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सामाजिक न्याय

संरक्षकता और दत्तक ग्रहण कानूनों की समीक्षा

  • 16 Aug 2022
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

दत्तक ग्रहण (प्रथम संशोधन) विनियम, 2021, CARA। 

मेन्स के लिये:

भारत में बाल दत्तक ग्रहण और संबंधित मुद्दे, बच्चों से संबंधित मुद्दे। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में कार्मिक, लोक शिकायत और कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति ने संसद में  "संरक्षकता और दत्तक ग्रहण कानूनों की समीक्षा" रिपोर्ट पेश की तथा अनाथ एवं परित्यक्त बच्चों की पहचान करने के लिये ज़िला स्तर के सर्वेक्षण की सिफारिश की। 

  • भारत में गोद लेने के लिये केवल 2,430 बच्चे उपलब्ध हैं जबकि गोद लेने के इच्छुक माता-पिता की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। 

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष: 

  • दिसंबर 2021 तक केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (Central Adoption Resource Authority) में 27,939 संभावित माता-पिता पंजीकृत थे, जो 2017 में लगभग 18,000 थे। 
    • CARA, महिला और बाल विकास मंत्रालय का एक सांविधिक निकाय है, जो गोद लेने संबंधी मामलों की नोडल एजेंसी है। यह अनाथ बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया का अपनी संबद्ध या मान्यता प्राप्त एजेंसियों के माध्यम से विनियमन करता है। 
  • ोद लेने योग्य माने जाने वाले बाल देखभाल संस्थानों में रहने वाले कुल 6,996 अनाथ, परित्यक्त और आत्मसमर्पण करने वाले बच्चे थे जिनमें केवल 2,430 को ही बाल कल्याण समितियों द्वारा गोद लेने के लिये "कानूनी रूप से मुक्त" घोषित किया गया था। 
    • भारत में अनुमानित 3.1 करोड़ अनाथ बच्चों के साथ केवल 2,430 बच्चे गोद लेने के लिये कानूनी रूप से योग्य पाए गए हैं, क्योंकि सरकार के सुरक्षा जाल में देखभाल की आवश्यकता वाले अधिक बच्चों को लाने में विफलता है। 
  • गोद लेने के लिये प्रतीक्षा समय पिछले पाँच वर्षों में एक वर्ष से बढ़कर तीन वर्ष हो गया है। 
  • वर्ष 2021-2022 में गोद लिये गए बच्चों की कुल संख्या केवल 3,175 थी। 

िफारिशें: 

  • ज़िला मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में एक मासिक बैठक प्रत्येक ज़िले में आयोजित की जानी चाहिये ताकि "यह सुनिश्चित किया जा सके कि सड़कों पर भीख मांगने वाले अनाथ और परित्यक्त बच्चों को बाल कल्याण समिति के समक्ष ले आया जाए और उन्हें जल्द से जल्द गोद लेने हेतु उपलब्ध कराया जाए।" 
  • मुद्दा यह नहीं होना चाहिये कि अधिक बच्चों को ट्रैक किया जाए और उन्हें गोद लिया जाए, बल्कि बच्चों को सुरक्षा जाल से बाहर नहीं छोड़ा जाए। 
  • मुद्दा अधिक बच्चों के आकलन और उन्हें गोद लेने के लिये नहीं होना चाहिये, बल्कि बच्चों को सुरक्षित करने की आवश्यकता है। इस तरह के प्रयास का उद्देश्य बच्चे को दत्तक देने में कमी करना चाहिये तथा दत्तक के लिये उचित दत्तक माता-पिता की पहचान करनी चाहिये क्योंकि इतने सारे दत्तक माता-पिता प्रतीक्षा कर रहे हैं कि गरीब लोग अपने बच्चों को खोने के लिये मज़बूर हो रहे हैं। 
  • बच्चों को पालन-पोषण करने वाले परिवारों से जोड़ने के लिये ऐसे बदलाव की आवश्यकता है जो "अभिरक्षी" की ज़रूरतों जैसे कि भोजन और आश्रय से परे हो और उनके अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करे। 
  • कई बच्चे माता-पिता की देखभाल के अधीन हैं, लेकिन इष्टतम देखभाल नहीं करते हैं। माता-पिता अपने ही बच्चों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं या उनकी उपेक्षा करते हैं ऐसे बच्चों के लिये पर्याप्त सुरक्षा का प्रावधान किया गया है ताकि उन्हें आवश्यक सहायता मिल  सके। पर्याप्त सुरक्षा उपायों में  विफलता भी कदाचार की ओर ले जाती है, यही वज़ह है कि वर्ष 2015 में गोद लेने की प्रक्रिया को केंद्रीकृत किया गया। 

