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जैव विविधता और पर्यावरण

नवीकरणीय वैश्विक स्थिति रिपोर्ट 2022 (GSR 2022)

  • 20 Jun 2022
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

REN21, राष्ट्रीय सौर मिशन (NSM), राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन (NHEM), संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) 

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में REN21 (21वीं सदी के लिये अक्षय ऊर्जा नीति नेटवर्क) द्वारा नवीकरणीय वैश्विक स्थिति रिपोर्ट 2022 (GSR 2022) जारी की गई। 

  • REN21 नवीकरणीय अभिकर्त्ताओं का एक वैश्विक समूह है। 
  • इसमें वैज्ञानिक, भारत सरकार, गैर-सरकारी संगठन और उद्योग जगत के सदस्य शामिल हैं, जिन्होंने दुनिया भर के देशों में अक्षय ऊर्जा प्रतिष्ठानों, बाज़ारों, निवेश और नीतियों पर डेटा एकत्र किया है। 

नवीकरणीय वैश्विक स्थिति रिपोर्ट 2022: 

  • नवीकरणीय ऊर्जा वैश्विक स्थिति रिपोर्ट 2022, अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में हुई प्रगति का दस्तावेज़ीकरण करती है। 
  • यह स्थानीय ऊर्जा उत्पादन और मूल्य शृंखलाओं के माध्यम से अधिक विविध तथा समावेशी ऊर्जा शासन प्राप्त करने की क्षमता सहित नवीकरणीय -आधारित अर्थव्यवस्था एवं समाज द्वारा वहन किये गए अवसरों पर प्रकाश डालती है। 
  • अपनी कुल ऊर्जा खपत में नवीकरणीय ऊर्जा की उच्च हिस्सेदारी वाले देश ऊर्जा स्वतंत्रता और सुरक्षा के उच्च स्तर सुनिश्चित करते हैं। 

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएंँ: 

  • वैश्विक परिदृश्य: 
    • रिपोर्ट एक स्पष्ट चेतावनी देती है कि वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण नहीं हो रहा है, जिससे यह संदेहास्पद है कि दुनिया इस दशक में महत्त्वपूर्ण जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त कर पायेगी। 
    • यद्यपि कई सरकारों ने वर्ष 2021 में शून्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिये प्रतिबद्धता व्यक्त की हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि, ऊर्जा संकट के जवाब में, अधिकांश देश जीवाश्म ईंधन के नए स्रोतों की तलाश कर रहे हैं तथा अधिक कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस का उपयोग कर रहे हैं। 
    • पहली बार, GSR 2022 में देशों द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा शेयरों का एक विश्व मानचित्र प्रदान किया गया है तथा कुछ प्रमुख देशों में प्रगति पर प्रकाश डालता है। 
    • नवंबर 2021 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) की अगुवाई में, रिकॉर्ड 135 देशों ने 2050 तक शुद्ध शून्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन प्राप्त करने का संकल्प लिया। 
      • हालांँकि इनमें से केवल 84 देशों के पास अक्षय ऊर्जा के लिये अर्थव्यवस्था-व्यापी लक्ष्य थे, और केवल 36 के पास 100% नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्य थे। 
  • भारत का प्रदर्शन: 
    • अक्षय ऊर्जा: भारत वर्ष 2021 में चीन और रूस के बाद अक्षय ऊर्जा प्रतिष्ठानों में तीसरे स्थान पर है। 
    • पनबिजली क्षमता: भारत ने वर्ष 2021 में 843 मेगावाट की पनबिजली क्षमता वृद्धि की, जिससे कुल क्षमता बढ़कर 45.3 गीगावॉट हो गई। 
    • नई सौर फोटोवोल्टिक क्षमता: नई सौर फोटोवोल्टिक क्षमता के लिये भारत एशिया का दूसरा  और विश्व में तीसरा (वर्ष 2021 में 13 गीगावॉट अतिरिक्त) सबसे बड़ा बाज़ार है 
    • कुल संस्थापन: भारत ने जर्मनी (59.2 GW) को पछाड़ते हुए कुल प्रतिष्ठानों (60.4 GW) की क्षमता में चौथे स्थान पर आ गया। 
    • पवन ऊर्जा: पवन ऊर्जा की कुल स्थापित क्षमता (40.1 GW) के मामले में भारत चीन, अमेरिका और जर्मनी के बाद विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है। 

नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये भारत की पहल:  

अक्षय ऊर्जा संक्रमण में बाधाएँ: 

  • डिस्कॉम की खराब वित्तीय स्थिति: 
    • भारत में नवीकरणीय ऊर्जा को और बढ़ने के लिये सबसे  चुनौती बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) की खराब वित्तीय स्थिति है, जिनमें से अधिकांश राज्य सरकारों के स्वामित्व में हैं। लगभग सभी अक्षय ऊर्जा ऐसी डिस्कॉम द्वारा खरीदी जाती है, जिसके परिणामस्वरूप बहुत लंबा और अस्थिर भुगतान चक्र होता है। 
  • पीढ़ी में परिवर्तनशीलता:  
    • मौसम की स्थिति के कारण इसके उत्पादन में परिवर्तन, ट्रांसमिशन ग्रिड के संचालन को तकनीकी रूप से कार्यशील बनाता है। कुछ समय पहले तक नवीकरणीय विद्युत् की क्षमता कम थी, लेकिन अब नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ इतनी अधिक बिजली का उत्पादन कर रही हैं कि ग्रिड को सुचारू रूप से संचालित करने के लिये उन्हें कभी-कभी उत्पादन को कम करना या बंद करना पड़ता है। 
  • कमज़ोर ट्रांसमिशन ग्रिड:  
    • देश में कमज़ोर ट्रांसमिशन ग्रिड भी एक चुनौती रही है, खासकर नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के मामले में, जो अक्सर दूरदराज़ के क्षेत्रों में बड़े शहरों और खपत केंद्रों से दूर स्थापित की जाती हैं। 
      • उदाहरण के लिये, लेह में बड़ी सौर परियोजनाओं के निर्माण की महत्वात्कांक्षी योजनाओं को हाल ही में कमज़ोर पारेषण बुनियादी ढाँचे का हवाला देते हुए रद्द कर दिया गया था। 
  • अल्पविकसित प्रौद्योगिकी:  
    • भारत के पास वह आवश्यक तकनीक नहीं है जिसकी इस क्षेत्र में आवश्यकता है, उदाहरण के लिये भारत फोटोवोल्टिक सौर सेल के आयात के लिये अन्य देशों पर निर्भर है 
  • पर्यावरण पर प्रभाव:  
    • यद्यपि नवीकरणीय ऊर्जा सृजन शून्य-कार्बन गतिविधि है (कुछ जैव ईंधन को छोड़कर), इसके जीवन चक्र के अन्य बिंदुओं पर (जैसे कच्चे माल के निष्कर्षण और उपकरण निर्माण के दौरान) उत्सर्जन होता है। जैव विविधता और पारिस्थितिकी पर भी RE के हानिकारक प्रभाव पड़ते हैं। 
  • कुशल कर्मियों की कमी:  
    • भारत के बिजली क्षेत्र को न केवल निजी क्षेत्र में बल्कि वितरण कंपनियों (DISCOMs), ग्रिड प्रबंधन कंपनियों, नियामकों और नीति-निर्माताओं के अंदर भी कुशल कर्मियों की कमी का सामना करना पड़ा है और वर्तमान परिदृश्य में यह समस्या और भी बढ़ती जा रही है। 
  • स्थापना लागत का मुद्दा: 
    • स्थापना (installation) की उच्च प्रारंभिक लागत नवीकरणीय ऊर्जा के विकास में प्रमुख बाधाओं में से एक है। यद्यपि किसी कोयला संयंत्र के विकास के लिये उच्च निवेश की आवश्यकता होती है, यह ज्ञात है कि पवन और सौर ऊर्जा संयंत्रों को भी भारी निवेश की आवश्यकता होती है। 
    • इसके अलावा, उत्पन्न ऊर्जा की भंडारण प्रणालियाँ महँगी हैं और मेगावाट उत्पादन के मामले में एक वास्तविक चुनौती का प्रतिनिधित्व करती हैं। 

