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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

प्रीलिम्स फैक्ट्स : 6 जनवरी, 2018

  • 06 Jan 2018
  • 13 min read

हिमाचल प्रदेश में होगी AIIMS की स्थापना

हाल ही में केन्‍द्रीय मंत्रिमंडल ने बिलासपुर (हिमाचल प्रदेश) में नए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान (All India Institute of Medical Science-AIIMS) की स्‍थापना को मंज़ूरी दी है। संस्‍थान की स्‍थापना प्रधानमंत्री स्‍वास्‍थ्‍य सुरक्षा योजना के तहत की जाएगी। परियोजना की लागत 1351 करोड़ रुपए है।

मुख्‍य विशेषताएँ

  • नए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान का निर्माण 48 महीने में पूरा कर लिया जाएगा। इसका पूर्व निर्माण-चरण 12 महीने का, निर्माण-चरण 30 महीने का और शुरू होने का चरण 6 महीने का रखा गया है।
  • संस्‍थान में 750 बिस्‍तरों की क्षमता और ट्रॉमा सेंटर की सुविधा वाला एक अस्‍पताल बनाया जाएगा। संस्‍थान के तहत एक मेडिकल कॉलेज भी होगा, जिसमें प्रतिवर्ष 100 एमबीबीएस छात्रों को प्रवेश दिया जाएगा।
  • पारंपरिक औषधि प्रणाली के तहत उपचार सुविधाएँ प्रदान करने के लिये एक आयुष विभाग भी निर्मित किया जाएगा।

प्रभाव

  • नए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान की स्‍थापना से दोहरे उद्देश्‍य को पूरा किया जाएगा, जिसमें लोगों को सुपर स्‍पेशलिटी स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएँ प्रदान की जाएंगी।
  • इसके अलावा क्षेत्र में चिकित्‍सकों और अन्‍य स्‍वास्‍थ्‍य सेवियों का समूह सृजित किया जाएगा, जो राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मिशन के तहत प्राथमिक तथा द्वितीयक स्‍तर के संस्‍थानों/सुविधाओं के लिये सेवाएँ देंगे।

प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (PMSSY) 

  • यह स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की एक प्रमुख योजना है।
  • इसकी घोषणा 2003 में की गई थी और मार्च 2006 में इसे मंजूरी दी गयी थी।
  • प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (PMSSY) का उद्देश्य देश के विभिन्न भागों में सस्ती और विश्‍वसनीय स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाओं की उपलब्‍धता की विसंगतियों को दूर करना और विशेष रूप से राज्यों में गुणवत्तापूर्ण और बेहतर चिकित्सीय शिक्षा के लिये सुविधाओं का विस्तार करना है।

PMSSY के दो घटक हैं

  1. एम्स (AIIMS) जैसे संस्थानों की स्थापना 
  2. सरकारी मेडिकल कॉलेज संस्थानों का उन्नयन (Upgradation)
  • इस योजना के तहत भुवनेश्‍वर, भोपाल, रायपुर, जोधपुर, ऋषिकेश और पटना में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थानों की स्‍थापना की जा चुकी है तथा रायबरेली में संस्‍थान का निर्माण प्रगति पर है। इसके अलावा 2015 में नागपुर (महाराष्‍ट्र), कल्‍याणी (पश्चिम बंगाल) तथा गुंटूर (आंध्र प्रदेश) के मंगलागिरि में तीन संस्‍थानों को और 2016 में भठिंडा तथा गोरखपुर में एक-एक संस्‍थानों को मंजूरी दी गई है। कामरूप (असम) में भी एक संस्‍थान को स्‍वीकृति दी गई है। 

दुनिया की पहली ‘स्पीड ब्रीडिंग’ (Speed Breeding) तकनीक

ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्त्ताओं ने दुनिया की पहली स्पीड ब्रीडिंग तकनीक विकसित की है। इससे गेहूं सहित अन्य अनाजों का उत्पादन तीन गुना तक बढाया जा सकता है।

प्रमुख बिंदु

  • नासा के वैज्ञानिकों ने इस तकनीक का इस्तेमाल अंतरिक्ष में गेहूँ उगाने के लिये किया था, जिसके तहत गेहूं पर लगातार प्रकाश का उपयोग किया था और ब्रीडिंग क्षमता बढ़ गई थी।
  • ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्त्ताओं ने अब पृथ्वी पर इस तकनीक से कम समय में अनाज उगाने में सफलता पाई है। इस तकनीक के द्वारा डीएस फराडे नामक गेहूँ की प्रजाति को विकसित किया गया है।
  • इस तकनीक द्वारा ग्लासहाउस में एक साल में गेहूँ, काबुली चना और जौ की छ: तथा तिलहन की चार प्रजातियाँ उगाई जा सकती हैं। परंपरागत तरीके से ग्लासहाउस में किसी भी अनाज की दो से तीन जबकि खेतों में केवल एक ही प्रजाति उगाई जा सकती है।

स्पीड ब्रीडिंग तकनीक 

  • वर्तमान में ग्लासहाउस में उच्च-दबाव युक्त सोडियम वाष्प लैंप (High-Pressure Sodium Vapor Lamps) का प्रयोग किया जाता है किंतु बिजली की मांग के मामले में ये काफी महँगें हैं।
  • शोधकर्त्ताओं ने इसके स्थान पर LED बल्ब का प्रयोग किया क्योंकि यह प्रतिदिन 22 घंटे तक अधिक दक्षता के साथ अधिक तीव्रता का प्रकाश उत्सर्जित कर सकता है।
  • इस प्रयोग द्वारा यह सिद्ध हो गया है कि अधिक देर तक प्रकाश देकर और बाहरी दशाओं को नियंत्रित कर फसलों की पैदावार बढ़ाई जा सकती है।
  • इस तकनीक का वर्टीकल फार्मिंग सिस्टम में भी प्रयोग किया जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2050 तक वर्तमान से 80 फीसद अधिक अनाज की ज़रूरत होगी। ऐसे में यह तकनीक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में काफी सहायक हो सकती है 
  • वर्तमान में गेहूँ की आनुवंशिक रूप से संशोधित किस्म (GM Crop) को व्यावसायिक रूप से नहीं उगाया जाता है। इस तकनीक को जीएम तकनीक से जोड़कर अनाज की पैदावार को अप्रत्याशित स्तर तक बढ़ाया जा सकता है।

लोकसभा द्वारा नाबार्ड संशोधन विधेयक, 2018 पारित 

लोकसभा ने राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (संशोधन) विधेयक, 2018 में राज्यसभा द्वारा प्रस्तावित संशोधनों को मंज़ूरी प्रदान कर दी है।

नाबार्ड अधिनियम, 1981 में निम्नलिखित संशोधनों को पारित किया गया है

  • विधेयक में बैंक की प्राधिकृत पूंजी को 5000 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 30,000 करोड़ रुपए कर दिया गया है तथा आरबीआई की सलाह से केंद्र सरकार इसमें वृद्धि भी कर सकती है।
  • नाबार्ड में आरबीआई की 0.4% की हिस्सेदारी होने से आरबीआई इसकी शेयरधारक और विनियामक दोनों बनी हुई थी। इस हिस्सेदारी को केंद्र सरकार को स्थानांतरित कर दिया गया है।
  • ‘लघु स्तर के उद्योग’ और ‘छोटे और विकेंद्रित क्षेत्र में उद्योग’ जैसे शब्दों को ‘सूक्ष्म उद्यम’ ‘‘लघु उद्यम’ और ‘मध्यम उद्यम’ जैसे शब्दों से प्रतिस्थापित किया गया है।
  • नाबार्ड अधिनियम में अब कंपनी अधिनियम, 1956 की बजाय कंपनी अधिनियम, 2013 के संदर्भों का प्रयोग किया जाएगा।

लाभ

  • सरकार के पास ग्रामीण इलाकों में औद्योगिक विकास पर व्यय करने के लिये अधिक रकम उपलब्ध रहेगी।
  • नाबार्ड के दायरे में कुटीर उद्योग के साथ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के आ जाने से इन्हें स्किल इंडिया से संबद्द कर रोज़गार सृजन में तेज़ी लाई जा सकेगी।
  • नाबार्ड में आरबीआई की हिस्सेदारी सरकार को अंतरित करने से हितों के टकराव की स्थिति का समाधान होगा।
  • इन संशोधनों से सरकार को 2022 तक किसानों की आय दुगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।  

क्या है राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड)?