भारत में दत्तक ग्रहण और संबंधित नियम: 

  • परिचय: 
    • दत्तक ग्रहण एक औपचारिक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से एक बच्चा अपने दत्तक माता-पिता की वैध संतान बनने के लिये अपने जैविक माता-पिता से स्थायी रूप से अलग हो जाता है। 
    • गोद लिये गए बच्चे को जैविक बच्चे से जुड़े सभी अधिकार, विशेषाधिकार और जिम्मेदारियाँ प्राप्त होती हैं। 
    • गोद लेने को नियंत्रित करने वाले मूलभूत सिद्धांत बताते हैं कि बच्चे के हित सबसे महत्त्वपूर्ण हैं और "जहाँ  तक संभव हो बच्चे को उसके सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण में रखने के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए," भारतीय नागरिकों के साथ बच्चे को गोद लेने के लिये प्राथमिकता दी जानी चाहिये। 
  • विधान: 
    • हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम, (HAMA) 1956 : 
      • अधिनियम के तहत, एक हिंदू माता-पिता या अभिभावक एक बच्चे को दूसरे हिंदू माता-पिता को गोद दे सकते हैं। 
      • अधिनियम एक अनाथ, परित्यक्त या आत्मसमर्पण करने वाले बच्चे को गोद लेने की अनुमति नहीं देता है जो किसी विशेष दत्तक ग्रहण एजेंसी (SSA) या बाल देखभाल संस्थान के संरक्षण में है। 
      • अंतर-देशीय दत्तक ग्रहण इस अधिनियम के दायरे में नहीं आते हैं। 
    • किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015। इसमें किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) मॉडल नियम, 2016 और गोद लेने के नियम, 2017 शामिल हैं। 
      • सरकारी नियमों के अनुसार हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख बच्चों को गोद लेने के लिये वैध हैं। 
      • एक अनाथ, परित्यक्त, या आत्मसमर्पण करने वाले बच्चे को गोद लिया जा सकता है जिसे बाल कल्याण समिति (CWC) द्वारा गोद लेने के लिये कानूनी रूप से मुक्त घोषित किया गया है। ऐसा केवल किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के प्रावधानों के तहत होता है। 
    • जेजे अधिनियम, गैर-हिंदू व्यक्तियों के लिये उनके समुदाय के बच्चों का अभिभावक बनने के लिये अभिभावक और वार्ड अधिनियम (GWA), 1980 एकमात्र साधन था। 
      • चूँकि GWA व्यक्तियों को कानूनी रूप से अभिभावक के रूप में देखता है, न कि प्राकृतिक माता-पिता के रूप में, वार्ड के 21 वर्ष के हो जाने और वार्ड द्वारा व्यक्तिगत पहचान ग्रहण करने के बाद संरक्षकता समाप्त कर दी जाती है। 

बच्चे को गोद लेने में विद्यमान चुनौतियाँ: 

