इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

प्रीलिम्स फैक्ट्स: 06 Nov, 2017

  • 06 Nov 2017
  • 9 min read

प्राचीन सर्पिल आकाशगंगा की खोज

  • हाल ही में वैज्ञानिकों द्वारा ब्रह्मांड में सर्वाधिक प्राचीन ‘सर्पिल आकाशगंगा’ (spiral galaxy) की खोज की गई है।  यह 11 बिलियन वर्ष पुरानी है और इसकी सहायता से आरंभिक ब्रह्मांड के बारे में जानकारियाँ प्राप्त हो सकती हैं।
  • इस आकाशगंगा को A1689B11 नाम से जाना जाता है।  इसका उद्भव बिग बैंग के 2.6 बिलियन वर्षों बाद हुआ था। 
  • शोधकर्त्ताओं ने ‘जैमिनी नार्थ टेलीस्कोप’ पर एक शक्तिशाली तकनीक का उपयोग किया, जो ‘गुरुत्वीय लेंसिंग’ (gravitational lensing) को ‘नियर इन्फ्रारेड इंटीग्रल फील्ड स्पेक्टोग्राफ’ (Near-infrared Integral Field Spectrograph- NIFS) से जोड़ती है।  इस प्रकार आकाशगंगा की पुरानी और सर्पिल प्रवृत्ति को प्रमाणित किया जा गया। 
  • गुरुत्वीय लेंस प्रकृति के सबसे बड़े टेलीस्कोप हैं जिनका निर्माण हज़ारों आकाशगंगाओं और डार्क मैटर युक्त विशाल क्लस्टरों से हुआ है।  
  • ये क्लस्टर मुड़ते हैं और आकाशगंगाओं के पीछे उनके प्रकाश में (प्रकृति अपरिवर्तनीय) को सामान्य लेंसों की तुलना में अधिक वृद्धि कर देते हैं।  
  • आरंभिक ब्रह्मांड में सर्पिल आकाशगंगाएँ प्राप्त होना दुर्लभ है।  आज यह आकाशगंगा समान द्रव्यमान की अन्य आकाशगंगाओं की तुलना में 20 गुना अधिक तेज़ी से तारों का निर्माण कर रही है।  
  • दरअसल, इस युग की अन्य गैलेक्सियों की तुलना में A1689B11 अत्यधिक ठंडी और पतली डिस्क के समान है, जो कि आंशिक अवरोध के साथ शांतिपूर्वक घूर्णन कर रही है।  इस प्रकार की सर्पिल आकाशगंगा को ब्रह्मांड की आरंभिक अवस्था में भी पहले कभी नहीं देखा गया था। 


