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औषधि-परीक्षण प्रक्रिया से जानवरों को हटाना

  • 14 Aug 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ऑर्गेनॉइड्स, ऑर्गन्स-ऑन-चिप, 3D बायोप्रिंटिंग, नया औषधि और नैदानिक परीक्षण नियम,  2019, औषध और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940, ड्रग्स कंट्रोलर जनरल, इंडिया

मेन्स के लिये:

प्रमुख उभरती वैकल्पिक परीक्षण विधियाँ, भारत में नैदानिक ​​परीक्षणों का नियामक तंत्र

चर्चा में क्यों? 

भारत सरकार ने हाल ही में नए औषधि और नैदानिक ​​परीक्षण नियम, 2023 में एक संशोधन पेश किया है। यह संशोधन अनुसंधान, विशेष रूप से औषध/दवा परीक्षण में जानवरों के उपयोग से संबंधित नैतिक एवं वैज्ञानिक चिंताओं को संबोधित करता है।

  • यह कदम शोधकर्त्ताओं को नई औषधियों के परीक्षण के लिये नवीन गैर-पशु और मानव-प्रासंगिक तरीकों का उपयोग करने के लिये अधिकृत करता है जिससे अधिक सटीक, कुशल व नैतिक रूप से संरेखित औषध विकास प्रक्रियाओं के युग की शुरुआत होगी।

वर्तमान औषधि-विकास परिदृश्य:

  • हर औषध की अवधारणा (Conception) से लेकर बाज़ार में आने तक उसकी प्रभावकारिता और संभावित दुष्प्रभावों का आकलन करने के लिये कठोर परीक्षणों की एक शृंखला शामिल होती है। परंपरागत रूप से इस प्रक्रिया में जानवरों पर उम्मीदवार अणुओं का परीक्षण शामिल होता है, विशेष रूप से चूहों या चूहों जैसे कृंतकों के साथ-साथ गैर-कृंतकों जैसे- कैनाइन (Canines) और प्राइमेट्स (Primates) पर। हालाँकि इस दृष्टिकोण की महत्त्वपूर्ण सीमाएँ हैं:
    • प्रजातियों का उपयुक्त रूप से सुमेलित न होना: मनुष्यों में उम्र, आनुवंशिकी, आहार और पहले से मौजूद बीमारियों जैसे कारकों के कारण जटिल जैविक विविधताएँ होती हैं। 
      • यहाँ तक कि गैर-कृंतक पशु मॉडल भी दवाओं के प्रति जटिल मानवीय प्रतिक्रिया को पूरी तरह से प्रदर्शित नहीं कर सकते हैं।
    • उच्च विफलता दर: पशु और मानव प्रतिक्रियाओं के बीच अत्यधिक अंतर किसी दवा की विकास प्रक्रिया में उच्च विफलता दर में योगदान देता है।
      • फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में प्रगति के बावजूद, पशु परीक्षण में पास होने वाली अधिकांश दवाएँ मानव नैदानिक ​​परीक्षणों के दौरान विफल हो जाती हैं।
  • इन सीमाओं को देखते हुए विश्व स्तर पर शोधकर्त्ता वैकल्पिक परीक्षण विधियाँ खोज कर रहे हैं जो मानव जीव विज्ञान और प्रतिक्रियाओं को बेहतर ढंग से प्रदर्शित कर सकते हैं।

प्रमुख उभरती वैकल्पिक परीक्षण विधियाँ:

  • ऑर्गेनॉइड: ऑर्गेनॉइड 3D कोशिकीय संरचनाएँ हैं जो शरीर के विशिष्ट अंगों जैसा व्यवहार करती हैं।
    • मानव कोशिकाओं या स्टेम कोशिकाओं से विकसित ये लघु अंग मानव शरीर विज्ञान(Human Physiology) का अधिक सटीक प्रतिनिधित्व प्रदान करते हैं, जिससे शोधकर्त्ताओं को मानव संदर्भ में दवाओं की अंतःक्रियाओं का अध्ययन करने में मदद मिलती है।
  • ऑर्गन्स-ऑन-चिप: ये मानव कोशिकाओं से जुड़े छोटे उपकरण हैं, जो शरीर के भीतर रक्त प्रवाह और सेलुलर इंटरैक्शन की नकल करते हैं।
    • ये चिप्स प्रमुख शारीरिक गुणों को दोहराते हैं और शोधकर्त्ताओं को अधिक सटीक दवा परीक्षण के लिये एक मंच प्रदान करते हुए कोशिकीय संपर्क और रासायनिक संकेतों का विश्लेषण करने की अनुमति देते हैं। 
  • 3D बायोप्रिंटिंग: 3D बायोप्रिंटिंग तकनीक में रोगी-विशिष्ट कोशिकाओं का उपयोग करके जटिल मानव ऊतकों और अंगों के निर्माण को सक्षम बनाया जाता है।
    • यह प्रगति जीव विज्ञान में व्यक्तिगत विविधताओं को पूरा करते हुए वैयक्तिकृत दवा परीक्षण दृष्टिकोण के विकास की अनुमति देती है।