  • घटती सांख्यिकी और संस्थागत उदासीनता: 
    • गोद लेने वाले बच्चों और भावी माता-पिता के मध्य एक व्यापक अंतर है, जो गोद लेने की प्रक्रिया की अवधि को बढ़ा सकता है। 
    • आँकड़ों से पता चलता है कि जहाँ 29,000 से अधिक भावी माता-पिता गोद लेने के इच्छुक हैं, वहीं केवल 2,317 बच्चे ही गोद लेने के लिये उपलब्ध हैं। 
  • गोद लेने के बाद बच्चों को वापस करना: 
    • वर्ष 2017-19 के बीच केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) को दत्तक ग्रहण करने के बाद बच्चों को वापस करने वाले दत्तक माता-पिता में एक असामान्य बढ़ोतरी देखी गई। 
    • आँकड़ों के अनुसार, लौटे सभी बच्चों में 60% लड़कियाँ थीं, 24% विशेष ज़रूरतों वाले/दिव्यांग बच्चे थे और कई छह से अधिक उम्र के थे। 
      • इन 'व्यवधानों' का प्राथमिक कारण यह है कि विकलांग बच्चों और बड़े बच्चों को अपने दत्तक परिवारों को समायोजित करने में बहुत अधिक समय लगता है। 
  • विकलांगता और दत्तक ग्रहण: 
    • वर्ष 2018 और 2019 के बीच केवल 40 दिव्यांग बच्चों को गोद लिया गया था, जो वर्ष में गोद लिये गए बच्चों की कुल संख्या का लगभग 1% है। 
    • वार्षिक प्रवृत्तियों से पता चलता है कि हर बीते साल के साथ विशेष ज़रूरतों वाले बच्चों के घरेलू दत्तक ग्रहण कम हो रहे हैं। 
  • बाल तस्करी: 
    • वर्ष 2018 में राँची की मदर टेरेसा मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी अपने "बेबी-सेलिंग रैकेट" के लिये विवाद में घिर गई, जब आश्रय की एक नन ने चार बच्चों को बेचने की बात कबूल की। 
      • इसी तरह के उदाहरण तेज़ी से सामान्य होते जा रहे हैं क्योंकि गोद लेने के लिये उपलब्ध बच्चों की संख्या कम हो रही है और प्रतीक्षा सूची में शामिल माता-पिता बेचैन हो रहे हैं। 
  • LGBTQ+ पितृत्व और प्रजनन स्वायत्तता: 
    • परिवार की परिभाषा के निरंतर विकास के बावजूद, 'आदर्श' भारतीय परिवार के केंद्र में अभी भी पति, पत्नी और बेटी एवं पुत्र (पुत्रों) का गठन होता है। 
    • LGBTQI+ विवाहों की अमान्यता और कानून की नज़र में संबंध LGBTQI+ व्यक्तियों को माता-पिता बनने से रोकते हैं क्योंकि युगल के लिये बच्चा गोद लेने की न्यूनतम योग्यता उनकी शादी का प्रमाण है। 
    • इन प्रतिकूल वैधताओं पर मोलभाव करने के लिये समुदायों के बीच अवैध रूप से गोद लेना आम होता जा रहा है। 

आगे की राह 

  • गोद हेतु बच्चे को देने का प्राथमिक उद्देश्य उसका कल्याण और परिवार के उसके अधिकार को बहाल करना है। 
  • गोद लेने वाले पारिस्थितिकी तंत्र को माता-पिता-केंद्रित दृष्टिकोण से बाल-केंद्रित दृष्टिकोण में बदलने की आवश्यकता है। 
  • समावेशी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है जो स्वीकृति, विकास और कल्याण का वातावरण बनाने के लिये बच्चे की ज़रूरतों पर ध्यान केंद्रित करता है, इस प्रकार गोद लेने की प्रक्रिया में बच्चों को समान हितधारकों के रूप में मान्यता देता है। 
  • गोद लेने की प्रक्रिया को निर्देशित करने वाले विभिन्न विनियमों पर बारीकी से विचार करके गोद लेने की प्रक्रिया को सरल बनाने की आवश्यकता है। 
    • मंत्रालय इस क्षेत्र में काम करने वाले संबंधित विशेषज्ञों के साथ काम कर सकता है ताकि संभावित माता-पिता के सामने आने वाली व्यावहारिक कठिनाइयों पर प्रतिक्रिया प्राप्त की जा सके। 

स्रोत: द हिंदू

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