नासा द्वारा कॉमेट 96P का अवलोकन

  • हाल ही में नासा और यूरोपियन अंतरिक्ष एजेंसी के वैज्ञानिकों द्वारा ‘सौर और हेलिओस्फेरिक वेधशाला’ (Solar and Heliospheric Observatory -SOHO) का उपयोग कर ‘कॉमेट 96P’ (Comet 96P) की वापसी का अवलोकन किया गया है।  इस प्रकार यह अन्तरिक्ष यान का अक्सर दिखने वाला ‘आगंतुक धूमकेतु’ (cometary visitor) बन गया है। 
  • इस धूमकेतु ने 25 अक्टूबर को ‘सोहो’ के निचले दाहिने किनारे में प्रवेश किया और 30 अक्टूबर को इसे छोड़ने से पहले इस धूमकेतु ने इसके चारों ओर चक्कर लगाए। सोहो द्वारा इससे पहले भी वर्ष 1996, 2002, 2007 और 2012 में इसका अवलोकन किया  था। 
  • इसी दौरान कॉमेट  96P नासा के दूसरे मिशन STEREO (short for Solar and Terrestrial Relations Observatory) से भी गुजरते हुए देखा गया।  दरअसल,  धूमकेतुओं के लिये यह आसान नहीं है कि वे अन्तरिक्ष में दो विभिन्न स्थानों से एक –एक करके गुजरें।  अतः ये कॉमेट 96P के अब तक के सर्वाधिक व्यापक और समांतर अवलोकन हैं। 
  • ये संयुक्त अवलोकन धूमकेतु के संगठन और सौर पवनों (सूर्य से होने वाला आवेशित कणों का निरंतर प्रवाह) के साथ इसकी पारस्परिक क्रिया के विषय में जानकारी देंगे।  
  • इन दोनों वेधशालाओं ने धूमकेतु के ध्रुवीकरण संबंधी आँकड़ों को एकत्रित किया गया।  ये सूर्य के प्रकाश की माप थी, जिसमें प्रकाश की सभी तरंगें (धूमकेतु की पुच्छ के कण) एक माध्यम से गुजरने के पश्चात् एक ही दिशा में उन्मुख हो गईं थी।  ध्रुवीकरण के आँकड़ों का एक साथ अध्ययन करने पर वैज्ञानिक उन कणों के विषय में जानकारी हासिल कर सकते थे जो कि प्रकाश से निकलते हैं। 
  • किसी धूमकेतु की आकृति का पता लगाने का ध्रुवीकरण सबसे अच्छा मार्ग है और समान समय में अनेक मापें प्राप्त करना पुच्छ के कणों के संगठन और द्रव्यमान के वितरण के विषय में उपयोगी जानकारी दे सकते थे। 
  • कॉमेट 96P को कॉमेट मैकहोल्ज़ के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसकी खोज वर्ष 1948 में डैन मैकहोल्ज़ ने की थी।  
  • यह प्रत्येक 5.24 वर्षों में सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाता है।  इसकी सूर्य से सबसे निकटतम दूरी 17 मिलियन किलोमीटर की है (जोकि एक धूमकेतु के लिये सूर्य से सबसे नजदीकी दूरी है)। 
  • जब वर्ष 2012 में  कॉमेट 96P को ‘सोहो’ में देखा गया था तो खगोलविदों ने धूमकेतु   से कुछ दूरी पर उसके छोटे टुकड़ों का भी अध्ययन किया था, जिसका अर्थ यह था कि धूमकेतु में सक्रियता से परिवर्तन हो रहा था। 
  • परन्तु इस समय वैज्ञानिकों ने एक तीसरे टुकड़े का भी अवलोकन किया, जिससे यह माना गया कि इस धूमकेतु का अभी भी विकास हो रहा है।  
  • वैज्ञानिकों ने कॉमेट 96P के अध्ययन को अत्यधिक रुचिकर बताया है, क्योंकि इसका संगठन असामान्य है और यह एक बड़े और  विविधतापूर्ण परिवार का पितृ धूमकेतु (parent) है।  तात्पर्य यह है कि लाखों वर्ष पूर्व एक ही कक्षा को साझा करने वाला तथा एक ही पितृ धूमकेतु से उत्पन्न होने वाला धूमकेतुओं का समूह छोटे टुकड़ों में टूट गया था। 


चीन द्वारा तिब्बत में विश्व के सबसे ऊँचे ‘प्लैनेटेरियम’ का निर्माण

  • हाल ही में चीन ने यह घोषणा की है कि वह अगले वर्ष तिब्बत में विश्व के सबसे ऊँचे नक्षत्र भवन (planetarium) का निर्माण करेगा।
  • यह प्लैनेटेरियम (जो कि चीन का पहला नक्षत्र-भवन होगा) में 1 मीटर व्यास वाले लेंसों युक्त इस क्षेत्र के सबसे बड़े प्रकाशीय खगोलीय टेलीस्कोप को लगाया जाएगा तथा इसके बाद यह खगोलीय शोध  और सार्वजनिक विज्ञान शिक्षा के लिये एक बड़ा क्षेत्रीय आधार बन जाएगा। 
  • इस टेलीस्कोप का विकास प्लैनेटेरियम और राष्ट्रीय खगोलीय अवलोकन द्वारा किया जाएगा और इसका उपयोग विभिन्न तारों के लिये किया जाएगा। 
  • इस टेलीस्कोप को प्लैनेटेरियम में लगाने पर  यह प्लैनेटेरियम को व्यापारिक खगोलीय शोध करने में सहायता करेगा।  
  • इस प्लैनेटेरियम की ऊँचाई विश्व में सर्वाधिक होगी।  यह लोगों को ब्रह्मांड के तारों के विस्तार के बारे में अवगत कराएगा।  इस क्षेत्र में हल्का सा वायु और प्रकाश प्रदूषण भी है। 
  • इसे वर्ष 2019 में पूरा कर लेने की योजना बनाई गई है। यह प्लैनेटेरियम तिब्बत की प्रांतीय राजधानी लहासा में तिब्बत म्यूजियम ऑफ़ नेचुरल साइंस के अन्दर बनाया जाएगा। 
  • इसे भी विश्व की छत का नाम दिया जा रहा है, क्योंकि यह समुद्र ताल से 4,000 मीटर की ऊँचाई पर है। तिब्बत में खगोलीय अन्वेषणों के लिये आवश्यक स्वच्छ आकाश जैसी दशाएँ विद्यमान हैं।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2