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जैव विविधता और पर्यावरण

स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार

  • 11 Oct 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सार्वभौमिक मानव अधिकार, द्वितीय विश्वयुद्ध, अर्थ समिट

मेन्स  के लिये:

स्वच्छ पर्यावरण का अधिकारऔर उसकी प्रासंगिकता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) ने सर्वसम्मति से एक स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ पर्यावरण को सार्वभौमिक मानव अधिकार के रूप में मान्यता देने के लिये मतदान किया।

  • यदि सभी सदस्यों द्वारा मान्यता प्राप्त होती है तो वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) को अपनाने के 70 से अधिक वर्षों के पश्चात् यह इस तरह का पहला अधिकार होगा।
  • मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) : इसके अंतर्गत अधिकारों और स्वतंत्रता से संबंधित कुल 30 अनुच्छेदों को सम्मिलित किया गया है, जिसमें जीवन, स्वतंत्रता और गोपनीयता जैसे नागरिक और राजनीतिक अधिकार तथा सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसे आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार शामिल हैं।

प्रमुख बिंदु 

  • पृष्ठभूमि:
    • सामान्य तौर पर मानव अधिकारों की अवधारणा द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-45) के बाद उभरी, लेकिन उन मानवाधिकारों में से स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार को किसी भी रूप में कभी भी प्राथमिकता नहीं दी गई थी।
    • स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार 1972 के स्टॉकहोम घोषणा में निहित है, जिसे लोकप्रिय रूप से मानव पर्यावरण का मैग्ना कार्टा कहा जाता है।
      • इसमें पर्यावरण नीति के सिद्धांत और सिफारिशें शामिल थीं।
    • 'केयरिंग फॉर द अर्थ 1991' और 1992 के 'अर्थ समिट' ने भी घोषित किया कि मनुष्य प्रकृति के साथ एक स्वस्थ और उत्पादक जीवन का हकदार है।
  • परिचय:
    • स्वस्थ पर्यावरण का मानव अधिकार नागरिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों के पर्यावरणीय आयामों को एक साथ लाता है तथा प्राकृतिक पर्यावरण के मूल तत्त्वों की रक्षा करता है, जो कि गरिमापूर्ण जीवन को सक्षम बनाते हैं।
    • जीवन के अधिकार’ (अनुच्छेद-21) का उपयोग भारत में विविध प्रकार से किया गया है। इसमें अन्य बातों के साथ-साथ जीवित रहने का अधिकार, जीवन की गुणवत्ता, गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार और आजीविका का अधिकार शामिल है।
      • भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 के मुताबिक,  'किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं।'
    • इसके अलावा 42वें संविधान संशोधन (1976) के माध्यम से संविधान में दो महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद [अनुच्छेद 48A और 51A (g)] शामिल किये गए थे, जो कि भारतीय संविधान को पर्यावरण संरक्षण का संवैधानिक दर्जा प्रदान करने वाला दुनिया का पहला संविधान बनाते हैं।
      • अनुच्छेद 48A: राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने तथा देश के वनों और वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
      • अनुच्छेद 51A (g): पर्यावरण की रक्षा एवं संरक्षण करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।
  • भारत में पर्यावरण संरक्षण कानून:
  • पर्यावरणीय सिद्धांत:
    • अंतर-पीढ़ीगत समानता: इसके मुताबिक, प्रत्येक पीढ़ी के लिये पृथ्वी की महत्ता समान है, इसलिये इसके संसाधनों का न्यायिक और सामान्य लाभ के लिये उचित उपयोग किया जाना चाहिये।
    • ‘प्रदूषणकर्त्ता द्वारा भुगतान’ का सिद्धांत: इस सिद्धांत के अनुसार, प्राकृतिक पर्यावरण को होने वाले नुकसान की कीमत प्रदूषक द्वारा ही वहन की जानी चाहिये।
    • निवारक सिद्धांत: इस सिद्धांत के अनुसार, वैज्ञानिक प्रमाणों के अभाव में भी पर्यावरणीय क्षरण के कारणों का अनुमान लगाने और उन्हें रोकने के उपाय किये जाने चाहिये। किसी भी संभावित जोखिम से जनता की रक्षा करना राज्य का सामाजिक दायित्व है।
    • लोक विश्वास सिद्धांत: इसमें कहा गया है कि जल, वायु, समुद्र और जंगल जैसे संसाधन आम जनता के लिये काफी महत्त्वपूर्ण हैं, इसलिये इन्हें निजी स्वामित्व का विषय बनाना अनुचित होगा। यह राज्य का कर्तव्य है कि वह सभी के लाभ के लिये ऐसे संसाधनों की रक्षा करे और इसके किसी भी व्यावसायिक उपयोग की अनुमति न दी जाए।
    • सतत् विकास सिद्धांत: इस सिद्धांत के अनुसार, राज्य को विकास एवं पर्यावरण के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करना चाहिये।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद

  • परिचय:
    • यह संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर एक अंतर-सरकारी निकाय है जो विश्व भर में मानवाधिकारों के संवर्द्धन और संरक्षण को मज़बूती प्रदान करने के लिये उत्तरदायी है।
  • गठन:
    • इस परिषद का गठन वर्ष 2006 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly- UNGA) द्वारा किया गया था। इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है।
  • सदस्य:
    • इसका गठन 47 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों से मिलकर हुआ है जो संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा चुने जाते हैं।
      • भारत को जनवरी 2019 में तीन वर्ष की अवधि के लिये चुना गया था।
  • प्रक्रिया और तंत्र:
    • सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा: सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा (Universal Periodic Review- UPR) यूपीआर सभी संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों में मानवाधिकार स्थितियों का आकलन का कार्य करता है।  
    • संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रक्रिया: ये विशेष प्रतिवेदक, विशेष प्रतिनिधियों, स्वतंत्र विशेषज्ञों और कार्य समूहों से बने होते हैं जो विशिष्ट देशों में विषयगत मुद्दों या मानव अधिकारों की स्थितियों की निगरानी, जाँच करने, सलाह देने और सार्वजनिक रूप से रिपोर्ट करने का कार्य करते हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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