इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भूगोल

पर्सियड्स उल्का बौछार

  • 19 Aug 2020
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

पर्सियड्स उल्का बौछार, उल्का पिंड, धूमकेतु

मेन्स के लिये:

पर्सियड्स उल्का बौछार के कारण

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2020 में 17 से 26 अगस्त के मध्य उल्का वर्षा/पर्सियड्स उल्का बौछार (Perseids Meteor Shower) सक्रिय रहेगी। यह एक वार्षिक खगोलीय घटना है जिसे सबसे खूबसूरत उल्का पिंडों की बौछार माना जाता है। इस खगोलीय परिघटना में कई चमकीले उल्का पिंड तथा आग के गोले आकाश में तीव्र आवाज़ एवं रोशनी के साथ चमकते हैं, जिसे लोगों द्वारा पृथ्वी से देखा जा सकता है।


प्रमुख बिंदु:

  • उल्का: यह एक अंतरिक्ष चट्टान या उल्कापिंड है जो पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है।
    • उल्कापिंड अंतरिक्ष में मौजूद वह वस्तुएँ हैं जिनका आकार धूल के कण से लेकर एक छोटे क्षुद्रग्रहों के बराबर होता है।
    • इनका निर्माण अन्य बड़े निकायों जैसे धूमकेतु, क्षुद्र ग्रह, ग्रह एवं उपग्रह से टूटने या विस्फोट के कारण होता हैं।
  • जब उल्कापिंड तेज़ गति से पृथ्वी के वायुमंडल (या किसी अन्य ग्रह, जैसे मंगल) में प्रवेश करते हैं तो इनमें तीव्र ज्वाला उत्पन्न होती है इसलिये इन्हें टूटा हुआ तारा (shooting Stars) कहा जाता है।
    • जैसे ही ये अंतरिक्ष चट्टानें या उल्का पिंड पृथ्वी की तरफ आती है तो ये चट्टानें हवा के प्रतिरोध के कारण अत्यधिक गर्म हो जाती हैं।
    • जब पिंड/चट्टानें वायुमंडल से गुजरते हैं तो यह अपने पीछे गैस की एक चमकीली (टूटा हुआ तारा) रेखा या पूंछ का निर्माण करते हैं जो पर्यवेक्षकों को पृथ्वी से दिखाई देती हैं।
    • आग के गोलों (Fireballs) में तीव्र विस्फोट के साथ प्रकाश एवं रंग उत्सर्जित होता है जो उल्का की रेखा/पूंछ की तुलना में देर तक दिखता है, क्योंकि आग के गोले का निर्माण उल्का के बड़े कणों से मिलकर होता है
  • जब कोई उल्कापिंड वायुमंडल को पार करते हुए ज़मीन से टकराता है, तो उसे ‘उल्कापिंड’ (Meteorite) कहा जाता है।

उल्का बौछार:

  • जब पृथ्वी पर एक साथ कई उल्का पिंड पहुँचते हैं या गिरते हैं तो इसे उल्का बौछार (Meteor Shower) कहा जाता है।
    • पृथ्वी और दूसरे ग्रहों की तरह धूमकेतु भी सूर्य की परिक्रमा करते हैं। ग्रहों की लगभग गोलाकार कक्षाओं के विपरीत, धूमकेतु की कक्षाएँ सामान्यत: एकांगी (lop-sided) होती हैं।
    • जैसे-जैसे धूमकेतु सूर्य के करीब आता है, उसकी बर्फीली सतह गर्म होकर धूल एवं चट्टानों (उल्कापिंड) के बहुत सारे कणों को मुक्त करती है।
    • यह धूमकेतु का मलबा धूमकेतु के मार्ग के साथ बिखर जाता है विशेष रूप से आंतरिक सौर मंडल में (जिसमें बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह शामिल हैं) क्योंकि सूर्य की अधिक गर्मी के कारण बर्फ और मलबे में एक प्रकार का उबाल उत्पन्न होता है।
  • उल्का पिंडों का नाम उस नक्षत्र के नाम पर रखा गया है जहाँ उल्का पिंड आते हुए प्रतीत होते हैं। उदाहरण के लिये, ओरियोनिड्स उल्का बौछार (Orionids Meteor Shower), जो प्रत्येक वर्ष में होती है, नक्षत्र 'ओरियन द हंटर' (Orion the Hunter) के निकट उत्पन्न होती है।

पर्सियड्स उल्का बौछार:

  • इसे इसके चर्मोत्कर्ष पर हर वर्ष अगस्त माह के मध्य में देखा जाता है इसे सर्वप्रथम 2,000 वर्ष पूर्व देखा गया था।
  • क्लाउड ऑफ डेबरिस (Cloud of Debris) लगभग 27 किमी. चौड़ा है तथा 160 से 200 उल्कापिंड मिलकर इसके चर्मोत्कर्ष बिंदु का निर्माण करते हैं ये पृथ्वी के वायुमंडल में प्रत्येक समय टुकड़ों के रूप में घूमते रहते हैं एवं प्रति घंटे लगभग 2.14 लाख किमी. की यात्रा करते है जब ये पृथ्वी की सतह से 100 किमी. पर स्थित होते हैं तो इनमें कम ज्वाला उत्पन्न होती हैं।
  • इसे यह नाम पर्सस (Perseus Constellation ) नक्षत्र से मिला है।
  • प्रदूषण और मानसून के बादलों के कारण पर्सिड्स को भारत से देख पाना मुश्किल है।
  • धूमकेतु स्विफ्ट-टटल (Comet Swift-Tuttle): इसे वर्ष 1862 में लुईस स्विफ्ट( Lewis Swift) और होरेस टटल (Horace Tuttle) द्वारा खोजा गया था जिसे सूर्य के चारों ओर एक चक्कर को पूरा करने में 133 वर्ष लगते हैं।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow