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Rapid Fire करेंट अफेयर्स 12 सितंबर, 2019

  • 12 Sep 2019
  • 8 min read
  • धारा 370 हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर दो अलग-अलग केंद्रशासित क्षेत्रों में विभाजित हो गया है- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख। लेकिन इन दोनों के लिये एक साझा उच्च न्यायालय रहेगा। राज्य न्यायिक अकादमी के निदेशक से मिली जानकारी के अनुसार, दोनों केंद्रशासित प्रदेशों पर 108 केंद्रीय कानून लागू होंगे जबकि राज्य के 166 कानून लागू रहेंगे एवं 164 कानून निष्प्रभावी हो जाएंगे। विदित हो कि केंद्र सरकार ने 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधानों को समाप्त कर दिया था। संसद ने इस संबंध में प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान कर दी थी और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने से संबंधित विधेयक को भी पारित कर दिया था। अब प्रश्न यह उठता कि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 का जम्मू-कश्मीर के कानूनों और लंबित मामलों पर क्या असर पड़ेगा? केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में विधानसभा का गठन होगा, लेकिन केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में कोई विधानसभा नहीं होगी और इसे सीधे तौर पर केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाएगा। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के केंद्रशासित प्रदेशों के लिये साझा उच्च न्यायालय होगा। उच्च न्यायालय में वकालत के लिये नियम और प्रक्रियाएँ पूर्ववत ही रहेंगी।
  • राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद आइसलैंड, स्विट्जरलैंड और स्लोवेनिया की अपनी यात्रा के पहले चरण में 9 सितंबर को आइसलैंड की राजधानी रेक्याविक पहुँचे। भारत ने जलवायु परिवर्तन, समुद्री कचरे और पर्यावरण संबंधी अन्य मुद्दों पर आइसलैंड के साथ पूर्ण रूप से सहयोग करने पर सहमति जताते हुए सतत् मत्स्य पालन, समुद्री अर्थव्यवस्था, जहाज़रानी, ​​हरित विकास, ऊर्जा, निर्माण और कृषि क्षेत्रों में आइसलैंड की क्षमता का लाभ उठाने की इच्छा जताई है। जबकि भारतीय कंपनियां फार्मा, हाई-एंड आईटी सर्विसेज़, बायोटेक्नोलॉजी, ऑटोमोबाइल, इनोवेशन और स्टार्ट-अप के क्षेत्र में आइसलैंड को अवसर प्रदान कर सकती हैं। इसके बाद भारत और आइसलैंड ने राजनयिक और आधिकारिक पासपोर्ट धारकों के लिये मत्स्य पालन सहयोग, सांस्कृतिक सहयोग और वीज़ा माफी के क्षेत्र में तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किये। ज्ञातव्य है कि आइसलैंड ने मई 2019 में आर्कटिक काउंसिल के अध्यक्ष का पदभार संभाला है तथा भारत इसका एक पर्यवेक्षक सदस्य देश है। यह वर्ष 2005 में डॉ. कलाम की यात्रा के बाद किसी भी भारतीय राष्ट्रपति का यह पहला आइसलैंड दौरा है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों पर गठित यू.के. सिन्हा समिति ने सिफारिश की है कि जहाँ तक संभव हो स्टार्ट-अप के लिये तेलंगाना के अभिनव मॉडल का मूल्यांकन अन्य राज्यों के संदर्भ में भी किया जाना चाहिये। स्टार्टअप्स और इनक्यूबेटर्स के लिये विभिन्न प्रोत्साहन रिपोर्टों में भी इसका उल्लेख किया गया है। तेलंगाना का स्टार्टअप मॉडल पाँच प्रमुख घटकों पर आधारित है:
  1. भौतिक अवसंरचना विकास।
  2. कार्यक्रम प्रबंधन क्षमताओं का विकास।
  3. स्थायी फंडिंग मॉडल।
  4. मानव पूंजी के विकास और प्रयोग को बढ़ावा देना।
  5. प्रारंभिक शिक्षा से नवाचार।