उभरते तरीकों को समायोजित करने के लिये वैश्विक नियामक बदलाव: 

  • यूरोपीय संघ ने वर्ष 2021 में गैर-पशु परीक्षण विधियों की ओर संक्रमण के लिये एक प्रस्ताव पारित किया।
  • अमेरिका ने वर्ष 2022 में FDA आधुनिकीकरण अधिनियम 2.0 पेश किया, जो दवा परीक्षण के लिये मानव-प्रासंगिक प्रणालियों के उपयोग की अनुमति देता है।
  • इसके साथ ही दक्षिण कोरिया और कनाडा ने भी पशु परीक्षण के विकल्पों को बढ़ावा देने के लिये कानून पेश किया।
  • मार्च 2023 में नई औषधि और नैदानिक ​​परीक्षण नियम 2019 को संशोधित करके, भारत ने इस विश्वव्यापी प्रवृत्ति को अपनाने के साथ नई दवाओं को विकसित करने की प्रक्रिया में मानव-आधारित परीक्षण तकनीकों को शामिल करना भी संभव बना दिया।

भारत में नैदानिक ​​परीक्षणों का नियामक तंत्र:

  • भारत में नैदानिक ​​परीक्षणों को नियंत्रित करने वाले प्रमुख कानून हैं: ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट-1940, मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया एक्ट, 1956 तथा सेंट्रल काउंसिल फॉर इंडियन मेडिसिन एक्ट, 1970, जैविक सामग्री के आदान-प्रदान के लिये दिशा-निर्देश (MOH ऑर्डर, 1997)।
  • भारत में नैदानिक ​​परीक्षण आयोजित करने की पूर्व शर्तें हैं:
    • (DCGI)भारत के औषधि महानियंत्रक (DCGI) से अनुमति
    • औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियमावली के अंतर्गत स्थापित आचार समिति से अनुमोदन।
    • ICMR द्वारा संचालित वेबसाइट पर पंजीकरण अनिवार्य

भारत के लिये नियामक बदलाव से संबंधित चुनौतियाँ एवं अवसर:

  • बहु-विषयक विशेषज्ञता: ऑर्गेनॉइड व ऑर्गन-ऑन-चिप जैसी तकनीकों का विकास और कार्यान्वयन करने के लिये कोशिका जीव विज्ञान एवं सामग्री विज्ञान से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स तथा फार्माकोलॉजी तक विविध विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है।
    • भारत को मौज़ूदा सूचना अंतराल को समाप्त करने के लिये बहु-विषयक प्रशिक्षण और संसाधन-निर्माण में निवेश करना चाहिये।
  • संसाधन स्थानीयकरण: आयातित अभिकर्मकों, सेल-कल्चर सामग्रियों और उपकरणों पर वर्तमान निर्भरता संसाधन संबंधित चुनौतियाँ पैदा करती है।
    • आत्मनिर्भर पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने के लिये भारत को सेल-कल्चर, सामग्री विज्ञान और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में एक मज़बूत बुनियादी ढाँचा विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
  • मानकीकरण और दिशा-निर्देश: प्रयोगशाला संबंधी प्रोटोकॉल में निरंतर बदलाव करने से असंगत डेटा प्राप्त होने की संभावना बढ़ जाती है।
    • विभिन्न प्रयोगशालाओं में विश्वसनीय और तुलनीय परिणाम सुनिश्चित करने के लिये सुस्पष्ट दिशा-निर्देश एवं  गुणवत्ता मानदंड को परखना अत्यंत आवश्यक है।
    • नियामक निकायों को कोशिका-आधारित और जीन-संपादन-आधारित चिकित्सा विज्ञान में प्रगति के अनुकूल होना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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