CBD के तहत वर्ष 2010 में अपनाया गया नागोया प्रोटोकॉल, आनुवंशिक संसाधनों से लाभ के उचित बँटवारे को सुनिश्चित करता है और IPLC के पारंपरिक ज्ञान के प्रति सम्मान को बढ़ावा देता है।
  • स्वदेशी व्यक्तियों  के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र घोषणा (वर्ष 2007): यह स्वदेशी व्यक्तियों  के अधिकारों का विवरण देने वाला सबसे व्यापक अंतर्राष्ट्रीय साधन है, जो उनकी मान्यता , संरक्षण और संवर्धन के लिये न्यूनतम मानक निर्धारित करता है । 
    • इसमें सांस्कृतिक पहचान, शिक्षा , स्वास्थ्य और रोज़गार सहित व्यक्तिगत एवं सामूहिक अधिकारों को शामिल किया गया है, तथा उन्हें प्रभावित करने वाले मामलों में गैर-भेदभाव प्रभावी भागीदारी को बढ़ावा दिया गया है।

जैव विविधता संरक्षण में भारत स्थानीय समुदायों को और अधिक एकीकृत करने के लिये क्या उपाय अपना सकता है?

  • वन अधिकार अधिनियम (FRA) के कार्यान्वयन को सुदृढ़ करना: भूमि अधिकार संबंधी मुद्दों का समाधान करके, अधिक वनवासियों को कानूनी मान्यता प्रदान करके, और CFR के दावों का त्वरित निपटान करते हुए ग्राम सभाओं को जैव विविधता प्रबंधन से संबंधित निर्णयों में शामिल कर FRA के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित किया जाना चाहिये। 
  • संरक्षण योजना में स्थानीय ज्ञान की मान्यता: जैव विविधता रणनीतियों में स्वदेशी लोग और स्थानीय समुदायों (IPLC) के पारंपरिक पारिस्थितिकीय ज्ञान (TEK) का दस्तावेज़ीकरण और एकीकरण किया जाना चाहिये। साथ ही, उनके संरक्षण अभ्यासों को साझा करने और बढ़ावा देने के लिये ऐसे मंच स्थापित किये जाने चाहिये, जो कानूनी और नीतिगत ढाँचे के भीतर कार्य करें।
  • "30 बाई 30" एजेंडा में IPLC को शामिल करना: जबकि भारत वर्ष 2030 तक अपनी 30% भूमि और समुद्री क्षेत्रों की रक्षा करने के लिये प्रतिबद्ध है, यह आवश्यक है कि इन क्षेत्रों की रूपरेखा और प्रबंधन में IPLC की भागीदारी और अधिकारों को सुनिश्चित किया जाए।
    • किसी भी नए संरक्षण क्षेत्र या पहल में IPLC की भागीदारी को प्राथमिकता देना चाहिये, यह सुनिश्चित करते हुए कि संरक्षण के नाम पर उनके अधिकारों का उल्लंघन न हो।
  • शासन में पारंपरिक ज्ञान: सरकार और अनुसंधान संस्थाओं को IPLC के साथ मिलकर पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों का दस्तावेज़ीकरण और संरक्षण करना चाहिये तथा यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उचित मुआवज़े के बिना इनका दोहन न किया जाए।
    • जैव विविधता प्रबंधन समितियों को पूरी तरह से क्रियाशील और सशक्त किया जाना चाहिये, ताकि वे स्थानीय जैव विविधता से संबंधित निर्णय प्रक्रिया में भाग ले सकें।
  • सामुदायिक संरक्षण परियोजनाओं के लिये वित्तीय समर्थन: समुदाय-प्रेरित संरक्षण परियोजनाओं के लिये निधि स्थापित की जानी चाहिये और IPLC को उनकी भूमि पर सतत् जैव विविधता संरक्षण रणनीतियाँ लागू करने के लिये प्रोत्साहन जैसे पारिस्थितिकीय प्रमाणन और कार्बन क्रेडिट प्रदान किये जाने चाहिये।

निष्कर्ष

भारत की संरक्षण रूपरेखा अपनी समावेशी दृष्टिकोण के लिये वैश्विक स्तर पर विशिष्ट है, क्योंकि यह स्वदेशी लोग और स्थानीय समुदाय (IPLC) के अधिकारों को कानूनी रूप से मान्यता देती है। जैव विविधता संरक्षण को सामाजिक न्याय के साथ संतुलित करने के लिये वन अधिकार अधिनियम (FRA) जैसे कानूनों को सुदृढ़ करना और ग्राम सभाओंजैव विविधता प्रबंधन समितियों (BMC) के माध्यम से भागीदारीपूर्ण शासन सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: चर्चा कीजिये कि भारत की कानूनी और नीतिगत रूपरेखाओं ने समावेशी जैव विविधता संरक्षण को किस प्रकार प्रोत्साहित किया है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रारंभिक

प्रश्न. भारत के संविधान की किस अनुसूची के तहत खनन के लिये निजी पार्टियों को आदिवासी भूमि के हस्तांतरण को शून्य और शून्य घोषित किया जा सकता है? (2019)

(a)तीसरी अनुसूची

(b)पाँचवी अनुसूची

(c)नौवीं अनुसूची

(d)बारहवीं अनुसूची

उत्तर: (b)

प्रश्न. अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पारम्परिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के अधीन, व्यक्तिगत या सामुदायिक वन अधिकारों अथवा दोनों की प्रकृति एवं विस्तार के निर्धारण की प्रक्रिया को प्रारम्भ करने के लिए कौन प्राधिकारी होगा? (2013)

(a)राज्य वन विभाग

(b)जिला कलक्टर/उपायुक्त

(c)तहसीलदार/खण्ड विकास अधिकारी/मण्डल राजस्व अधिकारी

(d)ग्राम सभा

 उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न. भारत सरकार औषधि के पारंपरिक ज्ञान को औषधि कंपनियों द्वारा पेटेंट कराने से कैसे बचा रही है? (2019)

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