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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

खत्म हो गया भारत का 250 वर्ग किमी. तटीय क्षेत्र

  • 13 Jan 2017
  • 5 min read

सन्दर्भ

पिछले 15 वर्षों में समुद्र के जल-स्तर में हुई वृद्धि और तटीय मृदा के कटाव के कारण भारत की 250 वर्ग किलोमीटर से भी अधिक तटीय भूमि समुद्र में जलमग्न हो गई है| हाल ही में आईआईटी खड़गपुर के  वैज्ञानिकों की एक टीम ने पाया है कि इस अपरदन का कारण अंटार्कटिक क्षेत्र से चलने वाली शक्तिशाली लहरें और तूफानी बर्फीली हवाएँ हैं|

कैसे भारत ने खो दिया एक महत्त्वपूर्ण तटीय हिस्सा?

  • 21 साल की अवधि में आठ उपग्रहों द्वारा एकत्रित आँकड़ों का विश्लेषण करने पर आईआईटी खड़गपुर के नौसेना वास्तुकला एवं समुद्री अभियांत्रिकी विभाग के प्रमुख पी. के. भास्करन और वैज्ञानिकों की एक टीम ने पाया है कि अंटार्कटिक से चलने वाली शक्तिशाली लहरों और तूफानी बर्फीली हवाओं ने भारतीय समुद्र तट के कटाव में उल्लेखनीय वृद्धि की है|
  • इस टीम ने अपने अनुसन्धान में पाया कि शक्तिशाली लहरें और समुद्री तूफान जलवायु परिवर्तन की वजह से आ रहे हैं और पिछले 20 वर्षों में अंटार्कटिक क्षेत्र के आसपास ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि हुई है| गौरतलब है कि ये शक्तिशाली लहरें और तूफानी हवाएँ हज़ारों किलोमीटर की यात्रा कर भारत के समुद्री तट पर पहुँचती हैं और इनकी वज़ह से बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में समुद्री अपरदन  और अवसादन का प्रारूप बदल गया है|
  • दरअसल, ये शक्तिशाली लहरें और तूफानी हवाएँ अब 3 से चार दिनों के अन्दर भारत के समुद्री तट तक पहुँच जा रही हैं, जो हवा की गति, लहरों की ऊँचाई  और समुद्र धाराओं में व्यापक परिवर्तन का कारण बन रही हैं| ज्ञात हो कि इन व्यापक परिवर्तनों के कारण ही अपरदन की दर में वृद्धि हो रही है और अवसादन का पैप्रारूप भी बदल रहा है| गौरतलब है इसका प्रभाव सुंदरबन क्षेत्र में भी देखने को मिला है|
  • टीम के अनुसन्धान के मुताबिक बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में लहरों की ऊँचाई में लगभग 1.4 मीटर की वृद्धि हुई है और हवाओं की गति पिछले दो दशकों में प्रति सेकंड 3.1 मीटर बढ़ गई है; यही  प्रवृत्ति अरब सागर में भी देखी जा रही है|

निष्कर्ष 

  • ज्ञात हो कि अहमदाबाद स्थित इसरो की एक प्रमुख इकाई ‘स्पेस एप्लीकेशन सेंटर’ के 10 वैज्ञानिकों के एक दल ने देश की 8414 किलोमीटर लंबी तटरेखा में परिवर्तन की प्रवृत्तियों का अध्ययन किया था, इस अध्ययन में अंडमान एवं निकोबार तथा लक्षद्वीप द्वीप समूहों की तटरेखा को भी शामिल किया गया था| अध्ययन में पाया गया कि 3,829 किमी. (45.5%) तटरेखा कटाव की चपेट में है, जबकि 3,004 किमी. (35.7%) तटरेखा में अभिवृद्धि हो रही है, वहीं 1,581 किमी. (18.8%) तटरेखा में आम तौर पर कोई बदलाव देखने को नहीं मिल रहा है|  
  • अध्ययन के अनुसार, निकोबार द्वीप में अधिकतम 94 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र समुद्र में विलीन हो चुका है| महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में अपरदन के कारण तटरेखा लगातार सिमट रही है| ये आँकड़ें दिखाते हैं कि जलवायु परिवर्तन किस हद तक हमारे जीवन को प्रभावित कर रहा है|
  • यह घटना इस बात की द्योतक है कि ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव अब एक महासागर से दूसरे महासागर तक भी देखा जा रहा है| अतः यदि समय रहते इस समस्या का निराकरण न किया गया तो एक दिन ऐसा आएगा कि जब भारत या विश्व के तटीय क्षेत्र ही नहीं, बल्कि पूरी मानव सभ्यता ही जलमग्न हो जाएगी|
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