आगे की राह 

  • वैश्विक भागीदारी: वैश्विक भागीदारी साझा की जा रही प्रौद्योगिकी या वित्तीय संसाधनों के माध्यम से समर्थन के नए मार्ग खोल सकती है। 
  • वितरित नवीकरणीय ऊर्जा (DRE): वितरित नवीकरणीय ऊर्जा, जिसमें नवीकरणीय स्रोतों से बिजली केंद्रीकृत संयंत्रों के बजाय उपयोग के बिंदुओं के पास उत्पादित की जाती है, ‘ग्लोबल साउथ’ के महत्त्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने के साथ-साथ विश्वसनीय एवं आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच बढ़ाने में मदद कर सकती है, यदि एक अनुकूल विनियामक और नीतिगत वातावरण का निर्माण किया जाए। 
  • उत्तरदायी ऊर्जा के रूप में नवीकरणीय ऊर्जा: RE केवल ‘रिन्यूएबल एनर्जी’ को इंगित न करता हो, बल्कि ‘रेस्पोंसिबल एनर्जी’ को भी सूचित करता हो। 
    • नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिये, RE उद्योग को चार सिद्धांतों पर कार्य करना चाहिये: 
      • सार्वभौमिक श्रम, भूमि और मानवाधिकारों को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना; 
      • प्रत्यास्थी, प्रगतिशील पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा, पुनर्बहाली और संपोषण; 
      • सहभागी शासन सिद्धांतों के लिये प्रतिबद्धता 
      • यह चिह्नित करना कि प्रत्यास्थी समुदाय और एक समावेशी कार्यबल उनकी सफलता के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। 
  • जलवायु वित्तपोषण: यह ऊर्जा-निर्धन देशों को अपने कार्बन कटौती लक्ष्यों में तेज़ी लाने और जीवाश्म ईंधन से अपने विकास प्रक्षेपवक्र को अलग करने हेतु नई तकनीकों में निवेश करने के लिये धन की आवश्यकता पूरी करने में सहायता करेगा। 

विगत वर्षों के प्रश्न 

प्रश्न: 'घरेलू सामग्री की आवश्यकता' शब्द को कभी-कभी समाचारों में देखा जाता है, यह किस संदर्भ में है? (2017) 

(a) हमारे देश में सौर ऊर्जा उत्पादन का विकास करना
(b) हमारे देश में विदेशी टीवी चैनलों को लाइसेंस प्रदान करना
(c) हमारे खाद्य उत्पादों को अन्य देशों में निर्यात करना
(d) विदेशी शिक्षण संस्थानों को हमारे देश में अपने कैंपस को स्थापित करने की अनुमति देना

उत्तर: A 

  • राष्ट्रीय सोलर मिशन 2010 में शुरू किया गया था जिसका उद्देश्य पूरे देश में सौर ऊर्जा का विस्तार करना है और संपूर्ण मूल्य शृंखला में विकास सुनिश्चित करना  है। इसलिये मूल्य शृंखला में घरेलू विनिर्माण क्षमता विकसित करना भी मिशन के प्रमुख क्षेत्रों में से एक है। 
  • घरेलू विनिर्माण के विकास को सुनिश्चित करने के लिये इस मिशन के तहत 'घरेलू सामग्री की आवश्यकता' का प्रावधान शुरू किया गया था। 
  • सौर ऊर्जा उत्पादक स्थानीय रूप से निर्मित सेल का उपयोग करने के लिये उन डेवलपर्स को सब्सिडी की पेशकश की गई जो घरेलू उपकरणों का उपयोग करेंगे। 
  • हालाँकि भारत विश्व व्यापार संगठन में अमेरिका के खिलाफ मामला हार गया क्योंकि निकाय ने फैसला सुनाया कि भारत के घरेलू सामग्री आवश्यकता प्रावधान अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के साथ असंगत थे। 

स्रोत- डाउन टू अर्थ 

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