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भारतीय इतिहास

दार्शनिक-संत रामानुजाचार्य

  • 04 Feb 2022
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

रामानुजाचार्य, भक्ति आंदोलन, स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी।

मेन्स के लिये:

रामानुजाचार्य तथा भक्ति आंदोलन और सामाजिक समानता प्राप्त करने में इनकी भूमिका, स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी और इसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री 5 फरवरी को हैदराबाद में रामानुजाचार्य की विशाल प्रतिमा “स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी” का उद्घाटन करेंगे।

  • 'वसुधैव कुटुम्बकम (दुनिया एक परिवार) के उनके विचार को कायम रखते हुए भारत उनकी 1,000वीं जयंती को 'समानता के त्योहार' के रूप में मना रहा है।

प्रतिमा से संबंधित तथ्य:

  • यह 216 फीट ऊँची प्रतिमा है, जिसे 'पंचलौह' यानी पाँच धातुओं- सोना, चांदी, तांबा, पीतल और जस्ता के  संयोजन से बनाया गया है, यह बैठी हुई मुद्रा में धातु की दुनिया में सबसे ऊँची प्रतिमाओं में से एक है।
  • यह प्रतिमा 'भद्र वेदी' नाम की 54 फीट ऊँची इमारत पर स्थापित है। इसमें एक वैदिक डिजिटल पुस्तकालय और अनुसंधान केंद्र, प्राचीन भारतीय ग्रंथ, एक थिएटर तथा श्री रामानुजाचार्य के कई कार्यों का विवरण देने वाली एक शैक्षिक गैलरी आदि शामिल हैं।

जीवन परिचय:

  • वर्ष 1017 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में जन्मे रामानुजाचार्य एक वैदिक दार्शनिक और समाज सुधारक थे।
  • उनके जन्म के समय उनका नाम लक्ष्मण रखा गया था। उन्हें इलाया पेरुमल के नाम से भी जाना जाता था, जिसका अर्थ है दीप्तिमान
  • उन्होंने समानता और सामाजिक न्याय का समर्थन करते हुए पूरे भारत की यात्रा की।
  • उन्होंने भक्ति आंदोलन को पुनर्जीवित किया और उनके उपदेशों ने अनेक भक्ति विचारधाराओं को प्रेरित किया। उन्हें अन्नामाचार्य, भक्त रामदास, त्यागराज, कबीरमीराबाई जैसे कवियों के लिये प्रेरणा माना जाता है।
  • रामानुजाचार्य वेदांत के विशिष्टाद्वैतवाद की उप-शाखा के मुख्य प्रस्तावक के रूप में प्रसिद्ध हैं।
    • विशिष्टाद्वैत वेदांत दर्शन की एक अद्वैतवादी परंपरा है।।
    • यह सर्वगुण-संपन्न परमसत्ता का अद्वैतवाद है, जिसमें मात्र ब्रह्म का अस्तित्त्व माना जाता है, लेकिन इसकी अभिव्यक्ति विविध रूपों में होती है।
  • उन्होंने नवरत्नों के नाम से प्रसिद्ध नौ शास्त्रों की रचना की और वैदिक शास्त्रों पर कई भाष्यों की रचना की।
    • रामानुज के सबसे महत्त्वपूर्ण लेखन में ‘वेदांत सूत्र’ पर उनकी टिप्पणी (श्री भाष्य या ‘सच्ची टिप्पणी’) और भगवद-गीता पर उनकी टिप्पणी (गीताभास्य या ‘गीता पर टिप्पणी’) शामिल हैं।
    • उनके अन्य लेखन में ‘वेदांत संग्रह’ (वेद के अर्थ का सारांश), वेदांतसार (वेदांत का सार) और वेदांतदीप (वेदांत का दीपक) शामिल हैं।
  • उन्होंने प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने और संसाधनों का अति-दोहन न करने की आवश्यकता पर भी बल दिया है।

स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी:

  • रामानुज सदियों पहले लोगों के सभी वर्गों के बीच सामाजिक समानता के पैरोकार थे और उन्होंने समाज में जाति या स्थिति से परे सभी के लिये मंदिरों के दरवाज़े खोलने हेतु प्रोत्साहित किया, वह भी एक ऐसे समय में जब कई जातियों के लोगों को मंदिरों में प्रवेश की अनुमति नहीं थी।
  • उन्होंने शिक्षा को उन लोगों तक पहुँचाया जो इससे वंचित थे। उनका सबसे बड़ा योगदान ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की अवधारणा का प्रचार है, जिसका अनुवाद प्रायः ‘सारा ब्रह्मांड एक परिवार है’, के रूप में किया जाता है।
  • उन्होंने अपने अभिभाषणों के माध्यम से मंदिरों में सामाजिक समानता और सार्वभौमिक भाईचारे के अपने विचारों का प्रचार करते हुए कई दशकों तक पूरे भारत की यात्रा की।
  • उन्होंने सामाजिक रूप से हाशिये पर स्थित लोगों को गले लगाया और उनकी इस स्थिति के कारणों की निंदा की तथा शाही अदालतों (Royal Courts) से उनके साथ समान व्यवहार करने को कहा। 
  • उन्होंने ईश्वर की भक्ति, करुणा, विनम्रता, समानता और आपसी सम्मान के माध्यम से सार्वभौमिक मोक्ष की बात की जिसे श्री वैष्णव संप्रदाय के रूप में जाना जाता है।
  • रामानुजाचार्य ने सामाजिक, सांस्कृतिक, लैंगिक, शैक्षिक और आर्थिक भेदभाव से लाखों लोगों को इस मूलभूत विश्वास के साथ मुक्त किया कि राष्ट्रीयता, लिंग, जाति, पंथ से पहले हर मनुष्य समान है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  

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