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आंतरिक सुरक्षा

एनजीटी द्वारा ई-कचरे पर तीन महीने में कार्य-योजना की मांग

  • 23 Aug 2018
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

यह बताते हुए कि ई-कचरे का वैज्ञानिक निपटान पर्यावरण की सुरक्षा के लिये एक महत्त्वपूर्ण कारक है, हाल ही में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) को तीन महीने के भीतर ई-कचरा प्रबंधन पर एक कार्य-योजना प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • एनजीटी अध्यक्ष आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ के अनुसार ई-कचरे का उचित निपटान एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। 
  • एनजीटी ने इस संबंध में एमओईएफसीसी, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नियमों के प्रवर्तन तथा उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने हेतु एक कार्य योजना तैयार करने के लिये निर्देशित किया।
  • यह निर्देश उस अवसर पर दिया गया जब एनजीटी ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2016  और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के उल्लंघन में सड़कों और नदी के किनारों पर ई-कचरे तथा अन्य ठोस अपशिष्टों के अनधिकृत "पुनर्चक्रण, संग्रह, नष्ट करने, जलाने, बिक्री" के विरुद्ध एक याचिका की सुनवाई कर रहा था।

प्रदूषण का कारण

  • याचिका में इस तथ्य पर भी प्रकाश डाला गया है कि इलेक्ट्रॉनिक कचरा सीसे के 40% और लैंडफिल में पाए गए सभी भारी धातुओं के 70% के लिये उत्तरदायी है। 
  • याचिका में यह तर्क भी दिया गया कि ई-कचरा और अन्य ठोस अपशिष्ट के दहन और बिक्री के परिणामस्वरूप भूजल प्रदूषण और वायु प्रदूषण की स्थिति पैदा हुई।

एनजीटी क्या है?

  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की स्थापना 18 अक्तूबर, 2010 को एनजीटी अधिनियम 2010 के तहत पर्यावरण बचाव, वन संरक्षण, प्राकृतिक संसाधनों सहित पर्यावरण से संबंधित किसी भी कानूनी अधिकार के प्रवर्तन, व्यक्ति अथवा संपत्ति के नुकसान के लिये अनुतोष और क्षतिपूर्ति प्रदान करने एवं इससे जुड़े हुए मामलों के प्रभावशाली और तीव्र गति से निपटारे के लिये की गई है। 
  • यह एक विशिष्ट निकाय है, जो पर्यावरण विवादों एवं बहु-अनुशासनिक मामलों को सुविज्ञता से संचालित करने के लिये सभी आवश्यक तंत्रों से सुसज्जित है। अधिकरण का उद्देश्य पर्यावरण के मामलों को द्रुत गति से निपटाना तथा उच्च न्यायालयों के मुकदमों के भार को कम करने में मदद करना है।

क्या है ई-कचरा?  

  • कंप्यूटर तथा उससे संबंधित अन्य उपकरण तथा टी.वी., वाशिंग मशीन तथा फ्रिज जैसे घरेलू उपकरण (इन्हें White Goods कहा जाता है) और कैमरे, मोबाइल फोन तथा उससे जुड़े अन्य उत्पाद जब चलन/उपयोग से बाहर हो जाते हैं तो इन्हें संयुक्त रूप से ई-कचरे की संज्ञा दी जाती है। 
  • ट्यूबलाइट, बल्ब, सीएफएल जैसी चीज़ें जिन्हें हम रोज़मर्रा इस्तेमाल में लाते हैं, उनमें भी पारे जैसे कई प्रकार के विषैले पदार्थ पाए जाते हैं, जो इनके बेकार हो जाने पर पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। 
  • इस कचरे के साथ स्वास्थ्य और प्रदूषण संबंधी चुनौतियाँ तो जुड़ी हैं ही, लेकिन साथ ही चिंता का एक बड़ा कारण यह भी है कि इसने घरेलू उद्योग का स्वरूप ले लिया है और घरों में इसके निस्तारण का काम बड़े पैमाने पर होने लगा है। 
  • चीन में प्रतिवर्ष लगभग 61 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न होता है और अमेरिका में लगभग 72 लाख टन तथा पूरी दुनिया में कुल 488 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न हो रहा है।
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