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जैव विविधता और पर्यावरण

रेड-स्नो: कारण और चिंताएँ

  • 04 Mar 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये:

रेड-स्नो की परिघटना

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन एवं हिमनदों का पिघलना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंटार्कटिका में यूक्रेन के वर्नाडस्की रिसर्च बेस (Vernadsky Research Base) के आसपास ‘रेड-स्नो’ (Red Snow) की तस्वीरें वायरल हुईं, जिसने ‘रेड-स्नो’ को लेकर जलवायु परिवर्तन संबंधी चिंताओ को पुन: वैज्ञानिक अध्ययन के केंद्र में ला दिया है।

रेड-स्नो की परिघटना:

  • रेड-स्नो जिसे लाल तरबूज़ (Watermelon) के रूप में भी जाना जाता है, इसे प्राचीन काल की परिघटना माना जाता है जिसने हाल ही में जलवायु परिवर्तन संबंधी चिंताओं को बढ़ाया है।
  • ऐसा माना जाता है कि रेड-स्नो की परिघटना का लिखित विवरण सर्वप्रथम अरस्तू द्वारा लगभग 2,000 वर्ष पूर्व दिया गया था।
  • ‘जानवरों के इतिहास’ के बारे में अरस्तू ने लिखा है: “जीवित जानवर उन पदार्थों में भी पाए जाते हैं जिनकी सामान्यत: पुष्टि नहीं की जा सकती है। यथा- कृमियों के लंबे समय तक हिम में दबे रहने के कारण हिम का आवरण लाल हो जाता है, साथ ही इस आवरण में जन्मे कृमि-बीज (Grub) भी लाल रंग के होते हैं।”
  • अरस्तू ने जिसका वर्णन कृमि और कृमि-बीज के रूप में किया है उसे आज वैज्ञानिक समुदाय के बीच शैवाल के रूप में जाना जाता है। यह शैवाल की एक प्रजाति (Chlamydomonas Chlamydomonas Nivalis) है जो ध्रुवीय और हिमनद क्षेत्रों में मौजूद है, जो खुद को गर्म रखने के लिये एक लाल वर्णक (Red Pigment) को धारण करती है।

रेड-स्नो का प्रभाव:

  • रेड-स्नो के कारण आसपास की हिम तेज़ी से पिघलती है। शैवाल जितने अधिक पास-पास होते हैं, हिम का रंग उतना ही लाल एवं गहरा होता है तथा हिम उतनी ही अधिक ऊष्मा को अवशोषित कर पिघलती है।
  • यद्यपि हिम का पिघलना उन जीवाणुओं के लिये अच्छा है जिन्हें जीवित रहने के लिये पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन इससे हिमनदों के पिघलने की दर बढ़ जाती है।
  • ये शैवाल हिम के एल्बेडो (Albedo- यह उस प्रकाश की मात्रा को बताता है जिसका हिमावरण से परावर्तन होता है) को बदल देते हैं, जिससे हिमावरण पिघलने लगता है।
  • जर्नल नेचर पत्रिका के एक अध्ययन के अनुसार, आर्कटिक में बर्फ के पिघलने के प्रमुख कारकों में से एक हिम एल्बेडो है।

हिमनद के पिघलने के अन्य कारण:

  • औद्योगिक क्रांति के बाद से कार्बन डाईऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से ध्रुवों पर भी तापमान में वृद्धि देखने को मिल रही है।
  • पर्यटक के कारण भी इन क्षेत्रों की पारिस्थितिकी प्रभावित हुई है। मनुष्यों के साथ वाहनों की आवाजाही से हिम के पिघलने की रफ्तार में तेज़ी आई है।
  • एल्बेडो में परिवर्तन से हिमावरण में दबी हुई मीथेन गैस बाहर निकलती है। मीथेन गैस भी वातावरण को गर्म करने में योगदान देती है तथा ग्लोबल वार्मिंग में इज़ाफा करती है।

हिमनद पिघलने का प्रभाव:

  • बाढ़ की बारंबारता में वृद्धि, जिसके परिणामस्वरूप नदियों, झीलों और समुद्रों आदि के जलस्तर में अचानक वृद्धि हो जाती है।

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  • हिमनदों के पिघलने से जैव विविधता को नुकसान पहुँचता है तथा जल का बढ़ता तापमान और जलीय जंतुओं एवं जलीय पादपों को प्रभावित करता है।
  • इसका प्रभाव प्रवाल भित्तियों (Coral Reefs) पर भी पड़ता है, जिन्हें प्रकाश संश्लेषण के लिये सूर्य की रोशनी की आवश्यकता होती है, लेकिन जब जलस्तर में वृद्धि होती है तो सूर्य का प्रकाश उन तक पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुँच पाता।

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संरक्षण के उपाय:

  • हिमनदों के आसपास के क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियाँ सीमित करनी होंगी, ताकि इनके पिघलने की गति को कम किया जा सके।
  • ‘साझा संपत्ति संसाधन’ (Common Property Resources- CPRs) के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय नियमों का निर्माण करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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