  • यह कृषि और ग्रामीण विकास के लिये शीर्ष विकास बैंक के रूप में कार्य करता है।
  • शिवरमन समिति की सिफारिशों के आधार पर संसद के एक अधिनियम द्वारा 12 जुलाई, 1982 में इसकी स्थापना की गई थी।
  • इसे समन्वित ग्रामीण विकास के संवर्धन और समृद्धि हासिल करने के लिये कृषि, लघु उद्योगों, कुटीर एवं ग्रामोद्योगों, हस्तशिल्प, ग्रामीण शिल्प और ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य अनुषंगी आर्थिक गतिविधियों के लिये ऋण उपलब्ध कराने एवं उसका विनियमन करने का अधिदेश दिया गया है।

अंतरिक्ष में अज्ञात सूक्ष्मजीवों की पहचान
Unknown Microbes Identified in Space

अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station - ISS) पर स्थित अंतरिक्ष यात्रियों ने पहली बार अंतरिक्ष में ही अज्ञात सूक्ष्मजीवों (Microbes) की पहचान की है। इनमें परीक्षण के लिये नमूनों को पृथ्वी पर भेजने की ज़रूरत नहीं पड़ी।

प्रमुख बिंदु 

  • इस परीक्षण को दो हिस्सों में किया गया। 
  • पहले सूक्ष्मजीव के नमूनों का संग्रह किया गया और पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन (Polymerase Chain Reaction-PCR) द्वारा उनका प्रवर्धन किया गया।
  • तत्पश्चात् सूक्ष्मजीवों का अनुक्रमण कर उनकी पहचान की गई।
  • परीक्षण के बाद नमूनों को पृथ्वी पर भेजा गया ताकि अंतरिक्ष स्टेशन में प्राप्त निष्कर्षों की पुष्टि के लिये प्रयोगशालाओं में पुन: जैव-रासायनिक और अनुक्रमण परीक्षण(Biochemical and Sequencing Tests) किये जा सके। हर बार स्टेशन पर और पृथ्वी पर प्राप्त परिणाम समान पाए गए।

लाभ 

  • अंतरिक्ष में ही सूक्ष्मजीवों की पहचान करने की क्षमता हासिल होने से अंतरिक्ष यात्रियों के रोगों की जाँच और इलाज करने में आसानी होगी।
  • अन्य ग्रहों पर डीएनए आधारित जीवन की पहचान में सहायता मिलेगी।
  • नमूनों को पृथ्वी पर लाए बिना जाँच करने से समय और धन की बचत होगी।

अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (International Space Station)

  • अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को ऑर्बिटल स्टेशन के नाम से भी जाना जाता है। यह पृथ्वी की निम्न कक्षा (Lower Orbit) में स्थापित एक चमकीला और बड़ा अंतरिक्ष यान है। इसकी सही अवस्थिति की जानकारी होने पर इसे रात में बिना टेलिस्कोप की सहायता से देखा जा सकता है।
  • 1998 में इसके पहले भाग को अंतरिक्ष में स्थापित किया गया था। अंतरिक्ष स्टेशन एक अद्वितीय विज्ञान प्रयोगशाला है, जहाँ ऐसे प्रयोग किये जाते हैं, जो पृथ्वी पर संभव नहीं है।
  • इसका निर्माण पाँच स्पेस एजेंसियों-संयुक्त राज्य अमेरिका की नासा (NASA), रूस की रोस्कोस्मोस (ROSCOSMOS), यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA), कनाडा अंतरिक्ष एजेंसी (CSA) और जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (JAXA) द्वारा मिलकर किया गया है।
  • यह औसतन 220 मील (400 किमी.) की ऊंचाई पर 17500 मील प्रति घंटे (28000 किमी प्रति घंटे ) की रफ्तार से पृथ्वी का चक्कर लगाता है अर्थात् हर 90 मिनट में यह पृथ्वी का एक चक्कर लगा लेता है।
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