इसके अलावा तेलंगाना में स्टार्टअप्स के लिये कई प्रोत्साहन और पहलों का क्रियान्वयन किया जा रहा है। इनके तहत स्टार्टअप इनक्यूबेटर्स को स्टांप शुल्क में 100 प्रतिशत छूट (प्रतिपूर्ति) और पंजीकरण शुल्क के लिये पहले लेन-देन पर भुगतान किये गये शुल्क में 50 प्रतिशत की छूट आदि शामिल हैं। वित्तीय लाभों के अलावा तेलंगाना की स्टार्टअप नीति स्टार्टअप और इनक्यूबेटरों को भी निर्धारित प्रारूपों में स्व-प्रमाणन की सुविधा देती है।

  • उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्‍य की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए अपनी पहली कृषि निर्यात नीति की घोषणा की है। राज्‍य सरकार ने वर्ष 2024 तक कृषि उत्‍पादों का निर्यात दोगुना करने का लक्ष्‍य रखा है। इसके लिये किसानों और उद्यमियों को प्रोत्‍साहन देने के लिये अनेक कदम उठाए जाएंगे। राज्‍य सरकार ने अनुबंधित कृषकों और बटाईदार किसानों से कुछ शर्तों के साथ धान खरीदने की अनुमति भी दे दी है। अब किसानों के उत्पाद विश्व बाज़ार मानकों के अनुरूप तैयार कराए जाएंगे। निर्यात में कोई कठिनाई न हो, इसके लिये किसानों के क्लस्टर बनाए जाएंगे। गुणवत्तापरक उत्पाद पैदा करने के लिये सरकार की ओर से प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। 100 हेक्टेयर कृषि भूमि वाले क्लस्टर को 10 लाख रुपए, 150 हेक्टेयर तक 16 लाख रुपए और 200 हेक्टेयर पर 22 लाख रुपए प्रोत्साहन राशि अनुमति के योग्य है। इसके अलावा सर्वोच्च न्‍यायालय के निर्देश के अनुपालन में भीड़ की हिंसा के शिकार लोगों को मुआवज़ा देने पर भी सहमति जताई गई है।
  • नृपेंद्र मिश्र के कार्यमुक्त होने के बाद प्रधानमंत्री के मुख्य सचिव के रूप में डॉ. प्रमोद कुमार मिश्रा की नियुक्ति की गई है। डॉ. मिश्रा को कृषि, आपदा प्रबंधन, ऊर्जा क्षेत्र, ढाँचागत संरचना, वित्तीय प्रबंधन और नियामक मामलों से संबंधित कार्यक्रमों के प्रबंधन का लंबा अनुभव है। अनुसंधान, नीति निर्माण, कार्यक्रम-परियोजना प्रबंधन और प्रकाशन में उनका अच्छा प्रदर्शन रहा है। डॉ. मिश्रा प्रधानमंत्री के अपर मुख्य सचिव, कृषि और सहयोग के सचिव राज्य विद्युत नियामक आयोग के चेयरमैन के पदों पर कार्य कर चुके हैं। कृषि व सहयोग सचिव के रूप में उन्होंने राष्ट्रीय कृषि विकास कार्यक्रम और राष्ट्रीय सुरक्षा मिशन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हाल ही में डॉ. मिश्रा को संयुक्त राष्ट्र सासाकावा पुरस्कार 2019 से सम्मानित किया गया है। आपदा प्रबंधन में यह सबसे प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार है। गौरतलब है कि इसी वर्ष जून के महीने में प्रधानमंत्री मोदी के मुख्य सचिव नृपेंद्र मिश्र को दोबारा इसी पद पर नियुक्त किया गया था। इसके साथ ही उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया था। नृपेन्द्र मिश्रा को वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री का प्रमुख सचिव बनाया गया था।
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