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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सऊदी-ईरान संबंधों का सामान्यीकरण

  • 18 Oct 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अरब स्प्रिंग

मेन्स के लिये:

सऊदी-ईरान संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ईरान और सऊदी अरब के प्रतिनिधियों के बीच बगदाद में चार और न्यूयॉर्क में एक बैठक हुई। ये बैठकें वर्ष 2016 से स्थिर द्विपक्षीय संबंधों के उभरने की निरंतरता का संकेत देती हैं।

  • नए तरीकों से स्थापित द्विपक्षीय संबंध, सऊदी अरब और ईरान के बीच संबंधों के सामान्यीकरण के चलते भारत के लिये भी क्षेत्रीय स्थिरता और कूटनीतिक सहजता का मार्ग प्रशस्त होगा।

Iran

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि (सऊदी अरब-ईरान संघर्ष):
    • धार्मिक समूह: इन दोनों के बीच दशकों पुराना झगड़ा धार्मिक मतभेदों के कारण और गहरा गया है।
      • इनमें से प्रत्येक इस्लाम की दो मुख्य शाखाओं में से एक का पालन करता है। ईरान में बड़े पैमाने पर शिया मुस्लिम है, जबकि सऊदी अरब स्वयं को प्रमुख सुन्नी मुस्लिम शक्ति के रूप में देखता है।
      • ऐतिहासिक रूप से सऊदी अरब राजशाही और इस्लाम धर्म का जन्मस्थान है जो स्वयं को विश्व में इस्लामिक-स्टेट का नेतृत्वकर्त्ता समझता था। 
      • हालाँकि इसे 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति द्वारा चुनौती दी गई थी, जिसने इस क्षेत्र में एक नए प्रकार के राज्य का निर्माण किया- एक तरह का क्रांतिकारी धर्मतंत्र जिसका इस मॉडल को अपनी सीमाओं से परे निर्यात करने का एक स्पष्ट लक्ष्य था।
    • क्षेत्रीय शीत युद्ध: सऊदी अरब और ईरान दो शक्तिशाली पड़ोसी हैं जो क्षेत्रीय प्रभुत्व के लिये संघर्षरत हैं।
      • इस विद्रोह ने अरब क्षेत्र के अतिरिक्त दुनिया भर में (2011 में अरब स्प्रिंग के बाद) राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर दी।
      • ईरान और सऊदी अरब ने अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिये इस उथल-पुथल का फायदा उठाया, विशेष रूप से सीरिया, बहरीन और यमन में आपसी संदेह को और बढ़ावा दिया।
      • इसके अलावा सऊदी अरब और ईरान के बीच संघर्ष को बढ़ाने में अमेरिका और इज़राइल जैसी बाहरी शक्तियों की प्रमुख भूमिका है।
    • छद्म युद्ध (Proxy War): प्रत्यक्ष रूप से ईरान और सऊदी अरब इस युद्ध को नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन वे इस क्षेत्र के आसपास कई छद्म युद्धों (ऐसा संघर्ष जहाँ वे प्रतिद्वंद्वी पक्षों और रक्षक योद्धाओं का समर्थन करते हैं) में शामिल रहे हैं।
      • जैसे- यमन में हूती विद्रोही। ये समूह अधिक क्षमता प्राप्त कर सकते हैं जो इस क्षेत्र में और अधिक अस्थिरता पैदा कर सकते हैं। सऊदी अरब ने ईरान पर उनका समर्थन करने का आरोप लगाया है।
    • 2016 फ्लैश प्वाइंट: सऊदी अरब द्वारा शिया मुस्लिम धर्मगुरु शेख निम्र अल-निम्र  (Nimr al-Nimr) को फाँसी दिये जाने के बाद कई ईरानी प्रदर्शनकारियों ने ईरान में सऊदी राजनयिक मिशनों पर हमला किया।
  • संबंधों के सामान्यीकरण का कारण:
    • सऊदी अरब की विज़न 2030 रणनीति: यह देश की अर्थव्यवस्था, रक्षा, पर्यटन और नवीकरणीय ऊर्जा में लक्षित सुधारों को संदर्भित करता है।
      • कोविड-19 के संदर्भ में सऊदी अरब ने यह महसूस किया है कि महत्त्वपूर्ण निवेश को केवल ईरान के साथ डी-एस्केलेशन के माध्यम से आकर्षित किया जा सकता है।
    • क्षेत्रीय मोर्चे पर समझौता: सऊदी अरब, अरब लीग (एक क्षेत्रीय संगठन) ने सीरिया के सत्ता  धारी के रूप में बशर असद (Bashar Assad) को नियुक्त करने की प्रक्रिया में भी शामिल है, जिसका ईरान ने स्वागत किया है।
    • क्षेत्र से अमेरिका की वापसी: नए अमेरिकी राष्ट्रपति (जो बाइडेन) प्रशासन का आगमन एवं अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी तथा अब भारत-प्रशांत क्षेत्र पर अधिक ध्यान केंद्रित करना, ईरान पर सऊदी-अरब के नरम रुख का एक और कारण हो सकता है।
  • संबंधों के सामान्यीकरण का संभावित प्रभाव:
    • इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष का समाधान: ईरान और सऊदी अरब के बीच संबंधों में सुधार होने से इज़राइल और फिलिस्तीनी मुद्दे से निपटने में सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
    • तेल बाज़ार का स्थिरीकरण: ईरान और सऊदी अरब साझा हित में अपनी अर्थव्यवस्थाओं को बाज़ार के महत्त्व को देखते हुए तेल की स्थिर कीमतों के लिये साझा करते हैं।
      • संबंधों के सामान्यीकरण से सभी तेल उत्पादक देशों हेतु स्थिर राजस्व के साथ-साथ सऊदी अरब एवं ईरान दोनों के आर्थिक योजनाकारों के लिये अधिक पूर्वानुमान सुनिश्चित होगा।

आगे की राह

  • भारत की भूमिका: ऐतिहासिक रूप से दोनों देशों के साथ भारत के अच्छे राजनयिक संबंध हैं। दोनों देशों के बीच संबंधों के स्थिर होने से भारत पर मिश्रित प्रभाव पड़ सकता है।
    • नकारात्मक पक्ष के रूप में तेल की ऊँची कीमतें भारत में व्यापार संतुलन को प्रभावित करेंगी।
    • इसके सकारात्मक पक्ष के रूप में  यह पूरे क्षेत्र में निवेश, कनेक्टिविटी परियोजनाओं को आसान बना सकता है।
  • ईरान से पारस्परिकता: ईरान को यमन में संघर्ष विराम का सार्वजनिक रूप से समर्थन करके अपने राजनयिक प्रयासों की छाप छोड़ने की आवश्यकता है।
  • अमेरिकी प्रतिबंधों में ढील: यदि ईरान-सऊदी अरब संबंधों को सामान्य बनाना है, तो ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों को लेकर स्पष्टता सबसे महत्त्वपूर्ण है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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