इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


शासन व्यवस्था

सभी जल विवाद समाधानों के लिये एक स्थायी ट्रिब्यूनल का प्रस्ताव

  • 02 Aug 2019
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

लोकसभा ने एक ऐसे स्थायी न्यायाधिकरण (Tribunal) का गठन करने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है, जो पानी के बँटवारे से संबंधित सभी अंतर्राज्यीय विवादों की सुनवाई करेगा।

  • इस प्रस्ताव के तहत अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 में संशोधन किया जाएगा, जिसमें जल संबंधी विवाद उत्पन्न होने पर हर बार एक अलग अस्थायी ट्रिब्यूनल की स्थापना की जाती है।
  • कानून का रूप लेने के बाद यह विधेयक नए स्थायी ट्रिब्यूनल में सभी पुराने मामलों के हस्तांतरण को भी सुनिश्चित करेगा और वर्तमान में सभी अस्थायी ट्रिब्यूनल समाप्त हो जाएंगे।

इस परिवर्तन की आवश्यकता क्यों है?

  • इस संशोधन का मुख्य उद्देश्य अंतर्राज्यीय जल विवादों की निपटान प्रक्रिया को अधिक कुशल और प्रभावी बनाना है, क्योंकि अब तक 1956 के अधिनियम के तहत कुल 9 ट्रिब्यूनल गठित किये जा चुके हैं, जिनमें से मात्र 4 ही अब तक किसी नतीजे पर पहुँचे हैं।
  • वर्ष 1990 में कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी नदी के जल विवाद का निपटारा करने के लिये एक ऐसे ही ट्रिब्यूनल की स्थापना की गई थी। इस ट्रिब्यूनल को अपना अंतिम निर्णय देने में तकरीबन 17 वर्ष लगे थे और इस विवाद को सुलझाने में कुल 28 वर्ष लगे थे।
  • इसके अलावा रावी और ब्यास नदी के जल विवाद में ट्रिब्यूनल की स्थापना अप्रैल 1986 में की गई थी और अभी तक उसका अंतिम निर्णय नहीं आया है।
  • अभी तक किसी भी ट्रिब्यूनल ने अपने विवाद को सुलझाने में जो समय लिया है वह न्यूनतम 7 वर्ष है।

क्या-क्या परिवर्तन किये जाएंगे?

  • राज्यों से संबंधित जल विवाद के लिये एक स्थायी ट्रिब्यूनल की स्थापना की जाएगी।
  • वर्तमान में कार्य कर रहे सभी अस्थायी ट्रिब्यूनलों को समाप्त कर दिया जाएगा और उनके मुकदमे स्थायी ट्रिब्यूनल को हस्तांतरित कर दिये जाएंगे।
  • संशोधन में इस बात की व्यवस्था की गई है कि सभी विवादों को अधिकतम साढ़े चार वर्ष में सुलझा लिया जाए।
  • वर्तमान पाँच ट्रिब्यूनलों को एक साथ स्थायी ट्रिब्यूनल में मिलाने से कर्मचारियों की संख्या में लगभग 25 प्रतिशत की कमी होगी तथा इससे 4.27 करोड़ की बचत का भी अनुमान है।

कैसे काम करेगा नया ट्रिब्यूनल?

  • मौजूदा व्यवस्था में जब राज्य जल संबंधी कोई विवाद उठाते हैं तो केंद्र सरकार उस विवाद को सुलझाने के लिये एक अस्थायी ट्रिब्यूनल का गठन कर देती है।
  • वर्तमान नियमों के अनुसार, केंद्र द्वारा गठित किसी भी ट्रिब्यूनल को अपना अंतिम निर्णय 3 वर्षों में देना होता है और इस अवधि को अतिरिक्त 2 वर्षों के लिये बढ़ाया जा सकता है, परन्तु यदि व्यवहार में देखें तो लगभग सभी ट्रिब्यूनलों ने अपने निर्णय देने में काफी अधिक समय लगाया है।
  • नई व्यवस्था के तहत यदि कोई भी राज्य जल संबंधी कोई विवाद उठता है तो केंद्र सरकार सर्वप्रथम उसके लिये एक विवाद समाधान समिति (Disputes Resolution Committee-DRC) का गठन करेगी।

केंद्र द्वारा जो DRC गठित की जाएगी उसकी अध्यक्षता एक ऐसा व्यक्ति करेगा जिसके पास जल क्षेत्र में काम करने का अनुभव होगा और जो सेवारत या सेवानिवृत्त सचिव रैंक का अधिकारी होगा। इसके अतिरिक्त इसमें कुछ अन्य विशेषज्ञ और संबंधित राज्य के प्रतिनिधि भी होंगे।

  • केंद्र द्वारा गठित DRC एक साल के भीतर बातचीत के माध्यम से विवाद को हल करने का प्रयास करेगी। इस अवधि को अधिकतम 6 महीनों तक बढ़ाया जा सकेगा।
  • यदि DRC विवाद को सुलझाने में असफल रहती है तो उस विवाद को स्थायी ट्रिब्यूनल को हस्तांतरित कर दिया जाएगा।
  • इस ट्रिब्यूनल में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और अधिकतम 6 सदस्य (तीन न्यायिक सदस्य और तीन विशेषज्ञ सदस्य) होंगे।
  • ट्रिब्यूनल में विवाद आने पर अध्यक्ष तीन सदस्यीय पीठ का गठन करेगा और वह पीठ जाँच करने से पूर्व DRC की रिपोर्ट पर विचार करेगी।
  • उस पीठ को अपना अंतिम फैसला 2 वर्ष के भीतर देना होगा, जिसे एक और वर्ष के लिये बढ़ाया जा सकेगा।
  • ट्रिब्यूनल द्वारा दिया गया निर्णय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के समान होगा और उसके विरुद्ध अपील करने का भी कोई प्रावधान नहीं होगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2