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जैव विविधता और पर्यावरण

छोटे तथा बड़े वन्यजीवों की सुरक्षा

  • 06 Jun 2018
  • 5 min read

संदर्भ

केंद्र सरकार वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में प्रस्तावित संशोधनों के लिये  राज्यों से इनपुट इकट्ठा कर रही है। अधिनियम में कुछ ऐसी अनुसूचियाँ हैं  जो देश की जैव विविधता की विशालता को समझने के लिये पर्याप्त प्रतीत नहीं होती। इन अनुसूचियों पर विचार-विमर्श में राज्यों को काफी हद तक नज़रअंदाज किया  गया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु 

  • पिछले कुछ वर्षों में वन्यजीव अधिनियम की छः अनुसूचियों के अंतर्गत वन्यजीवों की सुरक्षा की विभिन्न कोटियों में दिये गए प्रजातियों की संख्या का विस्तार किया गया है। 
  • 1972 में कुल 184 जीवों को इन अनुसूचियों में शामिल किया गया था जिनमें वर्तमान में कशेरुकीय, अकशेरुकीय और पौधों समेत कुल 909 प्रविष्टियाँ दर्ज की गई हैं जो अभी भी अपरिवर्तित बनी हुई हैं।
  • इन अनुसूचियों में जीव-जंतुओं को शामिल करने या उन्हें बाहर करने की शक्ति केंद्र सरकार में निहित है।
  • ये अनुसूचियाँ महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि वे अवैद्ध शिकार के विरुद्ध नियमों और यहाँ तक कि आवास संरक्षण को भी निर्धारित करती हैं, क्योंकि वन भूमि को अलग करना उन क्षेत्रों में मुश्किल है जहाँ बेहतर संरक्षित प्रजातियाँ पाई जाती हैं।

अनुसूची में असंगतताओं की अधिकता 

  • क्रिसमोन रोज़ (crismon rose), एक रंगीन तितली जो व्यापक रूप से दक्षिण भारत में पाई जाती है, को  बाघ की श्रेणी में संरक्षित किया गया है।
  • वहीँ धारीदार लकडबग्घा (hyena) को अनुसूची III में जंगली सुअर या भौंकने वाले हिरण की “कम चिंता वाली" (least concern) प्रजातियों के साथ रखा गया है।
  • भारत की लुप्तप्राय मछलियों की 659 प्रजातियों में से अधिकांश का उल्लेख अनुसूची में नहीं मिलता है, जबकि तितली की कुछ प्रजातियों का उल्लेख किया गया है।
  • फ्रूट चमगादड़ (fruit bats) सहित चमगादड़ की 128 प्रजातियों को परागण में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका के बावजूद हानिकारक और नुकसान पहुँचाने वाले जीवों के रूप में माना गया है।

इन असंगतताओं के होते हुए क्या अखिल भारतीय सूची की आवश्यकता है?

  • पर्यावरणविदों के अनुसार जो देशज है वह दुर्लभ नहीं हो सकता और जो  कहीं भी व्यापक रूप से पाया जाता है वह लुप्तप्राय हो सकता है।
  • जीव-जंतुओं के असंख्य परिदृश्य में सुरक्षा के महत्त्वपूर्ण पहलू पर विचार करते हुए राज्यों के मत को अंतिम रूप से महत्त्व नहीं दिया जाना चाहिये।
  • उदाहरण के लिये अंडमान और निकोबार द्वीपों में पारिस्थितिकीविदों की दुविधा यह है कि यहाँ अंग्रेज़ों ने एक शताब्दी पहले हिरण और हाथियों की प्रजातियों का प्रवेश कराया था।
  • इन दो संरक्षित प्रजातियों (जिन्हें अनुसूची I और III में रखा गया है) ने देशी वनस्पतियों की संख्या को बड़े पैमाने पर कम किया है तथा अन्य देशी जीवों और वनस्पतियों के लिये खतरा उत्पन्न किया है। 
  • विधिवत संरक्षण, मूल्य रैंक, स्थानीय आवास नुकसान, सांस्कृतिक महत्त्व, आबादी में गिरावट और स्थानीय शोध जैसे पैरामीटर को शामिल करते हुए सूची को लगातार अद्यतन किये जाने की ज़रूरत है तभी इस केंद्रीय कानून का उद्देश्य साकार हो सकेगा।
  • संशोधनों को मूर्तरूप देने में राज्यों के विचारों को अहमियत देना इस कानून के उद्देश्यों के लिये निहायत ज़रूरी है।
  • यह गंभीर रूप से लुप्तप्राय एंबोली टॉड के अतिरिक्त अन्य जीवों को संरक्षित करने का सबसे आसान तरीका हो सकता है, जो वर्तमान में अधिनियम की अनुसूची में सूचीबद्ध नहीं हैं।
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